Shalv
Shalv (शाल्व)[1] Shalva (शाल्व)[2] Salva (साल्व)[3] is gotra of Jats.
Origin
This gotra is said to be originated from place name Solnagar, capital of Samudra Kukshi (कुक्षी). [4]
Mention by Panini
Salva (साल्वा) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi under Nadyadi (नद्यादि) (4.2.97) group.[5]
V. S. Agrawala[6] writes that Ashtadhyayi of Panini mentions janapada Salva, under Kachchhadi (कच्छादि) (IV.2.133) (शैषिक अण्। काच्छ:)[7], Bhargadi (भर्गादि) (IV.1.178) [8], and Sindhvadi (सिन्ध्वादि) (IV.3.93) (सोअस्याभिजन:,अण्। सैन्धव:)[9].
Salva (साल्व) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [10]
Salvas (साल्वा), Karakukshiyas (करकुक्षीय), is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [11]
Salvaka (साल्वक) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [12]
Salva padati (साल्वा पदाति) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [13]
Salvavayava (साल्वावयव) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [14]
Salvika Yavagu (साल्विका यवागू) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [15]
Salvi (साल्वी) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [16]
Salveya (साल्वेय) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [17]
Salveyaka (साल्वेयक) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [18]
History
The Salvas were a branch of the Madras and were ruling at Sialkot. We know that the Madras were Vahikas and Jartas. Since according to grammatical illustration of Chandra-gomin the Jarta defeated the Huns, which means Skanda Gupta defeated the Huns. Hence Jartas are Jats. [19]
V. S. Agrawala[20] writes about Art of war – The Āyudhajīvīns were warrior tribes organized on a military basis into Sanghas, occupying mostly the Vahika or Punjab. Their member were known as Āyudhīya, ‘making a living by the profession of arms’ (Āyudhena jīvati, IV.4.14). We know that these soldiers put up the stoutest resistance against the Greeks in the 4th century BC.
The Ashvakayanas of Masakavati and the Malavas, all ayudhajivins, constituted the finest soldiery, which extorted the admiration of foreigners. The Kshudrakas and Malavas (Ganapatha of IV.2.45) , we are informed by Katyayana, (p.422) pooled their military strength in a confederate army called the Kshudraka-Malavi senā. The foot soldiers (padāti) of the Salva country have been specially noted (IV.2.135). (p.423)
शाल्व-शिलाहार-सालार जाटवंश
दलीप सिंह अहलावत[21] लिखते हैं:
शाल्व-शिलाहार-सालार - महाभारतकाल में भारतवर्ष में इस चन्द्रवंशी जाटवंश के दो जनपद थे (भीष्मपर्व, अध्याय 9)। महाभारत युद्ध में शाल्व सैनिक दुर्योधन की ओर होकर पाण्डवों के विरुद्ध लड़े थे (भीष्मपर्व)। महाभारत विराट पर्व 1-9 और वनपर्व 12-33 में शाल्व वंश का वर्णन मिलता है।
इन शाल्वों की राजधानी सौभनगर समुद्रकुक्षि थी। श्रीकृष्ण जी ने दैत्यपुरी के नाम से प्रसिद्ध सौभनगरी के नरेश का दमन किया था। काशिकावृत्ति 4-2-76 के अनुसार एक वैधूमाग्नि नगरी भी इसी वंश की थी जिसका विधूमाग्नि नामक राजा था। सौभपुराधिपति राजा शिशुपाल का किसी नाते का भाई था (वनपर्व 15-13)। द्वापरान्त में यह वंश 6 भागों में बंट गया था (काशिकावृत्ति 4-1-17)। आठवीं शताब्दि तक इनकी प्रगति लुप्त रही।
843 ई० में बम्बई प्रान्त के थाना जिले में कृष्णागिरि से प्राप्त शिलालेख से प्रमाणित होता है कि थाना जिले पर 800 ई० से 1300 ई० तक इस वंश का राज्य रहा। ये महामण्डलेश्वर क्षत्रिय शिखाचूड़ामणि कहलाते थे। मराठों के सुप्रसिद्ध 96 कुलों में और राजस्थान के ऐतिहासिकों ने 36 राजवंशों में इस वंश की गणना करते हुए चन्द्रवंशी यादवकुलीन लिखा है। इस वंश के 11 राजाओं ने गुजरात पर शासन किया। इसके बाद सिद्धराज जयसिंह सोलंकी ने अनहिलवाड़ा पाटन में शासन स्थिर करके इनको गुजरात से निकाल दिया। (जाटों का उत्कर्ष पृ० 339, लेखक कविराज योगेन्द्रपाल शास्त्री)।
गोत्र का विस्तार: ये लोग शाल्व के स्थान पर सालार-सिलार भी भाषा भेद से प्रसिद्ध हुए। वर्तमान क्षत्रियों में इस वंश का अधिकांश भाग जाटों में पाया जाता है।
बिजनौर में सुवाहेड़ी, बहोड़वाला, नयागांव, हमीदपुर, जमालपुर आदि सालार जाटों के गांव हैं।
कहीं-कहीं शाल्व से सेल भी अपभ्रंश हुआ जिनमें बिजनौर जिले के सेह और हुसैनपुर गांव हैं। सेल जाट राजस्थान में कई स्थानों में बसे हुए हैं।
Population
Distribution
Notable persons
See also
Reference
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. स-181
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.60,s.n. 2312
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. स-184
- ↑ Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p. 280
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.510
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.50
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.497
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.498
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.498
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.55, 425
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.446
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.58, 225
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.58, 423
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.55
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p. 59, 105
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.89
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.55, 425
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.56
- ↑ K.P. Jayaswal's book, History of India, PP 115-16
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.422-423
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-297
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