Shamri

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Shamri (श्यामड़ी/ सामड़ी/ शामडी), is a village in Sonipat district in Haryana. Pincode of Shamri is 131306.

History

दलीपसिंह अहलावत लिखते हैं -

.....उस समय रोहतक बंगाल के गवर्नर के मातहत था, तथा कमिश्नरी का हैड क्वार्टर आगरा था। रोहतक का डिप्टी कमिश्नर जोहन एडमलौक था। 23 मई को क्रान्तिकारी सेना ने बहादुरगढ़ में प्रवेश किया और 24 मई को रोहतक पहुंची। डिप्टी कमिश्नर गोहाना के रास्ते करनाल भाग गया। रहे हुए अंग्रेज अधिकारियों को मार दिया गया। जेल के दरवाजे खोल दिये गए, कचहरी को आग लगा दी गयी। क्रान्तिकारी सेना ने शहर के हिन्दुओं को लूटना चाहा परन्तु जाटों ने ऐसा न करने दिया। क्रान्तिकारियों ने खजाने से दो लाख रुपया निकाल लिया। मांडौठी, मदीना, महम की चौकियां लूट ली गईं। सांपला तहसील को आग लगा दी गई। सभी अंग्रेज स्त्रियों को जाटों ने, मुस्लिम राजपूत (रांघड़ों) के विरोध के बावजूद, सही सलामत उनके ठिकानों पर पहुंचा दिया। गोहाना पर गठवाला मलिक जाटों ने कब्जा जमा लिया। अंग्रेजी सेना 30 मई को अम्बाला से रोहतक को चली, परन्तु देशी सेना ने उसे श्यामड़ी (सामड़ी) के जंगल में युद्ध करके हरा दिया।

....इस तरह हरयाणा के अन्दर फैले विद्रोह को दबाने के लिये सिक्ख व राजपूत फौज तथा अंग्रेजी फौज ने भारी अत्याचार किये तथा सन् 1857 ई० के अन्त तक सारे प्रदेश पर अधिकार कर लिया गया। जब गदर समाप्त हुआ तो प्रायः सभी गांवों के मुखिया लोगों और खासकर नम्बरदारों को फांसी पर चढ़ा दिया गया। झज्जर के चारों ओर की सड़कें उल्टे लटके मनुष्यों की लाशों से सड़ उठी थीं। रांघड़ों के नम्बरदारों तथा सामड़ी (गोहाना तहसील में) गांव के 10 जाट नम्बरदारों एवं एक ब्राह्मण को रोहतक की कचहरी व शहर के बीच नीम के वृक्षों पर (वर्तमान चौधरी छोटूराम की कोठी के सामने के वृक्षों पर) फांसी पर लटकाया गया था। फांसी से पहले अंग्रेज हाकिमों ने उन 10 जाट नम्बरदारों से पूछा - “बोलो क्या चाहते हो?” जाटों ने कहा कि हमारे ग्यारहवें साथी मुल्का ब्राह्मण को छोड़ दो। मुल्का ब्राह्मण ने अपने साथियों से अलग होने से इन्कार कर दिया। उसे भी उनके साथ ही फांसी दे दी गई। सारी लाशें गांव में लाकर जलाई गईं। उनके नाम ये हैं - 1. मुल्का ब्राह्मण 2. हरदयाल 3. श्योगा 4. बहादुरचन्द 5. हरकू 6. जमनासिंह 7. हरिराम 8. शिल्का 9. भाईय्या। नं० 2 से 9 तक सब जाट थे। शेष दो नामों का पता नहीं चला। [1]

Swami Omanand Saraswati writes -

१० मई को मेरठ से जो चिन्गारी छूटी वह ११ को देहली आ पहुँची । मेरठ की फौजों में सबसे अधिक हरयाणे के जाट और राजपूत थे । उनके बाद अहीर । उन फौजी सिपाहियों द्वारा यह आग सारे प्रदेश में व्याप्त हो गई । उस समय तक रोहतक बंगाल के गवर्नर के मातहत था, तथा कमिश्नरी का हेड-क्वार्टर आगरा । यहाँ के डिप्टी कमिश्नर जॉन एडमलौक थे । २३ मई को बहादुरगढ़ में शाही फौज ने प्रवेश किया और २४ मई को रोहतक पहुंची । डिप्टी कमिश्नर गोहाने के रास्ते करनाल भाग गया । रहे हुए अंग्रेज अधिकारी मारे गये । जेल के दरवाजे खोल दिये गये, कचहरी को आग लगा दी गई । शाही दस्ते ने शहर के हिन्दुओं को लूटना चाहा पर जाटों ने ऐसा न करने दिया । दो दिन ठहर कर विद्रोहियों ने खजाने से दो लाख रुपया निकाल लिया । मांडौठी, मदीना, महम की चौकियाँ लूट ली गईं । सांपला तहसील में आग लगा दी गई । सभी अंग्रेज स्त्रियों को जाटों ने मुस्लिम राजपूतों (रांघड़ों) के विरोध के बावजूद सही सलामत उनके ठिकानों पर पहुंचा दिया । गोहाना पर गठवाले जाटों ने कब्जा जमा लिया । ३० मई को अंग्रेजी फौज अंबाला से रोहतक चली, पर देशी फौजों के बिगड़ने से श्यामड़ी के जंगल में हार गई । बचे खुचे अंग्रेज दिल्ली को भागे । लुकते-छिपते ये लोग १० जून को सांपला पहुंचे । डिप्टी कमिश्नर सख्त धूप न सह सकने के कारण अंधा हो गया । रोहतक के विद्रोही १४ जून को दिल्ली पहाड़ी की लड़ाई में सम्मिलित हुए थे । जब अंग्रेज रोहतक पर किसी तरह भी काबू न पा सके तो मजबूर होकर उन्होंने २६ जुलाई सन् ५७ को एक घोषणा द्वारा जींद के महाराजा स्वरूपसिंह को सौंप दिया । दिसम्बर के अन्त तक जहां लोग अंग्रेज से लड़ते रहे, वहां जाटों की खापें आपस में भी एक दूसरे पर आक्रमण करती रहीं और बीच-बीच में रांघड़ों और कसाइयों से भी लड़ते रहे ।

(देखें पेज देशभक्तों के बलिदान (पृष्ठ - 325-334) - लेखक स्वामी ओमानन्द सरस्वती)

Jat gotras

Notable persons

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References


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