Chang Pali
Chang (चांग) is a village in Raipur Pali tahsil of Pali district in Rajasthan.
Location
Chang is situated in Pali district north of adjoining village Chitar Pali and is at a distance of 10 km from Beawar (Ajmer) in west direction.
History
Village is associated with the History of Tejaji. Meenas of this village had stolen the cows of Lachha Gujari for which Tejaji had a war and defeated them.
संत श्री कान्हाराम[1] तेजाजी के पुरातात्विक अवशेष चांग व चांग का नीला खुर न्हालसा (लीलण के खुर का नाल) - अजमेर जिले के ब्यावर शहर से 10 किमी पश्चिम में पाली जिले की रायपुर तहसील के अंतर्गत करणाजी की डांग में यह चांग मिला। वहाँ के सरपंच कालू भाई काठात ने बताया कि उनके अजयसर अजमेर निवासी राव मोहनदादा की बही से भी इस बात की पुष्टि होती है कि उस जमाने में चांग में चीता वंशी मेर-मीणा रहते थे।
प्रथम समर भूमि चांग
संत श्री कान्हाराम[2] ने लेख किया है कि लाछा गुजरी की गायें मीणों द्वारा अपहरण कर ले जाने के बाद मीणों से युद्ध कर गायें छुड़ाई थी। वह स्थान जहां युद्ध हुआ उसके बारे में जानकारी दी गई है:
प्रथम समर भूमि चांग – नष्ट हो चुके इस चांग गाँव की भूमि तेजाजी और लाछां की गायें हरण करने वाले मेर-मीणों की समर भूमि है।
[पृष्ट-249]: युद्ध स्थल की यह भूमि अजमेर की किशनगढ़ तहसील के गाँव मंडावरिया की पहाड़ी की उत्तर-पूर्वी तलहटी में स्थित है।
मंडावरिया - यह मंडावरिया गाँव किशनगढ़ से से 3-4 किमी पूर्व में अजमेर-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग-8 के उत्तरी दिशा में आबाद है। इस गाँव से सटकर पूर्व दिशा में करीब 2.5 किमी उत्तर-दक्षिण दिशा की तरफ फैली पहाड़ी है। पहाड़ी की चौड़ाई आधा किमी के लगभग है। इस पहाड़ी के पूर्व दिशा में लगभग 2.5 किमी की दूरी पर तोलामाल गाँव बसा है। उससे 2 किमी पूर्व चुंदड़ी गाँव बसा है। इस पहाड़ी की उत्तर दिशा में 2-3 किमी दूरी पर फलौदा गाँव है। तथा 6-7 किमी की दूरी पर तिलोनिया गाँव है। पहाड़ी के उत्तरी-पूर्वी छोर की तलहटी में पहाड़ी से लेकर करीब 4 किमी पूर्व तक तथा 2 किमी चौड़ाई में गायें छुड़ाने के लिए तेजाजी का मेर-मीणा लोगों के साथ मूसलाधार वर्षा तथा तूफानी काली रात में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध के अवशेष यहाँ के चप्पे-चप्पे में विद्यमान हैं। पहाड़ी के उत्तरी-पूर्वी तलहटी के छोर के करीब 1 किमी नीचे सेवड़िया गोत्र के तेज़ूराम जाट का कुआ है जो तोलामाल गाँव की सीमा में पड़ता है। इस कुआ के इर्द-गिर्द इस युद्ध से संबन्धित हल्के लाल गुलाबी रंग के पत्थर के लड़ाई में मारे गए लोगों के देवले मौजूद है। गाँव के पुराने लोग बताते हैं कि वर्षों पहले यहाँ बहुत संख्या में मूर्तियाँ देवले थे परंतु आज की स्थिति में 3 देवले सही हालत में सुरक्षित बचे हुये हैं।
[पृष्ठ-250]: ग्रामीणों द्वारा ये देवले तोड़ दिये गए हैं जिनके कुछ अवशेष सरक्षित देवले के पास छोटे टीले में दबे पड़े हैं। बचे हुये देवलों के ऊपर देवनागरी लिपि में खुदाई की हुई है किन्तु पुराने और घिसे होने के कारण पढे नहीं जा सकते। आधे अधूरे अक्षर जो पढ़ने में आ रहे है वे इस प्रकार हैं – रण, पग, रण संग्राम ला, स, सा, बदी महिना, बा, घ, रा, 1048 अथवा 1040 जैसे अंक पढे जा सके हैं लेकिन तारतम्य नहीं बैठ पाया। हमारे खोजी दल ने उस स्थान पर तीन बार खोज की तब सेवड़िया परिवार ने बताया कि कुछ टूटी हुई मूर्तियाँ कुए की खुदाई में भी निकली हैं।
कुए से पूर्व दिशा में चूंदड़ी गाँव के पलटी में कैर की झाड़ी में एक तेजाजी का स्थान है। जिसके बारे में दृढ़ मान्यता है कि इस स्थान पर लड़ते हुये तेजाजी का घुटना टिका था जिसे संभाल कर लीलण ने वापस अपनी पीठ पर ले लिया था।
पहाड़ी के नीचे पत्थरों का बना एक बाड़ा है जिनके अब अवशेष मात्र बचे हैं। उसे वहाँ के लोग मेर मीनों का बाड़ा कहते हैं।
[पृष्ठ-251]: उस बाड़ा से नीचे उजड़े हुये गाँव के अवशेष रूप में मोटी-मोटी ठीकरियाँ व जमीन से राख़ निकलती है। श्रुति परंपरा के मर्मज्ञ भारमल जी चौधरी आदि का कहना है कि यही वह मीनों मेरों का चांग गाँव था जो तेजाजी की लड़ाई में नष्ट हो चुका था। इस चांग गाँव के अवशेष कुछ लंबाई चौड़ाई में फैले हैं। पहाड़ी में ऊपर की ओर मीनों का भैरू जी का स्थान है, जो अब उजड़ गया है।
इस उजड़े हुये गाँव की तरफ से पहाड़ी पर चढ़ने पर पहाड़ी के अंदर की तरफ एक दर्रा दिखाई देता है जो इन गायों को हरण कर छिपाने के लिए काफी उपयोगी रहता था। पहाड़ी की पश्चिम दिशा में थोड़ा उत्तर दिशा की ओर बढ़कर जरूर इस दर्रे का रास्ता खुलता है लेकिन पूर्व की ओर देखने में यह दर्रा काफी बीहड़ और दिलचस्प दिखाई देता है। हमने तेजाजी के युद्ध संबंधी अवशेषों को ढूँढने के लिए इस पूरे युद्ध क्षेत्र का एवं पहाड़ी क्षेत्र का चप्पा-चप्पा ढूंढा है। यहाँ पर यह गाँव पशुधन हरण हेतु स्थाईरूप से बसा रखा था। मूल चांग गाँव पाली जिले के करणा जी की डांग में था।
गायें छुड़ाकर पनेर प्रस्थान – [पृष्ठ-251]: झगड़ा जीतकर तेजाजी गायों को लेकर चले। गायें तेजाजी को चारों ओर से घेरकर चलने लगी। पनेर शहर पहुँच कर रंग बाड़ी बास में तेजाजी ने लाछा को एक-एक गाय संभलाई।
- गिण गिण गाय संभालो लाछा गुर्जर ए ।
- दूधड़लो पिलाओ बालक बाछड़ां॥
गायें संभलाने के दौरान लाछा से पता चलता है कि गायों का मांझी काणा केरड़ा, जो सूरज की छाप वाला सांड बनने वाला था उसे मीणा ले गए हैं। इस सांड के बिना दुधारू और सुंदर स्वस्थ गायों की नस्ल समाप्त हो जाएगी। काणा केरड़ा न आने से तेजाजी ने इसे अपना अधूरा धर्म पालन समझा। तेजाजी के लिए नाक का सवाल भी पैदा हो गया। तेजाजी को अपनी यह जीत जीत खंडित सी लगी। तेजा ने कहा मुझे तो वैसे ही अब अपने लोक जाना है क्योंकि मेरा समय पूरा हो गया है। बासगनाग को वचन दे आया हूँ तो धर्म का काम अधूरा क्यों छोड़ूँ। केरडा को छुड़ाकर लाना ही होगा। तेजाजी ने लीलण को वापस उसी दिशा में मोड दी जिस दिशा में मीणा लोग भागे थे।
नरवर घाटी – [पृष्ठ-253]: तेजाजी ने मीणों का पीछा किया। गायों को लेकर तेजाजी 30-32 किमी दूर पनेर तक आए। और इतनी ही दूर तक वापस आए तब तक मीणा टेढ़ी-मेढ़ी चाल चलते हुये नरवर की घाटी तक पहुँच गए थे । अब बारिस रुक चुकी थी। सुबह का समय हो गया था। वर्षा से गीली मिट्टी में गायों के पद चिन्ह के आधार पर नरवर घाटी तक तेजाजी पहुँच गए। वहाँ के प्रत्यक्ष दर्शी लोगों ने बताया कि मीणा नरवर घाटी पार करने वाले हैं। तेजाजी की घोड़ी लीलण हवा की तरह उड़ती थी। तेजाजी ने नरवर घाटी में मीणों को जा ललकारा। यहाँ मीणों ने एक चालाकी अपनाई। शेष बचे मीणों में से आधे तेजाजी से लुका-छिपी, झपट्टामार संघर्ष करने लगे तथा आधे केरडा को लेकर चांग की तरफ निकल लिए। घाटी स्थित सारे मीणों को परास्त करने के बाद तेजाजी पद चिन्हों के आधार पर आगे बढ़े।
चांग के लीलाखुर न्हालसा में केरडा हेतु लड़ाई - मीणा केरडा को चांग के पलसे तक ले भागने में सफल हो गए। चांग गाँव से करीब 1.5 किमी उत्तर की तरफ ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी मंगरे में जिस स्थान का नाम नीलाखुर न्हालसा (लीलण के खुर का नाला, वहाँ चट्टानों पर लीलण के खुरों के चिन्ह बने हुये हैं। वहाँ झरना भी फूटता है। उस जगह को वहाँ के लोग पवित्र मानते हैं। झरने में स्त्रियाँ अपने पैर तथा कपड़े नहीं धोती है) वहाँ मीणों के साथ तेजाजी की दूसरी लड़ाई होती है। मीणों का चांग गाँव निकट होने से वे भी लड़ाई में शामिल हो जाते हैं। अब मीणों की संख्या 750 हो जाती है।
लीलण हवा से बातें करती है। तेजाजी का बीजल सार भाला, बिजली की गति से मीणों पर वार करता है। यहाँ भी मीणों की हार होती है। मरे सो मरे बाकी सिर पर पैर रख कर भाग जाते हैं। तेजाजी के भालों की गति तथा भलकार के कारण 750 की संख्या होने के बावजूद तेजाजी के निकट नहीं फटक पाते हैं किन्तु बाणों की बोछार करके तेजाजी को अत्यधिक घायल कर देते हैं।
द्वितीय समर भूमि चांग
संत श्री कान्हाराम[3] ने लेख किया है कि
द्वितीय समर भूमि चांग-चितार जिला पाली – [पृष्ठ-254]: यह चांग गाँव ब्यावर से 10 किमी पश्चिम में पहाड़ियों के बीच स्थित है। ब्यावर में चांग गेट का नाम इसी गाँव के नाम पर पड़ा है। यह गाँव 1500-2000 वर्ष पुराना है। गाँव के सरपंच कालूभाई काठात व सुवाभाई काठात, शकूर काठात व बीरदा भाई काठात के अनुसार सर्वप्रथम यहाँ चंगेला गुर्जर जाति रहती थी। इसलिए इस गाँव का नाम चांग पड़ा। आज से करीब 1300 वर्ष पहले मीणा जाति के लोगों ने गुर्जरों को यहाँ से मार भगाया और स्वयं यहाँ बस गए। आज से 700 वर्ष पहले यहाँ मेहरात आकार बस गए और मीणों को मार भगाया। सरपंच कालूभाई ने बताया कि अजमेर के फ़ाईसागर रोड स्थित अजयसर निवासी मोहनदादा भाट की पोथी में उक्त बातें लिखी हैं। मेरा जी के नाम से मेहरात जाति बनी। मेरा जी यानि मेरू (मेर, पहाड़ियाँ के निवासी) मेरा जी के काठाजी, गोड़ा जी दो लड़के थे। वैसे काठाजी व गोड़ा जी उनकी पदवी थी। काठाजी का मूल नाम हर राज था व गौड़ाजी का मूल नाम बलराज था। काठाजी की औलाद काठात कहलाई व गौड़ा जी की औलाद गौड़ा कहलाई। ऐतिहासिक कारणों से काठात हिन्दू व मुस्लिम दोनों में पाए जाते हैं। मूलतः ये चौहान वंशी हैं। मेर अब रावत कहलाने लगे। चौहान नाडोल से आकर इस इलाके में बस गए। पहले पूरा मगरा गुर्जरों का था। यह चांग गाँव सात राजस्व गवों की पंचायत है। पंचायत में करीब 1500 घर हैं। अकेले चांग गाँव में 200 घर आबाद हैं। 150 काठात 10 रावत 10 साईं व भाट , बनिया, सरगरा, कुम्हार, साईं, जांगिड़, मेर, मेहरात जाति के हैं।
[पृष्ठ-255]: मेर, मेहरात जाति की मूल राजधानी दिवेर थी जो इस समय राजसमंद जिले में पड़ता है। यह मेर जाति कभी भी किसी के अधीन नहीं रही थी। यह चांग गाँव पाली के रायपुर तहसील में पड़ता है जो रायपुर से 40 किमी दूर स्थित है। चांग गाँव से उत्तर की ओर करीब 1.5 किमी पहाड़ियों के बीच तेजाजी और मीणा के बेच भिड़ंत हुई थी। ग्राम वासियों ने उस जगह का नाम नीलखुर न्हालसा बताया जिसका अर्थ है लीलण के खुर का नाला। वहाँ एक चट्टान पर लीलण के खुर के निशान हैं। ऐसा गाँव के लोग मानते हैं। इस स्थान पर पानी का झरना बहता है लोग इसको पवित्र मानती हैं और औरतें यहाँ पैर या कपड़े नहीं धोती हैं। तेजाजी भी चौहान वंशी होने के कारण यहाँ के काठात लोग तेजाजी में गहरी आस्था रखते हैं। सुवाभाई काठात तेजाजी व देवनारायन की सेवा करता है। नीलाखुर न्हालसा का स्थान हमें पड़ौसी गाँव सालकोट के बिरदा भाई काठात ने हमारे साथ जाकर दिखाया।
Population
Jat Gotras
Notable persons
External Links
References
- ↑ Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. p.39, 248, 254
- ↑ Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.248-255
- ↑ Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.248-255
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