User:Lrburdak/My Tours/Tour of Andaman Islands

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

पोर्ट ब्लेयर (Port Blair)
महात्मा गांधी मरीन नेशनल पार्क (Mahatma Gandhi Marine National Park)

अंडमान द्वीपसमूह का भ्रमण

अंडमान द्वीप समूह की यात्रा (18.12.2011-24.12.2011)

मेरे द्वारा अंडमान द्वीपसमूह का भ्रमण मेरी पत्नी गोमती बुरड़क के साथ दिनांक 18.12.2011-24.12.2011 को किया गया. इस यात्रा में भारत शासन की अवकाश यात्रा सुविधा (एलटीसी) का लाभ लिया गया था.

भारत शासन की अवकाश यात्रा सुविधा (एलटीसी) के अंतर्गत 2 साल के काल खंड 2010-11 के लिए हमारा भारत के किसी भी स्थान पर यात्रा करने की योजना पर विचार चल रहा था. किसी ने मुझे दक्षिण अंडमान की यात्रा का सुझाव दिया. परंतु दिमाग में 'कालापानी' की एक गलत अवधारणा जमी हुई थी. इसलिये किसी जानकार से सलाह लेना उचित समझा.

अंडमान भ्रमण की कार्य-योजना : अंडमान द्वीपसमूह की यात्रा पर सलाह के लिए हमारे यूनियन टेरीटरी (UT) कैडर के बैच-मेट श्री शशि कुमार का ध्यान आया जो अंडमान में पदस्थ रह चुके थे. यद्यपि हमारे अंडमान में भ्रमण के समय श्री शशि कुमार अंडमान में नहीं थे बल्कि देहारादून में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ थे. देहारादून और मसूरी से प्रशिक्षण समाप्त (जुलाई 1982) होने के बाद हम अलग-अलग कैडर में पदस्थ हो गए थे. उसके बाद केवल दो बार हमारी मुलाक़ात हो पाई थी. पहली बार 13-17 जून 1994 को फोरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट देहारादून (उत्तराखंड) में एक प्रशिक्षण के दौरान मिलना हो पाया था. हम बच्चों सहित उस समय देहारादून गए थे. वह लीची का पीक सीजन था और पूरे सप्ताह बच्चों ने देहारादून की लीची खाने का जो आनंद लिया, अब भी याद करते हैं. उन्होंने उस समय हमें देहारादून में अपने निवास पर रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया था. श्रीमती रश्मि कुमार ने बहुत शानदार खाना खिलाया था. दूसरी बार 12-16 फरवरी 2007 को भुबनेश्वर (उड़ीसा) के जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में प्रशिक्षण के दौरान मुलाक़ात हुई थी, तब वे अकेले ही आए थे.

डॉ श्री शशि कुमार

श्री शशि कुमार से जब अंडमान भ्रमण के संबंध में संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि वे 2001-2004 की अवधि में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 'फोरेस्ट एंड प्लांटेशन डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन' के जनरल मैनेजर रहे हैं. इनका मुख्यालय लिटिल अंडमान में था और नाव से पोर्ट ब्लेयर आने में 10 घंटे का समय लगता था परंतु वह यात्रा हमेशा सुहानी होती थी. उस अवधि में उन्होने वहाँ मृतप्राय: हो चुकी 'रेड पाम ऑइल' प्रोजेक्ट को वापस पटरी पर लाने का विशेष काम किया था. उन्होंने बताया कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में शासकीय कार्य में कोई राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं था. वहाँ की मूल जनजातियां अपने-अपने क्षेत्र तक सीमित हैं. अपने गृह जिले से दूरी को छोड़ दें तो रहने और कार्य करने के लिए अंडमान और निकोबार से अच्छी कोई जगह नहीं है. यहाँ सभी जाती, धर्म और संस्कृति के लोग बड़े प्रेम और सद्भाव से रहते हैं. सही मायने में यह एक लघु-भारत है. इतना सुनकर हमने तत्काल अंडमान भ्रमण की कार्य-योजना तैयार की. श्री शशि कुमार ने हमें श्री चोका लिंगम सेवा निवृत्त डिप्टी रेंजर (मो. 9933235144) का संदर्भ दिया और बताया कि अंडमान द्वीप समूह के भ्रमण में वे पूरी सहायता करेंगे. श्री शशि कुमार ने अंडमान भ्रमण के बाद यात्रा वृतांत लिखते समय भी कुछ स्थानों, संरचनाओं और वृक्ष प्रजातियों की ठीक-ठीक पहचान करने में काफी सहायता की.

18.12.2011: जयपुर (20.35) से फ्लाइट से रवाना होकर दिल्ली (21.35) पहुँचे.

19.12.2011: दिल्ली में इंदिरा गांधी एयर पोर्ट से चेन्नई होते हुये अंडमान जाने वाली सुबह की एयर इंडिया फ्लाइट खराब मौसम और घने कोहरे के कारण निरस्त हो गई इसलिये दिनभर दिल्ली एयर पोर्ट पर ही इंतजार करना पड़ा. निरस्त फ्लाइट के यात्री दिनभर एयर इंडिया के अधिकारियों से संघर्ष करते रहे तब जाकर शाम 20.00 बजे कलकत्ता होते हुये पोर्ट ब्लेयर (अंडमान) जाने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट से हवाई यात्रा की व्यवस्था हुई. दिल्ली एयर पोर्ट पर ही हमारी पहचान राजस्थान के एक अन्य परिवार से हुई जो इसी फ्लाइट से अंडमान भ्रमण पर जा रहे थे. वे कस्टम विभाग के अधिकारी श्री दयानंद राड़ थे, जिनसे गप-शप करते हुये हम कलकत्ता 21.30 बजे पहुँच गए.

अंडमान द्वीप समूह का भ्रमण (20.12.2011-22.12.2011)

20.12.2011: कलकत्ता से सुबह एयर इंडिया की फ्लाइट 5.30 बजे रवाना होकर पोर्ट ब्लेयर (Port Blair) 7.30 बजे पहुँच गए. एयर पोर्ट पर श्री चोका लिंगम सेवा निवृत्त डिप्टी रेंजर (मो. 9933235144) हमें लेने के लिए पहुँचे. यूनियन टेरीटरी (UT) कैडर के बैच-मेट श्री शशि कुमार द्वारा इनको सभी व्यवस्थाएं करने का पूर्व में ही निर्देश दिया गया था. श्री शशि कुमार उस समय अंडमान में न होकर देहारादून में पदस्थ थे. श्री चोका लिंगम ने पोर्ट ब्लेयर में एक अच्छे होटल में हमारे रुकने की व्यवस्था की तथा भ्रमण के लिए टेक्सी की भी व्यवस्था की. होटल पहुँच कर शीघ्रता से फ़्रेश होकर घूमने के लिए निकल पड़े.

चाथम सॉ मिल (Chatham Saw Mill)

चाथम सॉ मिल (Chatham Saw Mill): हमने सर्वप्रथम एशिया की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी आरा मिलों में से एक चाथम द्वीप पर स्थित चाथम सॉ मिल (Chatham Saw Mill) देखी. यह सॉ-मिल बहुत सारी ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह रही है. एक बार जापानियों ने इस क्षेत्र पर आधिपत्य जमाने के लिए इसे बम से क्षतिग्रस्त कर दिया था. इंग्लैंड में बकिंघम महल (Buckingham Palace) चाथम आरा मिल में चिरान किए गए अंडमान पडौक की लकड़ी से बना है. बकिंघम पैलेस ब्रिटिश राजशाही का लंदन स्थित आधिकारिक निवास है. वेस्टमिंस्टर शहर में स्थित यह राजमहल राजकीय आयोजनों और शाही आतिथ्य का केंद्र है.

वन संग्रहालय (Forest Museum: तत्पश्चात चाथम सॉ मिल के परिसर के अंदर स्थित वन विभाग द्वारा संचालित वन संग्रहालय देखा. संग्रहालय लंबे समय से लकड़ी के काम के लिए जाना जाता है. यहाँ कला के टुकड़ों पर जटिल विवरण द्वारा शिल्प कौशल की उत्कृष्टता देख सकते हैं.

समुद्रिका नवल संग्रहालय

समुद्रिका नवल संग्रहालय (Samudrika Naval Marine Museum): दोपहर में भारतीय नेवी द्वारा संचालित समुद्रिका नवल संग्रहालय देखा. यहाँ अनेक तरह के शैल, कोरल, रंगीन समुद्री मछलियाँ आदि का संग्रहण देखने को मिला.

सेल्यूलर जेल

सेल्यूलर जेल (Cellular Jail): शाम को ब्रिटिश काल में कालापानी के नाम से कुख्यात सेल्यूलर जेल देखी. यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है. सेल्यूलर जेल एक ऐसी जेल है जहां अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ रहे भारतीयों को बहुत ही अमानवीय परिस्थितियों में रखा जाता था. अब यह पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है और एक राष्ट्रीय स्मारक है. रात को सेल्यूलर जेल में साउण्ड एण्ड लाइट शो देखा. हर शाम को यहां होने वाला साउण्ड एण्ड लाइट शो भीड़ को अपनी तरफ खींचने के साथ-साथ उस समय के कैदियों और उनके साथ रहने वाले लोगों के दर्द को बयां करता है. इस शो को वेटरन एक्टर मनोहर सिंह, स्वर्गीय टॉम ऑल्टर और स्वर्गीय ओम पुरी जैसे दिग्गजों ने अपनी आवाज़ दी है जो इस शो को बेहद मार्मिक बना देती है.

इन स्थानों का विस्तृत विवरण आगे दिया गया है.

21.12.2011: सुबह सबसे पहले महात्मा गांधी मरीन नेशनल पार्क (Mahatma Gandhi Marine National Park) देखने गए. यह पार्क समुद्री जीवों विशेषकर समुद्री कछुए और कोरल के संरक्षण के लिए बनाया गया है. इस मरीन पार्क में खुले समुद्री तट, खाड़ियां और 17 छोटे और बड़े द्वीप हैं. अंडमान पर्यटन विभाग से अनुमति लेनी पड़ती है. पोर्ट ब्लेयर से लगभग 29 किमी पश्चिम में स्थित प्रसिद्ध वंडूर बीच (Wandoor Beach) अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है. यहां पर टूर ओपरेटर्स असोसिएशन की नाव वंडूर (Wandoor) से महात्मा गांधी मरीन नेशनल पार्क ले जाते हैं. इस यात्रा में पर्यटक जॉली बुय आइलैंड या रेड स्किन द्वीप में ढाई घंटे से तीन घंटे बिता सकते हैं. हम जॉली बुय आइलैंड (Jolly Buoy Island) नाव से गए थे. रेड स्किन द्वीप वर्षा के समय ले जाते हैं.

जॉली बुय आइलैंड

जॉली बुय आइलैंड (Jolly Buoy Island): यहाँ प्लास्टिक ले जाना बिल्कुल मना है. 18.80 हेक्टर का एकदम साफ़-सुथरा आइलैंड है. नाव में प्रोमिला नाम की एक महिला फोरेस्ट गार्ड भी साथ थी जो यह सुनिश्चित कर रही थी कि कोई आइलैंड के पर्यावरण को खराब न कर पाये और समुद्री जीवों को कोई हानि न हो. आइलैंड पर कुछ देर विश्राम किया. केवड़े (Pandanus tectorius) के एक झुके हुये पेड़ को आराम कुर्सी के रूप में काम लिया. केवड़ा का वैज्ञानिक नाम है-Pandanus tectorius. केवड़ा सुगंधित फूलों वाले वृक्षों की एक प्रजाति है. टापू पर थोड़ा घूमकर यहाँ का दुर्लभ फ्लोरा-फौना देखा. अन्य पेड़ जो दिखाई दिये उनमें सम्मिलित थे जंगली कपास (Jungli Kapas), करंज (Karanj), खाड़ी महुआ अथवा समुद्री महुआ (Khari Mahua), मोरिंडा (Morinda), बादाम (Badam) आदि. गहरे पानी में समुद्री जीवों का दर्शन किया. साफ़-सुथरे और सुंदर बीच का आनंद लिया. यह प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र है और खुशी की बात है कि ऐसा सुनिश्चित भी किया जाता है.

चिड़िया टापू

चिड़िया टापू (Chidiya Tapu): जॉली बुय आइलैंड से दोपहर को लौटकर हम चिड़िया टापू (Chidiya Tapu) देखने गए. रास्ते में वन विश्राम गृह वंडूर में लंच की व्यवस्था थी. चिड़िया टापू वंडूर से 30 किमी की दूरी पर स्थित है. रास्ते में सघन वन हैं. अंडमान का बर्ड आइलैंड या चिड़िया टापू समृद्ध मैंग्रोव जंगलों (Mangrove Forests) की एक कालीन की तरह है. यहां पक्षियों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं. समुद्री बीच चिड़िया टापू पर बड़े-बड़े पेड़ गिरे हुये (Driftwood) या समुद्र में बहकर आए दिखते हैं जिनपर बैठ कर पर्यटक आनंद लेते हैं. यहाँ का सूर्यास्त शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है. सूर्यास्त के बाद हम चिड़िया टापू से पोर्टब्लेर लौट गए. यह दूरी भी लगभग 30 किमी है. सड़क बहुत अच्छी है और सघन वन दिखते हैं. अगर समय हो तो मुंडा पहाड़ (Munda Pahad) ट्रेकिंग का आनंद भी लिया जा सकता है. यह चिड़िया टापू से 3 किमी दूर है. मुंडा पहाड़ बीच पर तैराकी का अलग ही आनंद है. बीच पर बच्चे मूंगा (Coral) और कौड़ियाँ (Sea-shell) संग्रहण का लुत्फ उठाते हैं.

इन स्थानों का विस्तृत विवरण आगे दिया गया है.

रॉस द्वीप (Ross Island, Laxman Burdak)

22.12.2011: सुबह फेरी बोट से रॉस द्वीप (Ross Island) का भ्रमण किया. यह एक छोटा द्वीप है,जो आकार में एक वर्ग किमी से भी कम है. यह पोर्ट ब्लेयर के समीप पूर्व में 3 किमी की दूरी पर स्थित है. पोर्ट ब्लेयर में एबरडीन जेटी (Abberdeen Jetty) से फेरी वाले बुधवार को छोड़कर सभी दिनों में रॉस द्वीप पर आगंतुकों को लाते ले जाते हैं. यह एतिहासिक जगह है जिसको “पूर्व का पेरिस” (Paris of East) भी कहा जाता था. यह द्वीप ब्रिटिश वास्तुशिल्प के खंडहरों के लिए प्रसिद्ध है. यह द्वीप वर्ष 1858 से 1941 तक इस क्षेत्र की ब्रिटिश राजधानी थी. रॉस द्वीप का नाम समुद्री सर्वेक्षणकर्ता डेनियल रॉस (Daniel Ross) के नाम पर रखा गया था लेकिन हाल में (दिसंबर 2018 ) इसका नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप कर दिया गया है. यहां पर होने वाला साउंड एंड लाईट शो और यहां रहने वाले कई निवासी इस द्वीप का ऐसा इतिहास बताते हैं जो शायद इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में कभी न पढ़ाया गया हो.

मानव विज्ञान संग्रहालय

मानव विज्ञान संग्रहालय (Enthropological Museum): उसके बाद पोर्ट ब्लेयर (Port Blair) में समुद्री बीच (Sea Beach) और मानव विज्ञान संग्रहालय (Enthropological Museum) देखा. मानव विज्ञान संग्रहालय एक प्रकार का एथ्नॊग्रैफिक म्युज़ियम (Ethnographic Museum) है. यह अंडमान की चार नेग्रिटो जनजातियों अर्थात जारवा, सेंटिनल, ग्रेट अंडमानी और ओंगे और निकोबार के दो मंगोलोइड जनजातियों-निकोबारी और शोम्पेन्स को दर्शाता है. चूंकि ये जनजातियां बाहरी दुनिया के साथ बहुत कम संपर्क रखती हैं इसलिए यह संग्रहालय उनकी संस्कृति और जीवन शैली को समझने का एक शानदार ज़रिया है.

माउंट हैरियट से समुद्र का दृश्य

माउंट हैरियट (Mount Harriet): दोपहर बाद पोर्ट ब्लेयर से उत्तर में स्थित माउंट हैरियट (Mount Harriet) के लिए चाथन जेटी से बम्बूफ्लेट पैसेंजर फेरी नाव में गाड़ी सहित गए. यह दक्षिण अंडमान में सबसे ऊंची चोटी (365 मीटर) है जहां से पास के द्वीपों रॉस आइलैंड, हैवलॉक द्वीप और समुद्र का बेहतरीन नज़ारा दिखता है. ब्रिटिश राज में यह मुख्य आयुक्त का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय हुआ करता था. माउंट हैरियट पार्क का नाम वर्ष 1862 से 1864 तक पोर्ट ब्लेयर के कारागार अधीक्षक रहे व्यक्ति रॉबर्ट क्रिस्टोफर टाइटलर (Robert Christopher Tytler) की पत्नी हैरियट सी टाइटलर (Harriet C. Tytler) के नाम पर रखा गया था. इन्होंने ही इस जगह की खोज की थी.

राजीव गांधी स्पोर्ट कॉम्पलेक्स

राजीव गांधी स्पोर्ट कॉम्पलेक्स (Rajiv Gandhi Sports Complex): शामको राजीव गांधी स्पोर्ट कॉम्पलेक्स गए जो पोर्ट ब्लेयर के बिलकुल बीचों बीच स्थित है जहां आपको वॉटर स्पोर्ट्स से जुड़ी ढेरों ऐक्टिविटीज में शामिल होने का मौका मिलता है.

इन स्थानों का विस्तृत विवरण आगे दिया गया है.

अंडमान द्वीप-समूह का हमारा भ्रमण समाप्त होता है. अंडमान भ्रमण के लिए हमें केवल तीन दिन का समय मिल सका जो पर्याप्त नहीं है. यदि आप आराम से और सभी मुख्य आकर्षण के स्थानों को देखना चाहते हैं तो 5-7 दिन घूमने की योजना बनाकर आयेंगे तो अधिक आनंद आयेगा.

समुद्री स्वर्ग: समुद्री जीवन और पर्यावरण, अनेक तरह के शैल, कोरल, रंगीन समुद्री मछलियाँ, मूल निवासी लोगों का जनजीवन, इतिहास और जलक्रीड़ाओं में रूचि रखने वाले सैलानियों को यह अंडमान द्वीप-समूह बहुत रास आता है. यहाँ भ्रमण के बाद आपके दिमाग में जमी कालापानी की धारणा बदल जाती है और आप इसको समुद्री स्वर्ग कहने के लिए उत्प्रेरित होते हैं.

अंडमान से वापसी

23.12.2011: सुबह एयर पोर्ट गए तो पता लगा कि दिल्ली की फ्लाइट निरस्त हो गई है. अगले दिन की टिकट लेकर वापस होटल आ गए. कोई भ्रमण का कार्यक्रम नहीं था इसलिये आराम किया. आसपास पैदल भ्रमण किया और नारियल पीने का खूब आनंद लिया. नारियल यहाँ बहुत बड़ी साईज़ के मिलते हैं.

24.12.2011: पोर्ट ब्लेयर से सीधी दिल्ली की नॉन-स्टॉप फ्लाइट से दिल्ली पहुँच गए और वहाँ से जयपुर पहुँचे.

अंडमान परिचय

एशिया के मानचित्र पर अंडमान की स्थिति

अंडमान बंगाल की खाड़ी में स्थित भारत के अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह का उत्तरी भाग है. अंडमान अपने आंचल में मूंगे (कोरल) की दीवारों, साफ-स्वच्छ सागर तट, पुरानी यादों से जुड़े खंडहर और अनेक प्रकार की दुर्लभ वनस्पतियां संजोए हैं. इस द्वीपसमूह में कुल 572 द्वीप हैं. अंडमान का लगभग 86 प्रतिशत क्षेत्रफल जंगलों से ढका हुआ है. समुद्री जीवन, इतिहास और जलक्रीड़ाओं में रूचि रखने वाले सैलानियों को यह द्वीप बहुत रास आता है. हिन्द महासागर में बसा निर्मल और शांत अण्डमान पर्यटकों के मन को असीम आनंद की अनुभूति कराता है. भारत का यह केन्द्र शासित प्रदेश हिंद महासागर में स्थित है और भौगोलिक दृष्टि से दक्षिण पूर्व एशिया का हिस्सा है. द्वीपसमूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर (Port Blair) एक अंडमानी शहर है. यह इंडोनेशिया के आचेह (Acheh/Aceh) के उत्तर में 150 किमी पर स्थित है तथा अंडमान सागर इसे थाईलैंड और म्यांमार से अलग करता है. दो प्रमुख द्वीपसमूहों से मिलकर बने इस द्वीपसमूह को 10° उ अक्षांश पृथक करती है, जिसके उत्तर में अंडमान द्वीप समूह और दक्षिण में निकोबार द्वीप समूह स्थित हैं. इस द्वीपसमूह के पूर्व में अंडमान सागर और पश्चिम में बंगाल की खाड़ी स्थित है.

विद्वानों का मानना है कि अण्डमान शब्द हनुमान का एक और रूप है और संस्कृत मूल से मलय भाषा से होते हुए प्रचलित हो गया है. मलय में रामायण के पात्र "हनुमान" को "हन्डुमान" कहते हैं. निकोबार शब्द भी इसी भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है नग्न लोगों की भूमि.

पोर्ट ब्लेयर (Port Blair): पोर्ट ब्लेयर भारत के अंडमान एवं निकोबार प्रान्त का जिला है. यह शहर यहाँ की राजधानी भी है.यह दक्षिणी अंडमान द्वीप पर स्थित है. पोर्ट ब्लेयर केन्द्र शासित क्षेत्र है. यह क्षेत्र पहाड़ी भूरचना है. इमारती लकड़ियाँ यहाँ प्रचुरता से पायी जाती हैं, हरियाली भी भरपूर है. यहाँ समुद्र का पानी देखने में नीला है. बंगाल की खाड़ी के इस जल क्षेत्र में अनंत लैगून मिल जाएंगे, जिनमें रंगबिरंगी मछलियाँ अठखेलियाँ करती मिलेंगी.


पोर्ट ब्लेयर और आस-पास के मुख्य दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं: चाथम सॉ मिल (Chatham Saw Mill), वन संग्रहालय (Forest Museum), समुद्रिका नवल संग्रहालय (Samudrika Naval Marine Museum), सेल्यूलर जेल (Cellular Jail), महात्मा गांधी मरीन नेशनल पार्क (Mahatma Gandhi Marine National Park), जॉली बुय आइलैंड (Jolly Buoy Island), चिड़िया टापू (Chidiya Tapu)- मुंडा पहाड़ (Munda Pahad) (30 किलोमीटर), रॉस द्वीप (Ross Island), समुद्री बीच (Sea Beach), मानव विज्ञान संग्रहालय (Enthropological Museum), माउंट हैरियट (Mount Harriet) (20 किलोमीटर), वांडूर बीच (30 किलोमीटर), राजीव गांधी स्पोर्ट कॉम्पलेक्स (Rajiv Gandhi Sports Complex), लघु उघोग संग्रहालय, मिनी ज़ू, कोरबाइन कोव बीच, वाइपर आइलैंड आदि.

अंडमान आप वायुमार्ग या जलमार्ग दोनों से पहुँच सकते हैं. वायु मार्ग- पोर्ट ब्लेयर से चैन्नई, कोलकाता, दिल्ली, मुम्बई, बंगलूरू और भुवनेश्वर की दिन भर में अनेक उड़ाने हैं. सभी प्रमुख एयर लाईन्स अपनी सेवाएं दे रही हैं. जल मार्ग- कोलकाता, चैन्नई और विशाखापट्टनम से पानी के जहाज पोर्ट ब्लेयर जाते हैं. जाने में दो-तीन दिन का समय लगता है.

अण्डमान तथा निकोबार का इतिहास

अण्डमान तथा निकोबार का इतिहास रामायण काल से ही प्रारम्भ हुआ है. रामायण काल में इसे हण्डुमान (Handuman) नाम से जाना जाता था. विद्वानों का मानना है के "अण्डमान" शब्द "हनुमान" का एक और रूप है और संस्कृत मूल से मलय भाषा से होते हुए प्रचलित हो गया है. मलय में रामायण के "हनुमान" पात्र को "हन्डुमान" कहते हैं. मलय द्वीप को गुलाम मजदूर अंडमान से भेजे जाते थे. यहाँ के मूलनिवासियों को पकड़कर गुलामों के रूप में उनको समुद्रपार बेच दिया जाता था. मलयवासी इन द्वीपों को हण्डुमान (Handuman) के नाम से पुकारते थे और रामायण के हनुमान को भी वे हण्डुमान नाम से जानते थे.

समय गुजरने के साथ साथ इसके नाम में भी परिवर्तन होता गया. पहली शताब्दी में इस जगह को अगादेमन नाम से पुकारा जाता था और टोलेमी के अनुसार इसका नाम अंगादेमन था. विश्व के विभिन्न भागों से पर्यटकों ने यहॉं का भ्रमण किया है. चीनी यात्री इत्सिंग (Itsing) 672 ई. में भारत आया था. उसने इन द्वीपों को अंदबन (Andaban) और यहाँ के निवासियों को नरभक्षी बताया है. अरब भ्रमणकारियों ने भी 870 के दशक में इन द्वीपों का दौरा किया था.

मार्को पोलो यहॉं पर 1260 ई. में आए थे और इन द्वीपों का वर्णन अंगामानियण (Angamanian = Very big islands) नाम से किया. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि अंगामानियण शब्द से अंडमान बना है. फ्रियर अंडारिक (Friar Odoric) 1322 ई. में यहाँ आए थे और यहाँ के लोगों को कुत्ते जैसे चेहरेवाले नरभक्षी लिखा है. सीजर फ्रेडरिक (Caesar Frederike) ने 1625 ई. में इन द्वीपों के लोगों का वर्णन किया था. निकोलो कोंती (Nicolo Conti) ने अंडमान शब्द को अर्थ देने के प्रयास में इसको स्वर्णद्वीप कहा है. 1050 ई. के तंजोर शिलालेख में इस द्वीप का अनुवादित अर्थ Timaitture लिखा है जिसका अर्थ है-'अशुद्धी का द्वीप', शायद इसलिये कि ये लोग नरभक्षी थे.

ब्रिटिश शासन द्वारा इस स्थान का उपयोग स्वाधीनता आंदोलन में दमनकारी नीतियों के तहत क्रांतिकारियों को भारत से अलग रखने के लिये किया जाता था. इसी कारण यह स्थान आंदोलनकारियों के बीच काला पानी के नाम से कुख्यात था. कैद के लिये पोर्ट ब्लेयर में एक अलग कारागार, सेल्यूलर जेल का निर्माण किया गया था जो ब्रिटिश इंडिया के लिये साइबेरिया के समान था.

गवर्नर जनरल लॉर्ड कोर्नवाल्लिस (Lord Cornwallis) की रुचि इन द्वीपों में कॉलोनी स्थापित करने की थी. ईस्ट इंडिया कंपनी ने अंडमान में कॉलोनी बनाने का निर्णय लिया. 1788 ई. में रायल इंडियन नेबी के लेफि्टनेन्ट आरचिबाल्ड ब्ले्यर (Lt. Archibald Blair) ने दक्षिण अण्डमान के निकट एक छोटे से द्वीप में नेवल बेस बनाया और जंगलों को साफ करके घरों का निर्माण करवाया. पोर्ट का नाम गवर्नर जनरल लॉर्ड कोर्नवाल्लिस के नाम पर पोर्ट कोर्नवाल्लिस (Port Cornwallis) रखा. उन घरों के आस-पास सब्जियों तथा आर्चिडों का बाग लगवाया. इस प्रकार इस अनछूए वन्यजगत पर मानव नियंत्रित सभ्यता का आगमन का आधार स्थापित हुआ.

अंडमान में उपनिवेश स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य समुद्री तूफानों में फॅसे जहाजों को सुरक्षित स्थान उपलब्ध कराना था. यह सोचा गया की एक स्थाई बस्ती ही समुद्री जहाजों की सुरक्षा का एकमात्र समाधान है. इन द्वीपों में बस्ती बसाने का पहला प्रयास 1789 में किया गया जब कैप्टेन आर्चिबाल्ड ब्लेयर ने चाथम द्वीप में एक बस्ती बसाई. इस बस्ती को बाद में उत्तरी अंडमान में पोर्ट कॉर्नवालिस स्थानांतरित कर दिया गया क्योंकि उस स्थान को नौसेनिक दृस्टि से उपयुक्त समझा गया. बस्ती बसाने का यह प्रयास सफल नहीं रहा और इसे 1796 में समाप्तः कर दिया गया.

60 वर्षों के बाद पुनः इन द्वीपों में समुद्री जहाजों की सुरक्षा हेतु स्थाई बस्ती बसाने का सवाल आया परन्तु बंदी उपनिवेश की स्थापना वास्तव में 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के देशभक्तों को जिला वतन करने के लिए स्थापित किया गया. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 200 स्वतंत्रता सेनानियों के पहले जत्थे के अंडमान तथा निकोबार तथा निकोबार द्वीपों में 10 मार्च 1858 के आगमन के साथ बंदी उपनिवेश की शुरुआत हुई. सभी लम्बी अवधि और आजीवन कारावास की सजा पाए देशभक्तों को, जो किसी कारणवश बर्मा और भारत में मृत्यु दण्ड से बच गए थे, उन्हें अंडमान के बंदी उपनिवेश में भेजा गया. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात वहाबी विद्रोह, मणिपुर विद्रोह, आदि से जुड़े सेनानियों और अन्य देशभक्तों को अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने के जुर्म में अंडमान के बंदी उपनिवेश भेजा गया.

चाथम द्वीप के 12 एकड़ भूमि पर प्रथम कालोनी स्थापित की गई थी. पेनेल सेटेलमेंट बसाने के लिए सर्वोत्तम स्थान चयन हेतु 1857 में डा. फ्रेडरिक जॉन माउंट (Dr. Frederic John Mount) के नेतृत्व में ‘द अण्डमान कॉमेटी’ का गठन किया गया. पेनेल प्रणाली की प्रबंधन एवं स्थापना के लिए कैप्टेन हेनरी मान (Capt. Henery Man) द्वारा दिनांक 22 जनवरी 1858 को पोर्टब्ले्यर में (द्वितीय बार) युनियन जैक फहराया गया. ब्रिटिश सरकार द्वारा दक्षिण अण्डमान के उसी बंदरगाह से (चाथम) जहॉं लगभग एक शताब्दी पहले प्रथम कालोनी स्थापित की गई थी. सन 1858 के बसंत ऋतु में पेनेल सेटेलमेंट प्रारम्भ किया गया. 18 वीं शदी के अंत में इस पोर्ट का नाम कै. आर्चिबाल्ड ब्लेयर (Capt. Archibald Blair) के नाम पर पोर्टब्लेयर (Port Blair) किया गया.

बैटल आफ अबारडीन 17 मई 1859 (Battle of Abardeen): ब्रिटिशों द्वारा कैदियों से जबरदस्ती जंगल साफ करवाया जाता था. जिससे यहॉं के आदिवासियों की शांति भंग हो रही थी और आदिवासियों ने पलटवार करना प्रारम्भ कर दिया. आदिवासियों में अपनी आजादी के लिए ब्रिटिशों के विरूद्ध लड़ने की हिम्ममत पनपने लगी, फलस्वअरूप 17 मई 1859 को आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ़ प्रथम जंग छेड़ दी जिसे बैटल आफ अबारडीन (Battle of Abardeen) नाम से जाना जाता है. यह ऐतिहासिक युद्ध स्थानीय जनजाति 'ग्रेट अंडमानीज़' और ब्रिटिश फौज के बीच हुआ था. स्थानीय अबरदीन बाज़ार में एक पुलिस चौकी थी जहाँ एक बडे ही योजनाबद्ध तरीक से ग्रेट अंडमानीज़ लोगों ने ब्रिटिश उच्चाधिकारियों, पुलिस और फौज पर आक्रमण करने की योजना तैयार की थी. लेकिन, दूधनाथ तिवारी नामक एक व्यक्ति ने इस आक्रमण की सूचना ब्रिटिश अधिकारियों तक पहुंचा दी. बैटल ऑफ अबरदीन में एक तरफ तोप, तमंचों और कारतूस से लैस ब्रिटिश सिपाही थे तो दूसरी ओर ग्रेट अंडमानीज़ युवाओं का एक बड़ा समूह तीर कमान थामे आक्रमण करने को आतुर था. पूर्व से ही सूचना मिलने की वजह से ब्रिटिश पूरी तैयारी में थे, इस बैटल के दौरान इस जनजाति के सैकड़ों लोग मौत के घाट उतार दिए गए.

रॉस आइलैंड में दूधनाथ तिवारी को कालापानी की जेल में बतौर कैदी रखा गया था लेकिन 6 अप्रैल 1858 को 90 अन्य कैदियों के साथ ये जेल से फरार हो गए और आदिवासी बाहुल्य इलाके में पहुंच गए थे. अपनी ओर आते देख आदिवासियों ने इनमे से 88 लोगों को तीर कमान से मार गिराया. केवल तीन लोग बचे थे जिनमें से एक दूधनाथ तिवारी थे. दूधनाथ तिवारी ने इनसे संवाद स्थापित कर इन लोगों के चीफ का विश्वास जीत लिया. दूधनाथ तिवारी को आदिवासी अपने केंप में ले गए और उसको लाल मिट्टी पौत दी और आदिवासी समुदाय का हिस्सा बना लिया था. लीपा (Leepa) और जीगा (Jeega) नामक दो आदिवासी लड़कियों से उसका विवाह कर दिया. कहा जाता है कि जैसे ही बैटल ऑफ अबरदीन की योजना (जिसमें आदिवासी ब्रिटिशर्स पर आक्रमण करना चाहते थे) का तिवारी को पता चला, चुपके से आदिवासी केंप से निकले और इन्होंने युद्ध की योजना की जानकारी सब्रिटिश अधिकारी श्री वाल्कर को दे दी थी. दूधनाथ तिवारी के आदिवासियों के साथ किए गए विश्वासघात से आदिवासी समुदाय में सभ्य समाज के प्रति गहरी घृणा ने जन्म ले लिया. यद्यपि दूधनाथ तिवारी को अंग्रेजों ने मुक्त कर अपने मूल गाँव भेज दिया गया.

सेलुलर जेल का निर्माण: कुल 668 कक्ष का सेलुलर जेल का निर्माण कार्य 1896 से 1910 के मध्य हुआ. इस जेल में गोलाकार वृत्तक में सात भुजाएं थी. इस जेल का निर्माण मुख्य भूमि के स्वतंत्रता सेनानियों को कैद करने के लिए किया गया था. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पोर्टब्लेयर पर जापानियों का कब्जा था (वर्ष 1942 से 1945 तक). नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में अनंतिम भारतीय सरकार की स्थापना सन 1943 ई. में हुई थी.

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान द्वारा इस पर अधिकार कर लिया गया. कुछ समय के लिये यह द्वीप नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज के अधीन भी रहा था. बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि देश में कहीं भी पहली बार पोर्ट ब्लेयर में ही तिरंगा फहराया गया था. यहां नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 30 दिसम्बर 1943 को यूनियन जैक उतार कर तिरंगा झंडा फहराया था. इसलिय अंडमान निकोबार प्रशासन की तरफ से 30 दिसम्बर को हर साल एक भव्य कार्यक्रम मनाने की शुरूआत की गई है. जनरल लोकनाथन भी यहाँ के गवर्नर रहे थे. 1947 में ब्रिटिश सरकार से मुक्ति के बाद यह भारत का केन्द्र शासित प्रदेश बना।

स्वतंत्रता के पश्चाात भारत सरकार द्वारा द्वीपसमूह में प्रशासन की स्थाापना की गई एवं पोर्टब्लेयर को मुख्यालय बनाया गया. श्री इमाम उल मज़ीद को स्वतंत्र अण्डमान के प्रथम मुख्य आयुक्त नियुक्त किया गया. स्वतंत्रता के परवर्ती काल में सेटलरों के प्रथम दल का आगमन मार्च 1949 को हुआ जिसमें पाकिस्तान से आए लगभग 198 शरणार्थी परिवारों को इन द्वीपों में पुनर्वसन दिया गया. इसके बाद 1950, 1951, 1952 से 1961 तक पुनर्वसन चलता रहा. बंगाल, रांची, केरला, तमिलनाडु आदि जगह के सेटलर मुख्यत: किसान एवं छोटे शिल्पकार थे. खेती-बाडी करने के लिए इन्हें भूमि मुहैया करवायी गयी.

संदर्भ: 1. Baban Phaley: The Land of Martyrs Andaman & Nicobar,p.6-10

2. https://southandaman.nic.in/hi/%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8/ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की सरकार-इतिहास

अंडमान द्वीपसमूह के मुख्य आकर्षण

चाथम सॉ मिल - काठ कार्यशाला

चाथम आरा मिल (Chatam Saw Mill)

यह एशिया की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी आरा मिलों में से एक है. इसे स्थानीय निर्माण कार्यों के लिए लकड़ी की चिराई हेतु वर्ष 1883 में स्थापित किया गया था. यह मिल बहुत सारी ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह रही है. एक बार जापानियों ने इस क्षेत्र पर आधिपत्य जमाने के लिए इसे बम से क्षतिग्रस्त कर दिया था. अब राज्य सरकार द्वारा इस मिल का प्रबंधन किया जाता है. पास ही में मिल होने के कारण, कोई भी, इस क्षेत्र में ढेर सारे लकड़ी के लठ्ठों को देख सकता है. इस मिल में एक संग्रहालय भी है, जो कुशल कारीगरों द्वारा बनाई गई लकड़ी के शिल्प को प्रदर्शित करता है. संग्रहालय के अंदर कुछ वनस्पतियों और जीवों की प्रदर्शनी भी है. यहां पर जाते समय पर्यटक विभिन्न निर्माण प्रक्रियाओं को देख सकते हैं, जिनमें लकड़ी के भारी लठ्ठों को छोटे और बारीक टुकड़ों में बदला जाता है. इंग्लैंड में बकिंघम महल (Buckingham Palace) चाथम आरा मिल में चिरान किए गए अंडमान पडौक की लकड़ी से बना है. बकिंघम पैलेस ब्रिटिश राजशाही का लंदन स्थित आधिकारिक निवास है. वेस्टमिंस्टर शहर में स्थित यह राजमहल राजकीय आयोजनों और शाही आतिथ्य का केंद्र है.

फोरेस्ट म्यूजियम पोर्ट ब्लेयर

वन संग्रहालय (Forest Museum): चैथम सॉ मिल के परिसर के अंदर स्थित, यह संग्रहालय वन विभाग द्वारा संचालित है. वन संग्रहालय लंबे समय से लकड़ी के काम के लिए जाना जाता है. कला के टुकड़ों पर जटिल विवरण द्वारा शिल्प कौशल की उत्कृष्टता देख सकते हैं. एक चेन है जो लकड़ी से भी बनी है. आपको यहां ऐसी कई कलाकृतियां देखने को मिलेंगी. पडुक, संगमरमर, गुरजन, साटन की लकड़ी और पीयूमा जैसे पेड़ों की लकड़ी का उपयोग करके काम पूरा किया गया. इसमें लुप्तप्राय पौधों की प्रजातियां भी हैं जो हर साल बड़ी संख्या में पर्यटकों और आगंतुकों को आकर्षित करती हैं. परिसर के अंदर स्थित प्राणी उद्यान इस संग्रहालय को और भी खास बनाता है.

समुद्रिका नवल संग्रहालय

समुद्रिका नवल संग्रहालय (Samudrika Naval Marine Museum)

समुद्रिका नवल संग्रहालय पोर्टब्लेयर में स्थित है. समुद्री जीवन और पर्यावरण के बारे में ज्ञान करवाना इस संग्रहालय के स्थापित करने का उद्देश्य है. यह भारतीय नेवी द्वारा संचालित है. यहाँ पर अंडमान द्वीप समूह का इतिहास, भूगोल, यहाँ के मूल निवासी लोगों का जनजीवन, आर्कियोलोजी और समुद्री जीवन के बारे में जानने का अवसर मिलता है. यहाँ पर अनेक तरह के शैल, कोरल, रंगीन समुद्री मछलियाँ आदि का संग्रहण देखने को मिलता हैं. विद्यार्थियों को यहाँ अवश्य भ्रमण करना चाहिए.

सेल्यूलर जेल

सेल्यूलर जेल (Cellular Jail)

यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है. यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी, जो कि मुख्य भारत भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी, व सागर से भी हजार किलोमीटर दुर्गम मार्ग पड़ता था. यहाँ उन अस्त्रों को देखा जा सकता है जिनसे स्वतंत्रता सैनानियों पर अत्याचार किए जाते थे. यह काला पानी के नाम से कुख्यात थी. कालापानी शब्द अंडमान के बंदी उपनिवेश के लिए देश निकाला देने का पर्याय है. कालापानी शब्द का अर्थ मृत्यु जल या मृत्यु के स्थान से है जहाँ से कोई वापस नहीं आता है. देश निकालों के लिए कालापानी का अर्थ बाकी बचे हुए जीवन के लिए कठोर और अमानवीय यातनाएँ सहना था. कालापानी भेजना अर्थात स्वतंत्रता सेनानियों को उन अनकही यातनाओं और तकलीफ़ों का सामना करने के लिए जीवित नरक में भेजना, जो मौत की सजा से भी बदतर था.

अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सैनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह इस जेल की नींव 1897 में रखी गई थी. इस जेल के अंदर 696 कोठरियां हैं. इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल-जोल को रोकना था. आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं. कारागार की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं. यहाँ एक संग्रहालय भी है.

सेल्यूलर जेल

पोर्ट ब्लेयर की सेल्युलर जेल एक ऐसी जेल है जहां अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ रहे भारतीयों को बहुत ही अमानवीय परिस्थितियों में रखा जाता था. एक राष्ट्रीय स्मारक के रूप में प्रसिद्ध इस उपनिवेशीय कारागार का निर्माण वर्ष 1896 में शुरू हुआ था और वर्ष 1906 में यह बनकर तैयार हुआ. इसे सेल्युलर इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसे इस तरह बनाया गया था कि एक कोठरी में कैदी को अकेले ही कैद किया जा सके. शुरूआत में यहां सात विंग थे और केन्द्र में विशाल घंटे वाला एक टावर था जिसके चारों ओर पहरेदार तैनात रहते थे. हर विंग में तीन मंजिल थी और हर कालकोठरी की लंबाई 15 फिट और चौड़ाई 9 फिट थी जिसके हर 10 फिट पर एक खिड़की हुआ करती थी. विंग्स को साइकिल के पहियों की तरह बनाया गया था जिसके हर एक विंग से दूसरी विंग पर नज़र रखी जा सकती थी. इस कारण एक कैदी दूसरे कैदी से कभी भी बात नहीं कर सकता था. अब इन सात विंग में से केवल तीन ही विंग बचे हैं और बाकी के विंग को अस्पतालों और सरकारी कार्यालयों में बदल दिया गया है.

सेल्यूलर जेल-साउण्ड एण्ड लाइट शो

यह जेल अब उन सभी पर्यटकों के लिए तीर्थस्थल है जो भारतीय इतिहास के उस काले दौर को समझना चाहते हैं और वहां शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि देना चाहते हैं. यह जेल संग्रहालय राष्ट्रीय अवकाशों को छोड़कर सभी कार्य दिवसों में सुबह 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक और दोपहर 1.30 से शाम 4.45 तक खुला रहता है. इन भयावह कोठरियों को देखने, हैंगिंग यार्ड से होकर गुज़रने और ऐसी जगह के बारे में जानने के लिए उत्साहित करता है जहां कैदियों के भागे जाने की ज़रा भी संभावना नहीं थी. इसे सोचने मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. सेल्युलर जेल या काला पानी की यात्रा करना ऐसा है मानो आप उन सभी पुरानी देशभक्ति वाली हिंदी फिल्मों को फिर से जी रहे हों. इसका इतिहास आपको इसे एक अंधेरी जेल की तरह सोचने के लिए मजबूर करता है लेकिन जैसे ही आप इसके परिसर में घुसेंगे यहां आपको ब्राइट साफ-सुथरा और सूरज की रौशनी से भरा एक कोर्टयार्ड नज़र आएगा.

हर शाम को यहां होने वाला साउण्ड एण्ड लाइट शो भीड़ को अपनी तरफ खींचने के साथ-साथ उस समय के कैदियों और उनके साथ रहने वाले लोगों के दर्द को बयां करता है. इस शो को वेटरन एक्टर मनोहर सिंह, स्वर्गीय टॉम ऑल्टर और स्वर्गीय ओम पुरी जैसे दिग्गजों ने अपनी आवाज़ दी है जो इस शो को बेहद मार्मिक बना देती है.

महात्मा गांधी मरीन नेशनल पार्क

महात्मा गांधी मरीन नेशनल पार्क (Mahatma Gandhi Marine National Park)

यह राष्ट्रीय उद्यान दक्षिण अंडमान जिले में वंडूर के पास स्थित है और समुद्री जीवों के संरक्षण के लिए 24 मई 1983 को स्थापित किया गया है. पोर्ट ब्लेयर से लगभग 29 किमी पश्चिम में स्थित प्रसिद्ध वंडूर बीच अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है. 281.5 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैले इस मरीन पार्क में खुले समुद्री तट, खाड़ियां और 17 छोटे और बड़े द्वीप हैं. पर्यटक यहां कांच के तलों वाली नावों से पानी के नीचे दुर्लभ कोरल और समुद्री जीवन देख सकते हैं. स्कूबा डाइविंग और स्नॉर्कलिंग भी यहां कर सकते हैं. इस समुद्री राष्ट्रीय उद्यान में जाने से पहले अपने साथ लंच और पेयजल अवश्य ले जाएं. यह पार्क समुद्री जीवों विशेषकर समुद्री कछुए और कोरल के संरक्षण के लिए बनाया गया है. यहां पर कई नाविक हैं जो वंडूर (Wandoor) से महात्मा गांधी मरीन नेशनल पार्क तक ले जाते हैं और आपको गाइड भी करते रहते हैं. इस यात्रा में पर्यटक जॉली बुय आइलैंड या रेड स्किन द्वीप में ढाई घंटे से तीन घंटे बिता सकते हैं. हम जॉली बुय आइलैंड (Jolly Buoy Island) नाव से गए थे. रेड स्किन द्वीप वर्षा के मौसम में ले जाते हैं.

जॉली बुय आइलैंड

जॉली बुय आइलैंड (Jolly Buoy Island): जॉली बुय आइलैंड का क्षेत्रफल 18.80 हेक्टर, कोस्ट लाईन 2.5 किमी, लम्बाई 1.10 किमी चौड़ाई 0.2 किमी और समुद्र तल से ऊँचाई 45 मीटर है. यहाँ प्लास्टिक ले जाना बिल्कुल मना है. यदि आपके पास प्लास्टिक की बोतल में पानी है तो आइलैंड की यात्रा पर रवाना होने से पहले स्वागत कक्ष पर बोतल बदलनी पड़ती है जो लौटकर वापस जमा करनी पड़ती है. साथ में प्लास्टिक की थेली लेजाना मना है. इसी का परिणाम है कि ये आइलैंड एकदम साफ़-सुथरे हैं. नाव में प्रोमिला नाम की एक महिला फोरेस्ट गार्ड भी साथ थी जो यह सुनिश्चित करती है कि कोई आइलैंड के पर्यावरण को खराब न कर पाये और समुद्री जीवों को कोई हानि ना हो. जॉली बुय आइलैंड पर कुछ देर विश्राम किया. केवड़े के एक झुके हुये पेड़ को आराम कुर्सी के रूप में काम लिया. केवड़ा के पेड़ पर बहुत सुंदर फूल आया हुआ था. केवड़ा का वैज्ञानिक नाम है-Pandanus tectorius. केवड़ा सुगंधित फूलों वाले वृक्षों की एक प्रजाति है. केवड़ा दक्षिण अंडमान के अलावा दक्षिण भारत, पोलिनेशिया, आस्ट्रेलिया और बर्मा में मिलता है. इस पेड़ की दो प्रजातियाँ होती है- सफेद और पीली. सफेद जाति को केवड़ा और पीली को केतकी कहते हैं. केवड़े की यह सुगंध साँपों को बहुत आकर्षित करती है. इनसे इत्र भी बनाया जाता है जिसका प्रयोग मिठाइयों और पेयों में होता है. इनके पुष्पगुच्छ में नर या मादा फूल मोटी गूदेदार धुरी पर लगे होते हैं. नर पुष्पगुच्छ में कड़ी महक होती है. मादा पुष्पगुच्छ में जब फल लगते हैं और पक जाते हैं तब वह गोलाकार नारंगी रंग के अनन्नास के फल की भाँति दिखाई पड़ता है. केवड़े के ये फल समुद्र की लहरों द्वारा दूर देशों तक पहुँच जाते है और इसी से केवड़ा समुद्रतटीय स्थानों में अधिकता से पाया जाता है. नर पुष्पगुच्छ से केवड़ाजल और इत्र बनाए जाते हैं. पत्तियों के रेशे रस्सी आदि बनाने के काम आते हैं. जड़ों से टोकरी तथा बुरुश बनाये जाता हैं. केवड़े की झाड़ में साँप प्रायः आश्रय लेते हैं. इसलिये बंगाल के लोग इसे मानसी देवी का जन्मस्थान मानते हैं क्योंकि मानसी देवी सर्पों की रक्षिका देवी हैं. यहाँ का दुर्लभ फ्लोरा-फौना देखा. अन्य पेड़ जो दिखाई दिये उनमें सम्मिलित थे जंगली कपास (Jungli Kapas), करंज (Karanj), खाड़ी महुआ (Khari Mahua), मोरिंडा (Morinda), बादाम (Badam) आदि. गहरे पानी में समुद्री जीवों का दर्शन किया. साफ़-सुथरे और सुंदर बीच का आनंद लिया. यह प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र है और खुशी की बात है कि ऐसा सुनिश्चित भी किया जाता है.

अंडमान क्षेत्र में रबर प्लांटेशन

वांडूर रबर प्लांटेशन (Rubber Plantations in Wandoor):

वांडूर में रबर प्लांटेशन वन विभाग द्वारा किए गए हैं. चूंकि रबर इन द्वीपों की सबसे महत्वपूर्ण खेती में से एक है, यहां ऐसे कई स्पॉट हैं, जहां आप इसकी विनिर्माण प्रक्रिया को देख सकते हैं. वांडूर में लगभग 931 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला रबर प्लांटेशन अंडमान के सबसे सुंदर और बड़े स्थानों में से एक है. दक्षिणी अंडमान क्षेत्र में इसके लगभग दस हजार पेड़ हैं. यहां प्रवेश करते ही आपको हजारों हरे रबर की चादरें और प्रत्येक पेड़ पर लगे जार दिख जाएंगे. इस जगह की यात्रा से आप कच्चे रबर को रबर शीट में बदलने की प्रक्रिया की जानकारी प्राप्त करते हैं. टैपिंग-प्रक्रिया से पेड़ों से रबर का संग्रह किया जाता है और फिर रबड़ को मैनुअल रोलर्स के माध्यम से रबर की चादरों में बदल दिया जाता है. यह पूरी प्रक्रिया वास्तव में बहुत ही आकर्षक है. अंडमान में रबर प्लांटेशन योजना की शुरुआत श्री भरत सिंह द्वारा की गई थी जो बाद में राजस्थान के प्रधान मुख्य वन संरक्षक बने.

चिड़िया टापू (Chidiya Tapu)

Chidiya Tapu, Huge trees of Khari Mahua (Manilkara littoralis)

अंडमान का बर्ड आइलैंड या चिड़िया टापू समृद्ध मैंग्रोव जंगलों (Mangrove Forests) की एक कालीन की तरह है. जहां पक्षियों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं. यह इको पार्क दक्षिण अंडमान द्वीप के सबसे दक्षिणी सिरे पर मौजूद है और यह पोर्ट ब्लेयर से 30 किमी की दूरी पर स्थित है. पोर्ट ब्लेयर से चिड़िया टापू के लिए नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं. बर्डवॉचिंग के अलावा यह स्थान अपने पिकनिक स्पॉट, ट्रेकिंग ट्रेल्स और शानदार सूर्यास्त के लिए भी प्रसिद्ध है. अपनी समृद्ध और विविध वनस्पतियों और जीवों के कारण यह टापू एक जैविक उद्यान के रूप में जाना जाता है जिसे पर्यटकों को अवश्य देखना चाहिए. चिड़िया टापू का एक अन्य मुख्य आकर्षण यहां का सनसेट-प्वाईंट है. यह तट बंगाल की खाड़ी में दूर-दूर तक फैला है. सूर्य इस समुद्र को कई रंगों में रंग देता है जिनमें लाल और स्वर्ण रंगों की विविध प्रतिछाया होती है जो समुद्र के समीप बिताए गए आपके समय को यादगार बनाता है. चिड़िया टापू में एक छोटा चिड़ियाघर भी है. पर्यटकों को इसका लुफ्त अवश्य लेना चाहिए.

अगर समय हो तो मुंडा पहाड़ (Munda Pahad) ट्रेकिंग का आनंद भी लिया जा सकता है. यह चिड़िया टापू से 3 किमी दूर है. मुंडा पहाड़ बीच पर तैराकी का अलग ही आनंद है. बर्ड-वाचिंग, सूर्यास्त का दृश्य देखने तथा आस-पास की प्राकृतिक सुंदरता का लुत्फ लेने के लिए यह एक आदर्श स्थान है. बीच पर बच्चे मूंगा (Coral) और कौड़ियाँ (Sea-shell) संग्रहण का लुत्फ उठाते हैं. यहाँ मैंगरोव वन (Mangrove Forests) भी देख सकते हैं.

रॉस द्वीप (Ross Island)

रॉस आइलैंड को पूर्व का पेरिस भी कहा जाता है. वास्तव में यहां का खूबसूरत और मनमोहक दृश्य आपका मनमोह लेगा. यदि आप यहां पर अंडमान निकोबार में घूमने की योजना बना रहे हैं तो इस स्थल को अपनी सूची में जरूर शामिल करें. यह एक छोटा द्वीप है जो आकार में एक वर्ग किलोमीटर से भी कम है. यह पोर्ट ब्लेयर के समीप पूर्व में 3 किमी दूरी पर स्थित है. यह द्वीप ब्रिटिश वास्तुशिल्प के खंडहरों के लिए प्रसिद्ध है. रॉस द्वीप 200 एकड़ में फैला हुआ है. फीनिक्स उपसागर से नाव के माध्यम से चंद मिनटों में रॉस द्वीप पहुंचा जा सकता है. सुबह के समय यह द्वीप पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान है. यह द्वीप वर्ष 1858 से 1941 तक इस क्षेत्र की ब्रिटिश राजधानी थी. जब जापानियों ने इस पर कब्जा कर लिया तो इसे युद्ध बंदी स्थल में बदल दिया गया. इसके अलावा यहां का मुख्य आकर्षण चर्च का एक खंडहर, मुख्य आयुक्त का घर, कैथेड्रल, अंग्रेजों के कब्रिस्तान और कुछ अन्य महत्वपूर्ण स्थल हैं. पोर्ट ब्लेयर में एबरडीन जेटी से फेरी वाले बुधवार को छोड़कर सभी दिनों में रॉस द्वीप पर आगंतुकों को लाते ले जाते हैं. यहां पर होने वाला साउंड एंड लाईट शो और यहां रहने वाले कई निवासी इस द्वीप का ऐसा इतिहास बताते हैं जो शायद इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में कभी न पढ़ाया गया हो. नाव की सवारी, द्वीप पर प्रवेश और साउंड एंड लाइट शो के टिकट पर्यटन निदेशालय के रिसेप्शन काउंटर से खरीदे जा सकते हैं. रॉस द्वीप का नाम समुद्री सर्वेक्षणकर्ता डेनियल रॉस (Daniel Ross) के नाम पर रखा गया था लेकिन हाल में (दिसंबर 2018 ) इसका नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप कर दिया गया है. यह टापू सघन वन वाला क्षेत्र है जिसमें ताड़ और नारियल पेड़ों की बहुतायत है. यहाँ चीतल और मोर काफी दिखाई देते हैं.

मानव विज्ञान संग्रहालय (Enthropological Museum)

पोर्ट ब्लेयर में मानव विज्ञान संग्रहालय वर्ष 1975-76 में शुरू हुआ था और यह एक प्रकार का एथ्नॊग्रैफिक म्युज़ियम (Ethnographic Museum) है. यह अंडमान की चार नेग्रिटो जनजातियों अर्थात जारवा (Jarawas), सेंटिनल (Sentinelese) , ग्रेट अंडमानी (Great Andamanese) और ओंगे (Onges) और निकोबार के दो मंगोलोइड जनजातियों- निकोबारी (Nicobares) और शोम्पेन्स (Shompens) को दर्शाता है. चूंकि ये जनजातियां बाहरी दुनिया के साथ बहुत कम संपर्क रखती हैं इसलिए यह संग्रहालय उनकी संस्कृति और जीवन शैली को समझने का एक शानदार ज़रिया है. यहां की प्रमुख प्रदर्शनियों में शामैनिक मूर्तियां और जारवा चेस्ट गार्ड शामिल हैं. यह संग्रहालय सोमवार और सरकारी छुट्टियों पर बंद रहता है. यह सबसे अच्छे और सुव्यवस्थित संग्रहालयों में से एक है और दुनिया की सबसे पुरानी मानी जाने वाली जनजातियों की गहराई से जानकारी प्रदान करता है. यह पोर्ट ब्लेयर में एमजी रोड पर स्थित है.

माउंट हैरियट नेशनल पार्क (Mount Harriet National Park)

माउंट हैरियट पोर्ट ब्लेयर से सड़क मार्ग द्वारा 55 किमी और नाव से 15 किमी की दूरी पर स्थित है. ब्रिटिश राज में यह मुख्य आयुक्त का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय हुआ करता था. माउंट हैरियट दक्षिण अंडमान में सबसे ऊंची चोटी (365 मीटर) है जहां से पास के द्वीपों रॉस आइलैंड, हैवलॉक द्वीप और समुद्र का बेहतरीन नज़ारा दिखता है. यह पार्क 4.62 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें नाना प्रकार की वनस्पति और जीव-जंतु पाए जाते हैं जिसमें अंडमान के पेड़, सुंडा टीले, निकोबार मेगापोड, निकोबार पाराकीट, अंडमान के काले कठफोड़वा, ब्लैक-नेप्ड टर्न आदि पक्षी शामिल हैं. इसके अलावा आप यहां किंग कोबरा, ग्रीन सी और ओलिव रिडले कछुए, अंडमान कोबरा, रॉबर केकड़ा, खारे पानी में रहने वाले मगरमच्छ, कछुए और जंगली सुअर देख सकते हैं. नेशनल पार्क का पूरा क्षेत्र दक्षिण अंडमान के पूर्वी हिस्से में पहाड़ी श्रृंखलाओं का एक समूह बनाता है. इस पार्क का नाम वर्ष 1862 से 1864 तक पोर्ट ब्लेयर के कारागार अधीक्षक रहे व्यक्ति रॉबर्ट क्रिस्टोफर टाइटलर (Robert Christopher Tytler) की पत्नी हैरियट सी टाइटलर (Harriet C. Tytler) के नाम पर रखा गया था. इन्होंने ही इस जगह की खोज की थी.

राजीव गांधी वॉटर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स (Rajiv Gandhi Water Sports Complex)

पोर्ट ब्लेयर के बिलकुल बीचों बीच स्थित है राजीव गांधी वॉटर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स जहां आपको वॉटर स्पोर्ट्स से जुड़ी ढेरों ऐक्टिविटीज में शामिल होने का मौका मिलेगा. बनाना राइड, जेट स्कीइंग, पारासेलिंग, स्पीड बोट राइड, रो बोट पैडलिंग आदि... आप किसी भी ऐक्वा स्पोर्ट्स के बारे में सोचिए और वह आपको यहां जरूर मिलेगा. यदि आप पैरासिलिंग, जेट स्कीइंग, रोबोट पैडलिंग, बनाना राइड और स्पीड बोट की सवारी आदि का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो राजीव गांधी स्पोर्ट कॉम्पलेक्स की सैर करना ना भूलें. यहां पर स्पोर्ट एक्टिविटी की फीस मात्र 400 रूपये से 1000 रूपये तक है.

हैवलॉक द्वीप पर सूर्यास्त

हैवलॉक द्वीप (Havelock Island): हैवलॉक द्वीप जिसे अब स्वराज द्वीप (Swaraj Island) भी कहा जाता है, उष्णकटिबंधीय वनों से घिरा यह द्वीप अपनी खूबसूबरती से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है. यह पोर्ट ब्लेयर से उत्तर-पूर्व दिशा में 41 दूर स्थित है. यहां पर सफेद रेत पर आप अपने पैरों के छाप छोड़ते हुए बीच की तरफ बढ़ेंगे तो आपको एक अनोखी सी ताजगी महसूस होगी. यह चारों तरफ उष्णकटिबंधीय वनों से घिरा हुआ है. इन वनों की हरियाली की झलक आप पानी में भी देख सकते हैं. जल में आपको वृक्षों का प्रतिबिंब लहराता हुआ दिखेगा. वास्तव में यह मनोरम दृश्य आपका मननमोह लेगा. इसका नामकरण ब्रिटिश अधिकारी सर हेनरी हैवलॉक (Sir Henry Havelock) के नाम पर किया गया है परंतु अब यह नाम बदल कर (दिसंबर 2018 से) स्वराज द्वीप कर दिया है.

राधानगर बीच: अंडमान द्वीप समूह में टॉपिकल आइलैंड पैराडाइज के नाम से जाना जाने वाला खूबसूरत बीच है हैवलॉक आइलैंड. शीषे की तरह साफ पानी, चांदी की तरह चमकती सफेद रेत और अदभुत कोरल्स के कारण यह आईलैंड दुनियां के सबसे खूबसूरत तट रेखाओं में से एक माना जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि यह पर्यटकों की भीड़ से अभी थोड़ा दूर है. हैवलॉक का राधानगर बीच अंडमान निकोबार के बेस्ट बीचेस में ये एक है. 2 किलोमीटर लंबे और 30-40 किलोमीटर चौड़े राधानगर तट को एक मैग्जीन के द्वारा दुनिया के 7वें बेस्ट बीच की रैंक में यह शामिल हो चुका है. यह तट विदेशी सैलानियों की भी पहली पसंद है. अगर आप हनीमून के लिए कहीं जाने की सोच रहें हें तो यह बीच एक अच्छा विकल्प हो सकता है. यहां का शांत वातावरण आपको रोमांस से जोड़ने का काम करता है. यहां की चमकती रेत में सनसेट का मजा ही कुछ ओर है।

कार्बिन कोव्स समुद्रतट (Corbyn’s Cove Beach): हरे-भरे नारियल वृक्षों से घिरा यह बीच एक मनोरम स्थान है. यहां समुद्र में डुबकी लगाकर पानी के नीचे की दुनिया का अवलोकन किया जा सकता है. यहां से सूर्यास्त का अद्भुत नजारा काफी आकर्षक प्रतीत होता है. यह बीच अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए लोकप्रिय है.

वाइपर द्वीप (Viper Island): यहां किसी जमाने में गुलाम भारत से लाए गए बंदियों को पोर्ट ब्लेयर के पास वाइपर द्वीप पर उतारा जाता था. अब यह द्वीप एक पिकनिक स्थल के रूप में विकसित हो चुका है. यहां के टूटे-फूटे फांसी के फंदे निर्मम अतीत के साक्षी बनकर खड़े हैं.

बारातांग द्वीप (Baratang Island): अण्डमान द्वीपसमूह का एक द्वीप है जो पोर्ट ब्लेयर से 150 किमी उत्तर में स्थित है. यह 12°07′N 92°47′E पर स्थित है और इसका क्षेत्रफल लगभग 238 वर्ग किलोमीटर है.

बेरन द्वीप (Barren Island): यहां दक्षिण एशिया का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है. पोर्ट ब्लेयर से 138 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है. यह द्वीप लगभग 3 किलोमीटर में फैला है. यहां का ज्वालामुखी 28 मई 2005 में फटा था. तब से इससे लावा निकल रहा है. स्कूबा डाईविंग के लिए संसार में सर्वाधिक ख्यातिप्राप्त स्थान है.

डिगलीपुर (Diglipur): उत्तरी अंडमान द्वीप में स्थित प्रकृति प्रेमियों को बहुत पसंद आता है. यह स्थान अपने संतरों, चावलों और समुद्री जीवन के लिए प्रसिद्ध है. यहां की सेडल पीक (Saddle Peak) आसपास के द्वीपों से सबसे ऊंचा प्वाइंट है जो 731 मीटर ऊंचा है. अंडमान की एकमात्र नदी कलपोंग (Kalpong River) यहां से बहती है, हालांकि निकोबार द्वीपसमूह में अन्य नदियाँ हैं. कल्पोंग नदी सैडल पर्वत से शुरू होती है और फिर 35 किमी उत्तरी दिशा में बहती हुए दिगलीपुर शहर के पास से निकलती है और एरियल खाड़ी (Aerial Bay) में बह जाती है, जो कि स्वयं अंडमान सागर की एक खाड़ी है.

रेड स्किन द्वीप (Red Skin Island): यहाँ वांडूर जेटी (Wandoor Jetty) से 45 मिनट में पहुँचा जा सकता है. रास्ते में सघन हरे-भरे वन और मैंगरोव वन देख सकते हैं. यहां के स्वच्छ निर्मल पानी का सौंदर्य सैलानियों का मन मोह लेता है. इन द्वीपों में कई बार तैरती हुई डाल्फिन मछलियों के झुंड देखे जा सकते हैं. सीसे की तरह साफ पानी के नीचे जलीय पेड़-पौधे व रंगीन मछलियों को तैरते देखकर पर्यटक अपनी बाहरी दुनिया को अक्सर भूल जाते हैं. महात्मा गांधी मरीन नेशनल पार्क (Mahatma Gandhi Marine National Park) प्रशासन द्वारा यहाँ की अनुमति दी जाती है. रेड स्किन द्वीप वर्षा के मौसम में ले जाते हैं.

पिपोघाट फार्म: 80 एकड़ में फैला पिपोघाट फार्म दुर्लभ प्रजातियों के पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं के लिए जाना जाता है. यहां एशिया का सबसे प्राचीन लकड़ी चिराई की मशीन छातास सा मिल है.

अण्डमान और निकोबार की जनजातियाँ

अंडमान की चार नेग्रिटो जनजातियाँ अर्थात जारवा, सेंटिनल, ग्रेट अंडमानी और औंगी तथा निकोबार की दो मंगोलोइड जनजातियाँ -निकोबारी और शोम्पेन्स अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह की प्रमुख जनजातियाँ हैं और उनकी अनुमानित संख्या प्रत्येक जनजाति के साथ ब्रेकेट में दिखाई गई है:

जारवा जनजाति

जारवा जनजाति (Jarawas) (250) - भारत के अण्डमान एवं निकोबार द्वीपसमूह की नेग्रिटो मूल की एक प्रमुख जनजाति है. वर्तमान समय में इनकी संख्या 250 अनुमानित है जो कि अत्यन्त कम है. जारवा लोगों की त्वचा का रंग एकदम काला होता है और कद छोटा होता है. करीब 1990 तक जारवा जनजाति किसी की नज़रों में नहीं आई थी और एक अलग तरह का जीवन जी रही थी. अगर कोई बाहरी आदमी इनके दायरे में प्रवेश करता था, तो ये लोग उसे देखते ही मार देते थे, हालाँकि 1998 के बाद इनकी इस आदत में बहुत बदलाव आ चुका है. जारवा जनजाति 5 हजार साल से यहाँ रहती है, लेकिन 1990 तक बाहरी दुनिया के लोगों से इनका कोई सम्पर्क नहीं था. जनजाति अब भी तीर-धनुष से अपने लिए शिकार करती है. इनकी आबादी प्रतिवर्ष घटती देखी गई है. इस समुदाय में परंपरा के अनुसार यदि बच्चे की माँ विधवा हो जाए या उसका पिता किसी दूसरे समुदाय का हो तो बच्चे को मार दिया जाता है. बच्चे का रंग थोड़ा भी गोरा हो तो कोई भी उसके पिता को दूसरे समुदाय का मानकर उसकी हत्या कर देता है और समुदाय में इसके लिये कोई दंड नहीं है. अंडमान की जारवा जनजाति हिन्द महासागर के टापूओं पर पिछले 55,000 वर्षो से निवास कर रही है. जारवा जनजाति के लोग हजारों साल पहले अफ्रीका से यहाँ आकर बस गये थे. जारवा जनजाति को विश्व की सबसे पुरानी जनजाति माना जाता है जो अभी भी पाषाण युग में जी रही है. इस सभ्यता में हमारे पूर्वजों की छवि देखने और DNA आदि के जानने के उद्देश्य से अनेकों पर्यटक अंडमान में आने के बाद जारवा इलाके से जरुर गुजरते हैं और इन्हें देखने का अलग ही रोमांच है.

मानवशास्त्री कहते हैं कि तकरीबन 50,000 सालों से मुख्य समाज से कटकर जंगल के बीच रह रहे ये आदिवासी बेहद ही खतरनाक हैं. हालांकि पर्यटकों के कारण इनकी मुसीबतें बढ़ रही हैं. इनके पास इनके खुद के बनाए हुए बेहद ही खतरनाक तीर और कमान हैं. ये अपने क्षेत्र में घुसने वाले किसी भी व्यक्ति को छोड़ते नहीं हैं. जारवा जनजाति इलाके से केवल एक अंडमान ट्रंक रोड गुजरती है. इलाके में जाने के लिए गाड़ियां लगातार एकसाथ बिना रुके गुजरती हैं और किसी भी गाड़ी को रुकने की इजाजत नहीं है. जारवा इलाके में जाते वक्त सेना की गाड़ियां भी आगे-पीछे चलती है, क्योंकि जारवा लोग कभी भी पर्यटकों पर अपने भालों, धनुष आदि से आक्रमण कर सकते हैं.

सेंटिनल जनजाति

सेंटिनल जनजाति (Sentinelese) (250) : नेग्रिटो मूल की सेंटिनल जनजाति दुनिया से हजारों वर्षों से अलग-थलग है. यह माना जाता है कि वे दुनिया से दूर रह रहे हैं क्योंकि वे आम लोगों की बीमारियों से दूर रहना चाहते हैं. भारत के मानवविज्ञानी त्रिलोकनाथ पंडित एकमात्र व्यक्ति हैं जो इस जनजाति के साथ संपर्क स्थापित करने में सफल रहे. उन्होंने वर्ष 1966 और 1991 के बीच द्वीप की कई यात्राएँ कीं. त्रिलोकनाथ पंडित के अनुसार उनके समूह का कोई मुखिया नहीं है, लेकिन जो लोग तीर, भाला, टोकरियाँ, झोपड़ियाँ आदि बनाते हैं, उनका सम्मान किया जाता है. इन द्वीपों के जनजातियों के लोग करीबी रिश्तों में शादी नहीं करते हैं. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सेंटिनल जनजाति द्वारा एक अमेरिकी पर्यटक की हत्या की घटना चर्चा में आई. मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि अमेरिकी पर्यटक जॉन एलेन चाउ प्रहरी द्वीप पर ईसाई धर्म का प्रचार करना चाहते थे, लेकिन सेंटिनल जनजाति के आदिवासियों द्वारा हमला किया गया और मार दिया गया. इनकी आबादी अब 250 रह गई है.

औंगी जनजाति (Onges) (100) : नेग्रिटो मूल की इस जनजाति को सरकार द्वारा संरक्षण प्राप्त है. इस जनजाति के लोग लिटिल अंडमान में रहते हैं. इस जनजाति को काफी समय से संरक्षण प्राप्त होने से राशन से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं तक सब कुछ मिलता है. यह जनजाति आसानी से बाहर की दुनिया के लोगों से बात-चीत कर सकती है. पोर्ट ब्लेयर से लगभग 145 किलोमीटर दूर लिटिल अंडमान का साउथ बे और डिगॉन्ग क्री इलाका ओंगियों के लिए सुरक्षित है और यहां आम लोगों का जाना मना है. यहां जाने के लिए लोगों को सरकार से अनुमति लेनी होती है जो आसानी से नहीं मिलती. यह जनजाति अक्सर शिकार कर अपना पालन-पोषण करती है. ओंगियों के इलाके में जनजाति के करीब जाने वाले लोग भी बेहद स्किल्ड होते हैं. इनकी आबादी अब 100 रह गई है.

ग्रेट अंडमानी जनजाति

ग्रेट अंडमानी जनजाति (52) - नेग्रिटो मूल की ग्रेट अंडमानी लोगों की अंडमान द्वीपसमूह में सबसे अधिक आबादी किसी समय लगभग 5000 थी. वर्ष 1901 में इनकी संख्या घटकर 625 हो गई और 1969 मे इनकी संख्या और घटकर मात्र 19 हो गई. वर्ष 1971 की जनगणना के अनुसार मात्र उनकी संख्या 24 थी लेकिन वर्ष 1999 में उनकी संख्या बढ़ कर 41 हो गई. 2010 के अनुमानित आँकड़ों के अनुसार इनकी संख्या 52 थी. प्रशासन इस जनजाति के संरक्षण और परिरक्षण के लिए भरसक प्रयास कर रहा है. इस जनजाति को स्ट्रेट आईलैण्ड (Strait Island) नाम के एक छोटे से द्वीप में बसाया गया. ग्रेट अंडमानी लोग मूलतः शिकार से जीविकोपार्जन (hunter-gatherers) करते थे. आजकल वे चावल, दाल, चपाती और अन्य आधुनिक खाद्य सामग्री भी खाते हैं. वे गर्म मसालों का उपयोग करके खाना पका सकते हैं. लेकिन अब भी वे जरूरत पड़ने पर शिकार पर या जंगल और समुद्र तट से भोजन एकत्रित करने जाते हैं. उनके परम्परागत भोजन में मछली, डुगाँग, कछुऊा, कछुऊा के अण्डे, केकड़ा, कन्द मूल शामिल हैं. वे सुकर अंडमान के समुद्र में पाए जाने वाले मोनिटर (लिजर्ड) चिपकली आदि, तथा विभिन्न प्रकार के केकडा और मछली के अलावा ओक्टोपस, समुद्री जीव जैसे टर्बन शैल, स्कोर्पियन शैल सन्दियल हेल्मेंट, टोकस ओर स्क्रय शैल से निकाला गया मोलसेस पंसद करते हैं. बाद में कुछ लोग सब्जियों की खेती करने लगे और कुक्कुट पालन फार्म की भी स्थापना कीं. शराब पीने की आदत के अलावा उन्हें गैर-जन जातीय, शहरी, समुदाय के सम्पर्क में आने के बाद संक्रामक रोगों से ग्रस्त हुए हैं.

शोम्पेन जनजाति, 1886

शोम्पेन जनजाति (Shompens) (200) : यह मंगोलोइड मूल की जनजाति है जिसमें शायद सबसे ज्यादा बदलाव हुआ है और वह आधुनिक समाज का हिस्सा बनते जा रहे हैं. फिर भी इस समाज ने अपनी कई खासियत बचा कर रखी हैं. निकोबारी लोगों की भाषा, उनका पहनावा, नृत्य आदि बहुत कुछ ऐसा है जिसमें ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है. 1840 के दशक में पहली बार इस जनजाति से संपर्क साधा गया था. 2014 में पहली बार इस जनजाति को वोटिंग के लिए साथ में लाया गया था. यानी इस जनजाति का आधुनिकरण भी हाल ही में हुआ है.

निकोबारी जनजाति (25000) : यह भी मंगोलोइड मूल की जनजाति है. निकोबार में विभिन्न द्वीपों में ये निवास करते हैं. जिसमें यह मुख्यतः निकोबार द्वीप में रहते हैं. इस जनजाति के रहनसहन में काफी बदलाव आया है. इनकी जनसंख्या लगभग 25000 है. बिशप जॉन रिचर्डसन (Bishop John Richardson) अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से थे जिन्होने इस जनजाति के विकास के लिए बहुत प्रयास किए. विभिन्न समूहों के निकोबारी लोगों का एकीकरण कर यह नामकरण उनकी ही देन है. बिशप जॉन रिचर्डसन को समाज सेवा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1974 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.

अंडमान और निकोबार के वन और वन्यप्राणी तथा वनस्पतियाँ

Andaman-Padauk tree (Pterocarpus dalbergioides)

अंडमान में वन: अंडमान में उष्णकटिबन्धीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forest), उष्णकटिबन्धीय पर्णपाती वन (Tropical Deciduous Forest) और मैंग्रोव वन (Mangrove forests) किस्म के वन पाये जाते हैं. यहाँ सदाबहार वन, पर्णपाती वन और मैंग्रोव वन का संक्षिप्त परिचय दिया गया है.

सदाबहार वन (Evergreen Forest): पश्चिमी घाट पूर्वोत्तर भारत तथा अंडमान निकोबार द्वीप समूह में स्थित उच्च वर्षा क्षेत्रों में पाये जाते हैं. यह वन उन क्षेत्रों में पनपते हैं जहां मानसून कई महीनों तक रहता है. यह वृक्ष एक दूसरे से सटकर लगातार छत (Canopy) का निर्माण करते हैं. इसलिए इन वनों में धरातल तक प्रकाश नहीं पहुंच पाता. जब इस परत से थोड़ा प्रकाश धरातल तक पहुंचता है तब केवल कुछ छायाप्रिय पौधे ही धरती पर पनप पाते हैं. इन वनों में आर्किड्स तथा फर्न बहुतायत में पाये जाते हैं.

पर्णपाती वन (Deciduous Forest): पतझड़ी या पर्णपाती (deciduous) ऐसे पौधों और वृक्षों को कहा जाता है जो हर वर्ष किसी मौसम में अपने पत्ते गिरा देते हैं. अंडमान द्वीप समूह के उन ऊबड़-खाबड़ और पहाड़ी भागों में पर्णपाती वन पाये जाते हैं जहाँ जमीन में नमी तुलनात्मक रूप से कम रहती है. अंडमान द्वीप समूह में पर्णपाती वन आम हैं. उत्तर तथा मध्य अंडमान और दक्षिण अंडमान के कुछ भागों में मुख्य रूप से पर्णपाती वन हैं.

मैंग्रोव वन (Mangrove forests): मैंग्रोव वन नदियों के डेल्टा तथा तटों के किनारे उगते हैं और यहाँ मिट्टी के अपरदन को रोकते हैं. यह वृक्ष लवणयुक्त तथा शुद्ध जल सभी में वृद्धि करते हैं. यह वन नदियों द्वारा बहाकर लायी गई मिट्टियों में अधिक वृद्धि करते हैं. मैंग्रोव वृक्षों की जड़ें कीचड़ से बाहर की ओर वृद्धि करती हैं जो श्वसन भी करती हैं. समुद्री जीवों के लिए ये वन ऑर्गनिक मैटर उपलब्ध कराते हैं. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मैंग्रोव वन इन द्वीपों में पाये जाते हैं: Austin, Strait (North Andamans), Bomlungta and Charulungta (Middle Andamans), Baratang, Havelock and Wrafter creeks (South Andamans) and Little Andaman. मैंग्रोव वन की यहाँ पाई जाने वाली मुख्य प्रजातियाँ हैं - Rhizophora mucronata, R. conjugata, Bruguiera umnorrhiza, B. parviflora, Ceriops tagal, Avicennia marina, Lumnitzera littorea, L. racemosa, Aegiceras corniculatum, Excoecaria agallocha and Xylocarpus granatum. Nypafruitcans is a palm found in the mangrove forests. The mangrove fern Acrostichum aureum is associated with Acanthus ilicifolius.

दक्षिण अंडमान के जंगलों में फर्न और ऑर्किड के रूप में एपिफाइटिक वनस्पति की प्रचुर मात्रा में वृद्धि होती है. मध्य अंडमान में मुख्य रूप से पर्णपाती वन हैं. उत्तर अंडमान क्षेत्र में मुख्य रूप से पर्वतारोही हैं. उत्तरी निकोबार द्वीप समूह में, सदाबहार वनों की पूर्ण अनुपस्थिति है. निकोबार में घास की भूमि आम है, जबकि अंडमान द्वीप समूह में पर्णपाती वन आम हैं.

अंडमान में पाई जाने वाली वृक्ष प्रजातियां:

अंडमान में पाई जाने वाली वृक्ष प्रजातियों में मुख्य हैं- पडौक (Pterocarpus dalbergioides), खाड़ी महुआ (Manilkara littoralis), कोको (Albizia lebbeck), लालचीनी (Calophyllum soulattri), सफ़ेद बोम्बे (Terminalia procera) , सफ़ेद चुगलम (Terminalia bialata), काला चुगलम (Terminalia manii), Artocarpus chaplasha (Toungpeinne), मार्बल वूड (Diospyros marmorata), साटिन वूड (Murraya exotica). आदि.

अंडमान के सदाबहार वनों में ऊँचे-ऊँचे पेड़ों पर काष्ठीय बेलें (lianas) और अधिपादप (epiphyte) छाए रहते हैं. ऊपरी स्टोरी में पाई जाने वाली वृक्ष प्रजातियों में मुख्य हैं: Dipterocarpus griffithii, D.turbinatus, Sideroxylon longipetiolatum, Hopea odorata, Endospermum malaccense, Planchonia andamanica.

अंडमान पडौक गुणवत्ता के लिए विख्यात वृक्ष प्रजाति है. इस का वैज्ञानिक नाम Pterocarpus dalbergioides है. इस किस्म का उपयोग फर्निशिंग बनाने के लिए किया जाता है. यह फेबेसी (Fabaceae) कुल का एक वृक्ष है जिसकी लकड़ी बहुत मजबूत और उपयोगी होती है. इंग्लैंड में बकिंघम का महल पोर्ट ब्लेयर स्थित चाथम आरा मिल में चिरान किए गए अंडमान पडौक की लकड़ी से बना है.

अंडमान के जंगलों में इमारती लकड़ी की बहुतायत है. 200 से अधिक किस्में हैं, जिनमें से 40 को वाणिज्यिक माना जाता है. ब्रिटिश काल में इंपीरियल गजटियर (1906) में वाणिज्यिक इमारती लकड़ियों का निम्न तीन भागों में वर्गीकरण किया गया है:

प्रमुख प्रथम श्रेणी वाणिज्यिक इमारती लकड़ी हैं- पडौक (Pterocarpus dalbergioides), कोको (Albizia lebbeck), काला चुगलम (Terminalia manii), सफ़ेद चुगलम (Terminalia bialata or Indian Silver Greywood), संगमरमर लकड़ी (Diospyros marmorata), साटिन लकड़ी (Murraya exotica).

द्वीतीय श्रेणी वाणिज्यिक इमारती लकड़ी हैं- Pyinma (Lagerstroemia Flos Regina), बोम्बे (Terminalia procera), चूई (Chui), लकुच (Artocarpus lacucha), लालचीनी (Calophyllum soulattri), Pongyet and thitmin (Podocarpus neriifolius).

तृतीय श्रेणी वाणिज्यिक इमारती लकड़ी हैं- Didu (Bombax insigne), Ywegyi, Toungpeiagri and Gurjan (Dipterocarpus spp.).

अंडमान के जीवजंतु: इन क्षेत्रों में वन स्तनधारियों की कई किस्में पाई जाती हैं. बड़े स्तनधारियों में जंगली सूअरों की 2 स्थानिक किस्में शामिल हैं. अक्ष, बार्किंग हिरण और सांभर हिरण के रूप में विभिन्न किस्मों के चित्तीदार हिरण यहां बहुतायत में पाए जाते हैं. हाथी भी यहाँ पाए जाते हैं. चूहों की लगभग 26 प्रजातियां और चमगादड़ की 14 प्रजातियां हैं. लगभग 225 प्रजातियों की तितलियाँ और पतंगे हैं. माउंट हैरियट नेशनल पार्क इन द्वीपों पर तितली और कीट विविधता के सबसे अमीर क्षेत्रों में से एक है. टर्बो, ट्रॉचस, म्यूरेक्स और नॉटिलस के रूप में विभिन्न प्रकार के गोले की उपस्थिति भी है. विशालकाय क्लैम, ग्रीन मसल्स और ऑयस्टर जैसे शैल खाद्य शैलफिश का समर्थन करते हैं, खाद्य चूने का उत्पादन करने के लिए स्कैलप, क्लैम और कॉकल जैसे कुछ भट्टों में जलाया जाता है. सेफलोपोडा नामक प्रजाति की उपस्थिति भी है, जिसमें ऑक्टोपस, स्क्विड, और नॉटिलस आदि शामिल हैं. यहां कई प्रवाल, मछलियां और समुद्री घोड़े हैं.

अंडमान में कृषि और फलदार वृक्ष: अंडमान द्वीप में, धान मुख्य खाद्य फसल है, जबकि निकोबार द्वीप समूह में नारियल और सुपारी मुख्य फसलें हैं और दालों, तिलहनों और सब्जियों के रूप में खेतों की फसलें उगाई जाती हैं, इसके बाद रबी के मौसम में धान लिया जाता है. आम, सपोटा, संतरा, केला, पपीता, अनानास और जड़ फसलों के रूप में फल पहाड़ी भूमि पर बहुतायत में उगाए जाते हैं. इन द्वीपों में रबर, लाल तेल, ताड़ और काजू को सीमित पैमाने पर उगाया जाता है. मिर्च, लौंग, जायफल, और दालचीनी के रूप में मसाले भी उगाए जाते हैं. मसाले मल्टी-टीयर क्रॉपिंग सिस्टम के तहत उगाए जाते हैं.

Source: Facebook Post of Laxman Burdak Dated 14.3.2021

अंडमान द्वीपसमूह के चित्र

संदर्भ