Kheti-Kisani Aur Krishi Kanunon Ki Jamini Hakikat

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लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, IFS (R)

खेती-किसानी और कृषि कानूनों की ग्राउंड रिपोर्ट--
[गांव ठठावता (रतनगढ़) जिला चूरु राजस्थान की केस स्टडी]
बाजरे के सीटे की पूंजळी
यह बिरमसर का मतीरा है जो मुकंदाराम जी नेहरा ने भेंट किया

राजस्थान में इस समय खेती की फसलें पकने की तरफ अग्रसर हो रही है। खेती में मुख्य रूप से बाजरा, मूंग, मोठ, ग्वार, चंवला, तिल आदि हैं। काकड़ी-मतीरा फल के रूप में और काचरा, लोया, टींडसी, ग्वार-फली, मोठ और चवला की फली सब्जी के रूप में मिलती हैं। चूरू और बीकानेर जिलों का मतीरा टेस्ट में स्वादिष्ट होता है। महाकवि श्री कन्हैयालाल सेठिया ने सही कहा है- 'आ माटी मोठ मतीरां री, आ धूणी ध्यानी धीरां री, आ साथण काचर बोरां री, आ मरवण लूआं लोरां री'। राजस्थान में घूमने और खाने-पीने के लिए यह सबसे अच्छा मौसम है। इसलिए प्रतिवर्ष इसी सीजन में मैं गांव का प्रवास जरूर करता हूं। पिछले वर्ष कोरोना प्रकोप के कारण गांव जाकर खेती-किसानी नहीं देख पाया था। इस वर्ष 2021 में अभी गाँव का प्रवास हो पाया जिसके आधार पर खेती-किसानी और कृषि कानूनों की जमीनी हकीकत पर यह लेख प्रस्तुत है।

खेती-बाड़ी का निरीक्षण और किसानों से चर्चा:11.9.2021

पिछले सप्ताह में मैं अपने गांव में था। खेतों में भी गया। खेती-किसानी की वर्तमान स्थिति से रूबरू हुआ। दिनांक 11.9.2021 को मेरे गाँव ठठावता (रतनगढ़) जिला चूरु राजस्थान में खेती-बाड़ी का निरीक्षण किया। 11.9.2021 को सुबह-सबह मेरे बचपन के मित्र बृजलाल पूनिया मेरे घर आए और आमंत्रित किया कि भाई साहब आज हमारे खेत में जरूर आना आपको खेती-बाड़ी दिखाएंगे तथा स्थानीय मौसमी फल मतीरा और काकड़ी खिलाएंगे। शीघ्र ही तैयार होकर श्रीमती गोमती बुरड़क और मैं फूल सिंह पूनिया के साथ उनकी जीप से रवाना हुये। सबसे पहले बृज लाल पूनिया के खेत में पहुँचे। बृज लाल ने मतीरों से हमारा स्वागत किया। उनमें से एक मतीरा सफ़ेद रंग का था जिसको बामणीया मतीरा कहा जाता है। यह नाम क्यों पड़ा यह अनुसंधान का विषय है। संभवत: यह राज जानकार हम मतीरे का इतिहास भी जान पायेंगे। बृजलाल पूनिया ने अपने खेत में 2021 में सोलर सिस्टम लगाया है। सरकार की ओर से ये सोलर पंप 60 प्रतिशत सब्सिडी पर लगवाये गए हैं। बहुत अच्छी पैदावार है। उसने अपने खेत में सभी मानसूनी फसलें बो रखी हैं यथा – बाजरा, मूंग, मोठ, चंवला, ग्वार आदि। बृज लाल ने दो मतीरे जयपुर ले जाने के लिए भेंट भी किए जो हमने जयपुर आकर खाये। मतीरे बहुत स्वादिष्ट निकले। बृज लाल का खेत गाँव की आखिरी सीमा से लगा है। उसके आगे सीकर जिला प्रारंभ हो जाता है।

लौटते में हम हरदयाल बुरड़क के खेत में रुके। हरदयाल बुरड़क सेवानिवृत फौजी हैं जो श्रीलंका शान्ति अभियान में पराक्रम दिखा चुके हैं। अक्टूबर 1987 में श्रीलंका सरकार लिट्टे उग्रवादियों के समक्ष असहाय महसूस करने लगी थी तब भारत से सैनिक सहायता मांगी। उग्रवादियों को खदेड़ने का दायित्व भारतीय सेना को मिला था। भारतीय सेना ने इस अभियान का नाम रखा था 'ऑपरेशन पवन' जो पवनसुत हनुमान के पराक्रम का प्रतीक था। हरदयाल बुरड़क ने काफी मतीरे, काकड़ी और सब्जिया जयपुर ले जाने के लिए बड़े प्रेम से भेंट किए। हरदयाल के खेत से ही लगा मेरा खेत भी है। इस वर्ष मैंने खेत में मूंग बोया है जिसकी अच्छी फसल हुई है। मेरे मूंग के खेत से लगा मेरा दूसरा खेत है जो मूला राम मेघवाल को चराई के लिए दे रखा है। इसके बाद फूल सिंह पूनिया के खेत में गए जिसमें इस वर्ष मूंग और चवला की बहुत अच्छी फसल हुई है।

फील्ड निरीक्षण के बाद गाँव में किसानों की स्थिति पर एक सामाजिक-आर्थिक मूल्यांकन किया। ग्रामीण किसानों से चर्चा कर जाना कि केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों पर उनकी क्या राय है। राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे किसान आंदोलन से लेकर गाँव के किसानों से सीधा संवाद कर खेती-किसानी और कृषि कानूनों की जमीनी हकीकत पर हम एक मोटी-मोटी तस्वीर इस लेख में प्रस्तुत करेंगे।

किसान आन्दोलन-2020

किसान आन्दोलन-2020

किसान आन्दोलन-2020: देश में किसान सरकार के खिलाफ पिछले एक वर्ष से आंदोलनरत हैं। सरकार ने सितंबर 2020 में तीन कृषि कानूनों के रूप में किसान को कड़वी गोली देने की ठान ली थी। उधर किसानों का कहना है कि यह गोली कड़वी है हम इसको खाना नहीं चाहते और यह हमारे स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। कालांतर में यह घातक सिद्ध होने वाली है। सरकार कहती है आप को पता नहीं यह गोली मीठी है आप खालो आपका पूरा भला हो जाएगा। किसानों को ये कानून रास नहीं आ रहे हैं। उनका कहना है कि इन कानूनों से किसानों को नुकसान और निजी खरीदारों व बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा। देश की जनता निरपेक्ष भाव से देख रही है यद्यपि परेशानी भी हो रही है। किसी को पता नहीं यह गतिरोध कब ख़त्म होगा और कब ये किसान अपने घर जाकर खेती-किसानी में लग सकेंगे!

पिछली अर्ध सदी में किसान-स्मृद्धि के कारक

पिछली अर्ध सदी में किसान स्मृद्धि के कारक : शहरी जनता समझती है खेती बहुत लाभ का धंधा है। टीवी में हरे-भरे खेत देखकर थ्रिल अनुभव करते हैं। सवाल उठता है अगर ऐसा ही होता तो किसान इतने लंबे समय से आंदोलन क्यों करते? किसान आंदोलन को ध्यान में रखते हुये मैं जब गांव गया तो विचार आया कि क्यों नहीं पिछले 50-60 वर्ष की खेती-किसानी की समीक्षा कर ली जाए। मैं मेरे गांव नियमित रूप से जाता रहता हूँ और लगभग सभी परिवारों की आर्थिक स्थिति, उनकी खेती, नौकरी आदि से आय के बारे में जानता हूं। यह सही है कि गाँव में पिछले 50-60 वर्ष में स्मृद्धि आई है और विकास हुआ है। किसान का जीवन स्तर सुधरा है। आज गाँव में सभी मकान पक्के हैं और गाँव सड़क से जुड़ गया है। बिजली-पानी की सुविधा भी हो चुकी हैं। गाँव की जमीनी हकीकत जानने के लिए कृषि पर कोई अच्छी पुस्तक पढ़ने की आवश्यकता नहीं है या किसी एक्सपर्ट की राय जानने की आवश्यकता नहीं है। आप खुद यह समीक्षा पढ़कर निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि इस अवधी में किसान की क्या स्थिति हुई है और किसान की स्मृद्धि के क्या कारण रहे।

वर्ष 2021 में मेरे गांव ठठावता,तहसील रतनगढ़, जिला चूरु में खेती की स्थिति बहुत अच्छी है। कुछ दिन पहले तक गाँव के किसानों के चेहरे मुरझाए हुए थे परंतु सितंबर माह के प्रथम सप्ताह की ही वर्षा ने किसानों की रौनक लौटा दी। यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि यही अच्छी स्थिति आखिर तक बनी रहेगी। इस क्षेत्र की खेती पूरी वर्षा पर निर्भर है इसलिए इंद्रदेव मेहरबान हो जाएं तो खेती हो जाए और उसी पर निर्भर करता है किसान का अगले साल का इन्वेस्टमेंट प्लान और विवाह शादियां आदि का आयोजन। सौभाग्य से कोरोना की महामारी खेती को उतना प्रभावित नहीं कर सकी जितना व्यापार और उद्योग-धंधों को प्रभावित किया है। यद्यपि कोरोना ने सभी को अपना पैतृक गाँव और कृषि भूमि का महत्व जरूर याद दिला दिया की मुझे कभी भूलना मत!

सामाजिक-आर्थिक समीक्षा के लिए 4 श्रेणियाँ

सामाजिक-आर्थिक समीक्षा के लिए 4 श्रेणियाँ : मैंने किसान की सामाजिक-आर्थिक समीक्षा के लिए ठठावता गाँव के 4 श्रेणी के परिवारों को चुना जिनकी गांव में 50-60 वर्ष पहले लगभग एक जैसी आर्थिक स्थिति थी जो पूर्ण रूप से खेती पर निर्भर थे और जिनके पास आय का अन्य कोई जरिया नहीं था। इन परिवारों में उस समय कोई नौकरी करने वाला नहीं था। परिवार के सभी सदस्य खेती करते थे। इन परिवारों को वर्तमान में पूरक आय के आधार पर 4-श्रेणियों में विभाजित किया है। उन परिवारों की वर्तमान (अर्थात 2021 में ) आर्थिक स्थिति कैसी है यह जानने के लिए मैंने इन परिवारों के खेत या कार्यस्थल पर जाकर देखने का निर्णय लिया और इनसे चर्चा की। चर्चा में तीन नए कृषि कानूनों के किसानों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में भी राय ली गई।

श्रेणी-1 (पूर्णत: खेती पर निर्भर)

11.9.2021 को बृजलाल पूनिया के साथ उनके खेत में लक्ष्मण बुरड़क। बृज लाल ने मतीरों से हमारा स्वागत किया

श्रेणी-1 (पूर्णत: खेती पर निर्भर): बृजलाल पूनिया (66 बिघा कृषि भूमि का मालिक) – 11.9.2021 को सुबह-सबह बृजलाल मेरे घर आए और आमंत्रित किया कि भाई साहब आज हमारे खेत में जरूर आना आपको मतीरा और काकड़ी खिलाएंगे। वह जल्दी में थे क्योंकि पशुओं को चराने के लिए खेत में ले जाना था। श्रीमती गोमती बुरड़क को साथ लेकर मैं और फूल सिंह पूनिया सबसे पहले बृजलाल पूनिया के खेत में पहुँचे।

बृज लाल का खेत टुकड़ों में नहीं बटा हुआ है बल्कि पूरा खेत एक ही जगह स्थित है जिससे देखरेख और प्रबंधन आसान हो जाता है। उसने अपने खेत में सभी मानसूनी फसलें बो रखी हैं यथा – बाजरा, मूंग, मोठ, चंवला, ग्वार आदि। फसल की स्थिति बहुत अच्छी है। उसके खेत में अर्ध सदी पहले से ही वर्षा जल संचय के लिए पक्का कुण्ड बना हुआ है। इस कुण्ड का मीठा पानी पीकर हम बड़े हुये हैं। उल्लेखनीय है कि हमारे गाँव में कुओं का पानी खारा है और पीने के लायक नहीं है। उस समय पक्का कुण्ड केवल स्मृद्ध किसान ही बना सकते थे। इस वर्ष बृज लाल ने गर्मी में सिंचाई के लिए सोलर सिस्टम लगाया है।

बृजलाल पूनिया ने सन 1971 में मेरे साथ रहकर रतनगढ़ में नौवीं कक्षा की पढ़ाई की थी। मैंने 11 वीं पास की थी और उसने नवी पास की। वह पढ़ने में बहुत होशियार था। व्यक्तित्व उसका बहुत स्मार्ट था। बातचीत में मुझसे होशियार था। शाम को रोज जब हम पढ़ने बैठते थे तो वह दिनभर की हमारी स्कूल की खबरें एक खोजी पत्रकार की तरह देता था। रतनगढ़ में मेरे ताऊजी श्री मालीराम जी बुरड़क की खाली हवेली में रहकर हम दोनों पढ़ाई किया करते थे। हमारे पास समय देखने के लिए घड़ी नहीं थी इसलिये लालटेन में 4 टेस्ट ट्यूब केरोसिन तेल डालते थे जो रात 11 बजे तक चलता था। तेल ख़त्म होते ही हम सो जाते थे। सुबह स्कूल जाने के लिए हवेली की छाया देख कर स्कूल जाया करते थे। इस तरह समय का मानकीकरण हमने स्वयं विकसित कर रखा था।

मैंने ग्यारहवीं के बाद नवलगढ़ में पोदार कॉलेज से बीएससी करने का निर्णय लिया। मेरे आने के बाद बृजलाल ने दसवीं प्रथम श्रेणी से कर ली परंतु दसवीं करते ही उसने एक निर्णय लिया कि मैं मेरे पिताज की सेवा करूंगा और वैज्ञानिक आधार पर खेती करूंगा। उसकी सोच का आधार उस समय बहुत ठोस प्रतीत हो रहा था क्योंकि वह आज भी बड़ा लॉजिकली और वैज्ञानिक आधार पर ही बात करता है। साथ में जो चित्र है उसमें बुजुर्ग सा दिखने वाला तरबूज लिए मेरे साथ बृजलाल है। इस वर्ष उसने गर्मी में सिंचाई के लिए सोलर सिस्टम लगाया है जिसका फायदा उसने तत्काल ले भी लिया। पिछले दिनों की बारिश जब नहीं हुई थी, सभी फसलें सूख रही थी तो उसने तत्काल सोलर पंप का प्रयोग करते हुए सिंचाई कर दी। सरकार की ओर से ये सोलर पंप 60 प्रतिशत सब्सिडी पर लगवाये जा रहे हैं। उसका बाजरे का खेत साथ में फोटो में दिख रहा है। बहुत अच्छी पैदावार देगा।

उसकी वैज्ञानिक सौच का पता इस बात से लगता है कि जब सोलर पंप के लिए ड्रिलिंग हो रही थी तो उसने अनेक स्तरों पर पानी की गुणवत्ता की जाँच स्वयं की और निष्कर्ष निकाला कि प्रारम्भिक 10-15 फीट गहराई तक पानी खारा था, जो पीने और सिंचाई के लिए अनुपयुक्त था। उस गहराई तक ड्रिलिंग करवाई जहाँ सबसे मीठा पानी आया। पानी का टेस्ट मैंने भी पीकर किया और पाया कि गाँव के खारे पानी से बिल्कुल भिन्न था और मीठा भी था।

क्या बृजलाल का 5 दशक पहले लिया गया निर्णय सही था? यह एक विचारणीय विषय है! इस तरह के निर्णय जिंदगी के टर्निंग पॉइंट होते हैं जो हर व्यक्ति के जीवन में आते हैं। यदि वह स्कूल नहीं छोड़ता और आगे पढ़ाई जारी रखता तो वह प्रथम श्रेणी के अधिकारी का पद अवश्य पाता क्योंकि उससे कमजोर सहपाठी भी प्रथम श्रेणी का पद पाने में सफल रहे हैं। उसने स्कूल छोड़ने के बाद जिंदगी से बहुत संघर्ष किया क्योंकि खेती किसानी में आमदनी क्या होती है यह तो उसने खेती करके ही जाना। गाँव में रहने के कारण और सुविधाओं के अभाव में बच्चों को भी अच्छी शिक्षा नहीं दिला पाया। उसने न केवल विपरीत आर्थिक परिस्थितियों का मुकाबला किया बल्कि खुद ने व्यक्तिगत तनाव जो झेला उसकी स्थिति भी साथ के चित्र में देखी जा सकती है और तुलना की जा सकती है। वह मुझ से 2 साल छोटा है। 65 वर्ष का होते हुये भी उम्र 80 से अधिक लगती है।

बृज लाल को देखकर किसान की स्थिति पर महाकवि श्री कन्हैयालाल सेठिया की ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं - 'हाड़ मांस चाम गाळ, खेत में पसेव सींच, लू लपट ठंड मेह, सै सवै दांत भींच, फ़ाड़ चौक कर करै, करै जोतणी'र बोवणी'। किसान की यह स्थिति देश के नीति-निर्धारकों के लिए एक गंभीर मुद्दा होना चाहिए। कोई भी सरकार फसलों की न्यूनतम कीमत (MSP) तय करते समय किसान और उसके पूरे परिवार के श्रम और उसके तनावों से होने वाले कष्टों पर विचार नहीं करती है! खेती-किसानी और पशुपालन के बोझिल काम से किसान की काया पर होने वाले कुप्रभावों का कोई आंकलन नहीं किया जाता है।

कृषि सुधारों और नए कृषि कानूनों पर बृज लाल पूनिया की राय: तीन नए कृषि कानूनों के किसानों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बृज लाल ने बताया कि मेरे जैसे किसान के लिए ये कानून घातक हैं। नए कृषि कानून तो किसान के पैर काट रहे हैं। नए कृषि कानून पूंजीवाद को बढ़ावा दे रहे हैं और देश समाजवाद और प्रजातंत्र के रास्ते से हथकर पूंजीवाद की ओर बढ़ रहा है। राजशाही का स्थान अब बड़े औद्योगिक घराने ले रहे हैं। देश की खेती-किसानी और किसान को बचाना है तो सरकार को हर कृषि उत्पाद का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित करना चाहिए और यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि यह उचित मूल्य उसको अपने गाँव में ही मिल सके। बृज लाल बताते हैं कि कृषि के जिन आइटमों का MSP निर्धारित है वह भी तो किसान को नहीं मिल रहा है। पहले तो हमारे यहाँ इतना सरप्लस उत्पादन नहीं होता कि बेच सकें। फिर भी समाज और परिवार के अन्य कामों के लिए धन जुटाने वास्ते अनाज की कुछ बोरियां हमें बेचनी पड़ती हैं। हम पिकअप करके सरप्लस अनाज को मंडी में ले जाते हैं। वहां पर दो-तीन दिन तक हमें रोक लेते हैं। पिकअप का किराया लगता है। बाद में मंडी में गुणवत्ता के आधार पर कीमत में काट-छांट कर देते हैं ।इस प्रकार इस व्यवस्था में कुल मिलाकर हमें घाटा ही होता है। इससे तो यही व्यवस्था अच्छी है कि छोटे व्यापारी खेत में आकर हमारा अनाज खरीद लेते हैं। भले ही वह हमें 100 रु. कम कीमत दे परंतु इससे किसान बहुत सी परेशानी से बच जाता है।

नए कृषि कानून बनाने के तरीकों पर बृज लाल का कहना है कि सरकार को किसानों से चर्चा करके कानून बनाने चाहिए। आज किसान की हालत बहुत खराब है। गांव में सैकड़ों की संख्या में आवारा पशु घूम रहे हैं। इनसे बचाव के लिए किसान को लाखों रुपए के तार और एंगल लगाकर बचाव करना पड़ता है फिर भी 'रोझ' (नीलगाय) इन तारों के ऊपर से भी कूद कर खेत में घुस जाते हैं। यह समस्या पिछले कुछ वर्षों में बढ़ गई है। सरकार को इस तरफ ध्यान देकर किसान को जीवनदान देना चाहिए और किसानों की मूलभूत समस्याओं को हल करना चाहिए।

बृज लाल पूछता है - किसान जब बाजार में तेल खरीदने जाता है तो हर बार उसका दाम बढ़ा हुआ मिलता है परंतु किसान के पास जो तिल रखा हुआ है उसका भाव तो बढ़ता ही नहीं है फिर तेल का भाव क्यों बढ़ रहा है?

बृजलाल जनप्रतिनिधियों और नेताओं के प्रति बहुत गुस्से में हैं। वे नेताओं को ‘मंगता’ (भिखारी) कहते हैं और कहते हैं कि वह मंगता एक बार आकर झूठ बोलकर और भीख मांग कर वोट ले लेता है और पूरे 5 साल मालिक बन जाता है। हम काम के लिए उस नेता के पास जाते हैं तो मिलते नहीं हैं। ये कैसे जन सेवक हैं? ऐसे लोगों को पेंशन क्यों दी जाए?

ग्रामीण विकास पर बृज लाल का कहना है कि गांव में पंचायत चुनाव ने समाज में आपस में विरोध खड़ा कर दिया है। पंचायतें भ्रष्टाचार का अड्डा बन गई हैं। सरकार मनरेगा की योजना चलाती है उसमें कुछ ठोस काम होता नहीं है और पैसा वास्तव में बर्बाद होता है और उसकी बंदर-बाट हो जाती है। इस तरह के अस्थाई कार्यों की जगह क्यों न इसी धनराशि से गाँव में स्थाई संपत्तियों का निर्माण किया जाए?

सोलर सिस्टम पर सब्सिडी के बारे में बताते हैं कि इसमें किसान को कागज में तो 40% कीमत ही देनी पड़ती है और 60% सब्सिडी है परंतु वास्तव में बीच के ठेकेदार इस व्यवस्था का भी बहुत दुरुपयोग कर रहे हैं। गुणवत्ता के उपकरण नहीं लगा रहे हैं जो गारंटी पीरियड से पहले ही खराब हो जाते हैं। शासन की जन हितैषी योजनाओं पर पर्याप्त नियंत्रण नहीं है। वास्तव में किसान को इन योजनाओं से वांछित लाभ नहीं मिल रहा है।

श्रेणी-2 (खेती के साथ छोटी नौकरी)

फूल सिंह पूनिया स्वयं के खेत में - इस वर्ष मूंग और चंवला की अच्छी फसल हुई है

श्रेणी-2 (खेती के साथ छोटी नौकरी): फूल सिंह पूनिया (15 बिघा कृषि भूमि का मालिक) - फूल सिंह पूनिया गांव में ठीक मेरे पड़ोसी हैं और मेरे पास नियमित आना-जाना होता है। विचार उनके थोड़े क्रांतिकारी हैं। सही बात के लिए किसी से भी लड़ने के लिए तैयार हो जायेंगे। फूल सिंह ने दैनिक वेतन भोगी के रूप में राजस्थान भेड़-ऊन विभाग में नौकरी शुरू की। राजस्थान उच्च न्यालय के निर्णय के तहत समस्त दैनिक वेतन भोगी नियमित हो गए जिनमें फूल सिंह भी था। उनके एक लड़का है हरीराम, जो वेटरनरी कंपाउंडर है और अच्छा कमाता है। फूल सिंह सेवानिवृत होकर आराम से रह रहे हैं। आने जाने के लिए अपनी जीप रखते हैं। गाँव में कोई गरीब को अस्पताल पहुँचाना हो तो उसको भी फ्री सेवा देते हैं। शहर में रहकर नौकरी की और बच्चे को ठीक से पढ़ा सके। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई है। गांव में बहुत अच्छा मकान बना रखा है और बहुत सुखी है। नौकरी भले ही छोटी हो परन्तु कृषि के साथ नौकरी होने से कृषि पर निर्भरता कम हो गई है और कभी अभाव की स्थिति नहीं बनी।

नए कृषि कानूनों पर फूल सिंह भी बृज लाल पूनिया की राय से सहमत हैं। तीन नए कृषि कानूनों के बारे में फूल सिंह की राय है कि ये किसानों के लिए सही नहीं हैं इसलिए वापस होने चाहिए और न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानून में गारंटी दी जानी चाहिए।

इसी श्रेणी में गाँव में फौज में नौकरी करने वालों को भी मान सकते हैं। फौजी लोग अपनी सारी कमाई माता-पिता और घर-परिवार पर खर्च कर देते हैं। इससे उस परिवार की आर्थिक स्थिति अन्य परिवारों से अच्छी हो जाती है परंतु फौजी खुद अपने बच्चों को ठीक से देख नहीं पाता और पढ़ा नहीं पाता क्योंकि उसका शहर में कोई रहने का ठिकाना नहीं होता है। फौज से रिटायर होकर जब आता है तो गाँव में ही घुल-मिल जाता है। एक फौजी देश और अपने माता-पिता के लिए अपना जीवन व्यतीत करता है, पर वह खुद के बच्चों के विकास के लिए कुछ खास नहीं कर पाता।

श्रेणी-3 (खेती के साथ बड़ी नौकरी)

लेखक लक्ष्मण बुरड़क स्वयं के खेत में - इस वर्ष खेत में मूंग बोया है जिसकी अच्छी फसल हुई है

श्रेणी-3 (खेती के साथ बड़ी नौकरी): लेखक स्वयं लक्ष्मण बुरड़क IFS (R) (40 बिघा कृषि भूमि के मालिक) – लेखक पढ़ाई करते समय जब भी गाँव जाते खेती के कार्यों में सक्रिय भाग लेते रहे। हल चलाने से लेकर कटाई तक खेती के सभी काम आते थे। नौकरी में आने के बाद खेती करना छुट गया। उसके बाद पिताजी खेती को देखते थे और 1990 के बाद उनके बुजुर्ग हो जाने के कारण खेती बटाई पर दे दी गई। खेती बटाई पर देने से होनेवाली आमदनी नगण्य-सी हो गई। सन 2021 में बटाई से वापस लेकर खुद खेती करने लगे हैं। मुझे इस वर्ष ठीक से किसान के रूप में स्थापित करने के लिए मेरे भतीजे महेंद्र बुरड़क का बहुत योगदान रहा।

घर वालों का विचार मुझे 10वीं तक पढ़ाना था ताकि घर और खेती-बाड़ी का हिसाब किताब रख सके। दसवीं कक्षा मे बोर्ड मे मेरिट मे आ गया था जिससे प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को दी जाने वाली नेशनल स्कालरशिप मुझे मिलने लगी थी। घरवालो का पैसा खर्च नहीं हो रहा था तो उन्होने सोचा कि चलो इसको पढ़ने दो अन्यथा तो मैं भी खेती ही करता और बृज लाल जैसी स्थिति में होता। हायर सेकंडरी की शिक्षा निकट के शहर रतनगढ़ में जालान सेठों की स्कूल रघुनाथ विद्यालय से करने के बाद कालेज शिक्षा पोद्दार कालेज नवलगढ़ से की। ये दोनों शिक्षा संस्थान राजस्थान के धन्ना सेठों की थीं जिन्होने आजादी और शिक्षा विस्तार के लिये क्रांतिकारी काम किये थे। एम. एससी. फिजिक्स मैने राजस्थान युनिवर्सिटी जयपुर से किया। इस तरह मैं पढ़ लिया और पढ़ाई में सभी क्लासों मे मेरिट में आता रहा। पढ़ाई पूरी करते ही दूर संचार विभाग में अभियंता के पद पर नौकरी जॉइन कर साथ-साथ आईएफ़एस की तैयारी कर उसमें जाने में सफल रहा।

तीन नए कृषि कानूनों के बारे में मेरी व्यक्तिगत राय है कि ये किसानों के हित में नहीं हैं। इस संबंध में फेसबुक पर दिनांक 30.11.2020 और 2.12.2020 को लेख भी लिख चुका हूँ जो आप निम्न लिंक पर देखे सकते हैं: https://www.facebook.com/laxman.burdak.37/posts/48482351952 और https://www.facebook.com/laxman.burdak.37/posts/4857274814315208

मेरी मान्यता है कि इन तीन नए कृषि कानूनों से किसानों को नुकसान और निजी खरीदारों व बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा। वर्तमान में सरकार कह रही है कि किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जायेगा परंतु इन कानूनों के प्रावधान लागू होने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था स्वत: खत्म हो जायेगी। ये तीन नए कृषि कानून किसान के लिए किस प्रकार घातक हैं विस्तृत समीक्षा आगे दी गई है।

श्रेणी-4 (खेती के साथ व्यापार)

दाना राम झाझडिया फतेहपुर में खुद की कपड़े की दुकान में

श्रेणी-4 (खेती के साथ व्यापार): दाना राम झाझड़िया (17 बिघा कृषि भूमि के मालिक) - दाना राम झाझडिया ने 12वीं पढ़ने के बाद में व्यापार करने का निर्णय लिया। परिवार के और सदस्य खेती करते थे और दाना राम झाझड़िया ने सीकर जिले में स्थित निकट के शहर फतेहपुर में कपड़े की दुकान खोली। ईमानदारी और अच्छे व्यवहार से दुकान अच्छी चली और कुछ ही वर्षों में दूसरी दुकान भी शुरू कर दी। गांव में आज उनकी सबसे अच्छी आर्थिक स्थिति है। दुकान बहुत अच्छी चलती हैं। बहुत अच्छा पैसा कमा रहे हैं। गाँव में बहुत अच्छा मकान बना रखा है। गाँव वाले मानते हैं कि वर्तमान में गाँव में वही सबसे स्मृद्ध हैं।

तीन नए कृषि कानूनों के बारे में दाना राम झाझडिया की राय है कि ये किसानों के लिए घातक हैं इसलिए वापस होने चाहिए और सभी कृषि उत्पादों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानून में गारंटी दी जानी चाहिए।

तीन नए कृषि कानून और किसानों पर उनका प्रभाव

पहले जानिए क्या हैं ये तीन नए कृषि कानून । पिछले एक वर्ष से जिन तीन कृषि कानूनों ने किसानों को आंदोलनरत कर रखा है वे संक्षेप में इस प्रकार हैं:

1. किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम-2020 (Farmers' Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Act:) : इसका उद्देश्य विभिन्न राज्य विधानसभाओं द्वारा गठित कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) द्वारा विनियमित मंडियों के बाहर कृषि उपज की बिक्री की अनुमति देना है। यह कानून चुनिंदा क्षेत्रों से "उत्पादन, संग्रह और एकत्रीकरण के किसी भी स्थान पर किसानों के व्यापार क्षेत्रों का दायरा बढ़ाता है"।

2. किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं अधिनियम -2020 (Farmers (Empowerment and Protection) Agreement on Price Assurance and Farm Services Act): किसी भी किसान के उत्पादन या पालन से पहले एक किसान और एक खरीदार के बीच एक समझौते के माध्यम से अनुबंध कृषि के लिए एक रूपरेखा तैयार करता है। इस कानून का उद्देश्य अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देना है। आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा।

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम - 2020 (Essential Commodities (Amendment) Act): केंद्र युद्ध या अकाल जैसी असाधारण स्थितियों के दौरान कुछ खाद्य पदार्थों को विनियमित करने की अनुमति देता है। यह कानून अनाज, दालों, आलू, प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियमित करता है। यानी इस तरह के खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है।

तीन कृषि कानूनों ने किसानों को आंदोलनरत कर रखा है वे किसानों को किस प्रकार प्रभावित करने वाले हैं?

किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम-2020: यह कानून कहीं भी वस्तुओं की खरीद-फरोख्त की आजादी देता है। अब सोचिए इसकी शुरुआत कैसे होगी। अमेजन, वालमार्ट जैसी रिटेल कंपनियों की तरह पहले कुछ घाटा खाकर कुछ समय तक मंडियों के बाहर वस्तुओं के ऊंचे दाम दिए जाएंगे। बाहर ऊंचे दाम मिलने से मंडियों में वस्तुओं की आवक खत्म हो जाएगी और धीरे-धीरे किसानों का संगठित बाजार मृतप्राय हो जाएगा। वर्षों से किसान और आढ़तियों के खून पसीने से बनी मंडी की बेशकीमती संपत्तियां वीरान हो जाएंगी और एक दिन चुपके से औने पौने दाम में पूंजीपतियों के हाथ में पहुंचकर माल में परिणित हो जायेंगी। फिर खेल शुरू होगा। मंडी के बाहर खरीद-फरोख्त करने वालों का संघ बनेगा और फिर मनमाने दामों पर वस्तुओं की खरीद होगी। किसान यहाँ लूटा जाएगा।

किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं अधिनियम-2020 अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देता है। आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा। फसल की कीमत तय करने व विवाद की स्थिति का बड़ी कंपनियां लाभ उठाने का प्रयास करेंगी और छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी। इस कानून के बहाने बड़े औद्योगिक घरानों की कंपनियां उनकी जमीन छीन लेंगी और किसान केवल अपनी ही जमीन पर खेती करने वाला मजदूर रह जाएगा। एक बार अनुबंध खेती के जाल में किसान फंसा नहीं कि आजादी के पहले के इतिहास को दोहराने से कोई रोक नहीं सकता। वही अग्रिम लोन, महंगा खाद-बीज, फसल की गुणवत्ता के बहाने से मनमानी कीमतें! वही कर्ज का दुष्चक्र।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से काले धन को बढ़ावा:

किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं अधिनियम,2020 में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के प्रावधान से काले धन को बढ़ावा मिलेगा। जो किसान जीविका के लिए खेती पर ही निर्भर है वह किसान कभी भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए खेती नहीं देगा क्योंकि ये किसान स्वयं खेत में काम करते हैं और यदि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर किसी कंपनी को खेती दे दी तो इन किसानों को मजदूरी अपने ही खेतों पर करनी पड़ेगी। इस तरह से स्वतंत्रता के बाद कृषि भूमि पर किसानों को जो अधिकार दिए गए थे उसकी उल्टी दिशा में हम चल पड़ेंगे। किसान अपने ही खेत में मजदूर बन जायेगा और कंपनी की गुलामी करने के लिए बाध्य होगा।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर कृषि भूमि देगा कौन?

इसका उत्तर है बड़े अफसर, नेता, अभिनेता और धनाढ्य वर्ग के लोग जिनके पास पैतृक अथवा काले धन से अर्जित कृषि-भूमि है और जो स्वयं खेती नहीं करते हैं। इनको अंग्रेजी में एब्सेंटी लैंडलॉर्ड (Absentee Landlords) कहते हैं। ये अपनी जमीन कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के लिए दे देंगे। कंपनी एक हाथ से उनसे काला धन लेगी और कॉन्ट्रैक्ट की खेती के एवज में उसको आयकर-मुक्त सफेद धन करके दे देगी।

अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का पक्ष लेने वालों की श्रेणी में बहुत से ब्यूरोक्रेट, नेता और अन्य धनाढ्य वर्ग के लोग आते हैं जो अपनी पुश्तैनी जमीन को देख नहीं पाते हैं। वह कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का पक्ष लेते हैं।

मेरी यह मान्यता है और आयुर्वेद का मूलभूत सिद्धांत भी है कि जो व्यक्ति जिस भूमि में पैदा होता है वहीं के फल, सब्जियाँ और उत्पाद खाता है तो स्वास्थ्य के लिए ज्यादा लाभप्रद होते हैं। इसलिए मैं जमीन से जुड़ा हुआ रहता हूं और नियमित रूप से गांव आकर कृषि की भी देखभाल कर लेता हूं। परंतु ऐसा इस श्रेणी के सभी लोगों से संभव नहीं है। बहुत से लोग आप्रवासी हैं विदेशों में रहते हैं वह वर्षों में कभी-कभार गाँव आते हैं। नियमित रूप से गाँव आकर अपनी पुश्तैनी कृषि को नहीं देख सकते हैं। यह लोग भी तीन नए कृषि कानूनों का समर्थन करते प्रतीत हो रहे हैं। संभव है इसीलिए इस श्रेणी के लोग जो सामाजिक-आर्थिक विषयों पर राष्ट्रीय स्तर पर बढ़-चढ़ कर लिखते रहते हैं, इन तीनों नए कृषि कानूनों पर लिखने से परहेज कर रहे हैं। इस तरह कृषि प्रधान देश में कृषि कानूनों में कृषि-विरोधी प्रावधान बनाने और लागू करने के लिए यही लाबी प्रेशर-ग्रुप का काम कर रही है।

आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम-2020: कुछ खाद्य पदार्थों को विनियमित करने की अनुमति देता है। यह कानून अनाज, दालों, आलू, प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियमित करता है। यानी इस तरह के खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है। इस नए संशोधित कानून के ज़रिए भंडारण और कालाबाजारी का कानूनी अधिकार व्यापारियों और कंपनियों को मिल गया है। जमाखोरी कर मुनाफ़ा लूटना शुरू से इनकी आदत रही है। यह बाज़ार में आवश्यक चीजों का कृत्रिम अभाव पैदा कर ऊंची कीमत पर चीजों को बेचकर उपभोक्ताओं को लूटेंगे।

निष्कर्ष

निष्कर्ष: गाँव में पूर्ण रूप से कृषि पर निर्भर किसानों का समुचित आर्थिक विकास नहीं हो पाया है। कृषि के साथ जिन्होने नौकरी को चुना उनका अच्छा विकास हुआ है और स्मृद्धि आई है। कृषि के साथ व्यापार को चुनने वाले किसान गाँव में सबसे स्मृद्ध हैं। जिस किसान के परिवार में कोई नौकरी या व्यापार करने वाला सदस्य नहीं है उनको चाहिए कि एक सदस्य को कौशल उन्नयन में प्रशिक्षित करवाकर रोजगार में लगावें।

तीन नए कृषि कानूनों के बारे में सभी ग्रामवासियों की राय है कि ये किसानों के लिए घातक हैं इसलिए इन्हें रद्द किया जाना चाहिए और सभी कृषि उत्पादों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानून में गारंटी दी जानी चाहिए। नए कानूनों से पूंजीपतियों को मनमाने दामों पर वस्तुओं की खरीद की छूट मिल जाएगी। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से काले धन को बढ़ावा मिलेगा और वास्तविक किसान का शोषण होगा। भंडारण और कालाबाजारी का कानूनी अधिकार व्यापारियों और कंपनियों को मिलने से जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा और बाज़ार में आवश्यक चीजों का कृत्रिम अभाव पैदा कर ऊंची कीमत पर चीजों को खरीदने के लिए उपभोक्ताओं को बाध्य होना पड़ेगा।

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संदर्भ