Tiruvallur

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(Redirected from Trivallura)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Tiruvallur (तिरुवल्लूर) is a city and district in the Indian state of Tamil Nadu. It is located on the banks of Cooum River about 46 km from downtown Chennai (Madras) and just 5 km from megacity border, in the western part of the Chennai Metropolitan Area (CMA).

Variants

  • Tiruvallura (तिरुवल्लूर) (मद्रास) (AS, p.403)
  • Trivelura त्रिवेलूर = Trivallura त्रिवल्लूर (AS, p.418)

Origin

The name Tiruvallur is supposedly derived from the Tamil sentence tiru evvull? – Tiru meaning god, a common prefix in South India for temple towns, and evvull meaning where do I sleep?. Tiruvallur is said to mean a place or town where the god Veera Raghavar asked a saint for a place to sleep for a night.

History

In the far past, this region was under a chain of regimes commencing from the Pallavas during the 7th century. In 1687, the Golkonda rulers were defeated and the region came under the Moghul emperors of Delhi. The towns and villages of this region were the scene of Carnatic wars. Battles are said to have been fought in this region during the struggle for supremacy between the English and French. The town of Pulicat was the earliest Dutch possession in India, founded in 1609; it was ceded to the British in 1825. British rule continued until India's independence in 1947.

Veera Raghavar temple

The city is known for the Veera Raghavar temple, one of the 108 sacred shrines of Vaishnavites. The tank festival is held at a pond near this temple. A Shiva temple near this shrine which is popular among the locals. There is also a 40-foot (12 m) tall Viswaroopa Panchamukha Hanuman temple, where the murti is made of a single green granite stone.

तिरुवल्लूर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...तिरुवल्लूर (मद्रास) (p.403) - आरकोनम स्टेशन से 17 मील की दूरी पर स्थित है। तिरुवल्लूर में 'वरदराज पेरुमल' का विशाल मंदिर तीन घेरों के अंतर्गत स्थित है। पहले घेरे की लम्बाई 180 फुट और चौड़ाई 155 फुट है। दूसरे की लम्बाई 470 फुट और चौड़ाई 470 फुट और तीसरे की लम्बाई 940 फुट और चौड़ाई 700 फुट है। पहले घेरे के चारों ओर दालान और मध्य में वरदराज की मूर्ति भुजंग पर शयन करती हुई दिखाई देती है। पास ही भगवान शिव का मंदिर है। यह भी कई डेवढ़ियों के भीतर है। दोनों मंदिरों के आगे जगमोहन है और घेरे के आगे गोपुर। दूसरे घेरे में जो पीछे बना था, बहुत-से छोटे स्थान और दालान और पहले गोपुर से अधिक ऊँचे दो गोपुर हैं। तीसरे घेरे के भीतर जो दूसरे के बाद में बना था, 668 स्तंभों का एक मंडप और कई मंदिर तथा पाँच गोपुर हैं, जिनमें प्रथम और अंतिम बहुत विशाल हैं। एक जनश्रुति के अनुसार यह माना जाता है कि अज्ञातवास के समय पांडवों ने यहाँ भगवान शिव की आराधना के फलस्वरूप भयंकर जल त्रास से त्राण पाया था। वदागलाई सम्प्रदाय का केन्द्र यहाँ के अहोविलन मठ में है।

तिरुवल्लूर परिचय

तिरुवल्लूर तमिलनाडु का एक ज़िला है, जो 3422 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के आरकोनम स्टेशन से 17 मील की दूरी पर स्थित है। उत्तर में यह कांचीपुरम से, पश्चिम में वेल्लोर से, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और उत्तर में आंध्र प्रदेश से घिरा हुआ है। तिरुवल्लूर को पहले 'त्रिवेल्लोर' और 'तिरुवल्लूर' के नाम से भी जाना जाता था, किन्तु वर्तमान समय में इसे 'तिरुवल्लूर' ही कहा जाता है। तिरुवल्लूर का संबंध भगवान बालाजी की शयन मुद्रा से है, जो यहाँ के वीरराघव मंदिर में स्थित है। सातवीं शताब्दी में इस क्षेत्र पर पल्लवों का शासन था, जो कई अन्य वंशों के शासकों के अधीन होता हुआ अरकोट के नवाब के पास पहुँचा। उन्नसवीं शताब्दी में तिरुवल्लूर भी अंग्रेज़ों के अधिकार में आ गया था। यहाँ के प्राचीन मंदिर और ख़ूबसूरत झीलें सैलानियों को बड़ी संख्या में आकर्षित करती हैं। तिरुवल्लूर में तमिल, हिन्दी, मलयालम, तेलुगू और उर्दू भाषा बोली जाती है।

पर्यटन स्थल: तिरुवल्लूर के प्रमुख पर्यटन स्थल निम्नलिखित हैं- 1. मुरुगन मंदिर, 2. वरदराज पेरुमल मंदिर, 3. पूंडी मधा चर्च, 4. सप्त ऋषि तीर्थम, 5. सरवन पोईकई, 6. वीरराघवस्वामी मंदिर, 7. लक्ष्मी नरसिम्हा पेरुमल मंदिर, 8. तिरुप्पासुर शिव मंदिर

वरदराज मंदिर: तिरुवल्लूर में 'वरदराज पेरुमल' का विशाल मंदिर तीन घेरों के अंतर्गत स्थित है। पहले घेरे की लम्बाई 180 फुट और चौड़ाई 155 फुट है। दूसरे की लम्बाई 470 फुट और चौड़ाई 470 फुट और तीसरे की लम्बाई 940 फुट और चौड़ाई 700 फुट है। पहले घेरे के चारों ओर दालान और मध्य में वरदराज की मूर्ति भुजंग पर शयन करती हुई दिखाई देती है। पास ही भगवान शिव का मंदिर है। यह भी कई डेवढ़ियों के भीतर है। दोनों मंदिरों के आगे जगमोहन है और घेरे के आगे गोपुर। दूसरे घेरे में जो पीछे बना था, बहुत-से छोटे स्थान और दालान और पहले गोपुर से अधिक ऊँचे दो गोपुर हैं। तीसरे घेरे के भीतर जो दूसरे के बाद में बना था, 668 स्तंभों का एक मंडप और कई मंदिर तथा पाँच गोपुर हैं, जिनमें प्रथम और अंतिम बहुत विशाल हैं।

पौराणिक कथा: वरदराज मंदिर के बारे में एक कथा इस प्रकार है कि सतयुग में शालिहोत्र नामक ब्राह्मण ने एक वर्ष तक उपवास करके तप किया। वर्षान्त में शालिकणों को चुनकर नैवेद्य बनाया। भगवान को भोग लगाकर पारण करने जा रहे थे तो एक वृद्ध ब्राह्मण अतिथि आ गये। उन्हें वह प्रसाद शालिहोत्र ने आदर पूर्वक अर्पित किया। भोजन करके अतिथि ने उनकी कुटिया में विश्राम के लिए प्रवेश किया। जब शालिहोत्र अतिथि की चरण सेवा करने कुटिया में गये तो देखा कि वहाँ तो साक्षात शेषशायी नारायण विराजमान हैं। शालिहोत्र ने उनसे बहीं रहने का वरदान मांग लिया। वीक्ष्यारण्य नरेश धर्मसेन के यहाँ उनकी पुत्री रूप में लक्ष्मी जी ने अवतार लिया। पिता ने उनका नाम वसुमती रखा। युवा होने पर राजकुमार वेश में श्रीवीरराघव गये और राजा से प्रार्थना करके उनकी पुत्री से विवाह किया। वर वधु विवाह के पश्चात् मंदिर में दर्शन करने आये तो अपने-अपने श्रीविग्रहों में लीन हो गये।

जनश्रुति: एक जनश्रुति के अनुसार यह माना जाता है कि अज्ञातवास के समय पांडवों ने यहाँ भगवान शिव की आराधना के फलस्वरूप भयंकर जल त्रास से त्राण पाया था। वदागलाई सम्प्रदाय का केन्द्र यहाँ के अहोविलन मठ में है।

जब वीरभद्र द्वारा दक्ष को मरवा देने से शंकर जी को ब्रह्म हत्या लगी तो यहाँ स्नान करके वे उससे मुक्त हुए। तबसे वे यहाँ सरोवर के तट पर विराजमान हुए।

संदर्भ: भारतकोश-तिरुवल्लूर

External links

References