Harnam Singh Kular
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Harnam Singh Kular (1912- 02.09.2005) was a freedom fighter from Sarah locality in Dharamshala city of Kangra district in Himachal Pradesh. He joined Punjab Regiment during British rule in 1932. He fought wars in Belgium, Singapore, Burma and Malaya during Second World War and was awarded many bravery medals. He rebelled against the British officer for his unbecoming behaviour in 1945 and as a result was sent back to his home without medals and pension on extreme compensate grounds. He has not been officially awarded with the status of Freedom Fighter by the Govt.
हवलदार हरनाम सिंह का परिचय
जब इस सूरमा ने भगाया फिरंगी कर्नल: देश स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। आजादी के परवानों को नमन करने का वक्त है। कई सूरमाओं के नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज हैं, तो कई गुमनामी में खो गए। कुछ ऐसी ही वीरगाथा है कांगड़ा जिला मुख्यालय धर्मशाला से सटे गांव सराह के जांबाज हवलदार हरनाम सिंह की, जिन्होंने फिरंगी अफसर द्वारा भारतीय सैनिकों को गाली देने पर बगावत कर दी थी। एक ऐसी बगावत, जिसके परिणाम में उन्हें कोर्ट मार्शल के बाद जेल जाना पड़ा, मेडलों के साथ नौकरी गंवानी पड़ी, लेकिन यह हिमाचली हौसला ही था, जिसने घर आने के बाद भी नौजवानों के दिलों में आजादी की मशाल अंग्रेजों की विदाई तक जलाए रखी।
वर्ष 1912 में सराह गांव में जन्मे हरनाम 1932 में अंग्रेजी सेना की पंजाब रेजिमेंट में बतौर सैनिक भर्ती हुए तो महज चार साल में ही अपनी योग्यता के दम पर उन्होंने हवलदार का रैंक हासिल कर लिया। समय बीता और 1939 से 1945 तक चले दूसरे विश्व युद्ध में हरनाम ने बैल्जियम, सिंगापुर, बर्मा व मलाया जैसे देशों में लड़ाई लड़कर बहादुरी के लिए अनगिनत मेडल हासिल किए।
सन् 1945 में वह अपनी बटालियन में मेरठ आए। यहां उनका रुतबा अस्थायी रूप से बटालियन हवलदार मेजर का था, जिन्हें 850 सैनिकों पर कमांड का अधिकार था। चूंकि पंजाब रेजिमेंट के बहुत सारे जवान नेताजी की आजाद हिंद फौज से जुड़ रहे थे, ऐसे में फिरंगी उनसे नफरत करते थे। इसी कड़ी में एक दिन परेड के दौरान कर्नल रैंक के फिरंगी अफसर ने दो भारतीय सैनिकों को गालियां निकालना शुरू कर दीं, इस पर हरनाम ने विरोध जताया, तो वह उन पर ही झपट पड़ा। बस फिर क्या था, भारत माता के जयकारे लगाकर उन्होंने रायफल उठा ली। जांबाज को गुस्से में देख फिरंगी ऐसा भागा कि उसने कर्नल बैरक में जाकर शरण ली। बाद में हरनाम को अरेस्ट कर 15 दिन जेल में रखा। कोर्ट मार्शल के बाद मौत की सजा (गोली मारने) दी। खैर, बड़ी बगावत के डर से अंग्रेजों ने उन्हें माफी मंगवानी चाही, लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया। इस पर उन्हें एक्सट्रीम कंपनसेट ग्राउंड पर बिना मेडल-पेंशन घर भेजा गया, जब वह घर आए तो मां-बाप और पत्नी की मौत हो चुकी थी। घर आने पर भी आजादी तक वह अंग्रेज पुलिस-सेना के राडार पर रहे, लेकिन इस गुमनाम हीरो ने अंग्रेजों को भगाने तक युवाओं में आजादी की मशाल जलाए रखी।
वर्ष 2005 में उनका निधन हो गया, लेकिन इस जांबाज ने कभी सरकार से पेंशन-भत्ते और फ्रीडम फाइटर का दर्जा नहीं मांगा।
स्रोत: दिव्य हिमाचल
एक उपेक्षित देशभक्त हरनाम सिंह
हालांकि अपने गांव में वह युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए। उन्होंने अपने गांव में सेवाकार्य और कई कल्याणकारी गतिविधियां की, बावजूद इसके उन्हें कभी स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं दिया गया और न ही इस वीर सिपाही ने कभी पेंशन के लिए शासन के आगे आवेदन किया। उनके गांव वालों ने उन्हें नंबरदार के रूप में चुना। इसके बाद 1947 में देश का विभाजन हो गया। हरनाम के गांव के निवासियों में 40 प्रतिशत मुसलमान थे। उनकी सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए हरनाम ने उन्हें अपनी हवेली में आश्रय दिया। उन मुस्लिमों की जिम्मेदारी लेते हुए हरनाम ने अपने भरोसेमंद सौ सिपाहियों को साथ लेकर इन्हें कांगड़ा के रेलवे स्टेशन पर पहुंचाया। जब वे कांगड़ा के लिए मार्च निकाल रहे थे, तो एक अर्धविक्षिप्त आदमी ने चैतड़ू गांव में हरनाम सिंह पर अपनी बंदूक से गोली चलाई, लेकिन वह निशाना चूक गया और हरनाम सिंह रहस्यमयी ढंग से बच गए। इस पर हरनाम सिंह उस आदमी पर चीते की तरह झपट पड़े, उससे हथियार छीन लिया, हथियार में से गोली बाहर निकाली, उसे अपनी जेब में डाला और खाली बंदूक को साथ बहती खड्ड में फेंक दिया।
यह एक प्रशिक्षित जवान के दिमाग की उपस्थिति और विकट स्थिति में त्वरित कार्रवाई की एक मिसाल है। हरनाम सिंह का उसके गांव में 2 सितंबर 2005 को 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। भले ही हरनाम सिंह का देशभक्तों की सूची में नाम बहुत कम या नहीं देखने को मिलता है, फिर भी अपने गांव के लिए आज भी वह प्रेरणा बने हुए हैं। उनके हौसले, देशभक्ति की भावना और देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने वाले ब्रिटिशों के प्रति गुस्से के भाव ने उस समय युवाओं को अवश्य ही प्रेरणा दी होगी।
स्रोत: पीएन शर्मा -'एक उपेक्षित देशभक्त हरनाम सिंह', दिव्य हिमाचल
फौजियों का परिवार
हरनाम सिंह फौज में हवलदार थे। इसके बाद उनके बेटे सेना में गए और फिर पोते। पोते के बेटे भी फौज में ही रहे। कुल मिलाकर यह पूरी तरह से फौजियों का परिवार है।
जगराओं [बिंदु उप्पल]। एक्स सर्विसमैन लीग के प्रधान कर्नल मुख्तियार सिंह के परिवार को सैनिकों वाला परिवार कहा जाता है। इस परिवार की कई पीढ़ियां सेना में रहकर देश की सेवा करती आई हैं। परिवार के सदस्य सेना में हवलदार से कर्नल पद पर रहकर सरहद की रक्षा करते रहे हैं। देश सेवा का ऐसा जज्बा कि अन्य क्षेत्रों में आरामदायक नौकरी मिलने के बावजूद इस परिवार के बेटे सेना में सेवा को ही प्राथमिकता देते हैं।
कर्नल मुख्तियार सिंह के दादा हरनाम सिंह हवलदार थे। उनके दो बेटे अच्छर सिंह कुलार व नछत्तर सिंह कुलार हैं। इनमें एक बेटा अच्छर सिंह कुलार सेना में हवलदार थे। उनके छह बेटों में तीन बेटे सुखदेव सिंह कुलार, बलदेव सिंह कुलार और मुख्तियार सिंह कुलार कर्नल रैंक से रिटायर हुए। कर्नल बलदेव सिंह की तीन बेटियां हैं। उनमें बड़ी बेटी नवरीत कौर कुलार फौज में डॉक्टर थीं। वह मेजर रैंक से वॉलंटियर रिटायरमेंट लेकर अमेरिका चली गई हैं। सेवानिवृत्त कर्नल मुख्तियार सिंह के बेटे दीपइंद्र सिंह कुलार इंडियन नेवी में लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात हैं। मुख्तियार सिंह के चाचा नछत्तर सिंह के इकलौता बेटे खुशवंत सिंह भारतीय वायु सेना में ग्रुप कैप्टन के पद पर हैं।
स्रोत: Article by Kamlesh Bhatt, Jagran, Fri, 09 Aug 2019
External links
References