Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Mahan Deshbhakt Amar Shahid Karni Ram
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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम
लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984भारत के स्वतंत्रता संग्राम ने श्रद्धेय महात्मा गाँधी जी के मार्ग ढर्शन में अनेक नवयुवकों को देश के लिए महान से महान उत्तसर्ग, त्याग, बलिदान करने के लिए प्रेरित किया। इस काल में ऐसे नवरत्न पैदा हुए जो जीवन को तिल-तिल जलाकर प्रकाश देते रहे। जो अपने लिए नहीं, पीड़ित शोषित मानव के लिए जिस जिनके पवित्र मानव-प्रेम के समक्ष समस्त अमानवीय एवं अपावन विचारों ने घुटने टेक दिये।
माँ भारती के ये अमर पुत्र जब अपने पवित्र लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सत्य एवं अहिंसा के पावन साधनों के आधार पर अपने साधन पथ पर बढ़े तो पथ का अंधकार सब कुछ स्वयंमेव नष्ट हो गया और उन्होंने देश व मानव कल्याण हेतु अपने प्राणों की आहुति सहर्ष दे दी। ऐसे विलक्षण पुरुष इस भू-भाग में भी समय समय पर पैदा हुए है। इसी दिव्य लड़ी के एक ज्योतिमान रत्न है --- कर्मठ गांधीवादी, समाज सेवी, कर्मयोगी, महान देशभक्त, अमर शहीद श्री करणीराम।
श्री करणीराम जी का जन्म विक्रम सम्वत 1970 में एक साधारण किसान परिवार में श्री देवाराम जी के पुत्र रत्न के रूप में, झुंझुनू जिले के भोजासर गाँव में हुआ था। इनकी माता जी का स्वर्गवास उनकी बाल्यावस्था में होने के कारण लालन पालन इनके ननिहाल अजाड़ी ग्राम में हुआ। इनके मामा जी श्री मोहनराम जी तथा मामी जी का इनको अगाध प्यार और संरक्षण मिला। इनके मामा जी ने ही इनकी प्राम्भिक से लेकर उच्च शिक्षा तक का प्रबन्ध किया।
श्री करणीराम जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की डिग्री प्राप्त की। शेखावाटी में एक साधारण किसान परिवार के नवयुवक के लिए उस समय विधि स्नातक की डिग्री प्राप्त करना एक महान उपलब्धि थी। इस उपलब्धि पर इस भू-भाग के ग्रामीण जनों एवं नवयुवकों में एक अति हर्ष एवं उल्लास की लहर फैल गई थी।
उच्चतम शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् श्री करणीराम जी ने झुंझुनू में वकालत आरम्भ की। श्री करणीराम जी अपने इस व्यवसाय में सदैव महात्मा गाँधी जी के बतलाये हुए उच्च आदर्शो का अक्षरश: पालन किया। वे सदैव सच्चे, दुर्बल, पीड़ित, गरीब एवं शोषित पक्ष को कानून द्वारा सहायता दिलवाने में अधिक विश्वास करते थे। अदालतों पर उनकी सच्चाई की इतनी प्रतिष्ठा थी कि वे उनके पक्ष को सदैव सत्य एवं सही मानती थी। वे भी झूठे पक्ष की पैरवी नहीं करते थे। सदैव नैतिकता के पक्ष का समर्थन करते थे।
श्री करणीराम जी के ह्रदय में सदैव गरीब कृषकों, दुर्बल वर्गो एवं हरिजनों की निष्ठापूर्वक सेवा करने की उतकण्ठा बनी रहती थी। सन 1945-46 में उन्होंने हजारों किसानों की बेदखली के मुकदमों की पैरवी अपने स्वास्थ्य की परवाह न करके पूरी निष्ठा और अथक परिश्रम से की। जिसके कारण उनको एक गम्भीर रोग से ग्रस्त होना पड़ा, किन्तु वे कभी भी अपने पक्ष से विचलित नहीं हुए और शोषित, पीड़ित एवं दुर्बल वर्गो की सेवा करने में अपना जीवन अर्पण कर दिया।
उनके विद्यार्थी जीवन की मधुर स्मृतियों एवं स्नेह पूर्ण घनिष्ठ सम्बन्धों को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। उनके साथ सन 1945 से 1952 तक विद्यार्थी भवन की व्यवस्था समिति, जिलाबोर्ड, जिला कांग्रेस आदि में सक्रिय कार्य करने की मधुर स्मृतियाँ चिरस्मरणीय रहेंगी। उनकी संयोजकता में विद्यार्थी भवन का विस्तार किया गया, छात्र एवं छात्राओं के लिए पृथक-पृथक छात्रावासों का निर्माण किया गया। प्रारम्भिक पाठशाला को क्रमोन्नत करके आठवीं कक्षा तक अध्ययन का प्रबन्ध किया गया। पुस्तकालय व वाचनालय में पुस्तकों, दैनिक, साप्ताहिक पत्रिकाओं एवं पत्रों में वृद्धि की गई।
विद्यार्थियों के बौद्धिक विकास के साथ-साथ शारीरिक विकास के लिए सभी प्रकार के खेलों व्यायामों का प्रबन्ध किया गया। शिल्पकला एवं उद्योगधन्धो में शिक्षण देने का प्रबन्ध भी किया गया। श्रद्धेय महात्मा गाँधी जी का आशीर्वाद प्राप्त यह शिक्षण संस्था एक राष्ट्रीय संस्था के रूप में विकसित की गई। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य था। बिना जाति व धर्म के भेदभाव के सर्व साधारण के बालक बालिकाओं के लिए शिक्षण का प्रबन्ध करना व उनकी नैतिक उन्नति का ध्यान रखते हुए उनमें देश प्रेम व समाज सेवा की भावना पैदा करना जिससे वे देश के लिए योग्य जन सेवक तथा आर्दश नागरिक बन सकें।
जिला बोर्ड झुंझुनू के वित्तीय साधन बहुत ही सीमित होते हुए भी श्री करणीराम जी का सदैव यह हार्दिक प्रयत्न रहता था कि जन कल्याण के कार्य सभी से सक्रिय सहयोग ले द्रुत गति से पुरे किये जावें। इस सीमित साध्यों का लोक कल्याणकारी कार्यों में इस भांति उपयोग करें कि जनता जनार्दन का अत्यधिक हितचिंतन तथा आर्थिक, नैतिक, शैक्षिणिक, शारीरिक, सांस्कृतिक उत्थान एवं कल्याण संभव हो सके।
आप मन वचन एवं कर्म से पक्के गांधीवादी, समाज सेवी एवं समाज सुधारक थे। आप नम्रता एवं सौजन्य की मूर्ति थे। आप असत्य और सिद्धांत विहीनता के तीव्र विरोधी थे। सत्य पर चट्टान की तरह अडिग रहे और संसार की कतई परवाह न करके अपनी अन्तरात्मा के अनुसार आपने सदैव निर्भीक होकर कर्तव्य का पालन किया। आपने सदैव निस्वार्थ सेवा का मार्ग समाज के समक्ष प्रस्तुत किया और सभी आगत विघ्नबाधाओं को झेलते हुए उसी मार्ग पर अन्त तक अग्रसर होते रहे।
आपकी सौम्य प्रकृति, उदार ह्रदय, आडम्बर हीं स्वभाव, परोपकारी "बसुधैव कुटुम्बकम" विचार धारा चिर स्मरणीय है। आपने अपने परिवारों में विवाह पर दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, मृत्यु-भोज आदि कुरीतियों को ही बन्द नहीं किया अपितु हरिजनोद्धार के सम्बन्ध में अपना रसोइया हरिजन को रखकर एक आदर्श उपस्थित किया। इस प्रकार वे केवल एक कर्मठ समाजसेवी ही नहीं सच्चे
समाज सुधारक भी थे। वास्तव में सरल जीवन उच्चविचार ही आपका आदर्श था।
भारत में कृषकों की जागृति और अहिंसक आन्दोलन के लिए बारडोली, बिजोलिया और शेखावाटी का नाम सदैव अमर रहेगा। शेखावाटी जन आन्दोलन जो मुख्तयः कृषकों की जागृति का सूचक था। सन 1921 में श्रद्धेय महात्मा गाँधी जी के आशीर्वाद से प्रारम्भ हुआ। यह तिहरी गुलामी से मुक्ति पाने के लिए किया जा रहा था। इस जन जागृति को शिक्षण संस्थाओं, आर्य समाज, किसान पंचायतों, प्रजामण्डल एवं कांग्रेस का सक्रिय योगदान रहा, परन्तु बलिदान से उस नींव को भरा था जिस पर देश की स्वतंत्रता का भव्य भवन खड़ा किया गया है।
शेखावाटी के कृषकों ने भी अपनी कृषि-भूमि के रक्षार्थ एवं सामन्त वाद से मुक्ति पाने के लिए अनेक बलिदान किये। सन 1952 में राजस्थान की लोकप्रिय सरकार ने, वहां पर लगान नकद में निश्चित नहीं था, वहां पैदावार का छठा हिस्सा निश्चित किया परन्तु इस निर्णय के कारण शेखावाटी के उदयपुरवाटी क्षेत्र में एक विकट संघर्ष का वातावरण हो गया। राज्य सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जिलाधीश को किसान नेताओं के सहयोग लेने के लिए कहा। जिलाधीश ने श्री करणीराम जी को पत्र लिखकर उनका सक्रिय सहयोग माँगा।
13 मई 1952 को चंवरा में जहां पर केन्द्रीय रिर्जव पुलिस का केम्प लगा हुआ था। श्री करणीराम जी को जागीरदारों ने लगान संबन्धी किसानों के साथ समझौता शान्तिपूर्वक सदभावना के साथ करवाने के लिए निमंत्रित किया। किन्तु इस समझौते के स्थान पर 13 मई 1952 को दोपहर में आतताइयों की बन्दूक की गोलियों से बिना विचलित हुए अपने प्रिय साथी श्री रामदेव सिंह जी के साथ महानिर्वाण को प्राप्त हुए। इस महा बलिदान एवं प्राण-आहुति से उदयपुरवाटी का समस्त कृषक वर्ग समान्तवाद से मुक्ति पा गया। सदैव के लिए जागीरी अधिकार समाप्त हो गए। बन्दोबस्त हो गया, बेदखली बन्द हो गई। लगान निश्चित हो गए। इस घटना से कृषकों को अपनी भूमि के स्थाई अधिकार मिल
गये। इस घटना से सारे राजस्थान में एक महान दुःख एवं गम्भीर वेदना की लहर फैल गई। स्थान स्थान पर सभायें हुई।
अमर शहीदों की आत्मा के शान्ति के लिए प्रार्थना की गई। उनके परिवारों और मित्रों के प्रति गहरी संवेदना एवं सहानुभूति प्रकट की गई। आज भी इस घटना को याद आते ही शेखावाटी के कृषकों की आँखे सजल हो जाती है शेखावाटी की कृतज्ञ जनता प्रति वर्ष अपने इन अमर शहीदों को पुण्य स्मृति में एक सेवा आयोजित कर अमर शहीद श्री रामप्रसाद विसिमल की इस उक्ति को चरितार्थ करती है कि
"शहीदों की चिंताओं पर लगेंगे हर साल मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।।"इस महान देशभक्त,कर्मनिष्ठ, निःस्वार्थी, गांधीवादी, समाज सेवी भारत माँ के लाडले पुत्र अमर शहीद के प्रति अपना शीश नवा कोटि कोटि श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ और कविवर दिनकर जी के शब्दों में अपनी लेखनी से यहाँ कहता हूँ "कलम उनकी जय बोल, जो चढ़ गये पुण्य वेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल। साक्षी है जिनकी महिमा के, सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल। कलम आज उनकी जय बोल। "
"जो किसी अच्छे ध्येय के लिए अपना सारा जीवन समर्पण करता है, वही शहीद है"
विनोवा