Thakur Gopal Singh

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Thakur Gopal Singh (ठाकुर गोपालसिंह) was from Panniwali village in District Ganganagar of Rajasthan. He was a social worker who provided 14 Bighas of land for the establishment of the Jat School Sangaria.

Jat School Sangaria

It was Chaudhary Bahadur Singh Bhobia a soldier, who resolved to abolish illiteracy from the area. Accordingly he, with the help of some like-minded friends, opened Jat middle school in 1917 and Thakur Gopal Singh provided 14 Bighas of land for the establishment of the school. Despite grave financial crisis, the school continued to run upto 1932. In 1932 it reached to the verge of closure but was saved by Swami Keshwanand ji who took over its charge. People of the area helped Swami ji very enthusiastically. Consequently pucca buildings continued to replace old mud houses, facilities continued to add and new departments continued to be added. By the time Swami Keshwanand ji left for his heavenly abode this Jat Middle School had acquired the stature of a large Educational, institution, namely Gramotthan Vidyapeeth.

जाट विद्यालय संगरिया

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ....पुराने जमाने में भारतवर्ष में गुरुकुलों की प्रणाली थी। हरेक वंश का एक राज्य होता था और हर वंश का कोई न कोई एक व्यक्ति कुल गुरु होता था। उसी कुल गुरु का एक गुरुकुल होता था। जिसमें उस वक्त राज्य के बच्चे शिक्षा पाते थे।

शिक्षा की वह प्रणाली अवशेष नहीं किंतु संगरिया जाट हाई स्कूल वास्तव में बीकानेर के जाटों का गुरुकुल साबित हुआ। इसे जिन लोगों ने जन्म दिया वह आर्य समाजी विचार के पुरुष ही थे। इसलिए आरंभ से ही यह संस्था गुरुकुल के ढंग पर ही संचालित हुई। इसकी स्थापना अगस्त 1917 में स्थानीय चौधरी बहादुरसिंह भोबिया, स्वामी मनसानाथ, चौधरी हरजीराम मंत्री और चौधरी हरिश्चंद्र के प्रयत्न से हुई।

यह संस्था उस समय तक डावांडोल भी रही जब तक यह किसी ऋषि के हाथ में नहीं सौंपा गया। आजकल ऋषि


[पृ.118]: कहां है ! किंतु बीकानेर के देहातियों का यह सौभाग्य है उन्हें आज से 20 वर्ष पहले एक ऋषि का सहयोग मिला। उन राजर्ष स्वामी केशवानंद जी ने इस संस्था को एक आदर्श शिक्षा संस्था बना दिया। समस्त राजस्थान में इसके जोड़ की ऐसी शिक्षा संस्था नहीं जो इस की भांति पूर्ण हो।

राष्ट्र निर्माण के प्रत्येक प्रगति से शिक्षण संस्था अपने को पूर्ण बनाने में संलग्न है। इसमें शोध और पुरातत्व का विभाग है जो पालन और वैदनिक के विभाग हैं। यहां पर कताई, बुनाई, रंगाई, चित्रकला आदि की लोकोपयोगी शिक्षा दी जाती है।

बीकानेर के देहातियों के लिए, खासतौर से जाटों के लिए, यह एक तीर्थ है और ठीक वैसा ही पवित्र तीर्थ है जैसा बौद्धों के लिए सारनाथ और हिंदुओं के लिए बनारस। मैं इसे समस्त जांगल देश का एक सुंदर उपनिवेश और जीवन को स्फूर्ति देने वाला उच्चकोटि का शिक्षा आश्रम मानता हूं।

इसे पतना मोहक और उच्च रुप देने का सारा श्रेय स्वामी केशवानंद जी महाराज और उनके सहयोगियों को है।

ठाकुर गोपालसिंह जी पन्नीवाली और उनके पुत्र ने इस पवित्र शिक्षण संस्थानों को जमीन देने का सौभाग्य प्राप्त किया। जिन लोगों ने इस संस्था में आरंभिक शिक्षा प्राप्त करके आगे उच्च शिक्षा, औहदे आदि प्राप्त किए उनमें चौधरी शिवदत्त सिंह, चौधरी रामचंद्र सिंह, चौधरी बुद्धाराम, चौधरी सदासुख, चौधरी सूरजमल आदि पचासों और सज्जनों के नाम ओजस्वनीय हैं।

External links

References

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.117-118