Garhwal division

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Kumaon and Garhwal divisions of Uttarakhand

Garhwal (गढ़वाल) is one of the two regions and administrative divisions of Uttarakhand, the other being Kumaon.It includes the districts of Chamoli, Dehradun, Haridwar, Pauri Garhwal, Rudraprayag, Tehri Garhwal, and Uttarkashi.

Variants

Garhwal गढ़वाल (उ.प्र.) (p.276)

Location

Lying in the Himalayas, it is bounded on the north by Tibet, on the east by Kumaon region, on the south by Uttar Pradesh state, and on the northwest by Himachal Pradesh state.

Etymology

Garhwal is the land of many 'garh’ or forts. This region was made up of many small forts which were ruled by chieftains. Therefore, the history of Garhwal before the dynastic rule of the ‘Panwar’ rulers is very obscure. Kanak Pal was the first ruler of the state of Garhwal in 823 AD.[1]

History

The Garhwal Himalayas appear to have been a favorite locale for the voluminous mythology of the Puranic period. The traditional name of Garhwal was Uttarakhand. Excavations have revealed that it formed part of the Mauryan Empire.[2]

The earliest reference regarding Garhwal and its pride spots are cited in the Skanda Purana and the Mahabharata in the Van Parva. Skanda Purana defines the boundaries and extend of this holy land.[3] It also finds mention in the 7th-century travelogue of Huen Tsang. However, it is with Adi Shankaracharya that the name of Garhwal will always be linked, for the great 8th-century spiritual reformer visited the remote, snow-laden heights of Garhwal, established a Joshimath and restored some of the most sacred shrines, including Badrinath and Kedarnath.

The history of Garhwal as a unified whole began in the 15th century, when king Ajai Pal merged the 52 separate principalities, each with its own garh or fortress. For 300 years, Garhwal remained one kingdom, with its capital at Srinagar (on the left bank of Alaknanda river). Then Pauri and Dehradun were perforce ceded to the Crown as payment for British help, rendered to the Garhwalis during the Gurkha invasion, in the early 19th century.[4]

The earliest ruling dynasty of Garhwal known is of the Katyuris. The Katyuri Raja of Uttarakhand (Kumaon and Garhwal) was styled 'Sri Basdeo Giriraj Chakara Churamani'. The earliest traditions record that the possessions of Joshimath Katyuris in Garhwal extended from Satluj as far as Gandaki and from the snows to plains, including the whole of Rohilkhand. Tradition gives the origin of their Raj at Joshimath in the north near Badrinath and subsequent migration to Katyur Valley in Almora district, where a city called Kartikeyapura was founded.[5]

Katyuris ruled Uttarakhand up to the 11th century and in certain pockets even after their decline. In Garhwal their disruption brought into existence 52 independent chiefs. One of the important principalities in that period was that of Parmars, who held their sway over Chandpur Garhi or Fortress. Katyuris ruled Uttarakhand up to the 11th century and in certain pockets even after their decline. Kanak Pal was progenitor of this dynasty. Raja Ajay Pal, a scion of the Parmars in the 14th century is credited with having brought these chiefs under his rule. After his conquest Ajay Pal's domain was recognised as Garhwal owing to exuberance of forts. It is possible that after annexing all principalities, Raja Ajay Pal must have become famous as Garhwala, the owner of forts. With the passage of time his kingdom came to be known as Garhwal.[6]

गढ़वाल

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ...गढ़वाल (AS, p.276) गढ़वाल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का पहाड़ी इलाक़ा है जिसमें देहरादून, बदरीनाथ, श्रीनगर और पौड़ी आदि स्थान प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। इसकी लंबाई उत्तर में नीती दर्रे से दक्षिण में कोटद्वार तक 170 मील और चौड़ाई रुद्रप्रयाग से समीया तक 70 मील (लगभग 112 कि.मी.) के लगभग है। क्षेत्रफल प्राय: 11900 वर्ग मील है।

पुराणों तथा अन्य प्राचीन साहित्य में इस प्रदेश का नाम उत्तराखंड मिलता है। 'गढ़वाल' नया नाम है, जो परवर्ती काल में शायद यहाँ के बावन गढ़ों के कारण हुआ है। कहा जाता है कि आर्य सभ्यता के इस प्रदेश में प्रसार होने से पूर्व यहाँ खस, किरात, तंगण, किन्नर आदि जातियों का निवास था। ऊँचे पर्वतों से घिरे रहने के कारण यह प्रदेश सदा सुरक्षित रहा है और प्राचीन काल में यहाँ के शांत मनोरम वातावरण में अनेक ऋषियों ने अपने आश्रम बनाए थे।

महाभारत से सूचित होता है कि गढ़वाल पर पांडवों का राज्य था और महाभारत युद्ध के पश्चात् वे अपने अंतिम समय में बदरीनाथ के मार्ग से ही हिमालय पर गए थे। यहाँ के अनेक स्थानों की यात्रा अर्जुन तथा अन्य पांडवों ने की थी। बदरीनाथ में महर्षि व्यास का आश्रम भी था। पांडवों से संबंध के स्मारक के रूप में आज भी गढ़वाल के देवताओं में पांडव नामक नृत्य प्रचलित है।

बैद्ध धर्म का प्रसार: बौद्ध धर्म के उत्कर्षकाल में यहाँ अनेक विहार तथा मंदिर स्थापित हुए। उत्तरकाशी तथा बाधन के क्षेत्र में बैद्ध धर्म का सबसे अधिक प्रचार था और कुछ विद्वानों का मत है कि बदरीनाथ का वर्तमान मंदिर पहले बौद्ध मंदिर या विहार था, जिसे हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान के समय आदि शंकराचार्य ने बदरीनारायण के मंदिर के रूप में परिवर्तित कर दिया। बाधन का वास्तविक नाम 'बोधायन' कहा जाता है। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि जगदगुरु आदिशंकर ने बदरीनाथ में आकर हिन्दू धर्म के पुनर्जागरण का शंखनाद किया था। अनेक स्मृतिस्थल यहाँ आज भी हैं।

कालांतर में गढ़वाल की राजनीतिक दशा बिगड़ गई और खसों ने यहाँ छोटे–छोटे राजवाड़े क़ायम कर लिए। ये लोग परस्पर लड़ते-भिड़ते रहते थे। तिब्बत से भी इनके झगड़े चलते रहे। खसों के पश्चात् गढ़वाल में नाग जाति का प्रभुत्व हुआ। तत्पश्चात् मालवा के पंवार राजाओं ने उत्तरी गढ़वाल में अपना राज्य स्थापित कर लिया। पंवारों में सबसे प्रसिद्ध राजा अजयपाल था। इसके राज्य में हरिद्वार और कनखल भी शामिल थे। मुस्लिमों के भारत पर आक्रमण के समय जब देश में सर्वत्र अशांति तथा अराजकता छाई हुई थी, राजपूताना, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र तथा अन्य स्थानों से भागकर बहुत से राजपूत [p.277]: सरदारों तथा अनेक ब्राह्मणों ने गढ़वाल में शरण ली। इसी कारण गढ़वाल के जनजीवन पर राजस्थान, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र तथा अन्य प्रदेशों की विशिष्ट संस्कृतियों का प्रभाव देखने में आता है।

1800 ई. के लगभग गढ़वाल पर नेपाल के गोरखों ने अधिकार कर लिया और बारह वर्ष तक यहाँ राज्य किया। उनके कठोर तथा अत्याचारपूर्ण शासन की याद में अब तक गढ़वाली लोग उसे 'गोर्खाणी' नाम से पुकारते हैं। त्रस्त होकर गढ़वालियों ने अंग्रेज़ों की सहायता से गोरखों को गढ़वाल से निकाल दिया। नेपाल युद्ध (1814 ई.) के पश्चात् अंग्रेज़ों ने गढ़वाल के दो टुकड़े कर दिए। टिहरी, जहाँ गढ़वालियों की रियासत बसाई गई और गढ़वाल, जिसे अंग्रेज़ों ने ब्रिटिश भारत में मिला लिया।

टिहरी गढ़वाल

गढ़वाल उत्तराखण्ड की राज्य में प्रशासनिक सुविधा के उद्देश्य से बनाऐ गये दो मुख्य संभाग (मंडल) में से एक है। दूसरा मण्डल हैं कुमाऊँ। कुमाऊँ संभाग (मंडल) में नैनीताल, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा , बागेश्वर, चम्पावत तथा उधमसिंह नगर जनपद सम्मिलित हैं जबकि गढवाल संभाग में पौडी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, देहरादून, चमोली, रुद्रप्रयाग तथा हरिद्वार जनपद शामिल है।

गढ़वाल, भारत की आज़ादी से पूर्व एक नगर था जो अब उत्तराखण्ड राज्य में टिहरी गढ़वाल के नाम से जाना जाता है।

टिहरी गढ़वाल उत्तरांचल राज्य, उत्तर भारत में स्थित है। इस स्थान को पहले सिर्फ़ 'गढ़वाल' के नाम से जाना जाता था। यह स्थान पर्वतों के बीच स्थित है, जो अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। प्रति वर्ष बड़ी संख्या में पर्यटक यहाँ पर घूमने के लिए आते हैं। टिहरी गढ़वाल धार्मिक स्थल के रूप में भी काफ़ी प्रसिद्ध है। यह नगर भागीरथी नदी पर एक महत्त्वपूर्ण कृषि व्यापार केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। आस-पास का लगभग 4,421 वर्ग कि.मी. क्षेत्र पूरी तरह से हिमालय शृंखला में आता है और दक्षिण में गंगा नदी से घिरा हुआ है।

संदर्भ: टिहरी गढ़वाल

External links

References