Agastya Ashrama
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Agastya Ashrama (अगस्त्य आश्रम) is an ancient historical place near Gaya in Bihar.
Origin
Variants
- Agastya Ashrama (अगस्त्य आश्रम) (AS, p.9)
- Agastyashrama (अगस्त्याश्रम ) (AS, p.9)
History
In Mahabharata
Agastya (अगस्त्य) (T) (III.86.10), (III.130.6),
Agastya (अगस्त्य) (IV.20.11), (XIII.67.6),
Agastya Ashrama (अगस्त्य आश्रम) (T) (III.85.15),
Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 85 mentions sacred asylums, tirthas, mountans and regions of eastern country. Hiranyabindu (हिरण्यबिन्दु) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.85.15).[1]..........O chief of the Bharata race, that the place hath come to be called Prayaga (प्रयाग) (III.85.14). In this direction, O foremost of kings, lieth the excellent asylum of Agastya (अगस्त्य) (III.85.15), O monarch, and the forest called Tapasa, decked by many ascetics. And there also is the great tirtha called Hiranyavindu (हिरण्यबिन्दु) (III.85.15) on the Kalanjara (कालंजर) (III.85.15) hills, and that best of mountains called Agastya, which is beautiful, sacred and auspicious
अगस्त्याश्रम
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ... अगस्त्याश्रम (AS, p.9) बिहार का एक ऐतिहासिक स्थान है। तत: सम्प्रस्थितो राजा कौंतेयो भूरिदक्षिण: अगस्त्याश्रममासाद्य दुर्जयायामुवास ह। (महाभारत वन पर्व 96,1) पांडव अपनी तीर्थयात्रा के प्रसंग में गया (बिहार) से आगे चलकर अगस्त्याश्रम पहुंचे थे। यहीं मणिमती नगरी की स्थिति थी। शायद यह राजगृह के निकट स्थित था।
अगस्त्यतीर्थ जो दक्षिण समुद्र तट पर स्थित था, इससे भिन्न था। जान पड़ता है कि प्राचीन काल में अगस्त्य के आश्रमों की परंपरा, बिहार से नासिक एवं दक्षिण समुद्र तट तक विस्तृत थी। पौराणिक साहित्य के अनुसार अगस्त्य-ऋषि ने भारत की आर्य-सभ्यता का सुदूर दक्षिण तथा समुद्र पार के देशों तक प्रचार किया था। (दुर्जया)
एक अन्य मत के अनुसार अगस्त्याश्रम 'इगतपुरी' को कहते हैं। यह नासिक के आगे मुंबई के समीप जी. आई.पी. रेलवे का एक स्टेशन है।[3]
दुर्जया
विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...दुर्जया (AS, p.439) एक पौराणिक नगरी का नाम है, जिसका उल्लेख महाभारत, वनपर्व में आया है। ऐसा माना जाता है कि यह नगरी राजगृह (बिहार) के निकट स्थित थी। 'तत: स संप्रस्थितो राजा कौन्तेयो भूरिदक्षिण: अगस्त्याश्रममासाद्य दुर्जयायामुवास ह'महाभारत, वनपर्व 96, 1. अर्थात् "गया से चलकर प्रचुर दक्षिणा दान करने वाले युधिष्ठिर ने अगस्त्याश्रम में पहुँच कर दुर्जयापुरी में निवास किया।" विश्वास किया जाता है कि दुर्जया नगरी राजगृह के निकट ही थी। सम्भवत: दुर्जया को ही महाभारत, वनपर्व 69, 4 में 'मणिमति' नगरी कहा है। मणितमति नगरी नागों की उपासना के लिए प्रसिद्ध थी।
External links
References
- ↑ अगस्त्यस्य च राजेन्द्र तत्राश्रमवरॊ महान, हिरण्यबिन्दुः कथितॊ गिरौ कालंजरे नृप (III.85.15)
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.9
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 556, परिशिष्ट 'क' |
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.439