Paramakamboja

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Paramakamboja (परमकांबोज) were people mentioned in Mahabharata who were subjugated by Arjuna. They were probably located in present Sinkiang or China Turkistan.

Origin

Variants

History

Some historians believe the Rishikas were a part of, or synonymous with, the Kambojas. However, there are other theories regarding their origins. Classical literary texts state that the Rishikas were neighbors of the Parama Kambojas and the Lohanas in Saka-dvipa ("Sakaland") (most likely Transoxiana).

According to traditional accounts, during the 2nd century BCE a subgroup of Rishikas migrated to southwestern India and settled there, crossing Afghanistan, Balochistan, Sindhu and Sovira. According to the Mahabharata Sabha Parva (II.24.24)), there were two divisions within the Rishikas: Uttararishika ("northern") and Parama Kamboja ("eastern").

परमकांबोज

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...परमकांबोज (AS, p.531) : 'लोहान् परमकाम्बोजानृषिकानुत्तरानपि, सहितांस्तान् महाराज व्यजयत् पाकशासनि:।'सभा पर्व महाभारत 27, 25. अर्जुन ने अपनी उत्तर की दिग्विजय-यात्रा में परमकांबोज पर विजय प्राप्त की थी। प्रसंगानुसार इसकी स्थिति वर्तमान सिन्क्यांग या चीनी तुर्किस्तान में जान पड़ती है. कांबोज कश्मीर के उत्तर पश्चिमी इलाक़े में था. परमकांबोज नाम अवश्य ही कांबोज के परे, उत्तर पश्चिम में स्थित देश को ही कहा गया होगा. (दे. उत्तरऋषिक, कंबोज)

उत्तरऋषिक

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ... उत्तरऋषिक (AS, p.89) - 'लोहान् परमकाम्बोजानृषिकानुत्तरानपि, सहितांस्तान् महाराज व्यजयत् पाकशासनि:।'सभा पर्व महाभारत 27, 25 अर्जुन ने अपनी दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में उत्तर-ऋषिकों से घोर युद्ध करने के पश्चात् उन पर विजय प्राप्त की थी। संदर्भ से अनुमेय है कि उत्तर-ऋषिकों का देश वर्तमान सिन्क्यांग (चीनी तुर्किस्तान) में रहा होगा। कुछ विद्वान् ऋषिक को यूची का ही संस्कृत रूप समझते हैं। चीनी इतिहास में ई. सन् से पूर्व दूसरी शती में यूची जाति का अपने स्थान या आदि यूची प्रदेश से दक्षिण-पश्चिम की ओर प्रव्रजन करने का उल्लेख मिलता है। कुशान इसी जाति से सम्बद्ध थे। ऋषिकों की भाषा को आर्षी कहा जाता था। सम्भव है रूसी और ऋषिक शब्दों में भी परस्पर सम्बन्ध हो। ('ऋ' का वैदिक उच्चारण 'रु' था जो मराठी आदि भाषाओं में आज भी प्रचलित है।)

लोह

लोह (AS, p.822): महाभारत सभा पर्व 27,27 में लोह का उल्लेख अर्जुन की उत्तर दिशा के देशों की दिग्विजय के संबंध में है- लोहान् परमकांबोजानृषिकानुत्तरानपि, सहितास्तान् महाराज व्यजयत् पाकशासनिः'। परमकांबोज संभवतः वर्तमान चीनी तुर्किस्तान (सीक्यंग) के कुछ भागों में रहने वाले कबीलों का देश था। इसी के निकट लोह प्रदेश की स्थिती रही होगी। वी एस अग्रवाल के मत में लोह या रोह (अथवा लोहित, रोहित) दर्दिस्तान के पश्चिम में स्थित काफिरिस्तान या कोहिस्तान का प्रदेश है जो अफ़ग़ानिस्तान की उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर हिन्दूकुश पर्वत तक विस्तृत है। रुहेल जो मूलतः इसी प्रदेश के निवासी थे, रोह के नाम पर ही रुहेले कहलाए। पाणिनि तथा भुवनकोश में भी इस देश का नामोल्लेख है।[3]

External links

References