Lohita

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search

Lohita (लोहित) was a Nagavanshi King. Lohita was also a country mentioned in Mahabharata (II.24.16) which was subjugated by Arjuna. It has been identified with Lahaul in Himachal Pradesh. Lohita is one of name in the List of Shiva's thousand names.

Variants

  • Lohita लोहित (1) = Luharu (लुहारू) (AS, p.824)
  • Lohita लोहित (2) = Lahula (लाहूल) हिमाचल प्रदेश (AS, p.824)

Mention by Panini

Lohita-shali (लोहित-शालि) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [1]


Lohitayasa (लोहितायस) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [2]

Associated Jat Gotras

  1. Lohamsher (लोहमशेर)
  2. Lohmarod (लोहमरोड़)
  3. Loat (लोअत)
  4. Lohit (लोहित)
  5. Loa (लोअ)

History

Source: Wisdom Library: Varāha-purāṇa

Lohitā (लोहिता).—Name of a river originating from Himālaya, a holy mountain (kulaparvata) in Bhārata, according to the Varāhapurāṇa chapter 85. There are settlements (janapada) where Āryas and Mlecchas dwell who drink water from these rivers.

Source: archive.org: Puranic Encyclopedia

1) Lohita (लोहित).—(rohita) Son of Hariścandra. (For details see under HARIŚCANDRA).

2) Lohita (लोहित).—A king of ancient India. This king was conquered by Arjuna. (Śloka 17, Chapter 27, Vana Parva).

3) Lohita (लोहित).—A serpent. This serpent is a member of the court of Varuṇa. (Śloka 8, Chapter 9, Sabhā Parva). Source: archive.org: Shiva Purana - English Translation

Lohita (लोहित) is the name of a lake.—Cf. Bṛhallohita as mentioned in the Śivapurāṇa 2.2.5. Note: The lake Lohita lies at the foot of the mountain Lohita—Hemaśṛṅga or Sarvoṣadha, situated on the north of the Hemakūṭa (Kailāsa) range. It is the source-lake of the Lauhitya identified with the modern river Brahmaputra.

Source: Cologne Digital Sanskrit Dictionaries: The Purana Index

1a) Lohita (लोहित).—Mt. next to Candraprabha lake. YakṣaMaṇidhara's residence.*

1b) Angāraka above Śukra in the grahamaṇḍala.*

1c) A Kauśika and a sage; a Brahmiṣṭha.*

1d) A Trayārṣeya; not to marry with Viśvāmitra, Aṣṭaka, etc.*

1e) A river in Bhāratavarṣa.*

1f) A son of Agni; of nine rays; born of Pūrvāṣāḍha.*

1g) A lake in the Lohita hill at the foot of Hemaśṛṅga from which rises the R. Lauhityā; on its banks is the garden of Viśoka.*

1h) A Varṣa of Śālmalidvīpa, adjoining the Uttama (Unnata, Vāyu-purāṇa) hill.*

1i) The place of Lohita in the maṇḍalam.*

1j) Sons of Kallolaha.*

2) Lohitā (लोहिता).—A river from the Himālayas.*

Ref: https://www.wisdomlib.org/definition/lohita

In Mahabharata

Lohita (लॊहित) is mentioned in Mahabharata (II.9.8), (II.24.16),(IX.44.101),

Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 9 mentions the Kings Oceans and the Rivers who attended Sabha of Varuna. Lohita (लॊहित) (Naga) is mentioned in Mahabharata (II.9.8). [3]....And Vasuki and Takshaka, and the Naga called Airavata; Krishna and Lohita; Padma and Chitra endued with great energy;....


Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 24 mentions countries subjugated by Arjuna that lay to the North. Lohita (लॊहित) (Country) is mentioned in Mahabharata (II.24.16). [4].... Having vanquished in battle the Puru king, as also the robber tribes, of the mountains, the son of Pandu (Arjuna) brought under his sway the seven tribes called Utsava-sanketa. That bull of the Kshatriya race then defeated the brave Kshatriyas of Kashmira and also king Lohita along with ten minor chiefs.


Shalya Parva, Mahabharata/Book IX Chapter 44 describes the Kings and clans who joined the ceremony for investing Kartikeya with the status of generalissimo. Lohita (लॊहित) is mentioned in Mahabharata (IX.44.101).[5]....Some bore white streaks on their bodies (शवेतलॊहित), and some bore red streaks. Some were of diversified colours and some had golden complexions, and some were endued with splendours like those of the peacock (मयूरसदृशप्रभा).

लोहित

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है .....लोहित (1) (AS, p.824) = लुहारू

लोहित (2) (AS, p.824) = लाहूल: हिमाचल प्रदेश में तिब्बत-भारत सीमा पर स्थित है. इसका उल्लेख महाभारत सभा पर्व 27,17 में अर्जुन की दिग्विजय यात्रा के संबंध में है--'ततः काश्मीरकान वीरान क्षत्रियान क्षत्रियर्षभः, वयजयल लॊहितं चैव मण्डलैर दशभिः सह'. (देखें लाहूल)

लाहूल, हि.प्र.

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है .....लाहूल (AS, p.817): हिमाचल प्रदेश में स्थित प्राचीन स्थानों में से एक है। महाभारत के समय यह स्थान उत्सवसंकेत अथवा किन्नर देश के अन्तर्गत था। आज भी यहाँ पर प्रचलित विवाह आदि की प्रथाएं प्राचीन काल के विचित्र रीति रिवाजों की ही परंपरा में हैं। कुछ विद्वानों के मत में महाभारत, सभापर्व 27,17 में लाहूल को ही लोहित कहा गया है। लाहूल में 8वीं शती ई. का बना हुआ 'त्रिलोकनाथ का मंदिर' स्थित है। इसमें श्वेत संगमरमर की 3 फुट ऊंची मूर्ति प्रतिष्ठित है। मंदिर की पुस्तिका के लेख के अनुसार त्रिलोकनाथ अथवा बोधिसत्व की इस मूर्ति का प्रतिष्ठान पद्यसंभव नामक एक बौद्ध भिक्षु ने आठवीं शती ई. में किया था। भिक्षु पद्यसंभव ने तिब्बत के राजा के निमंत्रण पर भारत से तिब्बत जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार किया था। त्रिलोकनाथ मंदिर को हिन्दू तथा बौद्ध दोनों ही पवित्र मानते हैं। भारत से तिब्बत को जाने वाला प्राचीन मार्ग लाहूल होकर ही जाता है।

लोहित-लोहर-क्षत्रिय (खत्री) जाटवंश

दलीप सिंह अहलावत [8] के अनुसार महाभारतकाल में इस जाटवंश का राज्य कश्मीर एवं ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में था। पाण्डवों की दिग्विजय में उत्तर की ओर अर्जुन ने सब जनपद जीत लिए।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-295


उसने लोहित (लोहत) जनपद को भी जीत लिया। यह जनपद कश्मीर में था (सभापर्व अध्याय 26-27-28)। भीमसेन ने पूर्व दिशा के देशों को जीत लिया। उसने लोहित देश (ब्रह्मपुत्र क्षेत्र) पर भी विजय प्राप्त की (सभापर्व अध्याय 29-30)।

कश्मीरी कवि कह्लण ने अपनी पुस्तक राजतरंगिणी में इस राजवंश को लोहर राजवंश लिखा है जो कि कश्मीर के इतिहास में एक प्रसिद्ध राजवंश था। ये लोग कश्मीर में पीरपंजाल पहाड़ी क्षेत्र में आबाद थे। इन लोगों के नाम पर लोहर कोट (लोहरों का दुर्ग) है। सुप्रसिद्ध महारानी दीद्दा का विवाह Ksemagupta (कस्मगुप्त) के साथ हुआ था। वह लोहर नरेश सिमहाराज का पुत्र था, जिसका विवाह जाटवंशज लल्ली साही नरेश भीम की पुत्री से हुआ था। यह भीम काबुल और उदभंग (अटक के निकट औन्ध) का शासक था। अतः दीद्दा लोहरिया जाट गोत्र की थी और काबुल के लल्ली (लल्ल) वंशी जाट नरेश की दुहोतरी थी। इस राजवंश की सन्तान आज भी साही जाट कहलाते हैं1

महारानी दीद्दा ने अपने भाई उदयराज के पुत्र संग्रामराज को अपना उत्तराधिकारी बनाया। उनकी मृत्यु सन् 1028 ई० में हो गई। (कह्लण की राजतरंगिणी, लेखक ए) स्टीन, vi 335, vii, 1284) इसके बाद लोहर जनपद का नरेश विग्रहराज हुआ (देखो कह्लण की राजतरंगिणी Vol. II P. 293, Steins note Ex.)2

अलबरुनी ने इस ‘लोहर कोट’ (लोहरों का दुर्ग) को ‘लोहाकोट’ का संकेत देकर लिखा है कि “इस लोहर कोट पर महमूद गजनवी का आक्रमण बिल्कुल असफल रहा था।”

फरिश्ता लिखता है कि “महमूद की नाकामयाबी का कारण यह था कि इस दुर्ग की ऊंचाई एवं शक्ति अदभुत थी।” (देखो, ‘लोहर का किला’ इण्डियन एक्टिक्योरी, 1897)3

महमूद गजनवी ने भारतवर्ष पर 1001 ई० से 1026 ई० तक 17 आक्रमण किये थे। उसने नगरकोट और कांगड़ा को सन् 1009 ई० में जीत लिया। उसके आक्रमण से भयभीत होकर कश्मीर में तत्कालीन शासन इतना अस्थिर हो गया था कि बिना आक्रमण ही अधिकारहीन हो उठा। तब लोहर क्षत्रियों (जाटवंश) ने ही वहां की सत्ता को स्थिर किया। ऐतिहासिक डफ् के लेखानुसार लोहर वंशज राज कलश ने संवत् 1120 (सन् 1063 ई०) से संवत् 1146 (सन् 1089) तक शासन किया। और संवत् 1159 (सन् 1102 ई०) तक राजा हर्ष, जो लोहर वंशज था, ने शासन किया4

सन् 1258 ई० में खान नल्व तातार ने जब कश्मीर पर आक्रमण करके श्रीनगर को लूटा तथा जलाया तब वहां लोहरवंशी जयसिंह उपनाम सिंहदेव राज्य करता था। उसके भाग जाने पर उसके भाई उदयनदेव ने राज्य सम्भाला। किन्तु उसके सेनापति रामचन्द्र ने राज्य छीन लिया। तिब्बती रैवनशाह ने रामचन्द्र की पुत्री कुतरानी से विवाह करके अपना शासन 2½ वर्ष चलाया। उसकी मृत्यु हो जाने पर लोहरवंशी उदयनदेव ने विधवा कुतरानी से विवाह करके 15 वर्ष अपना शासन चलाया। इस शासक की मृत्यु होते ही इस वंश का राज्य कश्मीर से समाप्त हो गया। तब से आज तक यह


1, 2, 3. जाट्स दी ऐनशनट् रूलर्ज पृ० 263, लेखक बी० एस० दहिया आई० आर० एस०।
4. जाटों का उत्कर्ष पृ० 365, लेखक कविराज योगेन्द्रपाल शास्त्री। इसी लेखक ने इस जाटवंश को लोहर क्षत्रिय या खत्री लिखा है।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-296


वंश सर्वथा राज्यहीन है (जाटों का उत्कर्ष पृ० 365-366, ले० योगेन्द्रपाल शास्त्री)।

लोहर क्षत्रिय (खत्री) गोत का विस्तार - इस लोहर क्षत्रिय (खत्री) गोत के जाट

जिला सोनीपत में गढ़ी ब्राह्मण, चटया, सबोली (आधा), सफीपुर (आधा), कुंडली, मनीपुर (आधा)।

दिल्ली प्रान्त में नरेला, बांकनेर, टीकरी खुर्द, सिंघोला, शाहपुर गढ़ी,

जिला जींद में नरेला से गये हुए बंनु, भूड़ा, कसान गांव हैं।

जिला मेरठ में इस वंश के गांव भैंसा और मनफोड़ हैं।

मथुरा के आस-पास इस वंश के लोग हैं जो कि लोहारिया कहलाते हैं। यू० पी० में ये लोग लऊर और लाहर नाम से प्रसिद्ध हैं।

लोहित-लोहर के शाखा गोत्र - 1. लऊर-लाहर 2. लोहारिया-लोहार। इस वंश को लोहर खत्री कहा गया है।

External links

References

  1. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.206
  2. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.231
  3. वासुकिस तक्षकश चैव नागश चैरावतस तदा, कृष्णश च लॊहितश चैव पद्मश चित्रश च वीर्यवान (II.9.8)
  4. ततः काश्मीरकान वीरान क्षत्रियान क्षत्रियर्षभः, वयजयल लॊहितं चैव मण्डलैर दशभिः सह (II.24.16)
  5. चामरापीडक निभाः शवेतलॊहित राजयः, नानावर्णाः सवर्णाश च मयूरसदृशप्रभाः (IX.44.101)
  6. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.824
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.817
  8. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.295-296

Back to The Ancient Jats