Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Shekhawati Ke Shahid Shiromani Karni Ram

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

द्धितीय खण्ड - सम्मत्ति एवं संस्मरण

ताड़केश्वर शर्मा
13. शेखावाटी के शहीद शिरोमणि : करणीराम

ताड़केश्वर शर्मा,

पचेरी

स्वर्गीय शहीद करणीराम जी का नाम सुनते ही एक टीस सी उठती है किन्तु फिर उनकी शहादत को याद कर एक महान गौरव की अनुभूति भी होती है कि ऐसे पवित्रात्मा से मेरा अति निकट का पारिवारिक संबंध रहा। वास्तव में वह एक संयोग ही था जो उनके बलिदान दिवस के दिन मैं उनके साथ नहीं था क्योंकि कुछ दिन पहले ही हम जयपुर से साथ-साथ आये थे और तय हुआ था कि मैं उदयपुरवाटी में उनके साथ 15 दिन का भ्रमण करूँ।

बात यह थी कि वह मेरे गांव में दो महिने रहे थे। शिव सिंहपुरा गोलीकाण्ड में शहीद हुये "दूत एवं बिरजू" दो किसानों के परिवार व उस ढाणी के किसानों के भूमि-संघर्ष में उन्होंने पैरवी की थी। पचेरी की सीमा में ही यह ढाणी थी और उन दिनों जागीरदार के डेरे में ही विशेष नाजिम द्धारा भूमि विवाद की सुनवाई की व्यवस्था की गई थी। कुछ दिन तो वे भोजन करने, रहने के लिए हमारे घर पर रहे किन्तु बाद में मुकदमें की तैयारी के लिये वह ढाणी में ही रहने लगे।

ढाणी के लोग जो उस समय के है उनके स्वभाव सरला से इतने प्रभावित है कि उन्हें देवता मानते हैं। इस काण्ड के समय ही मैनें एक पुस्तिका जागीरी समस्या राजगुण (पचेरी की पुकार) प्रकाशित कराई थी और उससे जागीरशाही जुल्म काफी उजागर हुए थे। अतः करणीराम जी ने वैसी ही एक पुस्तिका उदयपुरवाटी के बारे में लिख देने का आग्रह किया था। उदयपुरवाटी में भ्रमण के लिए इस पुस्तिका हेतु ही उनका अनुरोध था। मैनें 15 दिन बाद उनसे मिलने का व साथ रहने का


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-34

वादा किया था तथा कुछ प्रश्न नोट कराये थे, कि इन बिन्दुओं पर वह पुस्तक की सामग्री तैयार करावें।

इसे सौभाग्य कहूं या दुर्भाग्य कि मैं एक "सामाजिक कार्य" के संगीन मामले में उलझ गया और ईश्वर कृपा से वह तो सुलझ गया किन्तु मैं ऊँट से गिरकर तीन महीने तक अस्पताल में पड़ा रहा और वहीं करणीराम जी व रामदेव जी के बलिदान की रोमांचकारी कथा सुनी। अस्पताल में उपस्थित लोगों ने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि यदि मैं अपने वचनानुसार उनके साथ होता तो मेरी भी यही गति होती। पर मैं तो कह उठा "बन्धुओ ! इस सुगति के योग्य ईश्वर की दृष्टि में मैं नहीं था और कूल्हे की हड्डी की अस्पताल की नाटकीयता का अधिकारी था। " "दतूराम बीरजुराम" के बाद (सन 44) आठवें वर्ष में सन 1952 शेखवाटी के किसान आन्दोलन में हुए शहीदों की यह अन्तिम आहुति थी, जिससे युगों से आ रही सामन्ती प्रथा ही समाप्त नहीं हुई, किसान को जमीन का मालिकाना हक भी प्राप्त हो गया।

करणीराम के बारे में जो भी उनके सम्पर्क में आया है वह जानता है कि उनका अत्यंत मृदुल व्यवहार होता था। मेरे गाँव की विशेष अदालत का नाजिम उनसे बहुत प्रभावित था और जब मैने उनकी जागीरदारों से प्रभावित होने की बहुत सी घटनायें वकील जी से सुनी और अदालत में अविश्वास की दरख्वास्त किसानों से दिलादी तो करणीराम जी से कहा वह तो आपकी लिखी हुई नहीं है, और न आपकी सलाह लगती है। अतः मुझे व किसानों को बुलाकर आपकी स्थिति बताई व सफाई दी और वकील जी को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया। उन्हें भलमनसाहत की उपाधि दी और बोले आपके वकील जी बड़े संजीदा है। बड़ी अच्छी पैरवी करते हैं।

वही बड़े अच्छे भले वकील जी जयपुर में उदयपुर की अराजकतापूर्ण खौफनाक हालत का विस्तृत विवरण, जनता की चुनी हुई सरकार के कांग्रेसी मंत्रियों को देखकर दुखी होकर आये थे। तभी मुझसे मिलकर उन्होंने अपने बलिदान तक के लिये प्रतिज्ञा कर ढाणी-ढाणी में अलख जगाने का कार्यक्रम बनाया था।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-35

उदयपुरवाटी के भौमियों-जागीरदारों एवं अदालत व पुलिस के अधिकारियों से कभी कोई रोषपूर्ण बड़ी बात या नोंक-झोंक श्री करणीराम जी के लिये नहीं सुनी गई। कांग्रेस व किसान पंचायत के बड़े छोटे कार्यकर्ताओं की गुटबाजी से भी वह दूर थे। राजेन्द्र बाबू की तरह मैं उन्हें "अजात शत्रु" कहता था। उनके नृशंसतापूर्ण हत्याकांड" की घटना ने भौमियों व जागीरदारों को भी हतप्रभ कर दिया। कुछ सामन्ती प्रभावशाली तत्वों से जब बात हुई थी,तो वह भी बहुत व्यथित थे, कि ऐसे सीधे सरल निष्कपट महामानव की हत्या यद्पि कुछ अतिवादी घमंडी विकृतजनों के आवेश का फल है किन्तु उसके परिणाम स्वरूप उनके वर्ग को अशोभनीय व निन्दा की स्थिति में भयंकर रूप से डाल दिया है। वास्तव में करणीराम जी का बलिदान शेखावाटी में एक गम्भीर चेतावनी था।

करणीराम जी जैसे साधु स्वभाव के व्यक्तित्व के बलिदान ने जागीरदार भौमियों एवं राजस्थान सरकार को, जनता को विशेष रूप से किसानों को झक-झोर डाला तथा गम्भीरता से क्रान्तिकारी कदम उठाने को बाध्य कर दिया। कहना न होगा की शामन्तशाही के कफन की यह बलिदान वह कील साबित हुई जिसमे "जागीरी समाप्ति" कानून के रूप में अन्तिम कील का काम किया।

शेखावाटी सीकर के किसान आन्दोलन में बड़े बड़े शहीद हुए है। करणीराम जी बहुत बाद में आये। वकील बंधु भी बहुत पहले से इस आन्दोलन में त्याग,तपस्या व संकट झेल कर इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान करते रहे किन्तु करणीराम जी अपने किसान क्षेत्र के थोड़े समय में ही प्रामाणिक प्रवक्ता बन गये। रहन, सहन-खान-पान व सदव्यवहार से भी वह किसान के मूर्तिमान रूप थे। उनके अनेक संस्मरण हैं और उनके असंख्य प्रेमी प्रशंसक हैं जो उनसे उम्र व सेवा कार्यो में बड़े होते हुए भी उन्हें सादर स्मरण करते हैं। वह कवि के हसरत के फूलों में है जो अधखिले मुरझा गये।

मुझे वह गौरव रहा है कि वह व्यक्तित्व रूप से सम्मान देते व किसान कार्यकर्ताओं के प्रथम श्रेणी वालों में वरियता देते थे। मैं भी अन्तरंग व अन्यतम सहयोगी मानता था, क्योंकि भारी संकट वेदना के दिनों में उन्होंने मेरे गाँव में रहकर पैरवी की थी। मैं उनका ऋण उनका साथ देकर न चुका सका। देवगति,


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-36

से मेरा वादा दैविक दुर्घटना ने पूरा न होने दिया। कई बार अब भी गम्भीर वातावरण के क्षणों में उनकी याद कचोटती है। "शहीद शिरोमणि" करणीराम जी के पुण्य स्मरण का अवसर हर वर्ष आता है। यथा सामर्थ्य हम उनके प्रदेश वासी "मेला" आयोजन करके अपने को धन्य मानते है अतः इस वर्ष की "शहीद शिरोमणि" को बहुत-बहुत श्रद्धा सुमन।

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"स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।"-----श्री कृष्ण

अर्थात "अपने धर्म में मर जाना भी कल्याणकारी होता है, किन्तु परधर्म भयावह होता है।" (गीता)


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-37

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