Vaidurya

From Jatland Wiki
(Redirected from Vaidurya-Parvata)
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

Vaidurya (वैदूर्य) is name of a mountain mentioned by Panini and in Mahabharata. It is identified with Bhedaghat (भेड़ाघाट) in Jabalpur district in Madhya Pradesh. Vaidurya was a king of Kosala during Buddha's time.

Variants

Mention by Panini

Vaidurya (वैदूर्य) is name of a mountain mentioned by Panini in Ashtadhyayi.[1]

History

James Legge[2] mentions that four li south-east from the city of Sravasti, a tope has been erected at the place where the World-honoured one encountered king Virudhaha, when he wished to attack the kingdom of Shay-e, and took his stand before him at the side of the road....According to the phonetisation of the text, Virudhaha = Vaidurya. He was king of Kosala, the son and successor of Prasenajit, and the destroyer of Kapilavastu, the city of the Sakya family. His hostility to the Sakyas is sufficiently established, and it may be considered as certain that the name Shay-e, which, according to Julien’s “Methode,” p. 89, may be read Chia-e, is the same as Kia-e ({.} {.}), one of the phonetisations of Kapilavastu, as given by Eitel.


James Legge[3] mentions the king Vaidurya... "Buddha sat under a nyagrodha tree, which is still standing, with his face to the east, and (his aunt) Maja-prajapati presented him with a Sanghali; and (where) king Vaidurya slew the seed of Sakya, and they all in dying became Srotapannas.

वैडूर्यू

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लिखा है ....वैडूर्यू (AS, p.878) - विष्णुपुराण 2,2,28 के अनुसार मेरू के पश्चिम में स्थित एक पर्वत (केसराचल) - 'शिखिवासा: सवैडूर्य: कपिलो गंधमादन: जारुधि: प्रमुखास्तद्वत्पश्चिमे केसराचल:।'

वैदूर्य पर्वत - वैदूर्य शिखर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लिखा है ....1. वैदूर्य पर्वत = वैदूर्य शिखर (AS, p.879): महाभारत वन पर्व में धौम्य मुनि द्वारा वर्णित तीर्थों में इस पर्वत का उल्लेख है-- वैडूर्य शिखरॊ नाम पुण्यॊ गिरिवरः शुभः, दिव्यपुष्पफलास तत्र पादपा हरितछदाः (III.87.4) तस्य शैलस्य शिखरे सरस तत्र च धीमतः परफुल्लनलिनं राजन देवगन्धर्वसेवितम. (III.87.4) (वनपर्व 89,6-7) इस प्रसंग में में नर्मदा का वर्णन है जिसके कारण वैदूर्यशिखर का भेड़ाघाट (भृगुक्षेत्र) के समीप स्थित संगमरमर की चट्टानों वाली पर्वतमाला से अभिज्ञान किया जा सकता है. वैदूर्य या बिल्लोर शब्द स्वेत संगमरमर के लिए प्राचीन साहित्य में प्रयुक्त हुआ है. उपर्युक्त उद्धरण में वैदूर्यशिखर पर जिस सरोवर का वर्णन है वह शायद नर्मदा की वह गहरी झील है जो इन पहाड़ियों के बीच में नदी प्रवाह के रुक जाने से बन गई है.वनपर्व 121,16-19 में भी वैदूर्य पर्वत का, नर्मदा और पयोष्णी के संबंध में वर्णन है-- 'स पयोष्णयां नरश्रेष्ठ स्नात्वा वै भ्रातृभि: सह, वैदूर्यपर्वतंचैव नर्मदां च महानदीम्, देवाना मेति कौंतेय तथा राज्ञां सलोकताम्, वैदूर्यपर्वतंं दृष्टवा नरमदामवतीर्य च'(देखें भृगुक्षेत्र)

2. महाहिमवंत के आठ शिखरों में से एक, जिसका उल्लेख जैन ग्रंथ जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति में है.

भृगुक्षेत्र

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लिखा है ....भृगुक्षेत्र, जिला जबलपुर, म.प्र., (p.677): जबलपुर से 13 मील दूर स्थित भेड़ाघाट का प्राचीन पौराणिक नाम है. यहां नर्मदा का प्रवाह ऊंची-ऊंची पहाड़ियों से घिरकर झील के रूप में परिणित हो गया है. चारों ओर रंगीन और श्वेत चमकदार संगमरमर की पहाड़ियों का दृश्य बहुत ही अद्भुत और मनोमुग्धकारी है. भेड़ाघाट में भृगुऋषि की तपस्थली मानी जाती है. यहां कई पुराने मंदिर पहाड़ी के ऊपर स्थित हैं. यह स्थान अवश्य ही बहुत प्राचीन है.

महाभारत में संभवत: यहां की संगमरमर की पहाड़ियों का वैदूर्य-शिखर या वैदूर्य-पर्वत के नाम से वर्णन किया गया है. 'वैदूर्य-शिखरो नाम पुण्यो गिरिवर: शिव:' (महाभारत वन पर्व-89,6) (III.86.15);स पयोष्णयां नरश्रेष्ठ स्नात्वा वै भ्रातृभि: सह, वैदूर्यपर्वतंचैव नर्मदां च महानदीम्, देवाना मेति कौंतेय तथा राज्ञां सलोकताम्, वैदूर्यपर्वतंं दृष्टवा नरमदामवतीर्य च' (महाभारत वन पर्व-121, 16-19).

धुआंधार नर्मदा नदी के झरने के निकट द्वितीय शती ई. की एक मूर्ति प्राप्त हुई थी जो अब चौसठ योगिनी मंदिर में है. कई अन्य गुप्तकालीन मूर्तियां भी यहां से प्राप्त हुई थी जो इस प्रदेश के तत्कालीन शासक परिव्राजक महाराजाओं तथा उच्छकल्प के नरेशों के समय में निर्मित हुई थी. चौसठ योगिनी के मंदिर में त्रिपुरी के हैहयवंशी राजाओं के समय की कई मूर्तियां लक्ष्मणराज की रानी नोहाला द्वारा प्रतिस्थापित हुई थी. चौसठ योगिनी मंदिर का निर्माण कलचुरी संवत 907 = 1155-1156 ई. में अल्हणदेवी ने करवाया था. इस मंदिर को गोलाकृति होने के कारण गोलकीमठ भी कहते हैं.

In Mahabharata

Vaidurya (वैडूर्य) (Mountain Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.86.15), (III.87.4),


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 86 mentions the sacred tirthas of the south. Vaidurya (वैडूर्य) mountain is mentioned in Mahabharata (III.86.15). [7]....And there also is the Vaidurya (वैडूर्य) (III.86.15) mountain, which is delightful abounding in gems and capable of bestowing great merit. There on that mountain is the asylum of Agastya abounding in fruits and roots and water.


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 87 mentions Sacred spots in the west. Vaidurya (वैडूर्य) mountain is mentioned in Mahabharata (III.87.4). [8]....There also is that foremost of hills, the sacred and auspicious Vaidurya (वैडूर्य) (III.87.4) peak abounding with trees that are green and which are always graced with fruit and flowers. ...On the top of that mountain is a sacred tank decked with full-blown lotus and resorted to by the gods and the Gandharvas.

References

  1. India as Known to Panini, p. 39, 231, 246
  2. A Record of Buddhistic Kingdoms/Chapter 20, f.n.23
  3. A Record of Buddhistic Kingdoms/Chapter 22
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.878
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur,p.879
  6. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur,p.677
  7. वैडूर्य पर्वतस तत्र शरीमान मणिमयः शिवः, अगस्त्यस्याश्रमश चैव बहुमूलफलॊदकः(III.86.15)
  8. वैडूर्य शिखरॊ नाम पुण्यॊ गिरिवरः शुभः, दिव्यपुष्पफलास तत्र पादपा हरितछदाः (III.87.4) तस्य शैलस्य शिखरे सरस तत्र च धीमतः, परफुल्लनलिनं राजन देवगन्धर्वसेवितम (III.87.5)