Marodha

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Location of villages around Jhunjhunun in north
Marodha- Khariya- Alsisar-Kayampura-Rampura in Jhunjhunu
Khariya - Badhdev Ki Ghodi Ka Chabutra Marodha, Jhunjhunu
Badhdev Ki Ghodi Ka Chabutra Marodha

Marodha (मरोदा) is village in Jhunjhunu tahsil & district in Rajasthan. Marodha village is associated with Punia history. 'Badhdev Ki Ghodi Ka Chabutra' is a historical monument situated in Marodha.

Location

Marodha is a small Village/hamlet in Alsisar Tehsil in Jhunjhunu District of Rajasthan State, India. It comes under Marodha Panchayath. It is located 22 KM towards North from District head quarters Jhunjhunu. 10 KM from Alsisar. 186 KM from State capital Jaipur. Marodha Pin code is 333025 and postal head office is Mandrella. Haripura ( 6 KM ) , Alsisar ( 6 KM ) , Ladusar ( 9 KM ) , Malsisar ( 10 KM ) , Kant ( 10 KM ) are the nearby Villages to Marodha. Marodha is surrounded by Jhunjhunun Tehsil towards South , Chirawa Tehsil towards East , Pilani Tehsil towards East , Surajgarh Tehsil towards East.[1]

Founders

Punia clan

Jat Gotras

पूनिया का इतिहास

पूनिया गोत्र के इतिहास में मरोद गाँव का महत्वपूर्ण स्थान है. यहाँ पर बाढ़ देव की घोड़ी का चबूतरा बना हुआ है. चूरू जनपद के जाट इतिहास पर दौलतराम सारण डालमाण[2] ने अनुसन्धान किया है और लिखा है कि पाउलेट तथा अन्य लेखकों ने इस हाकडा नदी के बेल्ट में निम्नानुसार जाटों के जनपदीय शासन का उल्लेख किया है जो बीकानेर रियासत की स्थापना के समय था।

क्र.सं. जनपद क्षेत्रफल राजधानी मुखिया प्रमुख ठिकाने
7. पूनिया 360 गाँव बड़ी लूदी कान्हाजी पूनिया लूदी, झांसल, मरौदा, अजीतपुर

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज

ठाकुर देशराज लिखते हैं कि पोनियां सर्पों की एक नस्ल होती है। इस नाम से जान पड़ता है कि यह नागवंशी हैं। ‘हिसार गजिटियर’ में लिखा हुआ है कि - “ये अपने को शिव गोत्री मानते हैं, साथ ही महादेव की जटाओं से निकलने का भी जिक्र करते हैं।” शिव और तक्षक लोग पड़ौसी थे। साथ ही दोनों ही समुदाय आगे चलकर शैव मतानुयायी भी हो गए थे। इसलिए उनका निकट सम्बन्ध है। सिकन्दर के आक्रमण के पश्चात् शिवोई (शिवी) और तक्षक वंशी लोग पंजाब से नीचे उतर आए थे। उनमें से ही कुछ लोगों ने जांगल-प्रदेश को अधिकार में कर एक लम्बे अर्से तक उसका उपयोग किया था। जांगल-प्रदेश में ईशा के आरम्भिक काल में पहुंच गए थे। उन्होंने इस भूमि पर पन्द्रहवीं शताब्दी के काल तक राज्य किया है। जिन दिनों राठौरों का दल बीका और कान्दल के संचालन में जांगल-प्रदेश में पहुंचा था, उस समय पोनियां सरदारों के अधिकार में 300 गांव थे। वे कई पीढ़ी पहले से स्वतंत्रता का उपभोग करते चले आ रहे थे। उन्हीं के छः राज्य जाटों के जांगल-प्रदेश में और भी थे। रामरत्न चारण ने ‘राजपूताने के इतिहास’ में इन राज्यों को भौमियाचारे राज्य लिखा है। इन राज्यों का वर्णन ‘भारत के देशी राज्य’ ‘तारीख राजगान हिन्द’ ‘वाकए-राजपूताना’ आदि कई इतिहासों में है। हमने भी प्रायः सारा वर्णन उन्हीं इतिहासों के आधार पर लिखा है। उस समय इनकी राजधानी झांसल थी जो कि हिसार जिले की सीमा पर है। रामरत्न चारण ने अपने इतिहास में इनकी राजधानी लुद्धि नामक नगर में बतायी है। उस समय इनका राजा कान्हादेव था। कान्हादेव स्वाभिमानी और कभी न हारने वाला योद्धा था। उसके अन्य पूनियां भाई भी उसकी आज्ञा में थे। गणराज्यों को फूट नष्ट करती है। उसके पोनियां समाज में एकता थी। प्रति़क्षण उपस्थित रहने वाली सेना तो कान्हदेव के पास अधिक न थी, किन्तु उसके पास उन नवयुवक सैनिकों की कमी नहीं थी, जो अपने-अपने घर पर रहते थे और जब भी कान्हदेव की आज्ञा उनके पास पहुंचती थी, बड़ी प्रसन्नता से जत्थे के जत्थे उसकी सेवा में हाजिर हो जाते थे। प्रत्येक पोनियां अपने राज्य को अपना समझता था। वे सब कुछ बर्दाश्त करने को तैयार थे। किन्तु यह उनके लिए असह्य था कि अपने ऊपर अन्य जाति का मनुष्य शासन करता। ऐसी उनकी मनोवृत्ति थी जिसके कारण उन्होंने बीका


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-617


की अधीनता को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया था। वे अपनी स्वाधीनता बनाए रखने के लिए उस समय तक लड़ते रहे जब तक कि उनके समूह के अन्दर नौजवानों की संख्या काफी रही। उनके स्थानों पर राठौर अधिकार कर लेते थे। अन्त में राठौरों ने उनके दमन के लिए उनके बीच में गढ़ को ढहा देते थे। दन्तकथा के आधार पर कहा जाता है कि राजगढ़ के बुर्जो में कुछ पोनियां जाटों को चुन दिया था।

बड़े संघर्ष के बाद पोनियां लोग परास्त कर दिए गए। तब उनमें से कुछ यू.पी. की तरफ चले आये। राठौरों के पास सेना बहुत थी, गोदारे जाटों का समूह भी उनके साथ था। इसलिए पोनियां हार गए। पर यह पोनियों के लिए गौरव की बात ही रही कि स्वाधीनता की रक्षा के लिए उन्होंने कायरता नहीं दिखाई। उन्होंने खून की नदियां बहा दीं। वे बदला चाहते थे, उनके हृदय में आग जल रही थी। उनके नेताओं के साथ जो घात सरदारों ने किया था, उसका प्रतिकार पोनियों ने राठौर नरेश रायसिंह का वध करके किया। ‘भारत के देशी राज्य’ में भी पोनियों के द्वारा बदला लेने की बात लिखी है।

पोनियां जाटों के राज्य की सीमा झांसल (हिसार की सीमा) से मरोद तक थी। मरोद राजगढ़ के दक्षिण में 12 कोस की दूरी पर है। दन्त कथाओं के अनुसार किसी साधु ने पोनियां सरदार से कहा था कि घोड़ी पर चढ़कर जितनी जमीन भूमि दबा लेगा, वह सब पोनियों के राज्य में आ जाएगी। निदान सरदार ने ऐसा ही किया। घोड़ी दिन भर छोड़ने के बाद सांयकाल मरोद में पहुंचने पर मर गई। उस समय पोनियां सरदार ने कहा था-

“झासल से चाल मरोदा आई। मर घोड़ी पछतावा नांही।”

पोनियों की पुरानी राजधानी झांसल में जहां उनका दुर्ग था, कुछ निशान अब तक पाए जाते हैं। बालसमंद में भी ऐसे ही चिन्ह पाए जाते हैं।

राठौर राजा इनके वंशधरों को सन्तुष्ट रखने के लिए कुछ उनके मुखियों को देते रहे। कुछ समय पहले ही दश पोशाक और कुछ नकद के प्रति वर्ष राज से पाते हैं।


History

Population

As per Census-2011 statistics, Maroda village has the total population of 469 persons only (of which 220 are males while 249 are females).[3]

Notable persons

External links

References

  1. http://www.onefivenine.com/india/villages/Jhunjhunu/Alsisar/Marodha
  2. 'धरती पुत्र : जाट बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, साहवा, स्मारिका दिनांक 30 दिसंबर 2012', पेज 8-10
  3. http://www.census2011.co.in/data/village/70901-maroda-rajasthan.html

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