Kantaraka
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Kantaraka (कांतारक) was a country mentioned in Mahabharata which was defeated by Sahadeva on his victory march to the south.
Origin
Variants
History
In Mahabharata
Kantaraka (कान्तारक) in Mahabharata (II.28.10)/2-32-14a)
Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 28 mentions Sahadeva's march towards south: kings and tribes defeated. Kantaraka (कान्तारक) is mentioned in Mahabharata (II.28.10)/(2-32-13a).[1].....After Avanti, the hero (Sahdeva) marched towards the town of Bhojakata and there, a fierce encounter took place between him and the king of that city for two whole days. But the son of Madri (Sahdeva), vanquishing the invincible Bhismaka, then defeated in battle the king of Kosala and the ruler of the territories lying on the banks of the Venwa, as also the Kantarakas and the kings of the eastern Kosalas. The hero (Sahdeva) then defeating both the Natakeyas and the Herambakas in battle, and subjugating the country of Marudha, reduced Ramyagrama by sheer strength.
कांतारक
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...कांतारक (AS, p.158) महाभारत सभा पर्व 31,13 में सहदेव की दिग्विजय यात्रा के प्रसंग में इस प्रदेश का उल्लेख है-- 'कांतारकांश्चसमरे तथा प्राक्कोसलान् नृपान् नाटकेयांश्च समरे तथा हैरम्बकान् युधि'. कांतारक अवश्य ही गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में वर्णित महाकांतार है जहां के अधिपति व्याघ्रराज को समुद्रगुप्त ने परास्त किया था. महाकांतार मध्य प्रदेश/छत्तीसगढ़ के पूर्वोत्तर भाग में स्थित जंगली भूखंड का प्राचीन नाम था (कांतार = घना जंगल). इसमें भूतपूर्व जसो रियासत सम्मिलित थी.
प्राक्कोसल
विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ....प्राक्कोसल (AS, p.590): महाभारत में सहदेव की दिग्विजय यात्रा के प्रसंग में प्राक्कोसल पर उनकी विजय का उल्लेख है, ' 'कांतारकांश्चसमरे तथा प्राक्कोसलान् नृपान् नाटकेयांश्च समरे तथा हैरम्बकान् युधि'. सभापर्वा 31,13. प्राक्कोसल या पूर्व कोसल का अधिक प्रचलित नाम दक्षिण कौसल (वर्तमान महाकोसल) है. इसमें छत्तीसगढ़ के रायपुर और बिलासपुर जिले तथा परिवर्ती प्रदेश सम्मिलित थे. कांतारक या विंध्या का वन्य प्रदेश इसके पड़ोस में स्थित था.
महाभारत मे भी इस क्षेत्र का उल्लेख सहदेव द्वारा जीते गए राज्यों में प्राक्कोसल के रूप में मिलता है। बस्तर के अरण्य क्षेत्र को कान्तार के नाम से जाना जाता था। कर्ण द्वारा की गई दिग्विजय में भी कोसल जनपद का नाम मिलता है।[4]
External links
See also
References
- ↑ कान्तारकांश्च समर तथा प्राकोटकान्नृपान्। 2-32-14a नाटकेयांश्च समरे तथा हेरम्बकान्युधि।। 2-32-14b
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.158
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.590
- ↑ http://gyyanvilla.blogspot.com/2017/12/history-of-ancient-chhattisgarh.html