Surendra Singh Ahlawat
Naik Surendra Singh Ahlawat from village Saidpur in Bulandshahr district of Uttar Pradesh was a martyr of Kargil War. He died on 12 June 1999. He was in Unit- 2 Rajputana Rifles, who were given the task of capturing Tololing hill.
Battle of Tololing
The Battle of Tololing was one of the pivotal battles in the Kargil War between India's armed forces and troops from the Northern Light Infantry who were aided by other Pakistan backed irregulars in 1999. The Tololing is a dominant position overlooking the Srinagar - Leh Highway (NH 1) and was a vital link. The Indian army's casualties on the Tololing peak were half of the entire losses in the whole war.
The objective of Chaman Singh Tewatia's group was to capture a well-fortified enemy post located in a treacherous high altitude terrain at over 15000 feet. Major Vivek Gupta, 2 Rajputana Rifles, and his Company was given the task of recapturing Point 5490.
For details see - http://www.jatland.com/home/Digendra_Kumar
नायक सुरेन्द्र सिंह अहलावत
नायक सुरेन्द्र सिंह अहलावत
वीरांगना - श्रीमती राजबाला देवी
यूनिट - 2 राजपुताना राइफल्स (तोलोलिंग पलटन)
तोलोलिंग का संग्राम
ऑपरेशन विजय
कारगिल युद्ध 1999
नायक सुरेन्द्र सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले की सैदपुर गांव में श्री अमीचंद अहलावत के घर में हुआ था। शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात वह भारतीय सेना की राजपुताना राइफल्स रेजिमेंट में रंगरूट के रूप में भर्ती हुए थे। प्रारंभिक प्रशिक्षण के पश्चात उन्हें 2 राजरिफ बटालियन में राइफलमैन के पद पर नियुक्त किया गया था।
"ऑपरेशन विजय" में, 12/13 जून, 1999 की मध्य रात्रि को 2 राजरिफ की 'चार्ली' कंपनी ने जम्मू कश्मीर के कारगिल जिले के द्रास सेक्टर में हजारों फीट ऊंची, तोपखाने व स्वचालित शस्त्रों से सुसज्जित सुदृढ़, किलेबंद बंकरों से सुरक्षित शत्रु के आधिपत्य की तोलोलिंग पहाड़ी पर भीषण आक्रमण किया। नायक सुरेन्द्र सिंह भी इस आक्रमणकारी टुकड़ी के सदस्य थे। इस भीषण संग्राम में, अदम्य साहस, दृढ़ निश्चय एवं वीरता युद्ध करते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए थे।
Source - Ramesh Sharma
शहीद सुरेंद्रसिंह अहलावत का जीवन परिचय
बुलंद शहर जिले के जाट बहुल गाँव सैदपुर को फोजियों का गाँव माना जाता है. मुख्यालय से 30 किमी दूर स्थित इस गाँव के सैंकडों सैनिक अब तक देश के लिए अन्तिम मोर्चों पर लड़ते-लड़ते शहीद हो चुके हैं. इसी कड़ी में में पिछले 17 वर्ष से राजपुताना रायफल्स में सेवारत नायक सुरेन्द्र सिंह ने कारगिल में दुश्मन से जूझते शहादत देकर एक बार फ़िर गौरव प्रदान किया है.
शहीद के किसान पिता श्री अमीचंद ने अपने पुत्र के बलिदान को गौरव की बात बताया और विचलित नहीं हुए. शहीद अपने पीछे छोड़ गए हैं - पत्नी राज बाला, 14 वर्षीय पुत्री पूनम, 10 वर्षीय पुत्र चमन और 6 वर्षीय पुत्र पवन हैं. शहीद के दो बड़े भाई चरण सिंह और सत्य वीर सिंह खेती करते हैं. चरण सिंह पूर्व सैनिक हैं और १९७१ के युद्ध तथा श्रीलंका शान्ति सेना में शामिल हो चुके हैं. नायक सुरेन्द्र सिंह भी शान्ति सेना में रह चुके हैं. नायक सुरेन्द्र सिंह बंगलादेश मोर्चे पर रहने के बाद पिछले कई वर्षों से कश्मीर में तैनात थे. उनकी टुकडी ने कुछ समय पहले ही कश्मीर मोर्चे पर 22 आतंकवादियों को एक मुठभेड़ में मोत के घाट उतारा था.
शहादत के 14 वर्ष पूर्व सेना में भरती चमन सिंह के साथ उनके अनन्य मित्र बुलन्दशहर जिले के प्रसिद्द फोजी गाँवसैदपुर के सुरेन्द्र सिंह भी सेना में भरती हुए थे. दोनों में से कोई भी छुट्टी आता तो जरुर एक दूसरे परिवार के हाल चाल पूछ कर जाता. दोस्ती के साथ दोनों ने राष्ट्र भक्ति भी एक साथ निभाई. आश्चर्य की बात है कि दोनों ने ही 3 जून 1999 को ही घर पर कुशलता के समाचार लिखे थे.
Source: जाट समाज पत्रिका, आगरा अक्टूबर 1999, पेज 91
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Surendra Singh Ahlawat Statue
External links
References
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