Magrora
Magrora or Magraura (मगरौरा) is a town in Dabra tahsil of Gwalior district in Madhya Pradesh.
Location
It is situated at a distance of about 5 km from Dabra town, on Gwalior-Jhansi Road, in Gwalior district. [1]
मगरौरा स्टेट का इतिहास
ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....[पृ.563]: शिवि जाटों का वह जत्था जो कश्मीर से अभिसार में आ गया था, हरिद्वार आया। यह हम बता चुके हैं। हरिद्वार से यह लोग ब्रज के दोंदरखेड़े में आए। वहां से मध्य भारत के केहू नामक स्थान पर, जो ग्वालियर राज्य में है, आए। नरवर उस समय यहां की राजधानी थी। इन लोगों ने उसके राज्य के कुछ हिस्से को दबा लिया। भाट ग्रंथों में उस समय नरवर का राजा विजय बताया गया है और जाटों के अधिपति का नाम चंद्रचकवे कहा गया है। राजा विजय ने चंद्रचकवे के मुकाबले के लिए 9 राव मय सेना के भेजे। चंद्र चकवे ने जब इस समाचार को सुना तो उन्हें मार्ग में नाजिरी बाग के पास, जोकि सिंधु नदी पर अवस्थित है, जा दबाया और उनके सिर काट लिए। उस समय का यह दोहा प्रसिद्ध है- “नाजिरी बाग पे बागें उठी, जहां पागें डरी रही कैऊ कुरी की”।
यह घटना 10 वीं सदी के आसपास की है। उसके बाद इन लोगों ने कैऊ के बजाय उसके पास ही पहाड़ी पर एक किला बनाया गया। एक नगर आवाद किया जो पिछोर के नाम पर प्रसिद्ध किया। पिछोर का अर्थ है पीछे की ओर है क्योंकि पहाड़ की एक और केऊ गांव था। उसके पीछे की ओर बसाने से पिछोर हुआ।
इसके बाद कई पीढ़ियां बीतने पर दिल्ली की हकूमत के साथ संबंध जोड़ लिए। वहां से फरमान और सनदें तथा महाराजा का खिताब हासिल किया। पंच हजारी का ओहदा प्राप्त किया। आगे चलकर इसी खानदान से राव हमीर हुए। उनकी प्रसिद्धि हुई। उन्हीं के नाम पर पिछोर राव हमीर की पिछोर
[पृ.564]: के नाम से प्रसिद्ध है। राव हमीर का दतिया नरेश युद्ध हुआ जिसमें आप की विजय हुई। इस राज्य में उस समय 365 गांव थे और 7,00,000 आमदानी थी।
इसके बाद सिंधिया का प्रभाव बढ़ा। महादजी सिंधिया पिछोर पर चढ़कर आए और 6 महीने तक लड़ते रहने के बाद संधि हुई जिसमें 67 गांव इस खानदान के पास कायम रख कर बाकी ले लिए। 1782 ई. (1839 विक्रमी) की यह घटना है।
जिन दिनों महादाजी सिंधिया शाह आलम की मदद के लिए गुलाम कादिर से लड़ने दिल्ली तो उसमें राजा पहाड़सिंह जी, जोकि हमीरसिंह जी के पोते थे, लड़ने गए। उसमें आपके युद्ध कौशल की सिंधिया ने सराहना की।
इसके बाद पिंडारियों के उपद्रव शुरू हो गए। उसमें महाद जी के लड़के दौलतराव सिंधिया के साथ राजा पहाड़सिंह ने बड़ी बहादुरी दिखाई।
राजा पहाड़सिंह और दौलतराव सिंधिया में अनबन हो जाने से उन्होंने पहाड़सिंह जी पर बुरहानपुर जाने आने आदि का सवा लाख खर्च बांध दिया और उनके पास सिर्फ 14 गांव रहने दिये। बाकी के लिए यह लिख दिया कि सहकारान की अदायगी में लगा दिए।
संवत 1873 (1816 ई.) में इसी कारण से पिछोर को छोड़कर उसके दक्षिण में एक पहाड़ी पर गढी कायम कर ली और मगरौरा नाम का नगर बसाया। यह छतरसिंह ने, जो कि पहाड़सिंह जी के पुत्र थे, किया।
इसी खानदान की दूसरी शाखा राव बलवंतसिंह जी
[पृ.565]: की है जोकि राणा पहाड़सिंह जी के छोटे भाई हीरासिंह जी की संतान में से हैं। जिनको 3 ग्राम जागीर के हैं जिनकी दाखिल-खारिज अलग है। राव बलवंतसिंह जी के दो लड़के यशवंतसिंह और जितेंद्रसिंह है।
राजा छत्तरसिंह जी की चौथी पीढ़ी में राजा भागवंतसिंह जी थे। इन्होंने ग्वालियर राज्य में सबसे पहले जाट सभा कायम की। महासभा में भी महाराजा धौलपुर के बाद एक दिन प्रेसिडेंटशिप की। हिंदी के अच्छे साहित्यक थे।
आपही के पुत्र वीरेंद्रसिंह जी हैं। आपका जन्म संवत 1967 (1910 ई.) कार्तिक मास का है। आपके दो पुत्र सुरेंद्रसिंह और कोकसिंह हैं। सुरेंद्र सिंह जी इस खानदान के तीसरी साख इंद्रसिंह जी के पुत्र लोकपालसिंह जी हैं, जो उसमें गोद चले गये। जिसका दाखिल-खारिज अलग है।
Magrora fort
Magrora fort is situated on Naun River near the confluence of Naun and Sindh Rivers. The Magrora fort is seen on west of the road while one passes from Dabra to Jhansi. [3]
It is a beautiful site to see the surrounding area from Magrora fort. There are two huge tanks in the fort for sustained water supply. There are three temples in the fort where regular worship takes place. The festival of holi starts from here.[4]
History
Magrora fort was built by Maharaja Hamirjoodeo. Magrora state has been known for kind hearted rulers very popular amongst the public. Before the war with Mahadji Sindhia they were the rulers of Pichhore (Dabra).[5] The war with Scindias continued for 96 days.This shows the strength of Magrora rulers. The Magrora rulers were of Donderia Jat Gotra. They had come to this place from village Donder Kheda (दोंदेर खेड़ा) in Punjab on the banks of River Satluj, hence known as Donderia. This period was during the rule of Badshah Shahzahan.
The Magrora state included Lohagarh, Magrora, Salvai, Patha (पठा) , Ajaygarh, Ghamadpura (घमड़पुरा), Aroosi, Belgarha, Chetupada, Gendol, Virrat, Simaria, Nibhera,Bargavan garhis (forts). There were total 52 garhis and 400 villages in this state. All these forts were built on high hillocks and well protected. After war with Mahadji Sindhia there was a treaty in which Pichhore ruler Maharaja Chhatra Singh was given the Magrora fort along with the title of Bahadur Joodeo. It was a free Jagir. [6]
Chronology of rulers
The first ancestor who came to this place was Bhagirathdev whose son was Dhruvangad Dev. Hammir Dev was son of Dhruvangad Dev. The rulers of Magrora were later Swarup Singh, Jai Singh, Hem Singh, Bhagwat Singh, Ram Singh and Mirendra Singh Joodeo.[7]
Magrora fort was occupied till 1954 after which Mirendra Singh Joodeo came to Dabra and settled here. Mirendra Singh Joodeo ruled Magrora for 28 years. He had three sons namely Surendra Singh, Narendra Singh and Padam Singh. Narendra Singh went to Nabhera as the Nabhera Samanta had no son. As per will of Raja Mirendra Singh, Raja Padam Singh was made his successor. [8]
The present Raja Padam Singh of Magrora was born 17th September 1955 at Dabra. He completed his Secondary Education from the Scindia School Gwalior in 1973. Post graduation was done from M L B College Gwalior in 1978. He did LLB in 1982. He married to Rani Kushum Lata of Jakhara in Gwalior in 1976. He has son Mr Kirti Singh who is double MA and MBA. He has married to Shalini daughter of Shri Kripal Singh of Bajna City, Mathura district in UP, who originally comes from Bisawar in Mathura district. His daughter Neha Singh has done MA, LLB, B.Lib. Second daughter is Nitu Singh who has done double MA, B Lib.
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This section on Kunwar Padam Singh is unfortunately erroneous. He is the 3rd and youngest son of RajKunwar Mirendra Singh. Lt General K.K. Singh had written the entire history of his friend's family, Maharaj Sri Shrimant Raja SurendraPal Singh Judev Bahadur of Magrora - Pichor Riyasat. Raja Ram Singh had no issue and adopted his younger brother's ( Mirendra Singh) eldest son, Maharaj Raja Surendra Singhji Judev, born April 1935, studied in Scindia school (1951)with his second brother Raja Narendra Singh JuDev, which at time was a private boarding school largely for sons of the nobility and aristocracy, went on to Allahabad University where he read Agriculture. He inherited and looked after vast acres of agricultural land and lemon, guava mango orchards near Dabra (a town between the Pichor citadel and Magrora Garhi). it was called Ganga bagh. He married in 1954 Rani Shrimant Saubhagyawati Mithilesh Raje Kanwar, the d/o Raja (Kunwar) Gulzar Narayan Singhji (Tomar) by his 3rd wife Rani Chandra Kanwar of Pisawa, the eldest of 5 siblings. His younger brother Raja Narendra Singh was adopted by his grand uncle (Raja Ram Singh's younger Kaka), Raja Lokpal Singh of Nibera (Magrora-Pichor Riyasat), an artist and poet. Raja Narendra Singh married Rani PushpaRaje Kanwar the 3rd daughter of Rajasahib Gulzar Narayan Singhji by his 3rd wife RaniSahib Chandra Kanwar of Pisawa. They had 2 daughters,
- Rajkumari Shalini Raje Rosset, married 1st to Sri Satyavir Singh a landed jat family from Bulandshahar District, U.P. she had one issue with him Sri Neel singh. Married second Mr Michael Rosset, had one son with him, Sri Daniel Rosset. They are settled in Washington D.C, U.S.A
- Rajkumari Shivani Raje, married to Sri Lalit Goyal, had 3 sons, Siddharth, Dhruv and Saurabh. They are settled in Ohio, U.S.A
Maharaj Sri Shrimant Raja Surendra Singh Judev Bahadur and Rani Shrimant Saubhagyawati Mithilesh Raje Kanwar had 4 issues:
- Bari Rajkumari Bibiji (Chaurani) Aradhna Raje Kanwar, born 15 March 1955, married to Chaudhri Pradeep Pradyuman Singh (Lambagh) of Alakhpura in Hansi Haryana
- Bare Raja sri Rajkunwar Dhananjai Singh JuDev, born September 1963, married to Rani Anju Raje Kanwar
- Choti Rajkumari Bibiji Rani Sarahana Raje Angre, born 12 July 1964, married to Sardar Sarkhel Shrimant Tulajirao Angre of Gwalior State
- Chote Rajkunwar sri Mritunjai Singh
Raja Dhananjai Singh Judev inherited the gaddi on the death of his father Raja Surendra Singh in September 2004. He has 2 children, twins, born in January 1997 a) Rajkumari Bibiji Yashaswini raje b) RajKunwar Sri Sarvayash Singh
Objection
आदरणीय मंच जाटलैंड,
बहुत ही भ्रामक जानकारियां मगरौरा के बारे मैं फैलाई जा रही हैं, जिनका विस्तृत खंडन बहुत जल्द सभी सजातीय बंधुओं के समक्ष आदरणीय जाटलैंड के मंच के माध्यम से करूँगा.
धन्यवाद
कीर्ति सिंह मगरौरा
DATE 29.12.2019
आदरणीय मंच जाटलैंड,
शायद सही समय आ गया है कि मगरौरा के विषय में जो भी महानुभाव, दुष्प्रचार कर बदनाम करने की साजिश रचे बैठे हैं या ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं उन्हें सटीक समुचित जवाब दिया जावे, जो सब कुछ जानते बूझते अनभिज्ञ होने का स्वांग रच रहे हैं उन्हें कोई भी जवाब देना मेरे विचार से अनुचित होगा, इसलिए यह जानकारी समस्त सजातीय बंधुओं, इतिहासकारों, शोधकर्ताओं हेतु मैं यहां दे रहा हूँ ताकि भ्रम की स्थिति न बन सके
सर्वप्रथम तो जो शब्द "राजकुंवर" मेरे स्व. परम आदरणीय बाबासाहब महाराज मीरेंद्र सिंह जूदेव बहादुर के लिए प्रयोग किया गया है मैं उसकी घोर निंदा करता हूँ, वो प्रत्येक शख्स जो इस हरकत में शामिल है अति निंदनीय है क्योंकि सच को इस स्तर पर झुठलाया गया है कि लिखते समय लिखने वाला स्वयं पर भी शर्मिन्दा हुआ होगा,
जिन लेफ्टिनेंट जनरल के.के. सिंह जी का हवाला दिया गया है वे मेरे स्व. परम आदरणीय बाबासाहब के अभिन्न मित्र थे, मेरे पास इस मित्रता के पुख्ता सुबूत मौजूद हैं जिन्हें वक्त आने पर साबित भी कर सकता हूँ उन्होंने कभी मेरे खानदान का इतिहास नहीं लिखा न ही वे इतिहास लेखन में कोई रूचि रखते थे उन्होंने मेरे स्व. बाबासाहब के साथ हमारी पुरानी धरोहरों की यात्रायें अवश्य कीं वे उन्हें संरक्षित कराना चाहते थे और उन्हीं के शामिलात प्रयासों से हमारा मुख्य दुर्ग पिछोर, पुरातत्व में शामिल हो सका
जिन राजा सुरेंद्र सिंह जी के विषय में जानकारी दी गई है वह पूर्णरूपेण मिथ्या एवं असत्य है, न ही वे कभी मगरौरा के राजा बने और न ही उनका कोई खिताब "श्रीमंत" था, हमारे खानदान का टाईटल "श्रीमंत" कभी नहीं रहा यह खिताब सिंधिया राजपरिवार का था, परन्तु इन सब बातों को जो किसी महाज्ञानी पुरुष ने ऊपर लिखा है उन्हें मैं चुनौती देता हूँ कि उनके अनुसार धारित पद "Maharaj Sri Shrimant Raja SurendraPal Singh Judev Bahadur" की सनद प्रस्तुत करें,इसके अतिरिक्त दोंदेरखेड़े से लेकर वर्तमान तक की वंशावली भी प्रस्तुत करें और यदि न कर सकें तो आदरणीय मंच और समाज से मिथ्या वचनों, असत्य कथनों एवं किये गए दुष्प्रचार के लिए माफ़ी मांगें
अंत में यही कहूंगा कि जिन्हें अपनी वंशावली का भी ज्ञान न हो वो दूसरों को इतिहास पर ज्ञान बांटते शोभित नहीं होते, यह मेरी ओर से एक सभ्य भाषा में साधारण जवाब था यदि आगे व्यक्तिगत आक्षेप आये तो मेरी भाषा में भी कटुता आ सकती है समाज के लिए विशेष टिप्पणी:- राज्य समाप्ति तक अंतिम शासक मेरे स्व. बाबासाहब महाराज मीरेंद्र सिंह जूदेव बहादुर रहे और वे अपने जीवनकाल में ही वर्तमान डबरा स्थित आवास पर आकर बस गए जिन भी इतिहासकारों, पुरातत्ववेत्ताओं,शोधकर्ताओं एवं सामाजिक बंधुओं को इस विषय पर सटीक जानकारी की आवश्यकता हो उन्हें तथ्य एवं सनद सहित जानकारी मैं उपलब्ध कराऊंगा,आप नीचे दिए हुए मेरे मोबाइल नंबर पर सम्पर्क कर मुझे अनुग्रहीत कर सकते हैं मैं स्वयं को अभिभूत समझूंगा
बहुत शुक्रिया आदरणीय जाटलैंड मंच
कीर्ति सिंह मगरौरा
Notable persons
- Raja Padam Singh of Magrora (born: 17.9.1955)
- Kirti Singh Magrora - Mob: 9713010200
Gallery
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Raja Mahendra Pratap Singh of Hathras along with Maharaja Padam Singh Judeoo of Magrora
References
- ↑ Raja Padm Singh: "Magrora Durg", Jat-Veer Smarika, Gwalior. 1992, p. 70
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.563-65
- ↑ Raja Padm Singh: "Magrora Durg", Jat-Veer Smarika, Gwalior. 1992, p. 70
- ↑ Raja Padm Singh: "Magrora Durg", Jat-Veer Smarika, Gwalior. 1992, p. 70
- ↑ Raja Padm Singh: "Magrora Durg", Jat-Veer Smarika, Gwalior. 1992, p. 70
- ↑ Raja Padam Singh: "Magrora Durg", Jat-Veer Smarika, Gwalior. 1992, p. 70
- ↑ Raja Padm Singh: "Magrora Durg", Jat-Veer Smarika, Gwalior. 1992, p. 70
- ↑ Raja Padm Singh: "Magrora Durg", Jat-Veer Smarika, Gwalior. 1992, p. 70
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