Aidan Ram Bhadu

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लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, IFS (R)

Aidan Ram Bhadu (चौधरी आईदानराम भादू), from Shivkar (शिवकर), Barmer, was a social worker in Barmer, Rajasthan.[1]

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है .... चौधरी आईदान जी - [पृ.191]: आप गांव शिवकर परगना बाड़मेर के रहने वाले हैं। आपने बाड़मेर बोर्डिंग स्थापित करने में खूब सहायता दी। आप लग्न के धनी हैं। आपने पैदल दौरे में चौधरी मूलचंद जी को, जबकि बोर्डिंग को कायदे रुप में संचालन करने पधारे थे, तो खूब सहायता की। इन्होंने चौधरी साहब के साथ लड़के इकट्ठे करने में वह धन बटोरने में डेढ़ महीने तक रात-दिन परिश्रम किया और आखिरी समय तक साथ दे रहे हैं। आज भी वैसी ही लगनशीलता से कार्य कर रहे हैं।

जाट बोर्डिंग हाऊस बाडमेर की स्थापना

चौधरी रामदानजी का 1929 में जोधपुर से बायतू तथा 1930 में बाड़मेर स्थानान्तरण हो गया. अब आपने बाड़मेर के किसानों पर ध्यान देना शुरू किया. आपने बाडमेर में एक जाटावास बस्ती बसाई और वहीं अपना मकान बनाया. बाड़मेर को अपनी कर्म स्थली बनाते हुए इस एरिया के किसानों से सम्पर्क किया. कुछ बच्चों को लाकर अपने निवास स्थान पर लाकर रखा और पढाना शुरू किया. उस समय बाडमेर में एक मिडिल स्कूल और एक प्राथमिक स्कूल था. बच्चे वहां पढ़ने जाते और रामदानजी के मकान में रहते. यहाँ आपकी पत्नी सबके भोजन की व्यवस्था करती थी. जब बच्चों की संख्या बढ़ने लगी तब अपने पड़ौस के मकान में श्री भीकमचंदजी का मकान किराये पर लिया और वहां 30 जून 1934 को जाट बोर्डिंग हाऊस बाड़मेर की स्थापना की. चौधरी मूलचंदजी नागौर के कर कमलों से इसका उदघाटन हुआ. उस समय 19 छात्रों ने इसमें प्रवेश लिया था.[3][4] [5]

इस संस्था की स्थापना करने के बाद रामदान जी तन-मन-धन से इसकी उन्नति में लग गए. बाड़मेर के आसपास के गाँवों का भ्रमण कर आपने कई और बच्चों को बोर्डिंग में भर्ती करवाया. धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी तो इस छात्रावास का आर्थिक भार भी बढ़ने लगा, तब आपने ग्रामीण एरिया और रेलवे कर्मचारियों से चन्दा एकत्रित कर छात्रावास का खर्चा चलाया. इस कार्य में चौधरी आईदानजी भादू बाड़मेर ने आपका पूरा सहयोग किया.

जून 1936 तक इस संस्था में 35 विद्यार्थी हो गए और बाड़मेर में यह संस्था अपने आप में एक अनूठी संस्था बन गयी. 1937 में इस छात्रावास को जोधपुर सरकार से 30 रूपया मासिक अनुदान मिलने लग गया. अब चौधरी रामदानजी इस बोर्डिंग के लिए स्थाई निर्माण करवाने में लग गए. गाँवों में घूम कर तथा रेलवे कर्मचारियों से चंदा एकत्रित कर 1941 तक वर्तमान छात्रावास के आधे भाग का निर्माण पूरा कर लिया. अब किराए के भवन से बोर्डिंग नए भवन में स्थानांतरण करवा दिया. इस हेतु 1942 तथा 1944 में बाड़मेर में किसान सम्मेलन आयोजित किए. इनमें चौधरी बलादेवरामजी मिर्धा, हाकिम गोवर्धनसिंह्जी, चौधरी मूलचंदजी नागौर, चौधरी रामदानजी ने छात्रावास को पूरा करने हेतु चंदे की अपील की. तिलवाड़ा पशु मेले से भी चन्दा एकत्रित किया. इन प्रयासों से छात्रावास का निर्माण 1946 तक पूरा हो गया. [6]

जीवन परिचय

ठाकुर देशराज[7] ने लिखा है .... मास्टर रामचंद्र मिर्धा के दामाद बाबू आईदान सिंह सब इंस्पेक्टर कॉपरेटिव सोसायटी हैं।

गैलरी

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.191
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.191
  3. चौधरी गुल्लारामजी स्मृति ग्रन्थ, 1968, पेज 83
  4. महेश कुमार चौधरी:किसान कर्मवीर चौधरी रामदानजी , पेज 70-72
  5. डॉ पेमाराम व डॉ विक्रमादित्य चौधरी: जाटों की गौरवगाथा, जोधपुर, 2004, पेज 120
  6. डॉ पेमाराम व डॉ विक्रमादित्य चौधरी: जाटों की गौरवगाथा, जोधपुर, 2004, पेज 121
  7. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.180-181

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