Silar
Silar (सिलार) Shilhar (शिलहार) is a gotra of Jats. [1] [2] It is variant of Salar.
Origin
They originated from Mahabharata tribe Shalva (शाल्व).[3]
History
शाल्व-शिलाहार-सालार जाटवंश
दलीप सिंह अहलावत[4] लिखते हैं:.... शाल्व-शिलाहार-सालार - महाभारतकाल में भारतवर्ष में इस चन्द्रवंशी जाटवंश के दो जनपद थे (भीष्मपर्व, अध्याय 9)। महाभारत युद्ध में शाल्व सैनिक दुर्योधन की ओर होकर पाण्डवों के विरुद्ध लड़े थे (भीष्मपर्व)। महाभारत विराट पर्व 1-9 और वनपर्व 12-33 में शाल्व वंश का वर्णन मिलता है।
इन शाल्वों की राजधानी सौभनगर समुद्रकुक्षि थी। श्रीकृष्ण जी ने दैत्यपुरी के नाम से प्रसिद्ध सौभनगरी के नरेश का दमन किया था। काशिकावृत्ति 4-2-76 के अनुसार एक वैधूमाग्नि नगरी भी इसी वंश की थी जिसका विधूमाग्नि नामक राजा था। सौभपुराधिपति राजा शिशुपाल का किसी नाते का भाई था (वनपर्व 15-13)। द्वापरान्त में यह वंश 6 भागों में बंट गया था (काशिकावृत्ति 4-1-17)। आठवीं शताब्दि तक इनकी प्रगति लुप्त रही।
843 ई० में बम्बई प्रान्त के थाना जिले में कृष्णागिरि से प्राप्त शिलालेख से प्रमाणित होता है कि थाना जिले पर 800 ई० से 1300 ई० तक इस वंश का राज्य रहा। ये महामण्डलेश्वर क्षत्रिय शिखाचूड़ामणि कहलाते थे। मराठों के सुप्रसिद्ध 96 कुलों में और राजस्थान के ऐतिहासिकों ने 36 राजवंशों में इस वंश की गणना करते हुए चन्द्रवंशी यादवकुलीन लिखा है। इस वंश के 11 राजाओं ने गुजरात पर शासन किया। इसके बाद सिद्धराज जयसिंह सोलंकी ने अनहिलवाड़ा पाटन में शासन स्थिर करके इनको गुजरात से निकाल दिया। (जाटों का उत्कर्ष पृ० 339, लेखक कविराज योगेन्द्रपाल शास्त्री)।
गोत्र का विस्तार: ये लोग शाल्व के स्थान पर सालार-सिलार भी भाषा भेद से प्रसिद्ध हुए। वर्तमान क्षत्रियों में इस वंश का अधिकांश भाग जाटों में पाया जाता है।
बिजनौर में सुवाहेड़ी, बहोड़वाला, नयागांव, हमीदपुर, जमालपुर आदि सालार जाटों के गांव हैं।
कहीं-कहीं शाल्व से सेल भी अपभ्रंश हुआ जिनमें बिजनौर जिले के सेह और हुसैनपुर गांव हैं। सेल जाट राजस्थान में कई स्थानों में बसे हुए हैं।
Population
Distribution
Notable persons
See also
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. स-181
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.61,s.n. 2408
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III,p.297
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-297
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