Shalvakagiri

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Author: Laxman Burdak IFS (R)

Shalvakagiri (शाल्वका गिरि) is a mountain mentioned by Panini. This corresponds with the present Hala mountain, forming boundary between Baluchistan and Sindh.

Variants of name

Location

Range on the western frontier from Afghanistan to Baluchistan. [1]

Mention by Panini

Shalvakagiri (शाल्वकागिरि) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [2]


Shalvasenayah (शाल्वसेनय:) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [3]

History

Śālvakāgiri (शाल्वका गिरि) is name of a Mountain mentioned by Panini. [4]


V S Agarwal[5] mentions....[p.39]: These six names (of mountains) seem to be taken from some Bhuvanakosha list, giving in order the ranges on the western frontiers from Afghanistan to Baluchistan. Starting from below, Shalvakagiri is phonetically the name of [p.40]: Hala Range lying north-south between Sind and Baluchistan. To the west of it is the Makran chain of hills the home of the Hingula River and Hingulaja goddess, Hingula seems to be the Prakrit form of Kimsulaka. It was also called by its synonymous name, the Parada country, Pardene of classical writers, corresponding to Pardayana of Patanjali (IV.2.99). Goddess Hihgula of this place is of vermilion colour, also called Dadhiparni, because of its association with the ancient Scythian tribes of Dahae and Parnians. It was worshipped also as Nani, or Nana of antiquity.


V. S. Agrawala[6] writes that Ashtadhyayi of Panini mentions janapada Sālva (शाल्व) (IV.2.135). It was confined to limited geographical horizon in the central and north eastern Punjab. Shalva may coincide with the territory extending from Alwar to north Bikaner. Salvas were ancient people who migrated from west through Baluchistan and Sindh where they left traces in the form of Śālvakāgiri, the present Hala mountain, and then advancing towards north Sauvira and along the Saraswati and finally settled in north Rajasthan.


V. S. Agrawala[7] writes that Ashtadhyayi of Panini mentions janapada Bodha (बोधा) - The Bodha also occur in the list of Bhishmaparva (10.37-38) in the same group as Kulingas, Sālvas and Mādreyas. Shalva country had a special breed of bulls known as s Sālvaka.

सोमगिरि

सोमगिरि (AS, p.989): उत्तरकुरु या मेरु प्रदेश का स्वर्णिम प्रभा से मंडित एक पर्वत जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण के किष्किन्धा कांड में है (देखें उत्तरकुरु, मेरु). इस उल्लेख से ऐसा जान पड़ता है कि इस पर्वत को मेरुप्रभा (Aurora Borealis) नामक प्रकृति के अद्भुत दृश्य से संबंधित माना जाता था. यह दृश्य उत्तर मेरु प्रदेश में आज भी सामान्य रूप से देखा जाता है. [8]

दलीपसिंह अहलावत

हाला वंश की वीरता के कार्य और उज्जैन जीतने के वर्णन बड़े प्रभावोत्पादक हैं। इस हाला वंश का एक समय बंगाल, कर्नाटक, गुजरात, कश्मीर और सिंध पर भी राज्य था। बरार में भी वि० 187 से 277 (सन् 130 से 220) तक इस वंश का

राज्य रहा। इनमें श्री पुलमई के प्रभाव और प्रताप का सभी इतिहासकारों ने गुणगान किया है। सिंध में चन्दराम हाला नामक नरेश की परम्परा का राज्य 7वीं शताब्दी में मुहम्मद-बिन-कासिम ने समाप्त कर दिया। वहां सिंध को बलोचिस्तान से पृथक् करने वाला हाला पर्वत इसी हाला वंश के नाम पर है जो आजकल सोमगिरी कहलाता है। यहां पर इनके राज्य क्षेत्र का नाम हाला खण्डी था। काठियावाड़ में हाला नामक जिला इन्हीं हाला जाटों का स्मारक है। सिंध में हाला जाट मुस्लिम धर्मी हैं और राजस्थान, पंजाब तथा यू० पी० (बदायूं) में बसने वाले सभी हाला जाट हिन्दू हैं जो डीलडौल और गठन में आदर्श क्षत्रिय हैं। (जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ- 1026-1027)

ठाकुर देशराज

ठाकुर देशराज[9] ने लिखा है .... अफगानिस्तान में शिवि और कुर्रम दो जिले हैं, जो शिवि और कृमि जाटों के नाम पर मशहूर हुए थे। हाला जाटों के नाम पर एक हाला पहाड़ भी है, जिसे सोमगिरि के नाम से भी पुकारते हैं।

Jat clans

External links

References


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