Harsud

From Jatland Wiki
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Map of Khandwa & Burhanpur district
Map of Khandwa & Burhanpur district
Pamakhedi-Dantha-Harsud-Purni-Mundi-Narmada Nagar- Narmada Sagar Resevoir in Khandwa, MP
Ashapur -Harsud-Chhanera-Charkheda in Khandwa

Harsud (हरसूद) is a town and tahsil in Khandwa district of Madhya Pradesh, India. Harsud town was more than 700 years old, it was submerged under the waters of the Indira Sagar Dam in July 2004.

Variants

Author's Visit

Author (Laxman Burdak) visited it on 29.12.1996.

Location

Geography

Harsud was located at 22.1°N 76.73°E and had an average elevation of 243 metres (800 feet). The town was relocated to Chhanera (New Harsud)[2] after the old town was submerged.

Jat Gotras Namesake

Villages in Harsud tahsil

Town: 1. Chhanera

Villages:

1 Ambakhal Ryt., 2 Badgaon Mal., 3 Badgaon Ryt., 4 Badkhalya Mal, 5 Bahedi Ryt, 6 Baidiyaw Ryt, 7 Bailwadi Ryt, 8 Bandariya Ryt, 9 Barmalaya Ryt., 10 Barud Mal, 11 Bharadi Ryt, 12 Bhawaniya Ryt, 13 Bhawarli Mal, 14 Billod Mal., 15 Bori Bandri, 16 Bori Saray, 17 Bothiya Kalan, 18 Bothiya Khurd, 19 Brahmogaon, 20 Brhmdhad Mal, 21 Charkheda, 22 Charkheda Ryt, 23 Chhapa Kund, 24 Chhipipura, 25 Chich Ryt, 26 Chikhali Mal., 27 Dagad Khedi Mal, 28 Damdama, 29 Dewaldi, 30 Dhanora, 31 Dhanwani Mafi, 32 Dharu Khedi, 33 Dot Kheda Ryt, 34 Gambhir Circular, 35 Gambhir Obari, 36 Garbadi Mal, 37 Garbadi Ryt, 38 Gurawan Ryt., 39 Haripura Mal, 40 Hathnora Ryt, 41 Imlani, 42 Jaitapur Kalan, 43 Jhagariya Mal, 44 Jhingadhadh Ryt., 45 Junapani Mal., 46 Kadouli Ryt, 47 Kashipura, 48 Kasrawad, 49 Khair Kheda, 50 Khamla Mal., 51 Killod Mal, 52 Kukdhal, 53 Kuksi Ryt, 54 Kundiya Mal, 55 Lachhora Mal., 56 Lahadpur Mal, 57 Lahadpur Ryt, 58 Malood, 59 Mandla, 60 Manjadhad, 61 Minawa Mal, 62 Minawa Ryt, 63 Moujwadi Mal, 64 Moujwadi Ryt, 65 Mugal Ryt, 66 Nandgaon Khurd, 67 Nandiya Ryt, 68 Navalpura, 69 Nishaniya Mal, 70 Palani Mal, 71 Palani Ryt, 72 Piplani, 73 Pratappura, 74 Ramjipura, 75 Rampuri Ryt, 76 Rewapur, 77 Rosad Mal., 78 Sadiyapani, 79 Sadiyapani Sarkar, 80 Saktapur Ryt, 81 Satri, 82 Selda Mal, 83 Semrud Mal, 84 Semrud Ryt, 85 Shahpura Mal, 86 Somgaon Khurd, 87 Son Khedi, 88 Sonpura, 89 Sukhadiya, 90 Torniya, 91 Undel, 92 Undel Ryt,

Source - https://www.census2011.co.in/data/subdistrict/3714-harsud-east-nimar-madhya-pradesh.html

History

East Nimar District Gazeteer by P N Shrivastav, 1969, p.47 mentions....Two inscriptions' of the reign of Devapaladeva (C. 1218-32), were found at Harsauda (modern Harsud) and Mandhata. Harsud Stone Inscription, dated in V. S. 1275 (A.D. 1218), records construction of a Siva temple and a tank nearby by a merchant and states that Devapaladeva of Dhar was the then ruler.[3]

Harsud town was more than 700 years old, it was submerged under the waters of the Indira Sagar Dam in July 2004.

हरसूद

30 जून 2004 को इंदिरा सागर बांध परियोजना में डूब गया हरसूद नगर

हरसूद भारत के मध्य प्रदेश राज्य के खंडवा ज़िले में स्थित 700 वर्ष पुराना एक नगर हुआ करता था। जो 30 जून 2004 को इंदिरा सागर बांध परियोजना में डूब गया। इसके निवासियों को फिर छनेरा में बसाया गया।[4]

इस शहर के करीब 200 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित विस्थापित किया गया था। आज भी कई विस्थापितों की जिंदगी बहुत दयनीय है।

राजा हर्षवर्धन का शहर था हरसूद: हरसूद के बारे में कहा जाता है कि यह करीब 700 साल से भी ज्यादा पुराना शहर है। इस शहर को राजा हर्षवर्धन की नगरी के नाम से भी जाना जाता था। अब इसकी पहचान एशिया के सबसे बड़े विस्थापन के रूप में याद किया जाता है।

नर्मदा नदी पर इंदिरा सागर बांध बनाया गया था। इस बांध का स्थानीय लोगों ने विरोध भी किया था। 30 जून 2004 को नर्मदा के बैक वाटर की वजह से हरसूद शहर डूब गया। हरसूद के डूबने के बाद यहां के लोगों को अलग जगह में विस्थापित करने की योजना बनी। लोगों को छनेरा के पास जमीन दी गई लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके पास आज भी पट्टे का अधिकार नहीं है। मुआवजा नहीं मिला जिस कारण से वह लोग कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।

जिन लोगों का बचपन हरसूद में बीता है उनके दिलों में हरसूद आज भी जिंदा है। हरसूद से विस्थापित लोग खंडवा, छनेरा सहित आसपास के अन्य क्षेत्रों में बसे गए लेकिन इनके दिलों में हरसूद शहर आज भी जीवित है। डूब में प्रभावित लोगों को आज भी सरकारी की पुनर्वास नीति का लाभ नहीं मिला। कुछ लोगों को कोर्ट से मुआवजे के आदेश मिला है। तो कई मामलों की सुनवाई जारी है। बताया जाता है कि 5 हजार केस पेंडिंग हैं। कई याचिकाकर्ताओं की डेथ हो चुकी है।

हरसदू कोई गांव नहीं बल्कि एक शहर था। इस शहर के अंदर कई गांव थे। आकंड़ों के अनुसार, हरसूद के करीब 245 गांव के ढाई लाख लोगों को विस्थापित किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि दुनिया में किसी भी परियोजना के लिए इतनी बड़ी आबादी वाले शहर को विस्थापित नहीं किया गया है। अब हरसदू किसी भी सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है। लेकिन ये शहर आज भी उन लोगों में जिंदा है जिन लोगों का यहां बचपन, जवानी और बुढ़ापा बीता है।

स्रोत: Harsud: एशिया का सबसे बड़ा विस्थापित शहर, जहां एक बांध के कारण 200 से ज्यादा गांव वाले हो गए थे बेघर, जानें क्या है कहानी by पवन तिवारी, नवभारतटाइम्स.कॉम, 10 Sep 2024

एक था हरसूद- जनसंघर्ष की कुछ यादें

स्रोत - राकेश दीवान - मध्यमत

कई लोगों को यह थोड़ा विचित्र लग सकता है कि करीब 15 हजार की आबादी का मामूली, अनजान, उनींदा-सा एक कस्बा अपने से लगभग सात गुने, एक लाख से ज्यादा लोगों को ढाई-तीन दिन अपने साथ रहने, खाने-पीने और प्रदर्शन करने में शामिल कर सकता है। कस्बे की आबादी और जरूरत-भर संसाधन इतने कम थे कि जमावड़े के लिए मामूली आटा-दाल, साग-भाजी तक के लिए भी करीब साठ किलोमीटर दूर, खंडवा शहर तक जाना-आना पडता था। कार्यक्रम में आने वाले मेहमानों के लिए कस्बे भर के अधिकांश घर खोल दिए गए थे, लेकिन आमंत्रित इतने अधिक थे कि उनके ठहराने के लिए कृषि उपज मंडी, हर दर्जे के स्कूल और तरह-तरह के सरकारी भवनों का उपयोग किया गया था।

पीने और निस्तार के पानी के लिए हरसूद के नागरिकों के कुओं, नलकूपों के अलावा सरकारी नलकूप, जरूरत की जगहों पर लगाने के लिए रखी गई झक नई टंकियां तक उपयोग में लाई गई थीं। आबादी से रेलवे-स्टेशन दूर था इसलिए सभी रिक्शों-तांगेवालों ने अपनी सेवाएं मुफ्त कर दी थीं। कार्यक्रम के दो दिन पहले पता चला कि कुछ गफलत के चलते बम्बई से आने वाला चंदा नहीं पहुंच सका है और पैसा बिलकुल नहीं है।

ऐसे में इसी कस्बे ने आनन-फानन तीन-चार घंटे की मेहनत से 65-70 हजार रुपए इकट्ठा किए थे। इसके अलावा लघु व्यापारी संघ ने खाने के दस हजार मुफ्त-कूपन देने का वायदा किया था। कार्यक्रम के पहले लगभग रोज निकाली जाने वाली रैलियों, मशाल-जुलूसों के भागीदारों के लिए घरों के सामने पानी से भरा घड़ा और कहीं-कहीं चाय का इंतजाम किया जाता था।

आज के समय में अजूबा लगने वाली ये बातें खंडवा जिले के जीते-जागते, भरे-पूरे और 2004 में ‘इंदिरा सागर परियोजना’ की राक्षसी डूब में समा चुके सात सौ साल पुराने कस्बे हरसूद में इकतीस साल पहले हुईं थीं। मौका था, 28 सितम्बर 1989 को पर्यावरण-प्रदूषण, खासकर बड़े बांधों के विरोध में हुए ‘संकल्प मेले’ के विशाल जमावड़े का। दुनिया भर में अस्सी के दशक की दस में से एक बड़ी घटना माने जाने वाले इस मेले की कहानी 1985-86 की उन चार में से एक राष्ट्रीय बैठक से शुरु हुई थी जो हरसूद में ही बड़े बांधों की डूब और लाभ-हानि पर विस्तार से विचार करने की खातिर आयोजित की गई थी।

इस श्रंखला की बाकी बैठकें बड़वानी के पड़ोसी कस्बे अंजड, कुक्षी के पास नर्मदा किनारे के कोटेश्वर और इलाके के महानगर इंदौर में हुई थीं। उन दिनों काशीनाथ त्रिवेदी की अगुआई में कुछ वरिष्ठ गांधीवादियों ने निमाड़-मालवा में बड़े बांधों के खिलाफ अलख जगाई थी और उनके आग्रह पर इन चार बैठकों का आयोजन किया गया था। तब तक अंतरराज्यीय ‘सरदार सरोवर परियोजना’ के विरोध में आज का ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ जमीन पकड़ने लगा था और वहां भी ऐसे किसी विशाल जमावड़े की जरूरत महसूस होने लगी थी।

नतीजे में तय हुआ था कि समूची नर्मदा घाटी में खड़े किए जाने वाले 30 बड़े बांधों के प्रभावितों, देशभर में पर्यावरण और वैकल्पिक राजनीति के मुद्दों पर काम करने वाले संगठनों और सरोकार रखने वाले साहित्यकारों, लेखकों, पत्रकारों, नाटककारों, फिल्म-कलाकारों, राजनेताओं और नागरिकों को एक जगह इकट्ठा करके पर्यावरण, खासकर बड़े बांधों पर बातचीत की जाए।

नर्मदा घाटी के सरकारी विकास के मंसूबों में सबसे बड़े इंदिरा सागर बांध को लेकर हरसूद में पहले ही सुगबुगाहट शुरु हो चुकी थी। लोग बांध की आशंका से इतने डर गए थे कि घरों की आम-फहम टूट-फूट भी नहीं सुधरवाते थे। बैंकों ने यहां भी कर्ज देने में आनाकानी शुरू कर दी थी। इसी समय होशंगाबाद जिले में स्कूली शिक्षा के काम में लगी संस्था ‘किशोर भारती’ ने इतिहासकार और पुरातत्वविद् रमेश बिल्लौरे से आग्रह किया था कि वे नर्मदा पर बनने वाले बांधों, खासकर ‘इंदिरा सागर’ पर शोध करें।

नतीजे में बिल्लौरे के साथ पत्रकार क्लॉड अल्वारिस ने मिलकर 1988 में नर्मदा बांधों पर पहली किताब ‘डेमिंग दि नर्मदा : इंडियाज ग्रेटेस्ट प्लॉन्ड इनवायरनमेंटल डिजास्टर’ लिखी थी जिसे मलेशिया स्थित मीडिया समूह ‘थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क’ ने प्रकाशित किया था। रमेश बिल्लौरे कोई शोधार्थी, लेखक भर नहीं थे, उन्हें लगता था कि सीधे मैदान में जाकर बांध का विरोध किया जाना चाहिए। उस समय, यानि 1986-87 तक हरसूद और आसपास के लक्ष्मीनारायण खण्डेलवाल, गयाप्रसाद दीवान, शब्बीरभाई पटेल, कमल बाबा, दगडूलाल सांड जैसे भिन्न-भिन्न कामकाजों में लगे लोगों ने ‘नर्मदा सागर संघर्ष समिति’ का गठन कर लिया था और खण्डेलवालजी के घर में दफ्तर खोलकर रमेश बिल्लौरे, सतीनाथ षड़ंगी, नीति आनंद जैसे कई कार्यकर्ताओं ने विस्थापितों और डूब प्रभावितों से सम्पर्क करना शुरु कर दिया था।

पहले से तैयार इस पृष्ठभूमि में ‘संकल्प मेले’ के लिए लामबंदी शुरू की गई। देशभर को जोड़ने वाले इटारसी जंक्शन की गोठी-धर्मशाला में हुई तैयारी बैठक के बाद हरसूद कार्यक्रम का स्वरूप उभरने लगा। उन दिनों ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ के समर्थकों का गढ़ माना जाने वाला होशंगाबाद हरसूद के लिए भी कमर कसकर तैयार हो गया। वहां के न सिर्फ ढेरों कार्यकर्ता दो-ढाई महीने पहले से हरसूद में डेरा डालकर बैठ गए, बल्कि चंदा, अनाज, नुक्कड-नाटक, गीत-संगीत और दूसरी तरह की सहायताएं भी वहां से मिलने लगीं।

तैयारी की इस प्रक्रिया में इंदौर, भोपाल तथा महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे दूर-दराज के राज्यों के लोग भी महीनों पहले से शामिल हुए। आखिरकार ‘संकल्प मेले’ का दिन भी आ ही गया, लेकिन इसके भी पहले कुछ बेहद अहम बातें हो रही थीं। एक तो, देश के प्रसिद्ध कलाकार विष्णु चिंचालकर ‘गुरुजी’ की देख-रेख में हरसूद के ऐन बीच में एक ‘संकल्प स्तंभ’ का निर्माण किया जा रहा था। इस ‘संकल्प स्तंभ’ की नींव में देशभर से आने वाले लोगों ने एकजुटता के प्रतीक स्वरूप अपने-अपने इलाकों से लाई मुट्ठीभर मिट्टी डाली थी।

जमावड़े में बीबीसी, ‘टाइम मैगजीन,’ न्यूयार्क टाइम्स, ल’मांद, वाशिंगटन पोस्ट, ऑब्जर्वर, इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, द हिन्दू, फ्रंटलाइन, हिन्दुस्तान टाइम्स, जनसत्ता, नई दुनिया, भास्कर, नवभारत आदि राष्‍ट्रीय-अंतरराष्‍ट्रीय मीडिया के करीब डेढ़ सौ पत्रकारों के आने की संभावना थी, इसलिए उनके ठहरने, खाने-पीने और समाचार देने की व्यवस्था की गई थी। कस्बे के कुछ फोन-धारी परिवारों ने अपने-अपने फोन पत्रकारों के उपयोग के लिए समर्पित कर दिए थे और कुछ संसाधन-धारी पत्रकारों ने अपने लिए बीएसएनएल की गाड़ी लगवा ली थी।

वैसे तो 26 और 27 सितम्बर से ही लोगों का आना शुरू हो गया था, लेकिन 28 को असली जमावड़ा हुआ। कार्यक्रम बाबा आमटे की अगुआई में होना था, उन्हें ही ‘संकल्प मेले’ में मौजूद लोगों को संकल्प दिलवाना था, इसलिए पहले वे ही मंचासीन हुए। अनिल त्रिवेदी के संचालन में हुए कार्यक्रम में शबाना आजमी, शिवराम कारंत, एसआर हीरेमठ, बबलू गांगुली, स्वामी अग्निवेश, सुन्दरलाल बहु्गुणा, मेधा पाटकर, स्मितु कोठारी, ओमप्रकाश रावल, महेन्द्र कुमार, विनोद रैना के साथ देशभर के पर्यावरणविद्, सामाजिक कार्यकर्ता और वैकल्पिक राजनीति में लगे अनेक लोग शामिल थे।

सभा में मेनका गांधी और विद्याचरण शुक्‍ल भी पहुंचे थे, लेकिन सत्ता की राजनीति से परहेज रखने की मान्यता के चलते उनसे विनम्रता-पूर्वक मंच से उतरने का आग्रह किया गया। दिनभर गणमान्यों और बांध-प्रभावितों ने पर्यावरण और बडे बांधों से होने वाली आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हानियों के बारे में विस्तार से बताया। इस तरह के कार्यक्रमों का यह शुरुआती दौर था और इसीलिए सभी की बातें नई और भारी उत्सुकता जगाने वाली थीं।

‘संकल्प मेले’ की इस प्रक्रिया में एक जो सर्वाधिक महत्व‍पूर्ण बात हुई, वह थी–‘जन विकास आंदोलन’ का गठन। असल में बाबा आमटे और ओमप्रकाश रावल का आग्रह था कि हमें भी अब राष्ट्रीय स्तर पर ‘ग्रीन पार्टी’ की घोषणा कर देना चाहिए और उसके लिए ‘संकल्प मेले’ से बेहतर कोई अवसर नहीं हो सकता था। लेकिन बाबा और रावल जी की इस बात से कई लोगों की असहमति थी। उनका कहना था कि पार्टी गठित करने के पहले हमें आपस में एक-दूसरे की वैचारिक समझ, व्यापक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय माहौल का ज्ञान और राजनीति में उतरने की इच्छा पर बात कर लेनी चाहिए।

अंत में तय हुआ कि इस मौके का लाभ लेते हुए कम-से-कम एक गठबंधन तो बनाना ही चाहिए और नतीजे में ‘जन विकास आंदोलन’ का जन्म हुआ। ‘संकल्प मेले’ के बाद कुछ साल ‘जन विकास आंदोलन’ सक्रिय भी रहा, लेकिन फिर उसके सहभागी संगठनों-व्यक्तियों ने अपनी-अपनी जरूरतों, समझ और व्यक्तिगत महात्वाकांक्षाओं के चलते इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया से किनारा कर लिया। इस तरह इतिहास में दशक की एक महत्वपूर्ण घटना की तरह दर्ज हरसूद का ‘संकल्प मेला’ समाप्त हो गया और उसी के साथ नए हरसूद या छनेरा में तब्दील हो गया वह हरसूद, जो अपनी जीवन्तता, संघर्ष और आपसी भाई-चारे के लिए जाना-पहचाना जाता था।

अंत में रह गया वह मासूम बच्चा जिसने डूब क्षेत्र का दौरा करने आईं लेखिका अरुन्धती राय के यह पूछने पर कि तुम जंगल के फूल क्यों इकट्ठा कर रहे हो, जबकि यहां दूर-दूर तक कोई देवी-देवता नहीं हैं, कहा था कि फूल ‘कित्ते खबसूरत हैं न?!’ उम्मीद है कि अपने समय और समाज को डुबोने वालों को भी इस बच्चे जैसी समझ आ सके!!

External links

References

  1. East Nimar District Gazeteer by P N Shrivastav, 1969, p.47
  2. "Only 5696 families moved out of Harsud". OutlookIndia.
  3. Indian Antiquary, Vol. XX, pp. 310-11; Journal, Asiatic Society of Bengal, Vol. XXVIII, pp. 1 to 8; Inscriptions in the C. P. and Berar, p. 77.
  4. "Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293