Roha

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search

Roha (रोह) was King descended from Dadhichi.

Variants

Jat Gotras

Jat Gotras originated from Roha: [1]

Mention by Panini

Roha (रोह) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [2]

History

रोह = लोह

लोह (AS, p.822): महाभारत सभा पर्व 27,27 में लोह का उल्लेख अर्जुन की उत्तर दिशा के देशों की दिग्विजय के संबंध में है- लोहान् परमकांबोजानृषिकानुत्तरानपि, सहितास्तान् महाराज व्यजयत् पाकशासनिः'। परमकांबोज संभवतः वर्तमान चीनी तुर्किस्तान (सीक्यंग) के कुछ भागों में रहने वाले कबीलों का देश था। इसी के निकट लोह प्रदेश की स्थिती रही होगी। वी एस अग्रवाल के मत में लोह या रोह (अथवा लोहित, रोहित) दर्दिस्तान के पश्चिम में स्थित काफिरिस्तान या कोहिस्तान का प्रदेश है जो अफ़ग़ानिस्तान की उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर हिन्दूकुश पर्वत तक विस्तृत है। रुहेल जो मूलतः इसी प्रदेश के निवासी थे, रोह के नाम पर ही रुहेले कहलाए। पाणिनि तथा भुवनकोश में भी इस देश का नामोल्लेख है।[3]

रोह

बुद्धकालीन भारत में भी चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने छह महीने मतिपुरा (मंडावर) में व्यतीत किए थे। पृथ्वीराज चौहान और जयचंद की पराजय के बाद भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना हुई थी। उस समय यह क्षेत्र दिल्ली सल्तनत का एक हिस्सा रहा था। तब इसका नाम 'कटेहर क्षेत्र' था। औरंगज़ेब कट्टर शासक था। उसके शासनकाल में अनेक विद्रोही केंद्र स्थापित हुए थे। उन दिनों जनपद पर अफ़ग़ानों का अधिकार था। ये अफ़गानी अफ़ग़ानिस्तान के 'रोह' कस्बे से संबद्ध थे अत: ये अफ़गान रोहेले कहलाए और उनका शासित क्षेत्र रुहेलखंड कहलाया गया था। नजीबुद्दौला प्रसिद्ध रोहेला शासक था, जिसने 'पत्थरगढ़ का क़िला' को अपनी राजधानी बनाया था। [4]

References

  1. Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihas (The modern history of Jats), Agra 1998, p. 278
  2. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.40
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.822
  4. भारतकोश-बिजनौर

back to The Ancient Jats