Dubaldhan Majra
Dubaldhan Majra (दूबळधन माजरा) is a village in Beri tehsil of Jhajjar district in Haryana.
Location
It is situated near Dubaldhan village, in Beri Tehsil of Jhajjar district (Haryana). This village is famous for the shrine of Baba Mohandas and Shyam ji. Every year there is huge turnout of followers in village in the auspecious time before Holi. Swami Nityanand found Dubhaldhan Majra as his Tapobhumi. His Gaddi is famous all acroos the north India. Surrounding villages are Bigowa and Malikpur. It is a big village with three panchyats.Bhojyan, Bimhan, Chodhryan are three divisions of the village on administrative grounds.
Jat Gotras
History
चौधरी जुगलाल जी एवं चौधरी सरदारा जी
चौधरी जुगलाल जी एवं चौधरी सरदारा जी हरयाणा प्रदेश के झज्जर जिले के माजरा (दूबलधन) गाँव से थे। बड़े भाई जुगलाल सन 1906 में 6 जाट लाइट इन्फेंट्री में भर्ती हुए थे। उनसे पाँच साल छोटे भाई सरदारा 1911 में भर्ती हुए। विश्व युद्ध प्रथम के दौरान बड़े भाई हवलदार एवं छोटे भाई लांस नाइक के पद पर एक ही कम्पनी में रहकर अपनी सेवा दे रहे थे।
सन 1803 में बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की 22वी रेजिमेंट की प्रथम (1st) बटालियन बनी थी। नाम बदलता रहा, 1901 में इसे 6 जाट लाइट इन्फेंट्री कर दिया गया एवं 1921 तक यही नाम रहा। 1950 में इसे 1st बटालियन (LI) जाट रेजिमेंट कर दिया गया। 1970 में इन्फेंट्री रेजीमेंटों के मेकनाइसेशन के दौरान इसे 2nd मेकनाइसड बटालियन कर दिया गया एवं आज भी यही नाम है।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 5 दिसंबर 1915 को 6 जाट लाइट इन्फेंट्री सुएज़ से बसरा पहुँची एवं 2 ब्लैक वाच इन्फैंट्री के साथ 19वी ब्रिगेड का हिस्सा बन गए। 20 जनवरी 1916 को एक निश्चित स्थान पर आक्रमण करने के लिए 72 सदस्यों की सभी रैंक की एक संयुक्त टुकड़ी का गठन किया गया। संयुक्त टुकड़ी में 6 जाट लाइट इन्फेंट्री के 6 सदस्यों में से 3 सदस्य (हवलदार जुगलाल, नायक बख्तावर और सिपाही भरत सिंह) माजरा गाँव के थे। टुकड़ी का मुद्दा था - मेसोपोटामिया(इराक़) की टिगरिस नदी की सहयोगी वादी नदी के दाएं तट पर मौजूद तुर्की सेना को पछाड़ कर उनके ट्रेंच पर कब्ज़ा करना।
21 तारीख को 07:45 पर हमला किया गया, करीब एक घंटे की भीषण लड़ाई के बाद तुर्क फौज पर संयुक्त टुकड़ी हावी हो गई। लेकिन तभी तुर्को ने बहुत ज्यादा तादाद में जवाबी हमला कर दिया। लड़ाई में कई फौजी शहीद एवं घायल हो गए। इस अनहोनी की खबर बहुत जल्द फैल गयी। यह खबर सुनकर सरदारा जो दूसरे पलटन में थे मेडिकल ऐड पोस्ट (MAP) की तरफ दौड़े। वहाँ उन्हें ऑफिसीएटिंग कमांडिंग ऑफिसर कैप्टन वेल्स ने बताया की तुर्को द्वारा भारी गोली बारी की वजह से अभी तक केजुअल्टीस को निकाला नही जा सका है।
सरदारा ने अधिकारी से आगे जाकर अपने भाई को वापस लाने की इजाजत मांगी। अधिकारी द्वारा सरदारा को समझाया गया की वहाँ पर भीषण गोली बारी की वजह से सेक्शन का कोई सदस्य सही सलामत नही बचा है एवं ऐसे में वहाँ जाने से कोई फायदा नही है। लेकिन सरदारा यह सुनने के लिए नही आए थे।
एवं ईलाके के बारे में जानकारी जुटाकर सरदारा ट्रेंच की तरफ लपके एवं आड़ का सहारा लेते हुए बचते हुए ट्रेंच तक पहुच गए। तब तक हमलावर भी ट्रेंच के दूसरे हिस्से की ओर बढ़ चुके थे। बहुत खोजने के बाद सरदारा को घावों से गंभीर रूप से घायल अपने बड़े भाई जुगलाल मिल गए, किंतु उनमें अंतिम सांसे ही बची थी। बड़े भाई जुगलाल ने छोटे सरदारा को देखा, मुस्कुराए एवं वीरगति को प्राप्त हो गए।
तभी उन्हें किसी की पुकार सुनाई दी "सरदारे", सरदारा को तभी गंभीर रूप से घायल बख्तावर एवं भरत सिंह दिखाई दिए। भरत सिंह ज्यादा घायल थे। तब तक तुर्की की गोलीबारी भी बंद हो गयी थी।
6 फ़ीट लंबे एवं तगड़े सरदारा ने भरत को उठा कर MAP तक पहुँचाया एवं बख्तावर भी सरदारा के कंधे पर हाथ रखकर घायल अवस्था में MAP तक पहुँचे। कुछ दूर चलकर उन्होंने मदद के लिए आवाज़ लगाई एवं दो स्ट्रेचर आ गए।
अपने दो सैनिकों का जीवित आना अधिकारी के लिए किसी चमत्कार से कम नही था। फिर भी कैप्टन वेल्स ने पूछ लिया की "इतना बड़ा जोखिम उठाने की क्या ज़रूरत थी?" इसपर सरदारा का जवाब था "साहब मैं ना सिर्फ अपने भाई से उसके अंतिम समय पर मिला बल्कि मैने अपने गाँव के दो भाइयों को जीवित भी बचाया, जो शायद मेरे ना पहुचने पर बच नही पाते।"
हवलदार जुगलाल को मरणोपरांत इंडियन आर्डर ऑफ मेरिट क्लास 2 (वर्तमान में महावीर चक्र के बराबर) से सम्मानित किया गया। माजरा गाँव के 28 वर्षीय कादयान गोत के जाट जुगलाल जी अपने पैतृक गाँव से 2000 मील दूर वीरगति को प्राप्त हो गए। लेकिन अपने अंतिम वक़्त में वह अकेले नही थे,उनके छोटे भाई उनके साथ थे।
बख्तावर जी जमादार के पद से सेवानिवृत्त हुए एवं अच्छे स्वास्थ के साथ अपने जीवन के 80 वर्ष पूर्ण करने के पश्चात उनका स्वर्गवास हुआ। भरत सिंह जी को अपना जीवन एक पैर के साथ गुजारना पड़ा। सरदारा जी आनरेरी कप्तान के पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्हें IDSM, OBI 2nd Class (bahadur), Cross of St. George 3rd class (Russia) से सम्मानित किया गया।
आनरेरी कप्तान सरदारा जी के लिए अत्यंत खुशी की बात यह थी की उनके चारो बेटे फौज में कमीशन प्राप्त किए एवं चारों राजपुताना राइफल्स में। लेकिन किसी भी बेटे के अपनी बटालियन एवं जाट रेजिमेंट में कमीशन ना हो पाने की वजह से वह निराश थे। आखिरकार 1965 में अपने तीसरे बेटे मोहिंदर जी को आश्वस्त करने के बाद सरदारा जी ने आर्मी चीफ को पत्र लिखा। आर्मी चीफ ने तुरंत सरदारा जी की इक्षा के अनुरूप मोहिंदर जी का 1st जाट लाइट इन्फेंट्री में ट्रांसफर कर दिया।
कर्नल मोहिंदर सिंह कादयान जी को आगे चलकर बहादुरी के लिए कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया एवं सबसे छोटे भाई राजेन्द्र सिंह कादयान जी डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ़ बनकर सेवानिवृत्त हुए।
(यह पोस्ट लेफ्टिनेंट कर्नल दिलबाग सिंह डबास (सेवानिवृत्त) के ट्रिब्यून वेबसाइट पर छपे लेख हिंदी अनुवाद है।)
Notable persons
- Lt Gen RS Kadian
- Major M. S. Chaudhary- recipient of Maha Vir Chakra
- Satayvan -Arjun Award winner wrestler
- Captain Kapoor Singh -Served in Indian Army, fought all three wars of 1962 against China, 1965 and 1971 against Pakistan.
- Subedar Chhaju Ram Dalal Majra (Dubaldhan) Bhiman Pana - He Participate in first world war 1914 to 1918 as a Palaton commander army.
- Viren Kadyan: Civil Judge cum JMIC Sirsa, Native Dubaldhan Majra, Jhajjar, M: 9466866822
External Links
Gallery
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काद्याण खाप का एक फैसला
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter XI (Page 996)
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