Bhopal Singh Arya

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Bhopal Singh Arya

Bhopal Singh Arya (Shyoran) (1909-1991) was a social worker and freedom fighter from village Chahar Khurd district Bhiwani in Haryana.

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है कि चौधरी भूपालसिंह जी ने गांव छोटी चहड़ में पाठशाला को तन और मन से सहायता की और हिम्मत के साथ उसके कामों में मदद की।

भोपाल सिंह आर्य - स्वतंत्रता सेनानी व समाज सुधारक

स्वतंत्रता सेनानी भोपाल सिंह आर्य का जन्म लुहारू रियासत के छोटी चहड़ जिला भिवानी (हरियाणा) में वर्ष 1909 में सालग राम श्योराण के घर हुआ । आपकी शादी बख्तावरपुरा - झुंझुनूं के प्रतिष्ठित परिवार कप्तान ताराचन्द कटेवा की बहन चंद्रावल से हुई ।

आप बचपन में ही आर्य समाज से जुड़ गये थे । लोहारू नवाब के डराने व धमकाने के बावजूद आपने गांव में आर्य पाठशाला एक अप्रैल, 1943 से प्रारम्भ की । यहाँ का स्कूल नवाब के ड़राने धमकाने पर भी वैसा ही चलता रहा । इनको नवाब का किसी प्रकार का भय नहीं था। आप रात में गांवों में चंदा करते, दिन में स्कूल के मकान का निर्माण करते समय गारा इंटें पकड़ाते साथ ही गांव वालों ने भी अच्छा सहयोग किया । नवाब के नम्बरदार इनसे डरते थे चूंकि इसकी कमान भोपाल सिंह के हाथ में थी । आपने स्कूल की तन मन धन से सेवा की । राज्य सरकार के कर्मचारियों ने स्कूल को उठवाने का बहुत सा प्रयत्न किया किन्तु निष्फल गया । एक दिन तहसीलदार रास्ते से चला जा रहा था,उधर मास्टर जी विद्यार्थियों को पढ़ा रहे थे । कीसी ने तहसीलदार को नहीं देखा, देखते भी कैसे वह तो आम रास्ते से जा रहा था जिससे प्रतिदिन हजारों मनुष्य जाते हैं । मास्टर जी किस किस को देखे । तहसीलदार ने ग्राम में जाकर कहा कि मास्टर बड़ा हराम है,हमारे लिए सलाम भी नहीं करता यदि ऐसा मास्टर हमारे यहाँ हो तो मैं कान पकड़ कर बाहर निकाल दूं । ग्राम के नंबरदार से कहा कि तुम इस स्कूल को तोड़ दो । उन्होंने कहा कि यह तो हमारे हाथ की बात नहीं है रुपए पैसे तो चौ. भोपाल सिंह के पास हैं वो ही इस कार्य को चलाता है । इस पर तहसीलदार ने उनको सलाह दी कि तुम उससे हिसाब किताब ले लो और फिर स्कूल को तोड़ देना और उन पैसों को हजम कर जाना । उन्होंने हिसाब के लिए बहुत से हाथ पैर पीटे पर सब प्रयत्न निष्फल गए और आर्य स्कूल का कार्य सुचारु रूप से चलता रहा ।

चौ. भोपाल सिंह ने आर्य विद्यालय चहड़ का उत्सव कराने की इच्छा से स्वामी स्वतंत्रानंद जी को निमंत्रण दिया । स्वामी जी ने उत्तर में लिखा की जब तक आर्य समाज का मंदिर लोहारु में नहीं बनेगा तब तक लोहारु राज्य में पैर नहीं रखूँगा । अतः आर्य समाज लोहारू द्वारा आर्य समाज के मन्दिर निर्माण को पूरा करने हेतु 19 अगस्त, 1945 को छोटी चहड़ में एक विशेष बैठक बुलाई गई उसमें रियासत से मन्दिर निर्माण हेतु धन संग्रह की योजना बनाई गई ।

आपने स्वामी कर्मानंद, स्वामी ईशानंद, स्वामी स्वतंत्रतानंद, भरत सिंह शास्त्री के साथ मिलकर लोहारू क्षेत्र में स्कूल खुलवाने, लोहारू में आर्य समाज का मन्दिर निर्माण, लोहारू नवाब के अत्याचारों के खिलाफ गांव गांव घूम कर जनता को जागृत किया । आपने भूदान आन्दोलन में 11 बीघा जमीन गरीब भूमिहीनों में वितरण हेतु दान करदी । बड़ी चहड़ के स्कूल के निर्माण हेतु आपकी पत्नी चन्द्रावल देवी के जेवर (चांदी का झालरा व कांगनी) दान कर दिये । कन्या शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु कन्या गुरुकुल पंचगामा में रह कर काफी सहयोग किया । आपकी पुत्री अंजना सहारन एवं उर्मिला झाझरिया शिक्षा विभाग (राजस्थान) से सेवानिवृत हो चुकी हैं । स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व. धर्मपाल सिंह भालोठिया आपके दामाद हैं ।

वर्ष 1956 में हिंदी रक्षा आंदोलन में रोहतक जेल में रहे । आर्य समाज लोहारु द्वारा 12 मई 1957 को बनी हिन्दी रक्षा समिति में स्वामी ईशानन्द अध्यक्ष व आप प्रचार मन्त्री बने । लम्बे समय तक गांव के सरपंच रहे एवं अनेक जनहित के कार्य करवाये । आजादी के बाद आर्य समाज के माध्यम से दहेज प्रथा, नुक्ता प्रथा, पर्दा प्रथा, छुआछूत, नशा आदि सामाजिक बुराइयों को दूर करने हेतु प्रचार प्रसार किया । आपने अपना सारा जीवन समाज सुधार में लगाया । 82 वर्ष का सफर तय करके वर्ष 1991 में आप पंचतत्व में विलीन हो गये ।

लेखक

लेखक - सुरेन्द्र सिंह भालोठिया जयपुर (दोहिता) पुत्र भजनोपदेशक धर्मपाल सिंह भालोठिया जयपुर मो. 9460389546 (साभार - आर्य समाज लोहारू का इतिहास )

संदर्भ


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