Varahakshetra

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(Redirected from Varaha Kshetra)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Varahakshetra (वराहक्षेत्र) is a Hindu pilgrimage site associated with the Varaha-Avatara.

Origin

Variants

History

Varāhakṣetra (वराहक्षेत्र).—Himavacchikhara has been identified with Barāhachatra (Varāhakṣetra) in Nepal, which is the same as the Kokāmukha-tīrtha mentioned in the Mahābhārata and the Purāṇas. Himavacchikhara is the name of a locality mentioned in the Gupta inscription No. 36. The Gupta empire (r. 3rd-century CE), founded by Śrī Gupta, covered much of ancient India and embraced the Dharmic religions such as Hinduism, Buddhism and Jainism.[1][2]


Varahakshetra (वराहक्षेत्र) is a Hindu pilgrimage site which remains between the confluence of Koka and Koshi rivers in Barahakshetra, Sunsari of Province No. 1, Nepal. This place is one of Nepal's oldest shrines mentioned in Puranas including Brahma Purana, Varaha Purana and Skanda Purana and even mentioned and glorified in the Mahabharata epic. In Barahachhetra, the Varah, an incarnation of Vishnu is worshiped. Barahachhetra is taken as the most important pilgrimage site in eastern region of Nepal.[3]


Tej Ram Sharma[4] writes... 2. Himavacchikhara (हिमवच्छिखर) (No. 36, L. 5, L. 10) (Damodarpur Copper-plate Inscription of the time of Budhagupta (=A.D. 476-94)) : Literally meaning 'the peak of the Himalayas' it has been identified with Barahachatra (Varahaksetra) in Nepal, 668 which is the same as the Kokamukha tirtha mentioned in the Mahabharata and the Puranas. 669 The original temples of the gods Kokamukha and Svetavaraha referred to in the record 670 along with Himavac-Chikhara, were situated at this place. 671


668. Select Inscriptions by D. C. Sircar, p. 337, f.n. 3.

669. Studies in the Geography of Ancient and Medieval India by D. C. Sircar. p. 222. ,

670. No. 36, LL. 5-10.

671. Studies in the Geography of Ancient and Medieval India by D. C. Sircar. p. 222.

वराहक्षेत्र

वराहक्षेत्र (AS, p.833): बस्ती ज़िला, उत्तर प्रदेश में 'टिनिच' रेलवे स्टेशन से दो मील पूर्व और कुआनो नदी के दक्षिणी किनारे पर, रेल के पुल से आधा मील दूर वराह-अवतार की स्थली है. कुछ लोगों के विचार में पुराणों में वर्णित व्याघ्रपुर नामक प्राचीन नगर इसी स्थान पर बसा था. कहा जाता है कि यही बौद्ध-साहित्य का 'कोलिय नगर' नामक स्थान है, जहाँ सिद्धार्थ की माता मयदेवी के पिता कोलिय-वंशीय सुप्रबुद्ध की राजधानी थी। (दे. कोलिय गणराज्य)[5] ने लेख किया है

कोलिय गणराज्य

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ...कोलिय गणराज्य (AS, p.238) पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा नेपाल की सीमा पर स्थित बुद्ध कालीन गणराज्य था। महात्मा गौतम बुद्ध की माता 'मायादेवी' इसी राज्य के गण प्रमुख 'सुप्रबुद्ध' की कन्या थीं। स्थानीय किंवदंती के अनुसार बस्ती ज़िला, उत्तर प्रदेश में 'टिनिच' रेलवे स्टेशन से दो मील पूर्व और कुआनो नदी के दक्षिणी किनारे पर रेल के पुल से आधा मील दूर 'बड़ा चक्रा' (वराह क्षेत्र) नामक एक ग्राम है, जो पुराणों में वर्णित व्याघ्रपुर के प्राचीन नगर के स्थान पर बसा हुआ है। इसे ही बौद्ध-साहित्य का 'कोलिय नगर' कहा जाता है, जहाँ सुप्रबुद्ध की राजधानी थी। बौद्ध साहित्य में मायादेवी का पितृगृह 'देवदह' नामक स्थान पर बताया गया है। 'कोल' शब्द का अर्थ 'वराह' भी है और इसी कारण से शायद इस स्थान का परंपरागत नाम 'वराह क्षेत्र' या अपभ्रंश रूप में 'बड़ा चक्रा' चला आ रहा है। कुछ लोगों का यह भी मत है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक जाति 'कोली' प्राचीन कोलियों से संबद्ध है।

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References