Indra
Indra (इन्द्र), also known as Śakra in the Vedas, is the leader of the Devas or gods and the lord of Svargaloka or heaven in Hindu mythology. According to Pouranic myths, Indra is the god of rain and thunderstorms. He wields a lightning thunderbolt known as vajra (वज्र) and rides on a white elephant known as Airavata (ऐरावत). Indra is the supreme deity and is the brother of Varuna (वरुण) and Yama (यम) and is also mentioned as an Āditya (आदित्य), son of Aditi.
Mention by Panini
Indra (इन्द्र) is a term mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [1]
Kumarika Tirtha
Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 80 mentions Merit attached to tirthas. Kumarika (कुमारिक) (Tirtha) is mentioned in (III.80.97). [2]....There is then the tirtha of the Kumarikas (कुमारिक) (III.80.97) of Indra, that is much resorted to by the Siddhas. By bathing there, one obtaineth the region of Indra.
ऋग्वेद में इन्द्र
ऋग्वेद के प्राय: 250 सूक्तों में इन्द्र का वर्णन है तथा 50 सूक्त ऐसे हैं जिनमें दूसरे देवों के साथ इन्द्र का वर्णन है। इस प्रकार लगभग ऋग्वेद के चतुर्थांश में इन्द्र का वर्णन पाया जाता है। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इन्द्र वैदिक युग का सर्वप्रिय देवता था। इन्द्र शब्द की व्युत्पत्ति एवं अर्थ अस्पष्ट है। अधिकांश विद्वानों की सम्मति में इन्द्र झंझावात का देवता है। जो बादलों में गर्जन एवं बिजली की चमक उत्पन्न करता है। किन्तु हिलब्रैण्ट के मत से इन्द्र सूर्य देवता है। वैदिक भारतीयों ने इन्द्र को एक प्रबल भौतिक शक्ति माना जो उनकी सैनिक विजय एवं साम्राज्यवादी विचारों का प्रतीक है। प्रकृति का कोई भी उपादान इतना शक्तिशाली नहीं जितना विद्युत-प्रहार। इन्द्र को अग्निदेव का जुड़वाँ भाई कहा गया है जिससे विद्युतीय अग्नि एवं यज्ञवेदीय अग्नि का सामीप्य प्रकट होता है।
ऋग्वेद में अन्तरिक्ष स्थानीय 'इन्द्र' का वर्णन सर्वाधिक प्रतापी देवता के रूप में किया गया है, ऋग्वेद के क़रीब 250 सूक्तों में इनका वर्णन है। इन्हें वर्षा का देवता माना जाता था। उन्होंने वृक्ष राक्षस को मारा था इसीलिए उन्हें 'वृत्रहन' कहा जाता है। अनेक क़िलों को नष्ट कर दिया था, इस रूप में वे 'पुरन्दर' कहे जाते हैं। इन्द्र ने वृत्र की हत्या करके जल को मुक्त किया था इसलिए उन्हें 'पुर्मिद' कहा गया। इन्द्र के लिए एक विशेषण 'अन्सुजीत' (पानी को जीतने वाला) सम्बोधन भी आता है। इन्द्र के पिता 'द्योंस' हैं, 'अग्नि' उसका यमज भाई है और 'मरुत' उसका सहयोगी है। विष्णु के वृत्र के वध में इन्द्र की सहायता की थी। ऋग्वेद में इन्द्र को समस्त संसार का स्वामी बताया गया है। उसका प्रिय आयुद्ध 'बज्र' है इसलिए उन्हें 'ब्रजबाहू' भी कहा गया है। इन्द्र कुशल रथ-योद्धा (रथेष्ठ), महान विजेता (विजेन्द्र) और सोम का पालन करने वाला 'सोमपा' है। इन्द्र तूफ़ान और मेघ के भी देवता है । एक शक्तिशाली देवता होने के कारण इन्द्र का 'शतक्रतु' (एक सौ शक्ति धारण करने वाला) कहा गया है, वृत्र का वध करने का कारण 'वृत्रहन' और 'मधवन' (दानशील) के रूप में जाना जाता है। उनकी पत्नी इन्द्राणी अथवा शची (ऊर्जा) हैं। प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में इन्द्र के साथ कृष्ण के विरोध का उल्लेख मिलता है।
इंद्रप्रस्थ
विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है कि....इंद्रप्रस्थ वर्तमान नई दिल्ली के निकट पांडवों की बसाई हुई राजधानी थी. महाभारत आदि पर्व में वर्णित कथा के अनुसार प्रारंभ में धृतराष्ट्र से आधा राज्य प्राप्त करने के पश्चात पांडवों ने इंद्रप्रस्थ में अपनी राजधानी बनाई थी. दुर्योधन की राजधानी लगभग 45 मील दूर हस्तिनापुर में ही रही. इंद्रप्रस्थ नगर कोरवों की प्राचीन राजधानी खांडवप्रस्थ के स्थान पर बसाया गया था--
'तस्मातत्वं खांडवप्रस्थं पुरं राष्ट्रं च वर्धय, ब्राह्मणा: क्षत्रिया वैश्या: शूद्राश्च कृत निश्चया:। त्वदभ्क्त्या जंतग्श्चान्ये भजन्त्वेव पुरं शुभम्' महाभारत आदि पर्व 206
अर्थात धृतराष्ट्र ने पांडवों को आधा राज्य देते समय उन्हें कौरवों के प्राचीन नगर वह राष्ट्र खांडवप्रस्थ को विवर्धित करके चारों वर्णों के सहयोग से नई राजधानी बनाने का आदेश दिया. तब पांडवों ने श्री कृष्ण सहित खांडवप्रस्थ पहुंचकर इंद्र की सहायता से इंद्रप्रस्थ नामक नगर विश्वकर्मा द्वारा निर्मित करवाया--'विश्वकर्मन् महाप्राज्ञ अद्यप्रभृति तत् पुरम्, इंद्रप्रस्थमिति ख्यातं दिव्यं रम्य भविष्यति' महाभारत आदि पर्व 206.
इस नगर के चारों ओर समुद्र की भांति जल से पूर्ण खाइयाँ बनी हुई थी जो उस नगर की शोभा बढ़ाती थीं. श्वेत बादलों तथा चंद्रमा के समान उज्ज्वल परकोटा नगर के चारों ओर खींचा हुआ था. इसकी ऊंचाई आकाश को छूती मालूम होती थी--
[पृ.76]: इस नगर को सुंदर और रमणीक बनाने के साथ ही साथ इसकी सुरक्षा का भी पूरा प्रबंध किया गया था तीखे अंकुश और शतघ्नियों और अन्यान्य शास्त्रों से वह नगर सुशोभित था. सब प्रकार की शिल्प कलाओं को जानने वाले लोग भी वहां आकर बस गए थे. नगर के चारों ओर रमणीय उद्यान थे. मनोहर चित्रशालाओं तथा कृत्रिम पर्वतों से तथा जल से भरी-पूरी नदियों और रमणीय झीलों से वह नगर शोभित था.
युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ इंद्रप्रस्थ में ही किया था. महाभारत युद्ध के पश्चात इंद्रप्रस्थ और हस्तिनापुर दोनों ही नगरों पर युधिष्ठिर का शासन स्थापित हो गया. हस्तिनापुर के गंगा की बाढ़ से बह जाने के बाद 900 ई. पू. के लगभग जब पांडवों के वंशज कौशांबी चले गए तो इंद्रप्रस्थ का महत्व भी प्राय समाप्त हो गया. विदुर पंडित जातक में इंद्रप्रस्थ को केवल 7 क्रोश के अंदर घिरा हुआ बताया गया है जबकि बनारस का विस्तार 12 क्रोश तक था. धूमकारी जातक के अनुसार इंद्रप्रस्थ या कुरूप्रदेश में युधिष्ठिर-गोत्र के राजाओं का राज्य था. महाभारत, उद्योगपर्व में इंद्रप्रस्थ को शक्रपुरी भी कहा गया है. विष्णु पुराण में भी इंद्रप्रस्थ का उल्लेख है.
आजकल नई दिल्ली में जहाँ पांडवों का पुराना किला स्थित है उसी स्थान के परवर्ती प्रदेश में इंद्रप्रस्थ की स्थिति मानी गई है. पुराने किले के भीतर कई स्थानों का संबंध पांडवों से बताया जाता है. दिल्ली का सर्वप्रचीन भाग यही है. दिल्ली के निकट इंद्रपत नामक ग्राम अभी तक इंद्रप्रस्थ की स्मृति के अवशेष रूप में स्थित है.
See also
External Links
References
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.356, 394
- ↑ कुमारिकाणां शक्रस्य तीर्थं सिद्धनिषेवितम, तत्र सनात्वा नरः कषिप्रं शक्र लॊकम अवाप्नुयात (III.80.97)
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.75-76
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