Singha Singh Thakuran

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Author: Laxman Burdak IFS (R)

Singha Singh Thakuran (सूबेदार सिंहासिंह ठाकुरान), from Sirohar, Mandawar Alwar, was a Social worker in Alwar, Rajasthan. He fought war in Mesopotamia and was awarded with IDSM Medal for his bravery in 1915. [1]

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....सूबेदार सिंहासिंह जी: [पृ.82]: अबकी बार जब 5 मार्च 1948 को मैं अलवर गया चौधरी नानकचंद जी के घर पर एक नई उम्र के लड़के से भी परिचय हुआ। वह गुरुकुली ढंग के सफेद धोती कुर्ता पहने था। मैंने उससे कहा तुम्हारा परिचय? उसने सहज गंभीर भाव से बताया कि मैं आर्य महाविद्यालय किरठल में पढता हूँ। इस वर्ष विशारद की परीक्षा दूँगा। अलवर राज्य में ही सिरोहड़ गाँव का हूँ। मेरे पिताजी को आप जानते होंगे वे सूबेदार हैं। मुझे अचानक याद आ गया ओह ! तुम सूबेदार सिंहासिंह के पुत्र हो। उन्हें तो मैं 1936 ई. से, जब वहां कांकरा में जाट संघ का दूसरा सालाना जलसा हुआ था, जानता हूं। पूछने पर उस युवक ने बताया कि उनके 3 भाई हैं - 1. शिवलाल जो घर पर जमीदारी करते हैं।


[पृ.83]: 2. उनसे छोटे रामजीलाल हैं जो आगरा यूनिवर्सिटी में एमए, एलएलबी में पढ़ते हैं। 3. तीसरा मैं हूँ।

पीछे मुझे मालूम हुआ कि रामजीलाल के साथ चौधरी नानकचंद की सुपुत्री सत्यवती का विवाह हुआ है। बिना किसी भी प्रकार के दहेज का अनुकरणीय उदाहरण था।

सूबेदार सिंहासिंह इस समय अलवर 'राज्य जाट क्षत्रिय संघ' के उपप्रधान हैं। आप ठाकुरान गोत्र के जाट हैं। आपके पिता का नाम चौधरी रंजीतसिंह था। संवत 1942 में आपका जन्म हुआ. आप से छोटे तीन भाई और हैं। सन् 1904 में आप फौज में भर्ती हुए। सन् 1915 में मेसोपोटामिया के रण क्षेत्र में भेजे गए। इस युद्ध में अच्छी सेवा करने के सिलसिले में आप जमादार बनाए गए। सीमा प्रांत के पठान विद्रोह को दबाने के लिए जो सेनाएं गई उनमें आप भी थे। वहां आपको सूबेदार बनाया गया और IDSM का मेडल बहादुरी में मिला। 1925 में पेंशन ले ली। तब से आप अपने गांव में रहते हैं और कौम की सेवा करते हैं। इधर जब कौमी जागृति का बिगुल बाजा आप जाट क्षत्रिय संघ में शामिल हो गए 1940 में आपने अपने यहाँ उसका दूसरा वार्षिकोत्सव मनाया।

आप पक्के समाज सुधारक हैं। ब्याह-शादियों में कम से कम खर्च करते हैं। अलवर की जाट जागृति में भरपूर हाथ बटाते हैं।

जीवन परिचय

गैलरी

संदर्भ


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