Dharm Kaur
Dharm Kaur (धर्म कौर) was daughter of Chaudhary Mihr Mitha Dhaliwal of Firozepur district in Punjab. She was very beautiful and very strong girl. Akbar wanted to marry with her. Ch. Mihr Mitha consulted 35 Jat clan Khap people and the proposal was rejected by the Khaps.[1]
वीरांगना धर्म कौर
जिला फिरोजपुर के एक गाँव में चौधरी मीरमत्ता धालीवाल की युवा बेटी धर्म कौर अति संदर थी और बलिष्ठ भी । अकबर उस समय गाँव के पास से दौरे पर जा रहा था कि उसने धर्म कौर को सर पर घड़ा रखे हुए एक पाँव से भागते हुए बछड़े को उसके रस्से पर पाँव रख कर रोके रखा जब तक कि उसके पिता ने उस रस्से को पकड़ न लिया । यह दृश्य देख कर अकबर हैरान हो गया । बादशाह ने उसके पिता को बुला कर उसकी बेटी से शादी करने का आदेश दिया । यह सुनकर चौधरी मीरमत्ता ने कहा, "महाराजा मुझे इस बारे में अपने जाती बंधुओं से विचार करना पड़ेगा । इसलिए कुछ समय चाहिय ।" बादशाह अकबर सहमत हो गया । मीरमत्ता ने ३५ जाट वंशीय खापों की पंचायत की । सर्वखाप ने निर्णय लिया "अकबर को जाट कन्या नहीं दी जा सकती । यदि वह सैन्य बल से लड़की को लेने का प्रयत्न करेगा तो उसके साथ युद्ध करके हम अपने धर्म की रक्षा करेंगे । " पंचायत का यह फैसला अकबर को सुना दिया गया । फैसला सुनकर अकबर लज्जित हुआ । परन्तु उसने सूझ-बूझ से काम लिया और अपना इरादा त्याग दिया । [2]
Dalip Singh Ahlawat writes
फिरोजपुर जिले के एक दोलाकाँगड़ा नामक गांव में धारीवाल गोत्र का चौधरी मीरमत्ता रहता था। उसकी पुत्री धर्मकौर बड़ी बलवान् एवं सुन्दर थी। एक बार सम्राट् अकबर दौरे पर उस मीरमत्ता के गाँव के समीप से जा रहा था। उसने देखा कि मीरमत्ता की उस सुन्दर पुत्री ने पानी का घड़ा सिर पर रक्खे हुए, अपने भागते हुए शक्तिशाली बछड़े को उसके रस्से पर पैर रख कर उस समय तक रोके रक्खा जब तक कि उसके पिता मीरमत्ता ने आकर उस रस्से को न पकड़ लिया। अकबर यह दृश्य देखकर चकित रह गया और उस लड़की के बल एवं सुन्दरता को देखकर मोहित हो गया। अकबर ने मीरमत्ता को उसकी इस पुत्री का अपने साथ विवाह करने का आदेश दे दिया। मीरमत्ता ने जाट बिरादरी से सलाह लेने का समय माँगा। इस पर विचार करने के लिए 35 जाटवंशीय खापों की पंचायत एकत्रित की गई जिसके अध्यक्ष सिन्धु जाट गोत्र के चंगा चौधरी थे। पंचायत ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया कि “अकबर को लड़की नहीं दी जायेगी। यदि वह अपना सैनिक बल लगाकर लड़की को ले जाने का यत्न करेगा तो उसके साथ युद्ध करके अपने धर्म की रक्षा हेतु मर मिटेंगे।” यह प्रस्ताव लेकर चँगा और मीरमत्ता अकबर के दरबार में पहुंचे। सिन्धु जाट चँगा ने निडरता एवं साहस से पंचायत का निर्णय अकबर को सुनाया। अकबर ने चँगा जाट को चौधरी की उपाधि देकर आपसी मेलजोल स्थापित कर लिया। देखो जाटवीरों का इतिहास, तृतीय अध्याय, सिन्धु गोत्र प्रकरण)।
- नोट
- जाटों ने अपनी किसी भी लड़की का डोला मुगल बादशाहों, मुसलमानों तथा किसी अन्य जाति के पुरुष को नहीं दिया। यह जाटों की गौरवशाली विशेषता है जिससे संसार में इनका मस्तक सदा उँचा रहता आया है। इनके ऐसे उदाहरणों से इतिहास भरे पड़े हैं। यदि किसी ईर्ष्यालु लेखक ने यह बात लिखी भी है कि जाटों ने अपनी लड़कियों के डोले किसी अन्य धर्मी या अन्य जाति के लोगों को दिये, तो यह बात बेबुनियाद, मनगढंत, प्रमाणशून्य और अमाननीय है। (लेखक)[3]
External Links
References
- ↑ Sukhvir Singh Dalal, Jat Jyoti, April 2013,p.7
- ↑ सुखवीर सिंह दलाल, जाट ज्योति, अप्रेल 2013,p.7
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter VII (Page 584)
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