Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Parthiv Se Swargiy

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

प्रथम-खण्ड:जीवन-वृतांत

पार्थिव से स्वर्गीय

दुनियां युगों तक देव पुरुष की प्रतीक्षा करती है।

पर जब वह आता है तो उसे फांसी पर लटका देती है।

शहीदों का दाह संस्कार

13 मई 1952 को जागीरदारों की गोलियों से शहीद हुए करणीराम मील और रामदेवसिंह गिल की विद्यार्थी भवन झुंझुनू में स्थित मूर्तियाँ

शहीदो के शवों को लेकर धूल वाली सड़क पर धूल का अम्बार उड़ाती गाड़ी चल रही थी। राह में अनेक लोगों की अश्रु-प्लावित आँखे इस कठोर दृश्य को देख रही थी। शवों को विद्यार्थी भवन के एक कमरे में जनता के दर्शनार्थ रखा गया। पूरे दिन दर्शनार्थियों का तांता लगा रहा। लोगों को इस बात का अधिक दुःख था कि जनता की सरकार के होते हुए जागीरदार आज भी कार्यकर्ताओं नेताओं की हत्या करते है।

सभी उपस्थिति नेताओं का निर्णय रहा कि दोनों शहीदों का दाह संस्कार विद्यार्थी भवन के प्रांगण में होना चाहिए। लम्बे समय से इस भवन से वे सम्बद्ध रहे थे तथा यहीं अनेक नेता एकत्रित होकर, आन्दोलन की योजना को अन्तिम रूप देते थे।

अगले दिन प्रातःकाल के कुछ समय बाद दोनों शवों को चिताओं पर रखा गया। धीरे-धीरे अग्नि की क्रूर लपटों ने शहीदों के शवों को भस्मीभूत कर दिया। जब तक चिता जलती रही,हजारों की भीड़ वहां उपस्थित रही। पार्थिव शरीर अब अपार्थिव बनकर विलीन हो गये थे पर जो कुछ महान कार्य उन्होंने जन सेवा के लिये किये थे, उन्हें स्मृति से ओझल करना समय के वश की बात नहीं थी।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, पृष्ठांत-100

शहीद स्मारक

आगे चलकर दाह स्थल पर चबूतरे का निर्माण करवाया गया। दोनों वीरों की संगमरमर की प्रतिमां स्थापित की गई। ये प्रतिमायें आज भी उस प्रांगण में स्थित है और नई पीढ़ी को उनके बलिदान का स्मरण करा रही है। देह जल कर भस्म हो जाता है पर आत्मा अमर है। "जातस्यहि धुर्वो मृत्यु धुर्व जन्म मृतस्यच" के अनुसार जो संसार में आया है उसे न एक दिन मरना होता है। मरण मानव का धर्म है और पुनर्जन्म आत्मा की शाश्वत प्रक्रिया।

महान कार्यो की पूर्ति महान साधनों से होती है। ये साधन है लगन,सर्वस्व समपर्ण की भावना और निडरता। आतताइयों के अत्याचार निरन्तर बलिदान मांगते है। बिना बलिदान के उनकी गति प्रतिहत नहीं होती। वह कोई पुण्य श्लोक महामानव होता है, जिसके कोमल कण्ठ के आगे आततायी के कृपाण की धार भी कुंठित हो जाती है। प्रसिद्ध अंग्रेज कवि बायरन ने ठीक ही कहा है कि वे कभी असफल नहीं होते जो महान उद्देश्यों के लिए लड़ते है।

चंवरा शहीदों का निर्वाण स्थल था। वहां शहीद पार्क योजना क्रियान्वित की गई। इस शहीद स्मारक की आधार शिला राजस्थान के तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री जय नारायण जी व्यास ने रखी थी जब वे चंबरा शहीद स्थल पर आये तब शहीदों के परिवार के लोगों से भी मिले थे।

बलिदान सेडूराम की ढाणी में हुआ था। उसने अपनी ढाणी दूसरी जगह बसा ली। उससे एक एकड़ जमीन शहीद स्मारक समिति ने ले ली। श्री करणीराम जी झुंझुनू जिला बोर्ड के अध्यक्ष थे। उनके शहीद हो जाने के बाद उनकी स्मृति में यहां एक पाठशाला और आयुर्वेर्दिक जिला बोर्ड ने बनवा दिया।

इसी प्रकार श्री करणीराम जी के जन्म स्थान भोजासर के चौक में श्री करणीराम जी की संगमरमर की प्रतिमा का स्थापन किया गया। इस मूर्ति का अनावरण राजस्थान के तत्कालीन मुख्य मन्त्री श्री हरिदेव जोशी ने किया था।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, पृष्ठांत-101

श्री जोशी जी ने भोजासर में राजकीय विद्यालय का नाम श्री करणीराम उच्च माध्यमिक विद्यालय करने की स्वीकृति दी।

24 मई, 1952 को शहीद स्थल पर एक श्रद्धांजलि कार्यकम रखा गया था जिसमें भाग लेने हज़ारों की संख्या में लोग आये थे। श्री सरदार हरलाल सिंह जी, श्री कुम्भाराम आर्य, श्री मथुरादास माथुर, श्री जुगलकिशोर चतुर्वेदी आदि अनेक नेताओ ने दिवगंत आत्मा को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये थे। हर साल इस स्थल पर एक शहीद मेला लगता है जिसमे बड़ी संख्या में लोग भाग लेते है।

करणीराम जी महान उद्देश्यों के लिए लड़े

श्री करणीराम जी के बलिदान को आज 32 वर्ष हो गए है। एक नई पीढ़ी यौवन के क्षेत्र में पदार्पण कर गई और तत्कालीन पीढ़ी प्रोढ़ावस्था पार कर गई। आज भी अनेक लोग है जिन्होंने इस बलिदानी वीर को अपनी आँखों से देखा था तथा उनकी औजसिवनी मधुर वाणी सुनी थी।

वर्तमान युग में एक निःस्वार्थ, निर्मल एवं निरभिमानी व्यक्तित्व की कल्पना करना ही कठिन है क्योंकि समाज का पूरा ढांचा ही आत्मपरक एम् स्वार्थ केन्द्रित हो गया है। नई सभ्यता के नये परिधान में गहरी आत्मीयता के दर्शन दुर्लभ हो गए है,मानवीय आस्था एवं श्रद्धा की भावना लुप्त हो गई है। आन्तरिक स्नेह और सदभावनाओ का तो जैसे जनाजा ही निकल गया है। इस संदर्भ में आज करणीराम जी का व्यक्तित्व सहज ही मानस पटल पर घूम जाता है और उनके व्यक्तित्व की सामयिकता एवं उनके सिद्धांतो की आवश्यकता और भी घनीभूत होकर महसूस हो सकती है।

वे इस संतप्त विश्व में एक शीतल जलधारा के समान आये और अत्याचार और अन्याय को तिनके की तरह बहा कर आंधी की भांति लौट गये।

उनकी समाधि का स्मरण-लेख इस रूप में अंकित किया जा सकता है :-


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, पृष्ठांत-102

"न त्वहं कामये राज्यं, न स्वर्ग नपुनर्भवम्।

कामये दुःखतप्तानां प्राणी नामार्तिनाशनम्।।"

मुझे राज्य नहीं चाहिये न मुझे स्वर्ग ही चाहिये। मैं पुनर्जन्म नहीं मांगता। मैं चाहता हूँ कि दुःखी प्राणियों के दुःख का समय-समय पर नाश करता रहूं। दुःखियों की सहायता ही मेरे जीवन का प्रमुख लक्ष्य है।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, पृष्ठांत-103

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प्रथम-खण्ड समाप्त