Banskhera

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(Redirected from Bans Khera)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

District Map of Shahjahanpur

Banskhera (बांसखेड़ा), meaning the land bearing Bamboo, is an ancient village in Shahjahanpur tahsil and district of Uttar Pradesh. It is situated 17km away from Shahjahanpur.

Variants

History

Banskhera is known in the Indian history for the discovery of Banskhera copper plate of Harshavardhana. The copper plate bears the signature the great king of kings, Harshavardhana. It was issued in 22nd year of Harsha's reign i.e. 628-629 AD. This copper plate gives the ancestry of Harsha. It is important that this plate bears signature of Harsha. This inscription was issued from place named Vardhamanakoti (वर्धमानकोटि). [1]

Signature of King Harshavardhana on Banskhera copper plate

The Madhuban inscriptions [2] and Banskhera inscriptions [3] give us informations about Harshavardhana and his ancestor Naravardhana, who married Vajrini Devi, from whom Rajyavardhana I was born.

A newly discovered copper-plate grant, dated year 8 of the Harsa era (A.D. 614–15), along with the seal, of Maharajadhiraja Harsavardhana of the Pusyabhuti dynasty, has been deciphered, edited and studied for the first time. Discovered in a village in the Nabha district, Punjab, the inscription is the earliest of the three known epigraphs of this ruler and the only one from Punjab. The other two—the Banskhera copper-plate (year 22) and the Madhuban copper-plate (year 25) are from Uttar Pradesh. This is the only one of Harsa's inscriptions that has been discovered along with the seal that was attached to it. The grant refers to the donation of a village named Pannarangaka in the Darikkani visaya of the Jayarata bhukti to a Brahmin named Ulukhasvamin of Bhargava gotra for the increase of merit and fame of Harsa's parents and elder brother Rajyavardhana.[4]

The signature of Harshavardhana on Banskhera copper plate reads like it:

स्वहस्तो मम महाराजाधिराज श्रीहर्षस्य
svahasto mama maharajadhiraja shriharshasya
Meaning - This is the signature of me, the great king of kings, Shri Harsha

बांसखेड़ा

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है .....बांसखेड़ा (AS, p.616) : महाराज हर्षवर्धन (606-647 ई.) का एक ताम्रदानपट्ट-लेख इस स्थान से प्राप्त हुआ था. इसका समय 628-629 ई. है. इसमें महाराजाधिराज हर्ष की वंशावली दी हुई है. बांसखेड़ा-अभिलेख की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें स्वयं हर्ष के हस्ताक्षर हैं। यह हस्ताक्षर संभवत: मूल हस्ताक्षर की अनुलिपि हैं, जिसे ताम्रपट्ट पर उतार लिया गया है. अभिलेख के अंत में यह हस्तलेख सुंदर अक्षरों में इस प्रकार है- 'स्वहस्तो मम महाराजाधिराज श्री हर्षस्य' (दे. एपिग्राफिका इंडिका, 4 पृ. 208). यह अभिलेख 'वर्धमानकोटि' नामक स्थान से प्रचलित किया गया था.

बांसखेड़ा परिचय

उत्तर प्रदेश में शाहजहाँपुर से लगभग 25 मील (लगभग 40 कि.मी.) की दूरी पर स्थित है। इस स्थल से महाराज हर्षवर्धन (606-647 ई.) का ताम्रदानपट्ट लेख सन 1894 में प्राप्त हुआ था। इसका समय 628 ई. है।

इतिहास: यहाँ से प्राप्त अभिलेख में हर्ष द्वारा अहिछत्र भुक्ति के अंगदीया विषय के 'मर्कटसागर' नामक गाँव को सभी करों से मुक्त करके, दो ब्राह्मणों- बालचन्द्र और भट्टस्वामी को दान देने का उल्लेख है।

इस अभिलेख में हर्ष की वंशावली भी दी गयी है, यद्यपि उसके मूलपुरुष पुष्यभूति का इसमें उल्लेख नहीं है। बांसखेड़ा अभिलेख की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें स्वयं हर्ष के हस्ताक्षर हैं। यह हस्ताक्षर संभवत: मूल हस्ताक्षर की अनुलिपि हैं, जिसे ताम्रपट्ट पर उतार लिया गया है। अभिलेख के अंत में यह हस्तलेख सुंदर अक्षरों में इस प्रकार है- 'स्वहस्तो मम महाराजाधिराज श्री हर्षस्य' (एपिग्राफिका इंडिका, 4 पृ. 208)

यह अभिलेख 'वर्धमानकोटि' नामक स्थान से प्रचलित किया गया था। उसमें हर्ष के पूर्वज राजाओं के आराध्य देवों और व्यक्तिगत विश्वासों का भी संकेत है। हर्ष के पिता प्रभाकरवर्धन को इसमें वर्णाश्रम व्यवस्था को स्थिर करने वाला कहा गया है।

अभिलेख की विशेषता: अभिलेख की अन्य विशेषता यह है कि इसमें हर्ष के प्रशासन के विभिन्न अंग अधिकारियों के पद एवं दान में दिये गाँवों पर लगने वाले करों आदि का उल्लेख है। इससे हर्ष के प्रशासन एवं आर्थिक मामलों पर प्रकाश पड़ता है। इसमें राज्यवर्धन द्वारा मालवा नरेश देवगुप्त एवं अन्य राजाओं पर विजय का और शशांक का शत्रुगृह (शशांक के घर) में वध का भी उल्लेख है।

संदर्भ: भारतकोश-बाँसखेड़ा

References

  1. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.616
  2. EI,Vol.I,p.67.
  3. EI, Vol. IV, p. 208.
  4. Ashvini Agrawal:A new copper-plate grant of Harsavardhana from the Punjab, year 8, Panjab University, Chandigarh, India
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.616

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