Narwar Ajmer

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Location of villages around Kishangarh, Ajmer

Narwar (नरवर) is a village in Ajmer tahsil and district of Rajasthan.

Location

It is located 15 miles from Ajmer. Its ancient name was Narapura(नरपुर).

History

It is associated with the history of Chauhans.

Chamundaraja (No.20), After Viryarama became ruler of Shakambhari. Viryarama's brother Chamundaraja built a temple of Vishnu at Narapura. Narapura is Narwar situated in Kishangarh territory about 16 miles from Ajmer.[1][2]

नरवर की घाटी

संत श्री कान्हाराम[3] ने लेख किया है कि लाछा गुजरी की गायें मीणों द्वारा अपहरण कर ले जाने के बाद मीणों से युद्ध कर गायें छुड़ाई थी। वह स्थान जहां युद्ध हुआ उसके बारे में जानकारी दी गई है:

[पृष्ठ-244-248]: पनेर से तेजाजी ने भाला, धनुष, तीर लेकर लीलण पर चढ़ कर चोरों का पीछा किया. सुरसुरा से 15-16 किमी दूर मंडावरिया की पहाडियों में मीणा दिखाई दिए। तेजाजी ने मीणों को ललकारा। तेजाजी ने बाणों से हमला किया। घनघोर लड़ाई छिड़ गई। तेजाजी मीणों के बीच पहुंचे। तेजाजी ने मुख्य शस्त्र बीजल सार भाला संभाला। भाले के एक-एक वार से सात-सात का कलेजा एक साथ छलनी होने लगा। यह अपने किस्म की अनोखी और अभूतपूर्व लड़ाई थी। एक तरफ 350 यौद्धा तो सामने केवल अकेले तेजाजी। भाले से मार-मार कर तेजा ने मीणों के छक्के छुड़ा दिये। मेर-मीणों में से बहुत संख्या में मारे गए तथा बचे लोग प्राण बचाकर भाग खड़े हुये। इस लड़ाई में तेजा के साथ केवल घोड़ी लीलण थी। लीलण ने भी अपनी टापों से मीणों के चिथड़े बिखेर दिये। कहते हैं कुछ देर में गौमाताएँ भी तेजा को पहचान गई, उन्होने भी सींगों से हमला शुरू कर दिया। मीने ढेर हो गए, कुछ भाग गए और कुछ मीणों ने आत्मसमर्पण कर दिया। तेजा का पूरा शारीर घायल हो गया और तेजा सारी गायों को लेकर पनेर पहुंचे और लाछां गूजरी को सौंप दी। लाछां गूजरी को सारी गायें दिखाई दी पर गायों के समूह के मालिक काणां केरडा नहीं दिखा। मीणा लोग उसे ले भागे थे। काणा केरडा उत्तम नागौरी नस्ल थी। काणां केरडा नहीं पाकर लाछा उदास हो गई। तेजा के लिए यह अपनी मूंछ का सवाल था। तेजाजी वापस गए।


[पृष्ठ-248]: मंडावरीय की पहाड़ी की तलहटी के युद्ध स्थल से पनेर की दूरी 30-32 किमी पड़ती है। इतनी ही तेजा को वापस युद्ध स्थल पर जाने में हुई। अतः 50-60 किमी के अंतराल के कारण मेर-मीणा बछड़े को लेकर नरवर की घाटी से होकर वर्तमान पाली सीमांतर्गत ब्यावर से 10 किमी पश्चिम में पहाड़ियों में बसे अपने मूल गाँव चांग- चितार की ओर निकल गए। तेजा ने पद चिन्हों के द्वारा मीणों का पीछा करते हुये नरवर की घाटी में चलते हुये मीणा को लड़ने की चुनौती दी। मीणा ने बछड़े को ले जाने के लिए यहाँ एक रणनीति अपनाई। एक गुट तेजा से भीड़ गया एवं दूसरा गुट बछड़े को लेकर ईडदेव सोलंकी के भुवाल नगर के पास से होकर चांग- चितार की ओर निकल गया। नरवर की घाटी में भिड़े गुट का खात्मा कर आगे बढ़ा तो तेजा को जनता द्वारा पता चला कि मीणा मेर चांग- चितार गाँव के हैं और बछड़े को लेकर चांग के पास पहुँचने वाले होंगे। तेजा ने लीलण को तेज चलने का इसारा किया। चांग गाँव पहुँचने से पहले 1.5 किमी पहले ही तेजा ने मीणा को ललकार दिया। पहाड़ियों के बीच ऊबड़-खाबड़ स्थान एवं भयंकर जंगल में मीणा तथा तेजा के बीच फिर युद्ध छिड़ गया। मीणा का गाँव चांग नजदीक होने के कारण उनके वंश के कुछ और लोग मीणा की मदद के लिए आ गए। यहाँ पर ओर भी भयंकर लड़ाई हुई। इसमें एक-एक करके सारे मीणों के कलेजे तेजा के भाला ने छलनी कर दिये। घोड़ी की लगाम अपने दाँत से पकड़ी और एक हाथ में भाला तथा दूसरे हाथ में तलवार लेकर असंख्य मीणों को मार दिया। मीणों की भूमि में मीणों पर इस प्रकार की मार पड़ी कि वे थर्रा उठे। अपने प्राणों की भीख मांगते हुये बच कर भाग खड़े हुये। इस लड़ाई में तेजा अत्यधिक घायल हो गए। तेजा ने लीलण को इसारा किया। बछड़े को साथ लेकर तेजा उन्हीं खोजों वापस रंगबाड़ी पनेर आ गए।


प्रथम समर भूमि चांग – नष्ट हो चुके इस चांग गाँव की भूमि तेजाजी और लाछां की गायें हरण करने वाले मेर-मीणों की समर भूमि है।


[पृष्ट-249]: युद्ध स्थल की यह भूमि अजमेर की किशनगढ़ तहसील के गाँव मंडावरिया की पहाड़ी की उत्तर-पूर्वी तलहटी में स्थित है।

मंडावरिया पर्वत की तलहटी स्थित रण संग्राम स्थल

मंडावरिया - यह मंडावरिया गाँव किशनगढ़ से से 3-4 किमी पूर्व में अजमेर-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग-8 के उत्तरी दिशा में आबाद है। इस गाँव से सटकर पूर्व दिशा में करीब 2.5 किमी उत्तर-दक्षिण दिशा की तरफ फैली पहाड़ी है। पहाड़ी की चौड़ाई आधा किमी के लगभग है। इस पहाड़ी के पूर्व दिशा में लगभग 2.5 किमी की दूरी पर तोलामाल गाँव बसा है। उससे 2 किमी पूर्व चुंदड़ी गाँव बसा है। इस पहाड़ी की उत्तर दिशा में 2-3 किमी दूरी पर फलौदा गाँव है। तथा 6-7 किमी की दूरी पर तिलोनिया गाँव है। पहाड़ी के उत्तरी-पूर्वी छोर की तलहटी में पहाड़ी से लेकर करीब 4 किमी पूर्व तक तथा 2 किमी चौड़ाई में गायें छुड़ाने के लिए तेजाजी का मेर-मीणा लोगों के साथ मूसलाधार वर्षा तथा तूफानी काली रात में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध के अवशेष यहाँ के चप्पे-चप्पे में विद्यमान हैं। पहाड़ी के उत्तरी-पूर्वी तलहटी के छोर के करीब 1 किमी नीचे सेवड़िया गोत्र के तेज़ूराम जाट का कुआ है जो तोलामाल गाँव की सीमा में पड़ता है। इस कुआ के इर्द-गिर्द इस युद्ध से संबन्धित हल्के लाल गुलाबी रंग के पत्थर के लड़ाई में मारे गए लोगों के देवले मौजूद है। गाँव के पुराने लोग बताते हैं कि वर्षों पहले यहाँ बहुत संख्या में मूर्तियाँ देवले थे परंतु आज की स्थिति में 3 देवले सही हालत में सुरक्षित बचे हुये हैं।


मंडावरिया पर्वत की तलहटी स्थित रण संग्राम स्थल के देवले

[पृष्ठ-250]: ग्रामीणों द्वारा ये देवले तोड़ दिये गए हैं जिनके कुछ अवशेष सरक्षित देवले के पास छोटे टीले में दबे पड़े हैं। बचे हुये देवलों के ऊपर देवनागरी लिपि में खुदाई की हुई है किन्तु पुराने और घिसे होने के कारण पढे नहीं जा सकते। आधे अधूरे अक्षर जो पढ़ने में आ रहे है वे इस प्रकार हैं – रण, पग, रण संग्राम ला, स, सा, बदी महिना, बा, घ, रा, 1048 अथवा 1040 जैसे अंक पढे जा सके हैं लेकिन तारतम्य नहीं बैठ पाया। हमारे खोजी दल ने उस स्थान पर तीन बार खोज की तब सेवड़िया परिवार ने बताया कि कुछ टूटी हुई मूर्तियाँ कुए की खुदाई में भी निकली हैं।

समर दौरान झाड़ी में टिका लीलण का घुटना

कुए से पूर्व दिशा में चूंदड़ी गाँव के पलटी में कैर की झाड़ी में एक तेजाजी का स्थान है। जिसके बारे में दृढ़ मान्यता है कि इस स्थान पर लड़ते हुये तेजाजी का घुटना टिका था जिसे संभाल कर लीलण ने वापस अपनी पीठ पर ले लिया था।

पहाड़ी के नीचे पत्थरों का बना एक बाड़ा है जिनके अब अवशेष मात्र बचे हैं। उसे वहाँ के लोग मेर मीनों का बाड़ा कहते हैं।


[पृष्ठ-251]: उस बाड़ा से नीचे उजड़े हुये गाँव के अवशेष रूप में मोटी-मोटी ठीकरियाँ व जमीन से राख़ निकलती है। श्रुति परंपरा के मर्मज्ञ भारमल जी चौधरी आदि का कहना है कि यही वह मीनों मेरों का चांग गाँव था जो तेजाजी की लड़ाई में नष्ट हो चुका था। इस चांग गाँव के अवशेष कुछ लंबाई चौड़ाई में फैले हैं। पहाड़ी में ऊपर की ओर मीनों का भैरू जी का स्थान है, जो अब उजड़ गया है।

उजड़े हुए चांग गांव के चिन्ह - ठीकरे
उजड़े हुए चांग गांव का मेर मीणा का बाड़ा

इस उजड़े हुये गाँव की तरफ से पहाड़ी पर चढ़ने पर पहाड़ी के अंदर की तरफ एक दर्रा दिखाई देता है जो इन गायों को हरण कर छिपाने के लिए काफी उपयोगी रहता था। पहाड़ी की पश्चिम दिशा में थोड़ा उत्तर दिशा की ओर बढ़कर जरूर इस दर्रे का रास्ता खुलता है लेकिन पूर्व की ओर देखने में यह दर्रा काफी बीहड़ और दिलचस्प दिखाई देता है। हमने तेजाजी के युद्ध संबंधी अवशेषों को ढूँढने के लिए इस पूरे युद्ध क्षेत्र का एवं पहाड़ी क्षेत्र का चप्पा-चप्पा ढूंढा है। यहाँ पर यह गाँव पशुधन हरण हेतु स्थाईरूप से बसा रखा था। मूल चांग गाँव पाली जिले के करणा जी की डांग में था।


गायें छुड़ाकर पनेर प्रस्थान – [पृष्ठ-251]: झगड़ा जीतकर तेजाजी गायों को लेकर चले। गायें तेजाजी को चारों ओर से घेरकर चलने लगी। पनेर शहर पहुँच कर रंग बाड़ी बास में तेजाजी ने लाछा को एक-एक गाय संभलाई।

गिण गिण गाय संभालो लाछा गुर्जर ए ।
दूधड़लो पिलाओ बालक बाछड़ां॥

गायें संभलाने के दौरान लाछा से पता चलता है कि गायों का मांझी काणा केरड़ा, जो सूरज की छाप वाला सांड बनने वाला था उसे मीणा ले गए हैं। इस सांड के बिना दुधारू और सुंदर स्वस्थ गायों की नस्ल समाप्त हो जाएगी। काणा केरड़ा न आने से तेजाजी ने इसे अपना अधूरा धर्म पालन समझा। तेजाजी के लिए नाक का सवाल भी पैदा हो गया। तेजाजी को अपनी यह जीत जीत खंडित सी लगी। तेजा ने कहा मुझे तो वैसे ही अब अपने लोक जाना है क्योंकि मेरा समय पूरा हो गया है। बासगनाग को वचन दे आया हूँ तो धर्म का काम अधूरा क्यों छोड़ूँ। केरडा को छुड़ाकर लाना ही होगा। तेजाजी ने लीलण को वापस उसी दिशा में मोड दी जिस दिशा में मीणा लोग भागे थे।


नरवर घाटी – [पृष्ठ-253]: तेजाजी ने मीणों का पीछा किया। गायों को लेकर तेजाजी 30-32 किमी दूर पनेर तक आए। और इतनी ही दूर तक वापस आए तब तक मीणा टेढ़ी-मेढ़ी चाल चलते हुये नरवर की घाटी तक पहुँच गए थे । अब बारिस रुक चुकी थी। सुबह का समय हो गया था। वर्षा से गीली मिट्टी में गायों के पद चिन्ह के आधार पर नरवर घाटी तक तेजाजी पहुँच गए। वहाँ के प्रत्यक्ष दर्शी लोगों ने बताया कि मीणा नरवर घाटी पार करने वाले हैं। तेजाजी की घोड़ी लीलण हवा की तरह उड़ती थी। तेजाजी ने नरवर घाटी में मीणों को जा ललकारा। यहाँ मीणों ने एक चालाकी अपनाई। शेष बचे मीणों में से आधे तेजाजी से लुका-छिपी, झपट्टामार संघर्ष करने लगे तथा आधे केरडा को लेकर चांग की तरफ निकल लिए। घाटी स्थित सारे मीणों को परास्त करने के बाद तेजाजी पद चिन्हों के आधार पर आगे बढ़े।

Jat Gotras

Notable persons from this village

References

  1. "Early Chauhan Dynasties" by Dasharatha Sharma, p.40
  2. Prithvirajavijaya, Verse-68
  3. Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.244-251

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