Amara Ram Saran
Amara Ram Saran (b. 1916 - ) is a social worker from village Sawau Padamsingh in Baytu tahsil of Barmer district in Rajasthan. He played an important role against the Jagirdars of Marwar region who were exploiting poor farmers. He created awareness amongst the farmers to fight against social evils.
जीवन परिचय
अमराराम सारण (b. 1916 - ) का जन्म राजस्थान के बाड़मेर जिले की बायतु तहसील के सवाऊ गाँव में वि.सं. 1973 को भींयाराम और टुगी देवी के घर हुआ ।
जागीर उन्मूलन आन्दोलन में किसान सभा के शीर्ष नेताओं का जो सहयोग सवाऊ निवासी अमराराम सारण ने किया, वह मालाणी के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा । न्याय के लिए जान की परवाह किये बिना जागीरदारों से भिड़ जाना, किसानों की तकलीफों को बलदेवराम मिर्धा, नाथूराम मिर्धा तक पहुँचाने का कार्य आपने पूर्ण निष्ठा के साथ किया ।
6 वर्ष की अवस्था में आपके पिताजी व 10 वर्ष की आयु में माताजी का स्वर्गवास हो गया । वि.सं. 1996 में 2 रुपये मासिक पगार पर बनिए की दुकान में मुनीम रहे । आपकी ईमानदारी के कारण मासिक पगार 13 रुपये की गयी । यह नौकरी छोड़कर 20 अगस्त 1943 में भारतीय सेना में ग्रेनेडियर बन गए । द्वितीय विश्व युद्ध में आपने ब्रह्मा, हांगकांग, मलाया, सिंगापुर, इंडोनेशिया आदि मोर्चों पर युद्ध में भाग लिया । इंडोनेशिया में आपने देखा कि वहां के लोगों का जीवन स्तर मारवाड़ के लोगों से कई गुना अच्छा है, जिसका कारण शिक्षा है । अक्टूबर 1946 में सेना से सेवानिवृति लेकर सीधे किसान केशरी बलदेवराम मिर्धा के पास गए और समाज सुधार कार्य करने की इच्छा जताई ।
उस समय जागीरदारी जुल्म अपनी चरम सीमा पर थे । हीरा लाल शास्त्री के मुख्य मंत्री काल में जसोल के जागीरदार वसूली आदेश ले आये । उस समय कुंजरू कलेक्टर थे । सणतरा, सवाऊ, रतेऊ, परेऊ, गिड़ा क्षेत्र में प्रशासन की मदद से जबरन वसूली की जाने लगी । डराने के लिए किसानों की दाढ़ियाँ निकालना, धक्का मुक्की करना आम बात थी । अमराराम सारण ने खिलाफत की तो कलेक्टर नाराज हो गए ।
सवाऊ में जागीरदारों की कोटड़ी में जिलाधीश तथा पुलिस अधीक्षक ने इनको जेठ मास की चिलचिलाती धूप में बैठा दिया तथा इनकी बन्दूक यह कहते हुए ले ली कि बन्दूक से तुम जागीरदारों को डराते हो । अमराराम ने जवाब दिया कि जागीरदारों के पास भी बन्दूक हैं, जोधपुर किले में तोपें लगी हैं, इनसे हम जाट नहीं डरते, मेरी एक बन्दूक से जागीरदार कैसे डरते हैं । कलेक्टर बोला ऐसा करने से क्या मिलेगा तो जवाब दिया - महात्मा गाँधी को क्या मिला, मैं भी हैसियत के मुताबिक गांधी बनना चाहता हूँ ।
अमराराम बाहर ढाणियों में संपर्क करने गए तो कलेक्टर ने डरा-धमका कर गाँव के चौधरियों से अंगूठे करवा लिए कि हम ठाकुर साहब को लाग देंगे । दूसरे आपके कलेक्टर ने कहा कि आपके गाँव के मुखियाओं का ठाकुर साहब के साथ समझोता हो गया है । तुम अपने दस्तखत कर दो । अमराराम ने कहा कि मैं दस्तखत नहीं करूंगा, चाहे तो हाथ काटकर दस्तखत कर दो । नाराज होकर कलेक्टर ने वह कागज़ फाड़ दिया । फिर नाथूराम मिर्धा ने बाड़मेर आकर कलेक्टर कुंजरू को फटकार लगाई ।
16 फरवरी 1952 को सवाऊ में निम्बाणियों सारणों की ढाणी में अमराराम ने तीन डकेतों को पकड़ कर हवालात में डाला । आप विकास का एक मात्र साधन शिक्षा को मानते थे । गाँव में स्कूल खुलवाने के लिए ढाई दिन की भूख हड़ताल की । आपने सरपंच, कृषि मण्डी अध्यक्ष, कोपरेटिव बैंक के उपाध्यक्ष के लोकतांत्रिक पदों पर काम किया । औसर-मौसर का विरोध, नशा विरोध, जागीरी उन्मूलन, शिक्षा का प्रचार, किसान बोर्डिंग निर्माण, डकैत उन्मूलन आदि के लिए आपको हमेशा याद किया जाता है ।
बाहरी कड़ियाँ
सन्दर्भ
- जोगाराम सारण: बाड़मेर के जाट गौरव, खेमा बाबा प्रकाशन, गरल (बाड़मेर), 2009 , पृ. 167-168
चित्र गैलरी
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अमराराम सारण
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