Aparanta

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(Redirected from Aparāntaka)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Aparanta (अपरांत) or Aparantaka (अपरान्तक) (meaning "Western border") was a geographical region of ancient India, variously corresponding to the northern Konkan, northern Gujarat, Kathiawar, Kachch and Sindh.

Origin

Variants

History

The Junagadh inscription of Rudradaman mentions that during Ashoka's reign, a Yonaraja (literally; Ionian, or Greek, King), Tushaspa was the governor of Aparanta.[1] A Buddhist text, the Mahavamsa states (xii.5) that at the conclusion of the Third Buddhist Council (c.250 BCE), a Yona (Greek) Thera (monk) Dhammarakkhita was sent here by the emperor Ashoka to preach Dhamma[2] and 37,000 people embraced Buddhism due to his effort (Mahavamsa, xii.34-6). According to Buddhist scholar A.K. Warder, the Dharmaguptaka sect originated here.[3]

Aparanta is regarded as an umbrella term for Shurparakadesha for Konkan, to include in the North and Gomantaka in the south with the river Kundalika to serving as a dividing line in between the two.[4]

Indian Origin Places in Burma

Dineschandra Sircar[5] writes.... Some important old Indian names found in Burma are Aparanta, Avanti, Varanasi, Champanagara, Dvaravati, Gandhara, Kamboja, Kailasha, Kusumapura, Mithila, Pushkara, Pushkaravati, Rajagriha, etc. and the names Sankashya (Tagaung on the Upper Irawadi), Utkala (from Rangoon to Pegu) and Vaishali (modern Vethali in the Akyub district also fall in the same category.[6] The name of the well-known river Irawadi reminds us of Iravati (modern Ravi River), one of the famous tributaries of the Indus.

अपरांत

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ...अपरान्त (AS, p.26): अपरांत महाराष्ट्र के अंतर्गत उत्तर कोंकण (गोवा आदि का इलाका) में स्थित है। अपरांत का प्राचीन साहित्य में अनेक स्थानों पर उल्लेख है- 'तत: शूर्पारकं देशं सागरस्तस्य निर्ममे, सहसा जामदग्न्यस्य सोऽपरान्तमहीतलम्'। (शान्ति पर्व महाभारत 49, 66-67)

'तथापरान्ता: सौराष्ट्रा: शूराभीरास्तथार्बुदा:'। (विष्णु पुराण 2,3,16)

[p.27]: 'तस्यानीकैर्विसर्पदिभरपरान्तजयोद्यतै:'। रघुवंश महाकाव्य 4,53.

कालिदास ने रघु की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में पश्चिमी देशों के निवासियों को अपरांत नाम से अभिहित किया है और इसी प्रकार कोशकार यादव ने भी 'अपरान्तास्तु पाश्चात्यास्ते' कहा है। रघुवंश (4,58) में भी '|अपरांत' के राजाओं का उल्लेख है। इस प्रकार 'अपरांत' नाम सामान्य रूप से 'पश्चिमी देशों' का व्यंजक था किंतु विशेष रूप से (जैसे महाभारत के उपर्युक्त उद्धरण में) इस नाम से उत्तर कोंकण का बोध होता था।

महावंश (महावंश 12,4) के उल्लेख के अनुसार अशोक के शासनकाल में यवन धर्मरक्षित को अपरांत में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा गया था। इस संदर्भ में भी 'अपरांत' से पश्चिम के देशों का ही अर्थ ग्रहण करना चाहिए।

महाभारत शान्ति पर्व (49,66-67) से सूचित होता है कि शूर्पारक नामक देश को जो 'अपरांत भूमि' में स्थित था, परशुराम के लिए सागर ने छोड़ दिया था। ('तत: शूर्पारकं देश सागरस्तस्य निर्ममे, सहसा जामदग्नस्य सोपरान्तमहीतलम')। महाभारत सभा पर्व (51,28) से सूचित होता है कि अपरांत देश में जो परशुराम की भूमि थी तीक्ष्ण फरसे (परशु) बनाए जाते थे- ('अपरांत समुदभूतांस्तथैव परशूञ्छितान्')

गिरनार - स्थित रुद्रदामन् के प्रसिद्ध अभिलेख में अपरांत का रुद्रदामन द्वारा जीते जाने का उल्लेख है- स्ववीर्यार्जितानामनुरक्त सर्वप्रकृतीनां पूर्वापराकरा वन्त्यनूपनी वृदानर्त सुराष्ट्र श्वभ्रभरुकच्छ सिंधु सौवीर कुकुरापरान्त निषादादीनां..- यहां अपरांत कोंकण का ही पर्याय जान पड़ता है।

विष्णुपुराण में 'अपरांत' का उत्तर के देशों के साथ उल्लेख है। वायुपुराण में अपरांत को अपरित कहा गया है।


भारतवर्ष की पश्चिम दिशा का देशविशेष। 'अपरांत' (अपर-अंत) का अर्थ है- 'पश्चिम का अंत'। आजकल यह कोंकण प्रदेश माना जाता है। टॉल्मी नामक भूगोलवेत्ता ने इस प्रदेश को, जिसे उसने 'अरिआके' या 'अबरातिके' के नाम से पुकारा, चार भागों मे विभक्त बतलाया है।

जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि यहाँ अशोक ने सुदर्शन झील को पुननिर्मित कराया था, जैसा रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है। 'प्रांतपति तुहशाष्म' को वहाँ के देखरेख करने का भार सौंपा था। इसी क्षेत्र के लिए 'अपरांत' (पश्चिमी समुद्री तट) शब्द अभिलेखों में प्रयुक्त है। [8]

रुद्रदामा के जूनागढ़ अभिलेख में 'अपरान्त' (पश्चिम भारत) में अशोक के गवर्नर के रूप में यवनराज तुफ़ास्क का नाम मिलता है। जो स्पष्टतः एक ईरानी नाम है।

परांत

विजयेन्द्र कुमार माथुर[9] ने लेख किया है ... परांत (AS, p.531): अपरान्त का संक्षिप्त रूप है. श्री सीवी वैद्य के अनुसार वर्तमान सूरत जिले का परिवर्ती प्रदेश महाभारत काल में परांत कहलाता था. (देखें अपरान्त)

External links

References

  1. Thapar R. (2001), Aśoka and the Decline of the Mauryas, Oxford University Press, New Delhi, ISBN 0-19-564445-X, p.128
  2. Thapar R. (2001), Aśoka and the Decline of the Mauryas, Oxford University Press, New Delhi, ISBN 0-19-564445-X, p.47
  3. Indian Buddhism by A.K. Warder Motilal Banarsidass: 2000. ISBN 81-208-1741-9 pg 278
  4. Kamat Satoskar, B.D. (1982). Gomantak:Prakruti ani Sanskruti(Marathi). Pune: Shubhada publications. p. 39.
  5. Studies in the Geography of Ancient and Medieval India, By Dineschandra Sircar, p.319
  6. R.C. Majumdar, Hindu Colonies in the Far East,1944,p.216
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.26
  8. सहाय, डॉ. शिव स्वरूप भारतीय पुरालेखों का अध्ययन (हिंदी), 144।
  9. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.531