Prithvi Singh Dagar

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Capt Prithvi Singh Dagar

Capt Prithvi Singh Dagar, Vir Chakra (Posthumous), From Village Malik Pur, Najafgarh, Delhi, Martyr on 11.9.1967 near China border, Unit : 2 Grenadiers

Biodata

Born : 1 June 1942, Village Malik Pur, Najafgarh, Delhi

Father : Shri. Kewal Singh Dagar

Commission : 2 February 1964

Award date : 11 September 1967

Other awards : Mention-in-Despatch

Studied : High School, Ujwa, Palam & Ramjas Collage, Delhi

Religion : Hindu

The act of bravery

At 5:30 hours on 11th September ,1967, Captain Prithvi Singh Dagar was detailed as the Officer in charge of a party ordered to strengthen the wire laying party opposite South shoulder at Nathula. Soon after the work was started the Chinese engaged in a scuffle with his party, but undaunted,he continued his work. The Chinese soldiers opened fire and he was hit by a riffle bullet in the right hand. Despite his wound, and in the face of MMG fire from the attacking force, he with the riffle of a dead comrade,Killed two Chinese soldiers. Despite all efforts, the Chinese MMG could not be silenced . Finding no other alternative but to make a direct assault,he leapt forward and assaulted the MMG position, and in this action he laid down his life.

In this action, Captain Prithvi Singh Dagar displayed exemplary courage and leadership of a high order.

Honour

The Road from Jafar Pur to Malikpur and beyond is named after him

Further Information

  • Contact : Vijay Dagar (Nephew of Capt. DAGAR)
  • Mobile: 09811176260
  • Email: vijaykdagar@gmail.com

कैप्टन पृथ्वी सिंह डागर

कैप्टन पृथ्वी सिंह डागर

01-06-1942 - 11-09-1967

वीर चक्र (मरणोपरांत)

यूनिट - 2 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट

ऑपरेशन नाथूला 1967

कैप्टन पृथ्वी सिंह डागर का जन्म 1 जून 1942 को दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र के मलिकपुर गांव में चौधरी केवल सिंह डागर एवं श्रीमती दड़का देवी के परिवार में हुआ था। अपनी शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत 2 फरवरी 1964 को उन्हें भारतीय सेना की ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट की 2nd बटालियन में लेफ्टिनेंट के पद पर कमीशन प्राप्त हुआ था।

वर्ष 1967 में भारतीय सेना ने प्रायः सीमा विवादों को लेकर चीनी सैनिकों से होने वाले टकराव को टालने के लिए नाथूला में सिक्किम-तिब्बत सीमा पर तार की बाड़ लगाने का निर्णय लिया गया। 11 सितंबर 1967 को, सुबह 05:40 बजे भारतीय सेना के इंजीनियरों ने नाथूला के उत्तरी आधार पर तार बाधा का निर्माण शुरू किया। चीनी सेना तार बाधा का विरोध कर रही थी, परिणामस्वरूप, वहां भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हो गई। चीनी सैनिकों ने अचानक सामने से व साथ ही साथ दोनों किनारों से गोलीबारी आरंभ कर दी।

इस गोलीबारी में कैप्टन पृथ्वी सिंह को दांए हाथ में गोली लगी। घायल होने पर भी उन्होंने सैनिकों की कम संख्या, सीमित हथियारों और दुश्मन मशीनगनों की भयानक गोलीबारी में अपने एक गिरे हुए साथी सैनिक की राइफल उठाई और दो चीनियों को मार गिराया। दोनों ओर से हो रही गोलीबारी में सारे प्रयासों के उपरांत भी चीनियों के मशीनगन फायर को बंद नहीं किया जा सका। दुश्मन मशीनगन पर सीधे हमले के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं देखते हुए कैप्टन पृथ्वी सिंह उस मशीनगन की ओर झपटे व बम फेंक कर उसे शांत कर दिया। इस साहसिक एवं वीरतापूर्ण कार्रवाई में कैप्टन पृथ्वी सिंह को उस दुश्मन मशीनगन की कई गोलियां लगी और वह वीरगति को प्राप्त हुए। इस लड़ाई में बलिदान हुए कैप्टन कैप्टन पृथ्वी सिंह व अन्य जवानों का वहीं युद्धस्थल पर ही सैन्य सम्मान से अंतिम संस्कार किया गया।

कैप्टन पृथ्वी सिंह को उनके अनुकरणीय साहस एवं उच्च कोटि के नेतृत्व प्रदर्शन के लिए 16 अप्रैल 1969 को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनके पिता चौधरी केवल सिंह ने ग्रहण किया। नाथूला में उनकी स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिए सेना द्वारा 'डागर द्वार' बनाया गया है। उनके परिजनों ने जाफरपुर कलां रावता मोड़ पर एक स्मारक संग्रहालय बनवाया है, जहां नाथुला की लड़ाई और उनके जीवन से संबंधित जानकारियों एवं वर्दी व अन्य वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया है। इस स्मारक पर हर वर्ष 11 सितंबर को उनके परिजनों व ग्रामीणों द्वारा उनका बलिदान दिवस मनाया जाता है। जाफरपुर से मलिकपुर और उससे आगे की सड़क का नाम उनके नाम पर रखा गया है

कैप्टन पृथ्वी सिंह डागर के बलिदान को देश युगों युगों तक याद रखेगा।

शहीद को सम्मान

कैप्टन पृथ्वी सिंह को उनके अनुकरणीय साहस एवं उच्च कोटि के नेतृत्व प्रदर्शन के लिए 16 अप्रैल 1969 को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनके पिता चौधरी केवल सिंह ने ग्रहण किया। नाथूला में उनकी स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिए सेना द्वारा 'डागर द्वार' बनाया गया है। उनके परिजनों ने जाफरपुर कलां रावता मोड़ पर एक स्मारक संग्रहालय बनवाया है, जहां नाथुला की लड़ाई और उनके जीवन से संबंधित जानकारियों एवं वर्दी व अन्य वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया है। इस स्मारक पर हर वर्ष 11 सितंबर को उनके परिजनों व ग्रामीणों द्वारा उनका बलिदान दिवस मनाया जाता है। जाफरपुर से मलिकपुर और उससे आगे की सड़क का नाम उनके नाम पर रखा गया है

गैलरी

स्रोत

संदर्भ



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