Dharmaranya

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Dharmaraṇya (धर्मारण्य) is name a forest mentioned in Mahābhārata. It has been identified with the corresponding to Siddhpur, Patan Gujarat.

Origin

Variants

History

In Mahabharata

Dharmaranya (धर्मारण्य) in Mahabharata (III.80.65), (XIII.26.55),


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 80 mentions the merit attached to tirthas. Dharmaranya (धर्मारण्य) in Mahabharata (III.80.65). [1].....That sacred wood (Dharmaranya) characterised by holiness, existeth, O bull of the Bharata race, from very remote times. As soon as one entereth it, he is freed from all his sins. He who with regulated diet and vows worshippeth the Pitris and the gods there, obtaineth the fruit of a sacrifice that is capable of bestowing the fruition of all one's desires.


Dharmaranya (धर्मारण्य) (Forest) is mentioned in Mahabharata (XIII.26.55). [2]....One who repairs to Brahmasara which is adorned by the woods called Dharmaranya, becomes cleansed of all one's sins and attains to the merit of the Pundarika sacrifice.

धर्मारण्य

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...1. धर्मारण्य (AS, p.464): महाभारत, वनपर्व 82, 46 के अनुसार धर्मारण्य को एक प्रमुख तीर्थ स्थान बताया गया है- 'धर्मारण्यं हि तन् पुण्यमाद्यं च भरतर्पभ, यत्र प्रविष्टमात्रो वै सर्वपापै: प्रमुच्यते'। धर्मारण्य गुजरात के प्राचीन नगर सिद्धपुर के परिवर्ती क्षेत्र (श्रीस्थल) का नाम है। प्राचीन समय में धर्मारण्य प्रदेश सरस्वती नदी द्वारा सिंचित था। महाभारत, वनपर्व 82, 45 में धर्मारण्य में कण्वाश्रम की स्थिति बताई गयी है- 'कण्वाश्रम ततो गच्छेच्छ्रीजुष्ट लोक पूजितम्'। उपर्युक्त उल्लेख में धर्मारण्य को श्रीजुष्टम् प्रदेश कहा गया है, जिससे इसके नाम 'श्रीस्थल' की पुष्टि होती है। (दे.सिद्धपुर, श्रीस्थल)

2. धर्मारण्य (AS, p.465): बोधगया (बिहार) से 4 मील पर स्थित है बौद्ध ग्रंथों में इस क्षेत्र का, जो गौतम बुद्ध से संबंधित था, नाम धर्मारण्य कहा गया है.

श्रीस्थल

श्रीस्थल (AS, p.925) - वर्तमान 'सिद्धपुर' (गुजरात राज्य) का प्राचीन नाम। इसे 'धर्मारण्य' भी कहते हैं।[4]

सिद्धपुर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...1. सिद्धपुर (AS, p.965) जिला पाटण गुजरात में स्थित इस नगर की स्थापना पाटन गुजरात के प्रसिद्ध राजा सिद्धराज ने 12 वीं सदी ई. में की थी. नगर सरस्वती नदी के तट पर बसा हुआ था. यह नदी आबू पहाड़ से निकलकर कच्छ की खाड़ी में गिरती है. किंतु मार्ग में अनेक स्थानों पर लुप्त हो जाती है. किंवदंती है कि कौरवों के विनाश के पश्चात प्रायश्चित रूप में भीम ने इसी स्थान पर सरस्वती [p.966]: नदी में स्नान किया था. इस स्थान का प्राचीन नाम श्रीस्थल अथवा धर्मारण्य कहा जाता है (दे.धर्मारण्य). पाटण-नरेश सिद्धराज ने इसके प्राचीन नाम को परिवर्तन करके सिद्धपुर कर दिया था. इस नगर में गुर्जरेश्वर मूलराज सोलंकी और उसके पुत्र सिद्धराज जयसिंह द्वारा निर्मित विशाल शिव मंदिर था जिसे रूद्रमहालय कहते थे. यह सरस्वती तट पर स्थित था. इसे अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर आक्रमण के समय तोड़ दिया था और अब केवल इसके खंडहर दिखाई पड़ते हैं. मूल मंदिर के स्थान पर मस्जिद बनवाई गई थी. हिंदू काल के कई अन्य मंदिर भी यहां स्थित हैं. शिवराज से एक मील के लगभग बिंदुसर नामक सरोवर है जहां किवदंती के अनुसार स्नान करने से कपिल की माता देवहूति का शरीर सुंदर हो गया था. यह महाभारत में वर्णित विनशन नामक तीर्थ हो सकता है. हाल ही में पूर्व-सोलंकी कालीन (10वीं सदी ई.) मंदिर के अवशेष यहां से उत्खनन द्वारा प्राप्त हुए हैं. इसका श्रेय निर्मल कुमार बोस तथा अमृतपांड्या को है. सिद्धराज को मातृ-श्राद्ध का तीर्थ माना जाता है.

2. सिद्धपुर (AS, p.966) सिद्धपुर मैसूर, चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक में स्थित है। इस स्थान पर अशोक का लघु शिलालेख एक चट्टान पर उत्कीर्ण है। कुछ विद्वानों का मत है कि इस अभिलेख में वर्णित 'इसिला' नामक नगरी जो इस प्रदेश की मौर्यकालीन राजधानी थी, सिद्धपुर नगर के स्थान पर ही रही होगी।

External links

References

  1. धर्मारण्यं हि तत पुण्यम आद्यं च भरतर्षभ, यत्र प्रविष्टमात्रॊ वै पापेभ्यॊ विप्रमुच्यते (III.80.65)
  2. तथा ब्रह्मसरॊ गत्वा धर्मारण्यॊपशॊभितम, पुण्डरीकम अवाप्नॊति परभातां शर्वरीं शुचिः (XIII.26.55)
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.464
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.925
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.965-966