Ajairaja II

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Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.), Jaipur
Genealogy of Chauhan rulers Chahaman - Guvaka-II
Genealogy of Chauhan rulers Chandanaraja - Someshwara

Ajairaja II (r. ?-1133 AD) was a famous ruler of his time. He was also called Salhana. He founded Ajmer and also attacked Malava captured Sulhana and made the senapati of Parmar king Naravarman as his prisoner. He killed rulers Chachig, Sindhul and Yashoraj. Ajairaj was succeeded by his son Arnoraj before 1133 AD.

Variants of name

Genealogy of Manakrao

Anhal → → → Ajaipal (Maheshwar - Ajmer) → Pirthi Pahar (had 24 sons) → Manika Rae (lord of Ajmer and Sambhur, S. 741 = AD.685) → LotHarsharaja (S. 812 = AD 755) → Dujgan-deo (Bhatner) → Eleven princes from Manakrao to Visaladeva (A.D. 1153-1163) → → → Prithvi Raj (1149–1192 CE) (39th from Anhal)[1]

VisaladevaAnuraj (Hansi) (d.1022 AD) → Ishtpal (Hansi: 1025 AD) (founder of Haras) → ChandkarnLok PalRao Hamir (+ Gambbir) → KalkurnaMah MugdRao BachaRao Chand (Asir) → Rainsi (Asir) → Kolun (+Kankal) → BangoRao Dewa (S. 1398 = A.D. 1342) (Bundi founded)[2]

SamarsiNapujiHamuji (S. 1440) → BirsingBiru (d. S. 1526) → Rao Bando (famine in S. 1542 = A. D. 1486) → NarayandasRao Surajmal (S. 1590 = A.D. 1534) → Soortan (S. 1591 = A.D. 1535) → Nirboodh (son of Rao Bando) →Rao ArjunSoorjun (S. 1689 = A.D. 1633)[3]

KoolunJaipal (=Bango) → Deva-Raj (Bundi:S. 1398 = A.D. 1342) → Hara-Raj (Bumaoda) → RitpalKelhanKuntal (+ young brother Deda-Raj) → Rao Mahadeva (S. 1446 = 1389 AD) → Durjan (=Jiva-raj) + Subatsal+ Kumbhakarn[4]


Note - We need to search continuous genealogy of early Chauhans. The last mentioned names are based on Menal Inscription of Mahadeva Hara (Chohans) S. 1446 (1389 AD).

Genealogy of Bairad clan

Ajayapala (Founder of Ajmer) → Raja VisalRaja DeshepalSomeshwaraPrithviraj ChauhanLakanManakramBairasiBairad (Founder of Bairad Gotra in 1045 AD) → Begad AnjiKajala Ram (Founded Kajalasar in 1065 AD) → Gordhan RamKalu RamChutra RamPesujiAsojiDedarjiDujonjiKirtonjiHimmarji (Founder of Tapoo 1367 AD) → Kanwarpal (Founded Cherai in 1475 AD) → Begoji → ...→ ...→ ...→ Asraj (Constructed Asolav Talab in 1643, died in 1696 AD) → Lalaji (wife:Panni Devi Saran of Bhaniyana) → 1. Pitha 2. Suja 3. Neta.

Note - This Genealogy is based on 'History of Berad clan' by Amesh Bairad

Founder of Ajmer

Ajairaja was the founder of the stately city of Ajmer, known originally as Ajayameru after the name of this ruler. It was certainly a better place for refuge against Muslim attacks than Sambhar and in some ways better placed for raids on kingdoms like Malwa. It must have been founded before V. 1170 for it is mentioned in in pattavali of Palha copied by Jinarakshita at Dhara in that year. The name finds a place in a sati slab of r. 489 also.

He also issued coins in his name and also his wife Somalladevi. These coins find mention in Menal Inscription of V. 1225 and in Dhod pillar inscription of V.1228. [5]


Ajaipal is a name celebrated in the Chauhan chronicles, as the founder of the fortress of Ajmer, one of the earliest establishments of Chauhan power. Ajmer is commonly said to have been founded by Raja Aja, A.D. 145. It was founded by Ajayadeva Chauhan about A.D. 1100 (IA, xxv. 162 f.).[6]

According to Sant Kanha Ram[7] The area between Ajmer and Diver was earlier known as Ajmer Merwara and it was inhabited by Mer people. Ajayapala Chauhan founded Ajmer by combining his name Ajay with Mer and made it Ajmer. Its stated origin from Ajayameru is baseless.

चौहान सम्राट

संत श्री कान्हाराम[8] ने लिखा है कि.... [पृष्ठ-76]: ईसा की दसवीं सदी में प्रतिहारों के कमजोर पड़ने पर प्राचीन क्षत्रिय नागवंश की चौहान शाखा शक्तिशाली बनकर उभरी। अहिच्छत्रपुर (नागौर) तथा शाकंभरी (सांभर) चौहनों के मुख्य स्थान थे। चौहनों ने 200 वर्ष तक अरबों, तुर्कों, गौरी, गजनवी को भारत में नहीं घुसने दिया।

चौहनों की ददरेवा (चुरू) शाखा के शासक जीवराज चौहान के पुत्र गोगा ने नवीं सदी के अंत में महमूद गजनवी की फौजों के छक्के छुड़ा दिये थे। गोगा का युद्ध कौशल देखकर महमूद गजनवी के मुंह से सहसा निकल पड़ा कि यह तो जाहरपीर (अचानक गायब और प्रकट होने वाला) है। महमूद गजनवी की फौजें समाप्त हुई और उसको उल्टे पैर लौटना पड़ा। दुर्भाग्यवश गोगा का बलिदान हो गया। गोगाजी के बलिदान दिवस भाद्रपद कृष्ण पक्ष की गोगा नवमी को भारत के घर-घर में लोकदेवता गोगाजी की पूजा की जाती है और गाँव-गाँव में मेले भरते हैं।


[पृष्ठ-77]: चौथी पाँचवीं शताब्दी के आस-पास अनंत गौचर (उत्तर पश्चिम राजस्थान, पंजाब, कश्मीर तक) में प्राचीन नागवंशी क्षत्रिय अनंतनाग का शासन था। इसी नागवंशी के वंशज चौहान कहलाए। अहिछत्रपुर (नागौर) इनकी राजधानी थी। आज जहां नागौर का किला है वहाँ इन्हीं नागों द्वारा सर्वप्रथम चौथी सदी में धूलकोट के रूप में दुर्ग का निर्माण किया गया था। इसका नाम रखा नागदुर्ग। नागदुर्ग ही बाद में अपभ्रंश होकर नागौर कहलाया।

551 ई. के आस-पास वासुदेव नाग यहाँ का शासक था। इस वंश का उदीयमान शासक सातवीं शताब्दी में नरदेव हुआ। यह नागवंशी शासक मूलतः शिव भक्त थे। आठवीं शताब्दी में ये चौहान कहलाए। नरदेव के बाद विग्रहराज द्वितीय ने 997 ई. में मुस्लिम आक्रमणकारी सुबुक्तगीन को को धूल चटाई। बाद में दुर्लभराज तृतीय उसके बाद विग्रहराज तृतीय तथा बाद में पृथ्वीराज प्रथम हुये। इन्हीं शासकों को चौहान जत्थे का नेतृत्व मिला। इस समय ये प्रतिहरों के सहायक थे। 738 ई. में इनहोने प्रतिहरों के साथ मिलकर राजस्थान की लड़ाई लड़ी थी।

नागदुर्ग के पुनः नव-निर्माण का श्री गणेश गोविन्दराज या गोविन्ददेव तृतीय के समय (1053 ई. ) अक्षय तृतीय को किया गया। गोविंद देव तृतीय के समय अरबों–तुर्कों द्वारा दखल देने के कारण चौहनों ने अपनी राजधानी अहिछत्रपुर से हटकर शाकंभरी (सांभर) को बनाया। बाद में और भी अधिक सुरक्षित स्थान अजमेर को अजमेर (अजयपाल) ने 1123 ई. में अपनी राजधानी बनाया। यह नगर नाग पहाड़ की पहाड़ियों के बीच बसाया था। एक काफी ऊंची पहाड़ी पर “अजमेर दुर्ग” का निर्माण करवाया था। अब यह दुर्ग “तारागढ़” के नाम से प्रसिद्ध है।

अजमेर से डिवेर के के बीच के पहाड़ी क्षेत्र में प्राचीन मेर जाति का मूल स्थान रहा है। यह मेरवाड़ा कहलाता था। अब यह अजमेर – मेरवाड़ा कहलाता है। अजयपाल ने अपने नाम अजय शब्द के साथ मेर जाति से मेर लेकर अजय+मेर = अजमेर रखा। अजमेर का नाम अजयमेरु से बना होने की बात मनगढ़ंत है। अजयपाल ने मुसलमानों से नागौर पुनः छीन लिया था। बाद में अपने पुत्र अर्नोराज (1133-1153 ई.) को शासन सौंप कर सन्यासी बन गए। अजयपाल बाबा के नाम से आज भी मूर्ति पुष्कर घाटी में स्थापित है। अरनौराज ने पुष्कर को लूटने वाले मुस्लिम आक्रमणकारियों को हराने के उपलक्ष में आना-सागर झील का निर्माण करवाया।


[पृष्ठ-78]: विग्रहराज चतुर्थ (बिसलदेव) (1153-1164 ई) इस वंश का अत्यंत पराक्रमी शासक हुआ। दिल्ली के लौह स्तम्भ पर लेख है कि उन्होने म्लेच्छों को भगाकर भारत भूमि को पुनः आर्यभूमि बनाया था। बीसलदेव ने बीसलपुर झील और सरस्वती कथंभरण संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया जिसे बाद में मुस्लिम शासकों ने तोड़कर ढाई दिन का झौंपड़ा बना दिया। इनके स्तंभों पर आज भी संस्कृत श्लोक उत्कीर्ण हैं। जगदेव, पृथ्वीराज द्वितीय, सोमेश्वर चौहानों के अगले शासक हुये। सोमेश्वर का पुत्र पृथ्वीराज तृतीय (1176-1192 ई) ही पृथ्वीराज चौहान के नाम से विख्यात हुआ। यह अजमेर के साथ दिल्ली का भी शासक बना।

References

  1. James Tod: Annals and Antiquities of Rajasthan, Volume II, Annals of Haravati, pp.409-412
  2. James Tod: Annals and Antiquities of Rajasthan, Volume II, Annals of Haravati, pp.420-423
  3. James Tod: Annals and Antiquities of Rajasthan, Volume II, Annals of Haravati, pp.426,429,431,433.434
  4. Menal Inscription of Mahadeva Hara (Chohans) S. 1446 (1389 AD) provides us this ancestry of Hara Chohans: Koolun → Jaipal → Deva-Raj (Hara-Raj) + Ritpal → Kelhan → Koontul (+Deda- Raj) → Mahadeva.See James Todd Annals/Personal Narrative, Vol. II,pp.683-686
  5. "Early Chauhan Dynasties" by Dasharatha Sharma, p.46
  6. James Todd, Annals and Antiquities of Rajasthan, Volume I,: Chapter 7 Catalogue of the Thirty Six Royal Races,pp.114
  7. Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.76-78
  8. Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.76-78