Tiloo Jat
Tiloo Jat (टीलू जाट) or Tila Baba (टीला बाबा) of Beda Gotra lived in village Kathoti many centuries back. Tilu Jat, Mohan Daftari, Rajjab Das, and Sundar Das compiled Dadu Dayal's hymns and poems known as Bānī. [1]
Devotee of Trilokinath
He was a very religious minded person and strong devotee of Trilokinath. According to local tradition his farm was looked after by the god Trilokinath. There is a Rajasthani poem which describes that Trilokinath used to do entire agricultural operation in fields of his Bhakat Tiloo.[2]
टीलू जाट का जीवन परिचय
मनसुख रणवां लिखते हैं कि टीलू जाट का जन्म बेडा गोत्र मे हुआ था वह नियमित रूप से ईश्वर के भजन भाव करता था। उस समय दिल्ली की गद्दी पर अकबर राज करता था उसकी पत्नी भी बहुत दयालू थी। रास्ते पर घर होने से अतिथि तो डेरा डाले ही रहते थे। टीलू के एक लडकी औए एक लडका था। भगवन कृष्ण भी टीलू के प्रेम का इतना कायल हो गया बताते हैं कि वह टीलू जाट की सेवा में हाजरी देने लगा।
एक बार की बात है कि खेत में बांगरू फसल खड़ी थी। सारी फसल दूलड़े से काट कर भगवान ने म़ोगे बना दिए। होली के दिन शाम को भगवान ने सारी गेहू की फसल को आग लगा दी। गाँव वालों ने दूसरे दिन देखा तो वहां राख नहीं मिली। सोने की ईंटें मिली। टीलू जाट ने इन ईंटों से कठोती गाँव में मंदिर की नीव भर दी। इसकी जानकारी दिल्ली के बादशाह को मिली तो उसने मंदिर की जगह मस्जिद बनवा दी। आज वहां लगभग 465 वर्ष पुरानी मस्जिद है। मेशुका बारा में टीलू बाबा का चबूतरा है जहाँ पर शादी विवाह एव अन्य शुभ अवसरों पर पूजते हैं। बेड़ा जाटों ने यहाँ भव्य मंदिर बनाने का निर्णय किया है।[3]
लोक गीतों में टीलू जाट
लोक जीवन में टीलू जाट का यह गायन बडे चाव से गाया जाता है:
- कुण जाणै या माया श्याम की, अजब निराली रै ।
- त्रिलोकी को नाथ जाट को बण गयो हाली रै ।।टेर।।
- सो बीघा को खेत जाट कै, राम भरोसे खेती रै ।
- बिना बाड़ को खेत जाट को, श्याम करे रुखाळी रै ।।
- भूरी भैंस चिमकणी जाट कै, दो बकरी दो नारा रै ।
- बिना बाड़ को बाडो, जिम बान्ध न्यारा न्यारा रै ।
- आवै चोर जब उबो दिखै, काडै बो गाली रै ।।
- जाट जाटणी सुख सैं सोवै, सोवे छोरा छोरी रै ।
- श्याम धणीं पहरै ऊपर, कैंयां होवै चोरी रै ।
- चोर लगावै नितका चक्कर, जावै खाली रै ।।
- बाजरे की रोटी खावै, ऊपर घी को लचको रै ।
- पालक की तरकारी खाय, भर मूली कै बटको रै ।
- छाछ राबड़ी को करै कलेवो, भर भर थाली रै ।।
- चेजारो बण जिणबा लाग्यो, हाथां गारो गायो रै ।
- बण दियो घर जड़कर तालो, देग्यो ताळी रै ।।
- थानै म्हे बतलावां, यो घर भक्तां कै जावे रै ।[4]
खींवज (क्षेमजा) माता का
खींवज (क्षेमजा) माता का मंदिर ग्राम कठोती में है । कठोती डीडवाना से पश्चिम में 33 किलोमीटर तथा नागौर से पूर्व में 63 किलोमीटर दूर है । माता का मंदिर एक टीले पर अवस्थित है । ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में यहाँ एक मंदिर था जो कालांतर में भूमिगत हो गया । वर्तमान में माता की मूर्ति खम्भे के रूप में 816 वर्ष पूर्व प्रगट हुई ऐसा माना जाता है कि कठौती माता का मंदिर का निर्माण टीला बाबा नमक जाट ने करवाया था, ऐसा मंदिर के पुजारी जी व अन्य भक्तों ने बताया । मंदिर में स्तम्भ पर उत्कीर्ण माता की मूर्ति चतुर्भुजी है । माता के दाहिने हाथों में त्रिशूल एवं खड़ग है तथा बायें हाथों में कमल एवं मुग्दर है । मूर्ति के पीछे पंचमुख सर्प का छत्र है तथा त्रिशूल है । (माता कि मूर्ति के पीछे सर्प होने से इस माता का स्वरूप 'मनसा माता' के रूप में भी है विस्तृत विवरण सुरसा माता के चरित्र में देखें) माता कि सवारी सिंह पर है । पास में ही भैरव का स्थान है ।
माताजी की मान्यता सभी जाती वालों की है । माता के वर्तमान मंदिर निर्माण वर्ष 1980 में माताजी के भक्तों के द्वारा कराया गया था । वर्तमान में नवरात्रों में यहाँ यज्ञ, अनुष्ठान एवं गायत्री जाप हो रहे हैं ।
पुराने समय की बात है । माता के मंदिर के किवाड़ सोने के थे । एक बार चोर मंदिर में चोरी करने आये । माता का चमत्कार से चोरों को रास्ता नहीं मिला । देवी ने चारों चोरों के सर धड़ से अलग कर दिए तथा उनके सर माता के गुम्बज में चारों और उन चोरों के सिरों के प्रतीक आज भी मंदिर के गुम्बज पर लगे हुए हैं । बहुत पहले माताजी की संत सेवा करते थे । भक्त मंगिरी बाबा थे उन्होंने जीवित समाधि ली थी । उनकी समाधि का चबूतरा मंदिर प्रांगण में है । वे माता की भक्ति एक गुफा में करते थे जो आज भी तहखाने के रूप में मंदिर प्रांगन में अवस्थित है । ऐसी मान्यता है कि माताजी के मंदिर के पीछे स्थित तालाब का पानी यदि गन्दा हो जाये या पानी में कीड़े पड़ जाएँ तो माताजी एवं बाबा के धोक (प्रणाम) देकर जाने पर तालाब का गन्दा पानी स्वतः ही स्वच्छ हो जाता है ।[5]
External links
References
- ↑ The Wonders that was India, Vol.II, by S.A.A. Rizvi,1987,p.366
- ↑ Mansukh Ranwa:Kshatriya Shiromani Vir Tejaji, 2001, p. 11
- ↑ मनसुख रणवां: राजस्थान के संत-शूरमा एवं लोक कथाएं, प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, दूसरी मंजिल, दुकान न. 157 , चांदपोल बाजार, जयपुर-302001, 2010, पृ.22
- ↑ Mansukh Ranwa:Kshatriya Shiromani Vir Tejaji, 2001, p. 11
- ↑ Khinwas Mata Kathoti on You Tube by Arvind Kumar Jakhar
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