Kotitirtha

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Kotitirtha (कोटितीर्थ) pilgrims are mentioned in Mahabharata.

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Origin

History

कोटितीर्थ

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...कोटितीर्थ (AS, p.231) नाम से महाभारत तथा पुराणों में अनेक स्थानों का अभिधान किया गया--'सवर्गद्वारेणयत तुल्यं गङ्गादवारं न संशयः, तत्राभिषेकं कुर्वीत कॊटितीर्थे समाहितः (वनपर्व है 84,27). इस स्थल पर गंगाद्वार या हरिद्वार को ही कोटितीर्थ कहा गया है. इसके अतिरिक्त कालिंजर, नर्मदा के उद्गम स्थान अमरकंटक और प्रयाग के निकट शिवकोटि आदि स्थानों पर भी कोटितीर्थ माने गए हैं.

महाभारत वनपर्व है 84,77 में (कॊटितीर्थे नरः सनात्वा अर्चयित्वा गुहं नृप, गॊसहस्रफलं विन्देत तेजस्वी च भवेन नरः) (III.82.68). वाराणसी और गोमती के बीच के प्रदेश में भी एक कोटितीर्थ का वर्णन है जहां गुह या कार्तिकेय (स्कंद) की पूजा होती थी.

वनपर्व 82,49 में धर्मारण्य (गुजरात) के निकट भी कोटितीर्थ का उल्लेख है-- 'कोटितीर्थमुपस्यपृश्य हयमेधफलंलभेत्'. वास्तव में कोटि तीर्थ का अर्थ है करोड़ों तीर्थ जिस स्थान पर हों और इस प्रकार यह नाम प्राय: सामान्य विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुआ है.

In Mahabharata

Kotitirtha (कॊटितीर्थ) (Tirtha) in Mahabharata (II.82.61), (III.82.24), (III.82.68), (III.83.58),

Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 82 mentions names Pilgrims . Kotitirtha (कॊटितीर्थ) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.82.24)[2].... One should then repair, O virtuous one, after bowing to the great mountain (Himavat), to the source of the Ganges, which is, without doubt, like the gate of heaven. There should one, with concentrated soul, bathe in the tirtha called Kotitirtha (कॊटितीर्थ) (III.82.24). By this, one obtaineth the merit of the Pundarika sacrifice, and delivereth his race. Residing one night there, one acquireth the merit of giving away a thousand kine.


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 82 further mentions Kotitirtha (कॊटितीर्थ) (Tirtha) in Mahabharata (III.82.68). [3]


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 83 mentions names of Pilgrims. Kotitirtha (कॊटितीर्थ) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.83.58).[4]...One should next, O virtuous one, proceed to the excellent tirtha called Bhartristhana (भर्तृस्थान) (III.83.57), where, O king, ever dwells the celestial generalissimo Kartikeya. By a journey only to that spot, a person, O foremost of kings, attaineth to success. Bathing next at the tirtha called Kotitirtha (कॊटितीर्थ) (III.83.58), one earneth the merit of giving away a thousand kine.

External links

References

  1. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.231
  2. सवर्गद्वारेण यत तुल्यं गङ्गा दवारं न संशयः (III.82.23) तत्राभिषेकं कुर्वीत कॊटितीर्थे समाहितः पुण्डरीकम अवाप्नॊति कुलं चैव समुद्धरेत (III.82.24)
  3. ततॊ गच्छेत राजेन्द्र भर्तृस्थानम अनुत्तमम, कॊटितीर्थे नरः सनात्वा अर्चयित्वा गुहं नृप, गॊसहस्रफलं विन्देत तेजस्वी च भवेन नरः (III.82.68)
  4. पुमांस तत्र नरश्रेष्ठ गमनाद एव सिध्यति, कॊटितीर्थे नरः सनात्वा गॊसहस्रफलं लभेत (III.83.58)