Kanvashrama

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Kanvashrama (कण्वाश्रम) is a religious place situated 14 kms from Kotdwara in Garhwal Division of Uttarakhand.

Origin

Variants

History

In Mahabharata

Kanwa Ashrama (कण्वाश्रम) (Tirtha) in Mahabharata (III.80.64), (III.86.8),

कण्वाश्रम

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...

1. देखें मंडावर

2. महाभारत के अनुसार धर्मारण्य (गुजरात) में स्थित था. देखें धर्मारण्य

कण्वाश्रम परिचय

कण्वाश्रम उत्तराखण्ड स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है। गढ़वाल जनपद में कोटद्वार से 14 कि.मी. की दूरी पर शिवालिक पर्वत श्रेणी के पाद प्रदेश में हेमकूट और मणिकूट पर्वतों की गोद में स्तिथ 'कण्वाश्रम' ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। माना जाता है कि यही कण्व ऋषि का आश्रम था।

दूसरी ओर कण्वाश्रम को रूहेलखंड का वह भाग माना जाता है, जहाँ आजकल बिजनौर की बस्ती है।

पौराणिक उल्लेख: कोटद्वार भाबर क्षेत्र की प्रमुख एतिहासिक धरोहरों में 'कण्वाश्रम' सर्वप्रमुख है, जिसका पुराणों में विस्तृत उल्लेख मिलता है। हज़ारों वर्ष पूर्व पौराणिक युग में जिस मालिनी नदी का उल्लेख मिलता है, वह आज भी उसी नाम से पुकारी जाती है तथा भाबर के बहुत बड़े क्षेत्र को सिंचित कर रही है। कण्वाश्रम शिवालिक की तलहटी में मालिनी के दोनों तटों पर स्थित छोटे-छोटे आश्रमों का प्रख्यात विद्यापीठ था। यहां मात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा थी। इसमें वे शिक्षार्थी प्रविष्ट हो सकते थे, जो सामान्य विद्यापीठ का पाठ्यक्रम पूर्ण कर और अधिक अध्ययन करना चाहते थे। कण्वाश्रम चारों वेदों, व्याकरण, छन्द, निरुक्त, ज्योतिष, आयुर्वेद, शिक्षा तथा कर्मकाण्ड इन छ: वेदांगों के अध्ययन-अध्यापन का प्रबन्ध था। आश्रमवर्ती योगी एकान्त स्थानों में कुटी बनाकर या गुफ़ाओं के अन्दर रहते थे।

'अभिज्ञान शाकुन्तलम' में कण्वाश्रम का परिचय इस प्रकार है- "एस कण्व खलु कुलाधिपति आश्रम"

प्राचीन काल से ही मानसखंड तथा केदारखंड की यात्राएं श्रद्धालुओं द्वारा पैदल संपन्न की जाती थीं। हरिद्वार, गंगाद्वार से कण्वाश्रम, महावगढ़, ब्यासघाट, देवप्रयाग होते हुए चारधाम यात्रा अनेक कष्ट सहकर पूर्ण की जाती थी। 'स्कन्द पुराण' केदारखंड के 57वें अध्याय में इस पुण्य क्षेत्र का उल्लेख निम्न प्रकार से किया गया है- कण्वाश्रम समारम्य याव नंदा गिरी भवेत। यावत क्षेत्रम परम पुण्य मुक्ति प्रदायक॥

कण्व ऋषि से सम्बन्ध: 'कण्वाश्रम' कण्व ऋषि का वही आश्रम है, जहाँ हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला के प्रणय के पश्चात् भरत का जन्म हुआ था, कालान्तर में इसी गढ़वाली खस नारी शकुन्तला पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम 'भारत' पड़ा। शकुन्तला ऋषि विश्वामित्र व अप्सरा मेनका की पुत्री थी।

प्राचीनता: इस क्षेत्र की प्राचीनता के संबन्ध में अन्य पौराणिक प्रसंगों का भी उल्लेख है। पाण्डवों के पूर्वज शकुन्तला और भरत तत्कालीन कुलिन्द जनपद के निवासी थे। यहाँ के कुलिन्दराज राजा सुबाहु से पाण्डवों की विशेष मैत्री थी। कण्वाश्रम के कुछ ऊपर 'कांण्डई' नामक एक ग्राम के पास आज भी एक प्राचीन गुफ़ा विद्यमान है, जिसमें 30-40 व्यक्ति एक साथ निवास कर सकते हैं। ईड़ा ग्राम के पास शून्य शिखर पर आज भी सन्न्यासियों का आश्रम है। चौकीघाट से कुछ दूरी पर 'किमसेरा' (कण्वसेरा) की चोटी पर भग्नावशेष किसी आश्रम या गढ़ का संकेत देते हैं।

मेला आयोजन: हर वर्ष 'बसंत पंचमी' के अवसर पर कण्वाश्रम में तीन दिन तक मेला चलता है। महाकवि कालिदास द्वारा रचित 'अभिज्ञान शाकुन्तलम' में कण्वाश्रम का जिस तरह से जिक्र मिलता है, वे स्थल आज भी वैसे ही देखे जा सकते हैं।

जीर्णोद्धार: सन 1955 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सम्पूर्नान्द के प्रयासों से कण्वाश्रम का जीर्णोद्धार किया गया था। वर्तमान में 'गढ़वाल मंडल विकास निगम', 'कण्वाश्रम विकास समिति' तथा शासकीय प्रयासों से इस स्थल की उचित देख-रेख होती है। भरत स्मारक के साथ-साथ यहाँ पुरातात्विक महत्त्व की अनेक मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। कैसे पहुँचें

कण्वाश्रम, उत्तराखण्ड के कोटद्वार से 14 कि.मी. की दूरी पर स्थित है तथा बस, टैक्सी तथा अन्य स्थानीय यातायात की सुविधायें यहाँ उपलब्ध हैं। यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन कोटद्वार 14 कि.मी. दूर है तथा निकटतम हवाई अड्डा भी कोटद्वार में ही है।

धर्मारण्य

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...महाभारत, वनपर्व 82, 46 के अनुसार धर्मारण्य को एक प्रमुख तीर्थ स्थान बताया गया है- 'धर्मारण्यं हि तन् पुण्यमाद्यं च भरतर्पभ, यत्र प्रविष्टमात्रो वै सर्वपापै: प्रमुच्यते'। धर्मारण्य गुजरात के प्राचीन नगर सिद्धपुर के परिवर्ती क्षेत्र (श्रीस्थल) का नाम है। प्राचीन समय में धर्मारण्य प्रदेश सरस्वती नदी द्वारा सिंचित था। महाभारत, वनपर्व 82, 45 में धर्मारण्य में कण्वाश्रम की स्थिति बताई गयी है- 'कण्वाश्रम ततो गच्छेच्छ्रीजुष्ट लोक पूजितम्'। उपर्युक्त उल्लेख में धर्मारण्य को श्रीजुष्टम् प्रदेश कहा गया है, जिससे इसके नाम 'श्रीस्थल' की पुष्टि होती है। (दे.सिद्धपुर, श्रीस्थल)

बिजनौर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है .....बिजनौर, उ.प्र. (AS, p.628): बिजनौर गंगा नदी के वामतट पर लीलावाली घाट से तीन मील की दूरी पर एक छोटा सा क़स्बा है। कहा जाता है कि इसे विजयसिहं ने बसाया था। दारानगर और विदुरकुटी यहाँ से 7 मील की दूरी पर स्थित है। ये दोनों स्थान महाभारत कालीन बताये जाते हैं।

स्थानीय जनश्रुति में बिजनौर के निकट गंगातटीय वन में महाभारत काल में मयदानव का निवास स्थान था। भीम की पत्नी हिडिंबा मयदानव की पुत्री थी और भीम से उसने इसी वन में विवाह किया था। यहीं घटोत्कच का जन्म हुआ था। नगर के पश्चिमांत में एक स्थान है जिसे हिडिंबा और पिता मयदानव के इष्टदेव शिव का प्राचीन देवालय कहा जाता है। मेरठ या मयराष्ट्र बिजनौर के निकट गंगा के उस पार है।

बिजनौर के इलाके को वाल्मीकि रामायण में प्रलंब नाम से अभिहित किया गया है। नगर से आठ मील दूर मंडावर है जहाँ मालिनी नदी के तट पर कालिदास के [p.629]: "अभिज्ञान शाकुंतलम" नाटक में वर्णित कण्वाश्रम की स्थिति परंपरा से मानी जाती है।

कुछ लोगों का कहना है कि बिजनौर की स्थापना राजा बेन ने की थी जो पंखे या बीजन बेचकर अपना निजी ख़र्च चलाता था और बीजन से ही बिजनौर का नामकरण हुआ।

External links

References