Kala Ram Godara
Kala Ram Godara (death: savanbadi 4, samvat 2015 = 1958 AD) was freedom fighter who lost his life in struggle against Jagirdars in year 1958. He was from - village Bhatala in tahsil Gudha Malani of Barmer district in Rajasthan.
जुझार भोमिया कलाराम जी गोदारा
बात आजादी करीब 11 वें साल और लोलावा के पास भाटाला गाँव की है। वैसाख की तपती दुपहरी में आखातीज पर कुछ किसान अपनी ढाणी में बैठे सुगन पर चर्चा कर रहे थे, कोचरी ने अच्छे सुगंध दिए। जेठ के आते ही पहले पखवाड़े में मूसलाधार बारिश हुई, किसान भाइयों ने अच्छे जमाने की आस में खेतों में बेलों की जोड़ी लेकर गए और हल जोते। ईश्वर की दया और मेहरबानी से जल्द ही बारिश से अच्छी फसल लग गई। "भेळा रा भाउड़ा मोती निपजै" कहावत से फ़सल जोर थी लेकिन एक समस्या थी कि टुकीया के ठाकरों के मवेशी रात को खेतों में आ जाते और निदाण करी हुई बाजरी, मोठ और धान की फसल खराब कर देतें, गाँव के मौजिज लोगों ने कई बार ठाकर को शिकायत की लेकिन ठाकुर के कान के पीछे जु नही रेंगी। लोगों ने थक हार कर टुकीया - भाटाला मार्ग पर लकड़ी का गेट लगा दिया।
जब यह बात टुकीया ठाकर को पता चली तो उन्होंने अपने आदमियों को भेज कर उस गेट में आग लगवा दी, जब यह बात भाटाला के लोगों को पता चली तो उन्होंने तय किया कि अब अनीति का अंत करना ही होगा और पुलिस में रिपोर्ट करवाने का निश्चय किया लेकिन ठाकर के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने थाने कौन जाए ? तब "जाट जोधर" गोदारा कल्लाराम जी ने कहा कि रिपोर्ट लिखवाने में गुड़ामालानी थाने जाऊंगा। कुछ लोगों ने समझाया कि "कलाराम जी ठाकर के खिलाफ थाने जाना मतलब मौत को बुलावा देना है, अपने अकेलो के क्या जरूर है आप मत जाओ।" लेकिन कलाराम ने कहा कि "जाट जुबान दे पचे नटे कोयनी, जाणो मतलब जाणो।" ऐसा कहकर जाट जुझार ऊँट पर चढ़ कर रवाना हो गया।
कलाराम जी सावन बदी 4 संवत 2015 (1958 ई.) को ऊंट पर चढ़कर भाटाला से गुड़ामालानी के लिए रवाना हो गए. जब यह बात टुकीया के ठाकरों को पता चली तो वे गुस्सा हो गए. ठिकाने जाने का मलाल तो था ही और ऊपर से लोगों में भी ठाकरों का भय कम होना शुरू हो गया तो उनकी अंतिम तड़फ के रूप में उन्होंने कलाराम जी का पीछा करना शुरू किया। कलाराम नगर से 10 किलोमीटर पहले जालिखेड़ा की सरहद में पहुंचे तब तक ठाकर भी उनके पीछे का गए और ठाकरों ने अकेले और निहत्थे जाट जोधार कलाराम जी हमला कर दिया और अपनी कायरता का परिचय दिया। इस हमले में कलाराम जी शहीद हो गए और जग अपना नाम कमा गए। जब इस घटना की जानकारी मालानी महामना चौधरी रामदान जी को पता चली तो वे तुरंत प्रभाव से जालिखेड़ा पहुंचे और हत्यारों को सजा दिलवाई।
इस घटना के बाद से भाटाला व आस-पास के लोगों ने जाट जोधार गोदारा कलाराम जी "झुंझार" को अपना देवता मान उनके घटना स्थल पर छतरी बनाकर उनकी स्मृति को अपनी जेहन में जिंदा रखा।
आज भी जालिखेड़ा से थोड़ा आगे मेगा हाइवे पर जाट जोधार श्री कलाराम जी जुंझार की छतरी बनी हुई है एवं आप - पास के क्षेत्र के लोगों के आराध्य के रूप में जिंदा हैं। पिछले दिनों किसी कारणवश गुड़ामालानी जाना हुआ तो जाट जोधार की छतरी देखकर रुका, उनको नमन कर कुछ छायाचित्र लिए जो आज आपके साथ साझा कर रहा हूँ।
सर छोटूराम ने कहा था कि "जो क़ौम अपना इतिहास नहीं जानती, वो कौम ज्यादा नहीं चल सकती।" इसलिए हमें अपने इतिहास से जुड़ा रहना चाहिए।
लेखक : जीवराज सेंवर प्रभारी, जाट समाज सामान्य ज्ञान परीक्षा
चित्र गैलरी
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कलाराम गोदारा की प्रतिमा जालिखेड़ा बाड़मेर
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कलाराम गोदारा स्मारक जालिखेड़ा बाड़मेर
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कलाराम गोदारा चित्रकथा
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कलाराम गोदारा स्मारक जालिखेड़ा बाड़मेर