Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Amar Shahid Shri Karni Ramji

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

द्धितीय खण्ड - सम्मत्ति एवं संस्मरण

रीमती सुमित्रा सिंह
7. अमर शहीद श्री करणीराम जी

श्रीमती सुमित्रा सिंह

भूतपूर्व चिकित्सा राज्य मंत्री,

राजस्थान, जयपुर।

यद्यपि मैंने श्रद्धये करणीराम जी को अपनी आंखों से कभी नहीं देखा परंतु उनके बारे में जो सुना, पढ़ा और उनकी तस्वीर देखी उससे मुझे ऐसा लगता नहीं है कि मैंने उन्हें न देखा हो। मेरे पति ने उन्हें बहुत नजदीक से समझा है उनके साथ उनके समीप्य एवं सानिध्य में दो साल व्यतीत किए हैं, और उन्हीं से उनके बारे में सुन-सुन कर मुझे लगता है कि आंखों से ना देख कर भी मैंने दिल से उन्हें देखा और समझा है।

श्री करणी राम जी यथा नाम तथा गुण की कहावत को चरितार्थ करते थे। उनमें भगवान राम की सी सहनशीलता, वचनबद्धता, मर्यादा, सहिष्णुता एवं कर्तव्य प्रायणता के गुण थे तो कर्ण के समान दानवीरता, हिम्मत एवं हौसला था। उनमें महात्मा गांधी की सी सादगी, विनम्रता एवं संयम था तो जवाहरलाल नेहरू के समान कुशाग्र बुद्धि एवं दूर दृष्टि तथा योजना थी। शेखावाटी के इलाके में आज भी श्री करणीराम जी को लोग छोटे गांधी जी के नाम से पुकारते सुने जाते हैं, वे वास्तव में ही गांधी बापू का छोटा स्वरूप थे।

अपनी छोटी सी उम्र में ही उन्होंने जो कुछ कर दिखाया वह अत्यंत आश्चर्यजनक एवं प्रशंसनीय है। करणीराम जी के महान व्यक्तित्व के पीछे उनके मामा मुन्ना राम जी निवासी अजाड़ी कला का बड़ा हाथ है उन्होंने उन्हें उच्च शिक्षा प्रदान करवाई। उन्होंने ही उन्हें विधि स्नातक बनाया तथा पढ़ाई समाप्त करने के बाद जब उन्हें टी.बी. जैसी दुसाध्य बीमारी हो गई तब उन्होंने ही उनके इलाज की व्यवस्था की। यद्यपि उन दिनों में टी.बी.की बीमारी का इलाज काफी महंगा था। सच बात तो यह है कि मुन्ना राम जी ने अपने स्वयं के लड़कों से बढ़कर इन्हें माना और समझा।

यद्यपि श्री करणीराम जी ने झुंझुनू में थोड़े ही समय वकालत की परंतु


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-8

वकालत के पेशे में भी जिस आदर्श एवं मापदंड का पालन किया उससे यह पेशा ही गौरवान्वित हुआ।

वकील होने के बावजूद भी उनमें मानवता और उस निर्धन वर्ग और पीड़ित समाज के प्रति संवेदनशीलता थी कि जिस समाज में वे जन्म और पले थे उसी शोषित और पीड़ित किसान वर्ग तथा समाज में चेतना पैदा करने के लिए उन्होंने सामाजिक जीवन को चुना। उदयपुरवाटी तहसील, जो भौमियो एवं जागीरदारों के शोषण और उत्पीड़न का सर्वाधिक पीड़ित क्षेत्र था, उसे ही उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र चुना और किसानों को अपने हक और अधिकार के लिए जागृत करने के लिए लगान के रूप में फसल के छठे हिस्से से अधिक जागीरदारों को नहीं देने के लिए गांवों में चेतावनी स्वरूप जनसंपर्क का अभियान छेड़ा। भला जागीरदार और भौमिये जो शोषण करने के आदी बन चुके थे वह लगान लेना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे इस चुनौती और बगावत को कैसे बर्दाश्त करते। उन्होंने उनकी हत्या का षड्यंत्र रचकर आखिर 13 मई 1952 को उनके पार्थिव शरीर को गोलियों से भून डाला। मृत्यु से कुछ समय पूर्व यद्यपि उन्हें उनके अंत करने के षड्यंत्र की सूचना किसी इष्ट मित्र ने दे दी थी परंतु जिन्हें समाज और राष्ट्र के लिए भी जीना और मरना है उन्हें मृत्यु कहीं भयभीत कर सकती है क्या? महामानव के इरादे और संकल्पों को मृत्यु का भय कहीं विचलित कर पाता है क्या? करणीराम जी जिये भी समाज के लिए और मरे भी समाज के लिए। महामानव वही तो है जो दूसरे के लिए जीता है और मरता भी दूसरों के कल्याण के लिए ही है।

शेखावाटी के इतिहास में करणीराम जी अमर है; वंदनीय है, स्तुत्य है और करणीराम जी जैसे बलिदानी सपूत पैदा करके ग्राम भोजासर भी गौरवान्वित हो गया है ऐसे भारत मां के लाडले, राजस्थान की भूमि के साहसी सपूत करणीराम जी को मैं अपनी शत-शत श्रद्धांजलि इन शब्दों में अर्पित करती हूं:---

जननी जने तो ऐसा जन जैसा करणीराम ।

नहीं तो तू बाँझ रह काहे गवाये नाम ।।

शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-9

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