Rathi
Rathi (राठी)[1][2] [3] or Rathee (राठी) or Rath (राठ)[4][5] Rathi (रथी)[6][7] [8] is gotra of Jats found in Rajasthan, Madhya Pradesh, Gujarat, Haryana and Uttar Pradesh in India. Dilip Singh Ahlawat has mentioned it as one of the ruling Jat clans in Central Asia. [9] Rathis are now a trading and business community in Gujarat State, and of course they are a Jat clan in Haryana, Rajasthan, Uttar Pradesh areas. The Rathi gotra is found among Khatris and Marathas also. [10]
Origin
- Rathi gotra is said to be originated from the province named Ratha (राठ), a republic of Ratha (राठ) Chandravanshi Kshatriyas in South Gujarat and Rajasthan. [11] They are Chandravanshi Kshatriyas.
- Rathee (राठी) Rathi (रथी) people fought wars with rath (chariot) hence known as Rathi (रथी). They are considered descendants of Nagavanshi ancestor named Ratharvi (रथर्वी). [12] Ratharvi naga has been specified in the Atharvanaveda.[13]
- As per the geneology of Rathi Jats recorded in Geneologists (Bhaats)'s pothi (large books compiled of people's geneology), we find that Rathi Jats are Chandravanshi and originated from Pandavas, their ancestor was King Anangpal Tomar who was in descent of Pandava Arjuna. His second wife was a Pharaswal gotra Jaat woman of Ghumaneda village in present-day Delhi, this woman was the daughter of Lakhan Pharaswal. from her, Rathi lineage originated and from there (Delhi) they spread to many other villages.
Variants
- Ratha (राठ)
- Rathee (राठी)
- Rashtrika (राष्टिक) (अशोक का गिरनार शिलालेख)
- Rathika (राठीका) (शाहबाजगढ़ी (पाकिस्तान) का शिलालेख)
- Rathaka (राठक) (मन्दसौर शिलालेख)
- Rathika (रठिक) (हाथीगुम्फा शिलालेख)
Jat Gotras Namesake
- Rathi (Jat clan) = Rathevaisama (राठेवैसमा) town mentioned in Ratanpur Stone Inscription Of Prithvideva II: Kalachuri Year 910 (=1158 AD) ...To the east of the town called Bhauda (भौड़ा), on the way to Hasivadha (हसिवध), he (Vallabharaja, a feudatory chieftain of the Kalachuri kings Ratnadëva II and Prithvïdëva II) excavated a tank, full of water-lilies. [15]
History
Ram Swarup Joon[16] writes In the Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 48, while describing various Kings who attended a ceremony in the Durbar (court) of Maharaja Yudhisthira, seventeen names are mentioned which are today found as Jat gotras. These are Malhia, Mylaw, Sindhar, Gandhar, Mahity, Mahe, Savi, Bath, Dharan, Virk, Dard, Shaly, Matash, Kukar (Khokar) Kak, Takshak, Sand, Bahik (Bathi) Bije (Bijenia), Andhra, Sorashtra (Rathi) Mann, Ar, Sohat, Kukat, Othiwal (Othval).
Ram Sarup Joon[17] writes that ....There is a story in Karna Parva/Mahabharata Book VIII Chapter 23 of the Mahabharata that when Dron Acharya was killed in action, Karna was appointed Commander in Chief of Kaurava Army. He chose Raja Shalya of Sialkot as his charioteer. He was a Madrak Jat and a brother of Madri, mother of the Pandavas. When they were driving to the battle field Karan said, “0, Shalya, there is none equal to me in archery in the Pandava army. They will flee before my arrows”. Shalya was frank and said “No, my people don’t acknowledge your prowess with the bow and arrow as being superior to that of Arjuna.” Karan felt offended and remarked caustically’ “0 Shalya, what do you Jartikas living in the land of five rivers, know about archery and bravery. All your people, Arh, Gandhar, Darad, Chima, Tusar, Malhia, Madrak, Sindhaw, Reshtri, Kukat, Bahik and Kekay eat onion and garlic..... The gotras mentioned above are all Jats and are not found in any other community. However ungraceful the remark, it does prove the existence of Jats in that period and that people of Punjab were called Jatika or Jartika.
Ram Swarup Joon[18] writes about Rathi, Ruhal and Dhankharh: Rathi is a very old gotra. The Rathi gotra is found among Khatris and Marathas also. As they originated from Rashtra or Saurashtra, Rashtra Kot or Rathi they took their name from this region. According to historical evidence there was king named Saurashtra in the dynasty of Lord Krishna who ruled over this region and thus the region came to be called Saurashtra. Jats of the Rathi gotra are found in district Rohtak and near Bahadurgarh, Sochas, Rajlu and Rajpur. They have 16 villages in the Jamuna Khadar, 1 village in Rajasthan, 6 in district Meerut, 6 in district of Patiala, Amritsar, Bareilly and Rohtak.
Ram Sarup Joon[19] writes that...about 70 Jat Gotras joined the Gujar force and started calling themselves Gujars. Rathi is one of them.
According to Bhim Singh Dahiya[20], Rathi/Rashtri have been mentioned in the Indian literature as Rastrikas / Rathikas. By ignoring the suffix ‘Ka’ we get the modern name Rathi. Their identification with Rastrikas is justified for we find that the corresponding German name for the clan is still “Raster" Peter Raster, a German was teaching in the languages department of Delhi University. They are mentioned along with the Bhojas, and both have elected an executive governing body. The name Saurastra is known after them, as per K P Jayaswal. Arthashastra mentions Surastra as well as their Rastrika government. In Asoka’s inscriptions they are mentioned as Rastikas, in the Girnar, Rathikas in the Shah Bazgarhi, and Rathakas in the Mansehra inscription (For the use of the word Rathika, see Barua’s Old Brahmi Inscription). [21]
In the Hathigumpha inscription, king Kharavela of Orissa, is stated to have defeated the Rathikas and Bhojakas, i,e, Rathis and Bhojas in the fourth year of his reign. Their royal insignia was umbrella. They were, at that time in the Central India (East Malwa ? ) It is significant that the inscription of Kharavela says why that Rathis and Bhojas, “were abandoned by good Brahmans” why ? Obviously because they were conquerors and they had not accepted the orthodox, unequal and useless ideas of those priests. They had their own priests called Magas or Bhojas, after they settled in Bhoja County. [22]
Raja Brihdval was a king of this clan during Mahabharata. In medieval period there was rule of Rath rulers in Malwa, Kathiawar, Gaya, Badayun etc.
गुलिया खाप
12. गुलिया खाप - दिल्ली के आसपास इस खाप के 24 गांव हैं इसी कारण इस खाप को गुलिया चौबीसी भी कहा जाता है. राठी और दलाल गोत्रीय कई गांव भी इसी पाल में गिने जाते हैं. बादली गांव में इस खाप का मुख्यालय है.[23]
राठी:ठाकुर देशराज
ठाकुर देशराज[24] ने लिखा है.... राठी इनका राज्य राठ प्रांत अलवर में था। यह लोग चंद्रवंशी राजा राष्ट्र की संतान में से थे।
राठ-राठी-राष्ट्रकूट जाटवंश
दलीप सिंह अहलावत[25] के अनुसार राठ-राठी-राष्ट्रकूट चन्द्रवंशी जाटवंश है जिसका राज्य महाभारतकाल में था। इस वंश का राज्य दक्षिण भारत में कोकन (महाराष्ट्र) पर था जहां पर इनका राजा बृहदबल शासक था1। श्रीकृष्ण जी के वंश में एक राजा का नाम सौराष्ट्र था। जिस क्षेत्र पर उसका शासन था वह इस राजा के नाम पर सौराष्ट्र कहलाया। इस सौराष्ट्र राजा की प्रसिद्धि के कारण उसके नाम पर चन्द्रवंशी क्षत्रियों का संघ (गण) राठी या राष्ट्रकूट कहलाया2। डा० काशीप्रसाद जायसवाल ने अपने इतिहास “अन्धकार युगीन भारत” में “इस वंश का सौराष्ट्र में शासन था” लिखा है। अर्थशास्त्र में लिखा है कि सौराष्ट्र में राठियों की सरकार थी3।
राठी, चन्द्रवंशी हैं इसके प्रमाण निम्नलिखित हैं - संवत् 917 (सन् 860 ई०) में लिखाए हुए राजा अमोघवर्ष के कोन्तूर वाले शिलालेख, संवत् 987 (सन् 930 ई०) के राजा गोविन्दराज के खंभात के ताम्रपत्र, संवत् 990 (सन् 933 ई०) के सांगली और संवत् 1015 (सन् 958 ई०) के करहाड़ स्थान पर लेखों में भी इस वंश को चन्द्रवंश की शाखारूप यदुवंशी लिखा है। देहली और बेगुमरा के प्राप्त लेखों में इन्हें स्पष्ट चन्द्रवंशी लिखा है। हलायुध पण्डित भी अपने कविरहस्य में इस वंश को चन्द्रवंशी मानता है। स्वामी शंकराचार्य (788 ई० - 820 ई०) के बाद जब राजपूत संघ बना तब इस राठ या राठी नाम में राष्ट्रवर, राष्ट्रवर्य, राष्ट्रकूट, राठौर, राठौड़, रठीढ़ नाम प्रचलित हुए। कुछ राठ या राठी नाम जाट उस राजपूत संघ कहलाने वाले संघ में मिले थे जो राजपूत कहलाए। उदयपुर की देखा-देखी वहां उन्होंने भी अपने को चन्द्रवंशज के स्थान पर सूर्यवंशी लिखना प्रारम्भ कर दिया जो कि सत्य नहीं है। दक्षिण में राठवंश का जो प्रभाव था वही प्रभाव राजस्थान में अलवर के समीप स्थिर था4। ठाकुर देशराज लेखक जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव खण्ड) के पृ० 127 पर लिखते हैं कि “राठी क्षत्रियों का राज्य राठ प्रांत अलवर में था।” इनके अतिरिक्त राठी क्षत्रियों का राज्य भारतवर्ष में अनेक स्थानों पर था जिसका ब्यौरा निम्नलिखित है –
पथयार शिलालेख पर लिखा है कि “वापुला राठी ने एक सरोवर बनवाया”। राठी जाट गोत्र है। प्रोफेसर वोगल ने भी इसका समर्थन किया है5। अशोक के शिलालेखों पर जो को गिरनार (काठियावाड़) में हैं, राठी को राष्टिक लिखा है और इनको शाहबाजगढ़ी के शिलालेख पर राठीका और मन्दसौर के शिलालेख पर राठक लिखा है। हाथीगुमफा के शिलालेख पर लिखा है कि - “उडीसा के सम्राट् खरवेला ने राठीक और भोजक जो कि राठी और भोज जाटवंश है, को युद्ध में हराया।”
जिस समय यह लोग मालवा (मध्यभारत में थे तब इनका राजकीय चिह्न छतरी (छाता) था। खरवेला के शिलालेख पर है कि “राठी और भोज लोगों को ब्राह्मणों ने त्याग दिया
- 1. भारत में जाट राज्य उर्दू पृ० 382, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।
- 2. जाट इतिहास पृ० 76 तथा इंग्लिश अनुवाद पृ० 98 ले० रामसरूप जून।
- 3. जाट्स दी ऐन्शनट् रूलर्ज पृ० 268, लेखक बी० एस० दहिया आई० आर० एस०।
- 4. जाटों का उत्कर्ष, पृ० 358, लेखक कविराज योगेन्द्रपाल शास्त्री।
- 5. जाट्स दी ऐन्शनट् रूलर्ज पृ० 39, लेखक बी० एस० दहिया आई० आर० एस०।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-306
था।” इसका कारण साफ है कि ये क्षत्रिय योद्धा थे जिन्होंने ब्राह्मणों के असत्य धार्मिक सिद्धान्तों को अस्वीकार कर दिया था। भुज (गुजरात) प्रदेश में आबाद होने के बाद इन लोगों के अपने ही पुरोहित थे जो कि मघ या भुज कहलाते थे1।
चौथी शताब्दी ईस्वी के आरम्भ में राष्ट्रकूट या राठी वंशज राजा सुन्दर वर्मान पाटलीपुत्र (पटना) पर शासक था। वह वैष्णव धर्म अनुयायी था। सन्तान न होने के कारण उस राजा ने एक लिच्छवी (जाटवंश) वंश के राजकुमार चन्द्रसेन को गोद ले लिया जो कि बौद्धधर्म अनुयायी था। इसके पश्चात् सुन्दर वर्मान की महारानी से एक पुत्र पैदा हुआ जो कि राज्या का कानूनी उत्तराधिकारी था। यह समझकर चन्द्रसेन ने लिच्छवियों की सेना साथ लेकर राजा सुन्दर वर्मान का वध कर दिया और राज्य पर अधिकार कर लिया2।
राष्ट्रकूट या राठी वंश का दक्षिण भारत में राज्य -
दक्षिण में बादामी पर राज्य करने वाले अहलावत सोलंकी (चालुक्य) जाटवंश का अन्तिम शासक कीर्तिवर्मन द्वितीय इतना दुर्बल हो गया था कि सन् 753 ई० में राष्ट्रकूट या राठी जाटवंश के राजा वन्तीदुर्ग ने उसको हराकर बादामी पर अधिकार कर लिया3। इस तरह से इसने राष्ट्रकूट या राठीवंश के राज्य की स्थापना की। डाक्टर रंगाचारी के लेख अनुसार सन् 753 ई० से सन् 973 तक लगभग 220 वर्ष तक दक्षिण में इसी वंश का राज्य सबसे शक्तिशाली था। राय चौधरी का मत भी ऐसा ही है4।
राष्ट्रकूट या राठी दक्षिण में शासक
1. वन्तीदुर्ग - इस वंश का यह सबसे पहला राजा था जिसने सन् 753 ई० में बादामी राजा के राजा कीर्तिवर्मन द्वितीय अहलावत सोलंकी (चालुक्य) को हराकर राज्य स्थापित किया। इसने सन् 758 ई० तक राज्य किया। इसने कांची के पल्लव (जाटवंश) वंश तथा उज्जैन के परहार (जाटवंश) को हराकर अपनी राज्यशक्ति बढ़ाई। यह बड़ा निर्दयी एवं पापी हो गया था। इस कारण से इसके चाचा कृष्ण द्वितीय ने इससे राज्य छीन लिया।
2. कृष्ण द्वितीय - यह सन् 758 ई० में बादामी राज्य का शासक बना। इसने अन्य कई शासकों से युद्ध किया। इसने अलोरा की गुफाओं में चट्टानों को तराश कर शिव का मन्दिर बनवाया। विन्सेन्ट स्मिथ लिखता है कि “चट्टानों से तराशा हुआ यह शिव का मन्दिर निस्सन्देह भारतवर्ष की ऐसी कला का एक अद्भुत नमूना है।”
3. गोविन्द तृतीय - (सन् 793 से 815) इस राजा के शासनकाल में राष्ट्रकूट या राठी राज्य की बड़ी उन्नति हुई। इसने कांची के पल्लव शासकों से कर (टैक्स) लिया। अपने वंश के एक राजकुमार को दक्षिणी गुजरात का शासक बनाया। इसने परहार शासकों को (जो उज्जैन का खोया
- 1. जाट्स दी ऐन्शनट् रूलर्ज पृ० 268 पर लेखक बी० एस० दहिया आई० आर० एस०।
- 2. जाट इतिहास अंग्रेजी अनुवाद पृ० 56 लेखक ले० रामसरूप जून।
- 3. देखो तृतीय अध्याय, अहलावतवंश प्रकरण।
- 3, 4. तारीख हिन्दुस्तान उर्दू, पृ० 373-374 पर।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-307
प्रदेश वापिस लेना चाहते थे) पराजित कर दिया। इसके पश्चात् उसने उत्तर भारत के कई शासकों को हराकर अपने अधीन कर लिया। उत्तर में रहने के समय दक्षिण में चोल, पाण्ड्य (दोनों जाट वंश) आदि वंश तथा कांची एवं केरल आदि के शासकों ने गोविन्द तृतीय के विरुद्ध एक संगठन बना लिया। परन्तु इस सम्राट् ने इस संगठन को छिन्न-भिन्न कर दिया।
4. अमोघवर्ष (815-877 ई० तक) - गोविन्द तृतीय के बाद उसका पुत्र अमोघवर्ष राजसिंहासन पर बैठा। इस वंश का यह सबसे शक्तिशाली सम्राट् था। इसने अपनी नई राजधानी ‘मानयखेत’ बनाई जो कि आज के हैदराबाद राज्य की सीमा में थी। इसने 62 वर्ष तक शासन किया। यह बहुत समय तक वंगी के अहलावत सोलंकी (चालुक्य) वंश के शासकों के साथ युद्ध में उलझा रहा। इसी कारण से अपने पिता की भांति उत्तर की ओर न जा सका। इसके शासनकाल में परहारवंश के सुप्रसिद्ध सम्राट् मेहरभोज ने आक्रमण किया। परन्तु अमोघवर्ष ने उसको करारी हार दी। यह जैन धर्म के संघ का साथी था। अतः इसने जैन-धर्म के विस्तार के लिए बहुत प्रयत्न किया। यह विद्या-प्रेमी भी था। इसने स्वयं कई पुस्तकें लिखीं। अरब देशों के साथ इसके अच्छे सम्बन्ध थे। अरब यात्री सुलेमान इस सम्राट् के विषय में लिखता है कि “राष्ट्रकूट या राठी सम्राट् अमोघवर्ष केवल भारतवर्ष का ही प्रसिद्ध सम्राट् नहीं, बल्कि संसार का चौथा महान् सम्राट् था। अन्य तीन बगदाद का खलीफा, चीन का सम्राट् और कॉन्स्तन्तीना का सम्राट् थे।”
5. इन्द्र तृतीय - यह अमोघवर्ष के पश्चात् इस वंश का अति प्रसिद्ध सम्राट् था। इसने परहारवंश के शासक महीपाल को हराया और उसकी राजधानी पर अधिकार करके अपने पिता व दादा के नाम को चार चांद लगा दिये।
6. अन्त के राष्ट्रकूट शासक - इन्द्र इस वंश का अन्तिम प्रसिद्ध शासक था। इसके बाद के शासक बहुत दुर्बल थे। इस वंश के अन्तिम शासक कक्क को सन् 973 ई० में अहलावत सोलंकी (चालुक्य) वंश के राजा तल्प द्वितीय ने पराजित किया और कल्याणी राजधानी पर अहलावत सोलंकी वंश का राज्य स्थापित किया1। इस तरह से लगभग सवा दो सौ वर्ष तक शक्तिशाली राज्य करने के बाद राष्ट्रकूट या राठी वंश के शासकों का अन्त हो गया।
राष्ट्रकूट या राठी शासकों के बड़े कार्य -
इस वंश के शासक बड़े शक्तिशाली थे जिन्होंने पल्लव, चोल, चीर, परहार और चालुक्य वंश के शासकों को कई बार हराया। इनके कई शासकों का दबदबा पूरे दक्षिण पर रहा। इनका राज्य विस्तार मालवा, दक्षिणी गुजरात और उत्तर से बुन्देलखण्द से लेकर दक्षिण में तंजौर तक था। यह उच्चकोटि का वंश था। इस वंश के सम्राट् केवल विजेता ही नहीं थे बल्कि विद्या तथा कला कार्यों में भी निपुण थे। विदेशों विशेषकर अरब देश के साथ इनका व्यापार था जो कि समुद्री जहाजों द्वारा होता था। इस तरह से इन्होंने अपने देश को बड़ा धनवान बनाया। (राष्ट्रकूट वंश का दक्षिण भारत में राज्य के प्रकरण को देखो तारीख हिन्दुस्तान उर्दू पृ० 372-376 पर)। अरबों ने गुर्जर प्रतीहारों के विरुद्ध दक्षिणापथ के राष्ट्रकूट राजाओं से सन्धि की थी। राष्ट्रकूटों तथा अरबों का सम्बन्ध घनिष्ठ हो गया था। राष्ट्रकूट राजा अपने राजदूत बगदाद
- 1. देखो तृतीय अध्याय, अहलावत गोत्र प्रकरण।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-308
के अरब खलीफाओं के पास भेजने लगे थे। (मध्य एशिया तथा चीन में भारतीय संस्कृति पृ० 43, लेखक सत्यकेतु विद्यालंकार)।
राठी गोत्र का विस्तार - राठी गोत्र मराठों एवं खत्रियों में भी पाया जाता है। गुजरात में राठी व्यापारी हैं। राठी जाट क्षत्रियों की बड़ी संख्या है।
राजस्थान में खेतड़ी, झुन्झुनूवाटी, डीडवाना में तथा अलवर में काली पहाड़ी के चारों ओर राठी जाटों की बहुत संख्या है।
पंजाब में पटियाला में भी ये लोग हैं।
हरयाणा में जिला भिवानी की तहसील लोहारू में मंडोली, खानपुर, गावड़ी आदि गांव,
जिला जींद में कुछ गांव,
जिला रोहतक में भापड़ोदा, खरहर, आसण्डा, बहादुरगढ, सांखौल, सराय औरंगाबाद, लाखनमाजरा, बहलंबा आधा, नान्दल (आधा), घड़ौठी (आधा), भराण
जिला सोनीपत में राजलू, बड़ी गढी, छोटी गढी, पुरखास एक तिहाई, धनाना एक तिहाई,
जिला करनाल में कर्स, मनाणा, करवाल, गाजबड़वाला, जाटक,
जिला मेरठ में टीकरी, गांगरौली, हिम्मतपुर, सूझती, बड़कली,
जिला मुजफ्फरनगर में भोपा, धीराहेड़ी, निरगाजनी, करहेड़ा, छरौली, भूराहेड़ी, दूधाहेड़ी, फीमपुर, लखनौती, रानी का बसेड़ा, दतियाना, कुकड़ा, मोलाहेरी, रहकड़ा, बुद्धपुर जाट, बसेरा बेहड़ा, सौंता
जि० सहारनपुर में लिब्बरहेड़ी, टिकरौल, नसीरपुर, नारसन कलां, जगजीतपुर,
जिला बिजनौर में रायपुर, फजलपुर, गंजालपुर, काशीमपुर, करौली, टूंगरी, सफियाबाद, देवीदासवाला,
जिला मुरादाबाद में जहांगीरपुर आदि गांव राठी जाटों के हैं।
राठी जाट गोत्र का इतिहास
भलेराम बेनीवाल[26] लिखते हैं कि राठी जाट गोत्र चन्द्रवंशी माने गये हैं. राठी गोत्र के लोगों ने चन्द्रगुप्त मोर्य की सहायता की थी. महाभारत काल में भी इस गोत्र का उल्लेख मिलता है. उस समय इनका राज्य कोंकण (महाराष्ट्र) में था. राठी गोत्र के लोगों ने सिकन्दर का राज्य समाप्त करने में मदद की थी. चन्द्रवंशी राठी लोगों का संघ राष्ट्रकूट कहलाया. राठी संघ में से कुछ लोग राजपूत बन गये. ये लोग अपने को सूर्यवंशी लिखने लगे. राठी लोगों के चन्द्रवंशी होने के प्रमाण राजा अमोघवर्ष के कोन्नूर वाले शिलालेख से मिलते हैं. देहली तथा बेगुमरा के प्राप्त लेखों में भी स्पष्ट चन्द्रवंशी होने का प्रमाण मिलता है. राठी गोत्र के लोग मराठों में भी पाये जाते हैं. गुजरात में ये लोग व्यापारी व क्षत्रिय हैं. राजस्थान व पंजाब में भी इस गोत्र की काफ़ी संख्या है.
राठी गोत्र के प्रमुख ग्राम
राठी गोत्र के ग्रामों में प्रमुख हैं: उत्तर प्रदेश में
- मेरठ (हीकरी, गागरौली, बड़कली),
- मुज्जफ़रनगर, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद जिलों में राठी गोत्र के गांव हैं.
हरयाणा में
- भिवानी (मड़ोली, खानपुर, गामड़ी),
- रोहतक (खरहर, बहादुरगढ, सांखोळ, सराय औरंगाबाद, लाखन माजरा),
- सोनीपत (राजपुर, राजलू गढी, पुरखास, व धनाना),
- पानीपत (करस, मनाना, गांजबड़) आदि.
A poem on Rathi
JAT pride is in our mind
JAT blood, in our kind
Our bond is seen all around
Fellow JATS never let you down
We are all pride, no lust for gains
JAT blood flows in our veins.
We Rulezz the world.
That why we r Jats.
Jat always rulezz the world.
JAT RULEZZ.
RATHI: R=respect A=awesome T=typical H=humourous I=individuality
Distribution in Haryana
They are found in Jind , ]], Sonipat and Rohtak districts in Haryana. Kharghar, Bhaproda and Asanda villages in Jhajjar (Haryana) have 100 % Rathee population. Jattwadda in Bahadurgarh town and Sankhol village near Bahadurgarh are also Rathi gotra places. Village Manana in Panipat], Town of Samalkha railway station in Panipat Tehsil.
Villages in Bhiwani district
Alakhpura Bhiwani, Barwas, Barsi Jattan, Gamdi, Khanpur,
Villages in Gurgaon district
Dadawas, Rathiwas, Tirpari, Alipur village - in Sohna Tahsil
Villages in Hisar district
Villages in Jhajjar districts
Asanda, Bahadurgarh, Bhaproda, Jatwada Bahadurgarh, Kharhar, Majri, Parnala, Sankhol, Sarai Aurangabad,
Villages in Jind district
Bakhata Khera, Pindara, Gharwali,
Villages in Kurukshetra distict
Villages in Panipat distict
Villages in Rewari district
Dhakiya, Balawas, Ghudkawas, Nayagaon - Ghudkawas,
Villages in Rohtak districts
Balhemba (ब्लंभा), Bharan Rohtak, Kishanpura, Lakhan Majra, Mokhara, Nandal Rohtak, Nindana, Sisar Khas, Sunderpur
Villages in Sonipat district
Bhogipur (Barhi Gadhi), Busana, Chidana, Gadhi (Chhoti Gadhi), Jagsi teh. (Gohana), Pur khas (पुर खास), Rajpur, Rajlu, Mahlana, Dhanana Aladadpur.
Villages in Yamunanagar district
Kathwala (काठ्वाला), Katarwali (कतारवाली), Mamli, Pabni Kalan (पाबनी कलाँ,हवेली वाले),
Distribution in Delhi
Distribution in Uttar Pradesh
Villages in Meerut district
Barkali, Chirori, Jangethi, Kastala Shamshernagar, Kharkhauda, Ramraj, Tikri,
Villages in Baghpat district
Villages in Bijnor district
Devidaswala, Fazalpur, Ganjalpur, Karauli, Kashimpur, Mirapur Pahuli, Nasirpur Mithari Raipur Berisal, Pahuli, Rashidpur Garhi, Saifabad, Safiabad, Shaha Nagar, Tungri,
Villages in Moradabad district
Villages in Muzaffarnagar district
Abdulla Nagar urf Sonta, Basera Behda, Behda Assa, Bhopa, Budhpur Jat, Chachrauli, Datiyana, Dhirahedi, Dudhaheri, Faeempur, Goela, Itawa, Kadipur, Karheda, Kerhera or Kerheda, Khanjahanpur, Kukra, Molaheri, Morna, Muzaffarnagar, Nirgajni, Parai, Rahkada, Sahawali, Salempur Purquazi, Saunta, Shahdabbar,
Villages in Aligarh district
Faridpur Gabhana, Jalalpur, Pisawa, Sehal,
Villages in Bulandshahr district
Ghesupur, Jalalpur Bulandshahr, Madona Jafrabad, Murli Nagla (Sarawa),
Villages in Bareilly district
Bhoola Nabipur (भूला नबीपुर) (in Baheri tahsil), Raath, Bijauria,
Villages in Saharanpur district
Villages in Hapur district
Kurana Hapur, Lakhrada, Partapur,
Villages in Ghaziabad district
Distribution in Uttarakhand
Villages in Haridwar district
Bahadarpur Jat, Libbarheri, Narsan Kalan, Thithiki Qavadpur, Meerpur Muwazarpur, Boodpur Jat, Nasir Pur Kalan.
Distribution in Punjab
They are found in Ludhiana and Patiala in Punjab. Rathi have a population 2,550 in Patiala district.[27]
Villages in Patiala district
Distribution in Rajasthan
There is a large population of Rathi clan kshatriyas in Khetri of Jhunjhunuwati, Didwana, Chittorgarh and Kalipahari in Alwar.
Villages in Alwar district
Villages in Jhunjhunu district
Locations in Jaipur city
Airport Colony, Amer, C-Scheme, Khatipura, Mahavir Nagar I, Mansarowar Colony, Sanganer,
Villages in Tonk district
Pratappura Diggi (1),
Villages in Bikaner district
Distribution in Madhya Pradesh
They are found in Bhopal and Sultanpur (Raisen) in Madhya Pradesh.
Villages in Nimach district
Villages in Khargone district
Villages in Raisen district
Notable persons from this gotra
- Brigadier Hoshiar Singh - Hero of Indo-China war of 1962.
- Shri Ram Mehar Singh Rathee - Executive Engineer in CPWD (Renowned Engineer).
- Shri Preet Singh Rathi - Minister in the Haryana cabinet bears this name.
- Jagat Singh Rathi -
- Neha Rathi -
- Shashi Kumar Rathi - IFS 1980
- Devendra Singh Rathi - IRS Gudgaon
- Mrs. Shanti Rathee - Ex. Minister
- Hari Singh Rathee - HES, Busana
- Krishan Chander Rathee -
- Dr. Krishan Kumar Rathee - HO- Aurvedic, Gohana.
- Mahipal Rathjee - Contractor, Gohana
- Hardial Rathee - District Officer, Khadi Board, Jhajjar
- Acharya Mahavir Singh Rathi - Poet, Author, Social worker. Born at village Jalalpur Pisaba in Aligarh district on 17 January 1930. [28]
- Mr. Anand Rathi
- Seth Gordhan Das Rathi - setup a small re-rolling mill in Delhi in the early 40’s. Since then the Group has grown continuously. Shri Gordhan Das Rathi’s commitment to quality, integrity, honesty, and growth is being followed till date.
- Shri Punam Chand Rathi - The Rathi Udyog Ltd. is headed by Shri Punam Chand Rathi who is well known in the steel industry for over five decades.
- Shri Devpal Singh Rathi - J.E. (irrigation) Muzzafarnagar. He is the head of diploma engg. union of saharanpur mandal.
- Shri Sahab Singh Rathi - Retd. from the post of JWO ( INDIAN AIR FORCE). Currently working US based company AKON (aircraft chips manufacturer)
- Shri Bachchu Singh Rathi - Posted in Delhi Police as ASI (Astt. Sub Inspector).
- Gaurang Rathi: IAS 2014, UP Cadre, Posted at Moradabad, M: 8826639038
- Kuldeep Singh Rathi (Capt) (01.08.1947 - 07.12.1971) became martyr on 07.12.1971 during Indo-Pk war 1971. He was from Sankhol village in Jhajjar district, Haryana. He was awarded with Veer Chakra for his act of bravery. Unit: 8-Jat Regiment.
- Jawant Singh Rathi - Member RPSC, Originally from Haryana
- Narendra Singh Rathi (Sepoy) - From Itawa Muzaffarnagar, Uttar Pradesh, Martyr of Kargil war on 02 June 1999, Unit-04 Jat Regiment.
- Jasbir Singh Rathi -
- Veerpal Rathi - MLA Chhaprauli 2012 RLD.
- Nafe Singh Rathee - MLA Bhadurgarh 1996 and 2000 INLD President Haryana
- Amit Rathi (Major) (02.11.1974 - 13.01.2005) became martyr of militancy on 13.01.2005 in Badgam district of Jammu and Kashmir. He was awarded Sena Medal for his act of bravery. He was from Rae Bareli in Uttar Pradesh.
- Unit - 53 Rashtriya Rifles/49 Armoured Regiment
- Ram Kumar Singh Rathi (Naik) became martyr of militancy on 15.04.1993. He was awarded Shaurya Chakra (posthumous) for his act of bravery. He was from Purkhas village in Gannaur tahsil of Sonipat district in Haryana.
- Unit - Unit - HQ 192 Mount Brigade/ 3 Rajputana Rifles
- Rajvir Singh Rathi (Naik) (02-11-1967 - 13-06-1999) became martyr on 13-06-1999 at Tololing hill of Drass sector in Jammu and Kashmir during Kargil War. He was from Lakhan Majra village in Rohtak district of Haryana.
- Unit - 18 Grenadiers
Gallery of Rathi people
References
- ↑ B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.242, s.n.187
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. र-10
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.57,s.n. 2133
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- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.57,s.n. 2133
- ↑ जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठ-586
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. र-30
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.57,s.n. 2106
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV, p.342
- ↑ Ram Swarup Joon: History of the Jats/Chapter V,p. 98
- ↑ Mahendra Singh Arya et al.: Ādhunik Jat Itihas, Agra, 1998, p. 278
- ↑ Mahendra Singh Arya et al.: Ādhunik Jat Itihas, Agra, 1998, p. 277
- ↑ http://www.blessingsonthenet.com/glossary/getalpha.asp?pg=300&flag=1
- ↑ Bhim Singh Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Porus and the Mauryas, p.168,s.n.24
- ↑ orpus Inscriptionium Indicarium Vol IV Part 2 Inscriptions of the Kalachuri-Chedi Era, Vasudev Vishnu Mirashi, 1955, p. 495-501
- ↑ Ram Swarup Joon: History of the Jats/Chapter II,p. 32-33
- ↑ History of the Jats/Chapter II,p.33-34
- ↑ Ram Swarup Joon: History of the Jats/Chapter V,p. 98
- ↑ Ram Sarup Joon: History of the Jats/Chapter VI,p.116
- ↑ Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Jat Clan in India,p. 268
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- ↑ Dr Ompal Singh Tugania, Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p. 15
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Shashtham Parichhed, p.127
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.306-309
- ↑ भलेराम बेनीवाल:जाट यौद्धाओं का इतिहास, पृ. 707-708
- ↑ History and study of the Jats, B.S Dhillon, p.126
- ↑ Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, Section 9 pp. 68-70
- Jat Samaj: Agra, June 2000
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