Shivaji Maharaj Bhonsle

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Statue of Shivaji opposite Gateway of India, Mumbai

Shivaji Maharaj Bhonsle (1627 – 1680), also known as Chhatrapati Shivaji (छत्रपति शिवाजी), or simply Shivaji, was a warrior king and a member of the Bhonsle Maratha clan.

Shivaji carved out an enclave from the declining Adilshahi sultanate of Bijapur that formed the genesis of the Maratha Empire. In 1674, he was formally crowned as the Chhatrapati (Monarch) of his realm at Raigad.

Organisational capabilities

Shivaji Maharaj established a competent and progressive civil rule with the help of a disciplined military and well-structured administrative organisations. He innovated military tactics, pioneering non-conventional methods which leveraged strategic factors like geography, speed, and surprise and focused pinpoint attacks to defeat his larger and more powerful enemies. He revived ancient Hindu political traditions and court conventions and promoted the usage of Marathi and Sanskrit, rather than Persian, in court and administration.

Duel with Mughal Sultanate

Shivaji's confrontations with the Mughals began in March 1657, when two of Shivaji's officers raided the Mughal territory near Ahmednagar. This was followed by raids in Junnar, with Shivaji carrying large booty. Aurangzeb responded to the raids by sending Nasiri Khan, who defeated the forces of Shivaji at Ahmednagar. However, Aurangzeb's counter-measures against Shivaji were interrupted by the rainy season and his battle of succession with his brothers for the Mughal throne, following the illness of the emperor Shah Jahan.

In 1666, Aurangzeb invited Shivaji to Agra, along with his nine-year-old son Sambhaji. Aurangzeb's deceived and arrested Shivaji and his son. Shivaji later escaped the prison.

The Marathas after Shivaji

Shivaji died in 1680, leaving behind a state always at odds with the Mughals. Soon after his death, in 1681, the Mughals under Aurangzeb, launched an offensive in the South to capture territories held by the Marathas, the Adil Shahi and Golkonda. He was successful in obliterating the Sultanates but could not subdue the Marathas after spending 27 years in the Deccan. The period saw brutal execution of Sambhaji in 1689, and the Marathas offering strong resistance under the leadership of Sambhaji's successor, Rajaram and then Rajaram's widow, Tarabai. Territories changed hands repeatedly between the Mughals and the Marathas. The conflicted ended in the defeat for the Mughals in 1707, upon death of Aurangzeb.

The Marathas remained a major power in India until their defeat in the Second and Third Anglo-Maratha wars (1805–1818), which left the British East India Company in control of most of India.

Hawa Singh Sangwan writes - यह प्रमाणित सत्य है कि राणा प्रताप गहलोत गोत्री और शिवाजी भौंसले गोत्री जाट थे[1]

भारत का वीर योद्धा छत्रपति शिवाजी

भारत की पावन धरती ने कई वीर पुत्रों को जन्म दिया। इनमें से एक थे शिवाजी जिनका जन्म मराठा परिवार में हुआ था। इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि महाराष्ट्र के इतिहास में वे आज तक के सबसे बड़े योद्धा हैं। शिवाजी महाराज भारत की स्वतंत्रता लड़ाई के बीज बोने वाले शूरवीर दिग्गजों में से भी एक माने जाते हैं।

शिवाजी का जन्म पुणे के जूनार में शिवनेरी के पहाड़ी किले में 19 फरवरी 1630 को हुआ था। उनकी माताजी ने उनका नाम शिवाजी, देवी शिवाई के नाम पर रखा था जिनसे उन्होंने एक स्वस्थ शिशु के लिए प्रार्थना की थी। शिवाजी के पिता दक्षिण सल्तनत में बीजापुर सुल्तान के मराठा सेनाध्यक्ष थे।

शिवाजी अपनी माता के प्रति बहुत समर्पित थे। माता जीजाबाई अत्याधिक करुणामयी और धार्मिक थी। इस धार्मिक माहौल का शिवाजी पर बहुत गहरा असर पड़ा। उन्होंने रामायण और महाभारत का गहरा अध्ययन किया।

जब शाहजी ने शिवाजी और उनकी माता को पूणे में रखा तब उनकी देखरेख की जि़म्मेदारी अपने प्रबंधक दादोजी कोंडदेव को दी। दादोजी ने शिवाजी को घुड़सवारी, तीरंदाज़ी एवं निशानेबाज़ी आदि की शिक्षा दी। 12 वर्ष की उम्र में शिवाजी को उनके भाईयों के साथ बेंगलोर भेजा गया जहाँ इन्होंने प्रशिक्षण लिया।

मुगल साम्राज्य के साथ द्वन्द्व युद्ध

मुगल साम्राज्य के साथ शिवाजी ने 1657 तक शांतिपूर्ण रिश्ते रखे। उन्होंने औरंगज़ेब को बीजापुर हासिल करने के लिए मदद की थी जिसके बदले में बीजापुरी किले एवं गांवों का हक उन्हें दिया जाएगा। मुगलों से शिवाजी की तकरार मार्च 1657 में शुरू हुई जब उनके दो अफसरों ने अहमदनगर पर छापा मारा।

1666 में औरंगज़ेब ने शिवाजी को उनके 9 वर्षीय पुत्र सम्भाजी के साथ आगरा में आमंत्रित किया। इरादा था शिवाजी को कंदहार भेजने का जहाँ उन्हें मुगल साम्राज्य को जमाना था। परंतु 12 मई 1666 को औरंगज़ेब ने शिवाजी को अपने दरबार में सेनापतियों के पीछे खड़ा कराया। शिवाजी नाराज़ होकर चले गये पर उन्हें गिरफ्तार कर आगरा के कोतवाल के तहत नज़रबंद कर दिया गया। सम्भाजी की गम्भीर बीमारी का बहाना करते हुए शिवाजी वेश बदलकर 17 अगस्त 1666 को फरार हो गये। दक्षिण पहुँच कर शिवाजी ने खुद को मुगलों से बचाने के लिए सम्भाजी की मौत की झूठी खबर फैला दी। 1670 के अंत तक मुगलों के विरुद्ध युद्ध लड़कर उनके काफी क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया।

राज्याभिषेक – शिवाजी का राज्याभिषेक एक भव्य समारोह में रायगढ़ में 6 जून 1674 को किया गया। शिवाजी अधिकारिक तौर पर छत्रपति कहलाये गये।

संस्कृत को बढ़ावा – शिवाजी के परिवार में संस्कृत का ज्ञान अच्छा था और इस भाषा को बढ़ावा दिया गया। शिवाजी ने इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपने किलों के नाम संस्कृत में रखे जैसे सिंधुदुर्ग, प्रचंडगढ़, तथा सुवर्णदुर्ग। उन्होंने राजनैतिक पुस्तक राज्यव्यवहार कोष को अधिकृत किया। उनके राजपुरोहित केशव पंडित स्वयं एक संस्कृत के कवि तथा शास्त्री थे। उन्होंने दरबार के कई पुराने कायदों को पुनर्जीवित किया एवं शासकीय कार्यों में मराठी तथा संस्कृत भाषा का प्रयोग को बढ़ावा दिया।

धर्म– शिवाजी धर्मनिष्ठ हिन्दु थे परंतु वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे। वे संतों की बहुत श्रद्धा करते थे विशेष रूप से समर्थ रामदास का जिन्हें उन्होंने पराली का किला दिया जिसका नाम बाद में सज्जनगढ़ रखा गया। रामदास लिखित शिवस्तुति (महाराज शिवाजी की प्रशंसा) बहुत प्रख्यात है। शिवाजी जबरदस्ती धर्म परिवर्तन का विरोध करते थे। वे स्त्रियों के प्रति मानवता रखते थे। उनके समकालीन कवि, कवि भूषण कहते हैं कि अगर शिवाजी नहीं होते तो काशी अपनी संस्कृति खो चुका होता, मथुरा मस्जिदों में बदल गया होता एवं सब कुछ सूना हो गया होता। शिवाजी की सेना में कई मुसलमान सैनिक भी थे। सिद्दी इब्राहिम उनके तोपखानों के प्रमुख थे।

सेना – शिवाजी ने काफी कुशलता से अपने सेना को खड़ा किया था। उनके पास एक विशाल नौसेना भी थी जिसके प्रमुख मयंक भंडारी थे। शिवाजी ने अनुशासित सेना तथा सुस्थापित प्रशासनिक संगठनों की मदद से एक निपुण तथा प्रगतिशील सभ्य शासन स्थापित किया। उन्होंने सैन्य रणनीति में नवीन तरीके अपनाये जिसमें दुश्मनों पर अचानक आक्रमण करना जैसे तरीके शामिल था।

राजस्व योजना – शिवाजी ने तोडर मल तथा मलिक अम्बार के सिद्धांतों पर आधारित एक बेहतरीन राजस्व योजना पेश की। पूर्ण सर्वेक्षण के पश्चात जमीन का किराया कुल पैदावार का 33 प्रतिशत तय किया। शिवाजी ने अपने राज्य की मुद्रा जारी की जो कि संस्कृत भाषा में थी।

मृत्यु – मार्च 1680 के अंत में शिवाजी को ज्वर एवं आंव हो गयी। 3-5 अप्रैल के करीब उनकी 52 वर्ष की उम्र में मृत्यु हुई। उनकी मौत के पश्चात मुगलों ने दोबारा मराठों पर आक्रमण किया पर इस बार युद्ध कई वर्षों तक चला जिसमें मुगलों की हार हुई।[2]

चाफल

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...चाफल (AS, p.332) महाराष्ट्र का प्राचीन तीर्थ स्थान है, जिसका सम्बन्ध 'महाराष्ट्र केसरी' छत्रपति शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास से रहा है। इस स्थान पर शिवाजी ने समर्थ रामदास से प्रथम भेंट की थी और यहीं पर वे उनके शिष्य बने गये थे। चाफल में समर्थ रामदास ने अपना एक मठ भी स्थापित किया था।

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External Links

Author of this page: Dayanand Deswal दयानन्द देसवाल

References


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