Bhartha Saran
Bhartha Saran (1614) was a Jat ruler of Jangladesh region in Rajasthan prior to formation of Bikaner princely state of Rathores.
Ramsisar Bhedwaliya village in Sardarshahar tehsil of Churu district of Rajasthan was founded by Bhartha Saran.[1]
भरथा सारण का राज्य
भरथा सारण बड़ा वीर, स्वाभिमानी तथा निर्भीक प्रकृति का व्यक्ति था। वह अपने पूर्वजों की विरासत सारनौटी का सुरक्षा प्रहरी था। भरथा सारण का जन्म सारण जनपद में लिखमीनारायणसर (वर्तमान राजासर बीकान तहसील सरदारशहर) में सन 1550 के आस-पास हुआ था। बीदावातों की ख्यात में भरथा सारण को 140 गाँवों का स्वामी लिखा है। भरथा सारण के पास घुड़सवारों की फ़ौज थी। भरथा सारण के समय बीकानेर के शासकों ने सारनौटी पर प्रभुत्व ज़माने के लिए अनेक प्रयास किये। रायसिंह के भाई रामसिंह ने प्रभुत्व जमाने हेतु हमले किये व सन 1577 में सारनौटी के कल्याणपुरा के पास उदासर में मारा गया। इस बात की पुष्टि उदासर चारणान के निकट छत्री के दो 1577 ई. के शिला लेखों से होती है। इनसे यह भी पता लगता है कि उसके शव के साथ उसकी दो पत्नियां कछवाही रुक्मादे और भटियानी संतोषदे सती हुई थी। भूलवश कर्नल टाड द्वारा रामसिंह का पूनिया जाटों के हाथों मारा जाना लिख दिया गया है। गोपालदास सांगवत का विपत्तिकाल में शरण देने वाला भरथा सारण था। बीदावतों के साहित्य में विवरण आता है कि बीकानेर के शासक शूरसिंह ने भरथा सारण व ईसर को मारने के लिए गोपालदास सांगावत को नियुक्त किया।
भरथा सारण को धोके से मारना
सन 1614 में भरथा सारण के सुरक्षित बचे एक मात्र पुत्र के वंशजों में वर्तमान राजासर बीकान के निवासी अध्यापक मेघराज सारण सुपुत्र सुखाराम सारण (मो: 9983939617) ने बताया कि
- "हमारे पूर्वज पीढ़ी दर पीढ़ी इस घटना के बारे में बताते आये हैं कि बीकानेर के शासक ने गोपालदास सांगवत को इस क्षेत्र की जागीर का लालच देकर भरथा सारण के पास भेजा था। पूर्व में गोपालदास सांगावत विपत्ति के दिनों में भरथा सारण के पास रहा था। इसलिए भरथा सारण ने गोपालदास पर पूरा भरोसा किया। कुछ समय गुजरने के बाद गोपालदास सांगावत ने एक बड़े भोज का आयोजन किया व भरथा सारण के गाँव के तथा आसपास के गाँवों के उसके प्रभावशाली सभी व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया। जिस स्थान पर भोज दिया जाना था वहां एक बहुत बड़ा बाड़ा झाड़बेरी के भींठकों से ऊँची-ऊँची बाड़ी से बनाया गया। रात्रि में गुप्त रूप से बीकानेर से प्राप्त बारूदी सुरंगें भूमिगत लगा दी गयी। लिखमीनारायणसर गाँव के अलावा आसपास के गाँवों के भरथा सारण और ईसर के व्यक्ति आये थे। भरथा सारण घोड़ा लेकर बाद में पहुंचा था। भरथा सारण ने घोड़ा सहित बाड़े में प्रवेश किया था कि योजना अनुसार बारूद में आग लगादी गयी और बड़ी संख्या में लोग मारे गए। भरथा सारण की पत्नी व उसका एक पुत्र भरथा सारण के ससुराल बीकामसरा गए हुए थे। वे बच गए। बाकी सब इस घटना के शिकार हो गए। भरथा सारण का घोड़ा छलांग लगा कर निकला तो गोपालदास व उसके साथियों ने घेर कर भरथा सारण को मार दिया।"
भरथा सारण और उनकी पत्नी की छत्रियां
भरथा सारण की पत्नी को औंठी (ऊँटस्वार) लेने आया व बीकमसरा से लिखमीनारायणसर जाते समय मीतासर की रोही में औठी ने भरथा सारण की पत्नी (बीकमसरा की हुड्डी) को इस घटना की जानकारी दी तो हुड्डी ने उसी स्थान पर प्राण त्याग दिए थे। भरथा सारण की पत्नी का उसी स्थान पर रोही में अंतिम संस्कार किया था जहाँ आज प्रकृति द्वारा 7 खेजड़ीयों की छतरी बनी हुई है तथा भरथा सारण का अंतिम संस्कार गाँव के पास पूर्व की तरफ किया था। वहां पर भी प्रकृति द्वारा 7 खेजड़ीयों की छतरी बनी हुई है। बाद में बीकानेर के शासकों ने भरथा सारण के गाँव लिखमीनारायणसर का नाम बदल कर राजासर बीकान व भरथा सारण द्वारा गाँव से दक्षिण पूर्व में 6 किमी दूरी पर बनवाया गया भरथाणा तालाब का नाम बीदावातों के ईष्टदेव चतुर्भुजनाथ के नाम पर चतुर्भुजाणा कर दिया। इस तरह की घटनाएँ सारनौटी के मालासर, राणासर, सवाई, अड़सीसर, हरदेसर, बुकनसर बड़ा आदि जगह भी हुई। इस महापुरुष की याद में स्मारक बनाये जाने की आवश्यकता है।
जाटों को समूल नष्ट करने की चाल
राव बीका और राव जोधा ने जाटों को समूल नष्ट करने की चाल चली। उन्होंने राजपूतों को मन्त्र दिया कि हम जाटों से लड़कर नहीं जीत सकते इसलिए धर्मभाई का रिवाज अपनाकर जब विश्वास कायम हो जाये तब सामूहिक भोज के नाम पर बाड़े में इकठ्ठा करो। नीचे बारूद बिछाकर नष्ट करो। इस कुकृत्य से असंख्य जाटों को नष्ट किया गया। [2]
बीकानेर रियासत के मुख्य गाँव जहाँ जाटों को जलाया गया -
- जसरासर (चूरू) गाँव के कस्वां जाटों को,
- राजासर बीकान (लक्ष्मीनारायण) के भरता सारण को,
- हरदेसर के सारणों को,
- मालासर (गोगासर के पास) के सारणों को,
- बुकनसर बड़ा डूडीयों को अक्षय तृतीय के दिन,
- सवाई,
- अड़सीसर ,
- हरियासर,
- मनहरपुरा,
- सोनडी आदि गाँवों में बारूद से आगजनी की घटनाएँ की। बहुत से गाँवों के पास पुराने थेड़ (खंडहर) पड़े हैं।[3]
स्रोत
- 1. चूरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास - लेखक गोनिन्द अग्रवाल 183-184
- 2. राजस्थान का इतिहास - गोपीनाथ शर्मा पृष्ठ-409
- 3. दयाल दास की ख्यात जिल्द 2 पृष्ठ-39
- 4. बीदावत राठोड़ों का बृहत इतिहास पृष्ठ-100
- 5. अभिनन्दन ग्रन्थ 2008 "जन नायक दौलतराम सारण" लेखक भंवर सिंह सामौर पृष्ठ-184
- 6. उद्देश्य: जाट कीर्ति संस्थान चूरू द्वारा आयोजित सर्व समाज बौद्धिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह स्मारिका, द्वितीय संस्करण जून 2013, पृष्ठ- 199-200, 'वीर शिरोमणि का इतिहास' लेखक विवेकानंद सारण (डालमाण)
- भरथा सारण का वंशज राजासर बीकान निवासी अध्यापक मेघराज सारण (मो: 09983939617)
References
- ↑ Churu Janpad Ka Jat Itihas by Daulat Ram Saran Dalman
- ↑ Dharati Putra: Jat Baudhik evam Pratibha Samman Samaroh Sahwa, Smarika 30 December 2012, by Jat Kirti Sansthan Churu, p.39
- ↑ Churu Janpad Ka Jat Itihas by Daulat Ram Saran Dalman
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