Sher Singh Ram Dhayal

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Sher Singh Ram Dhayal

Sher Singh Ram Dhayal (Subedar) (born:28.06.1923), Shaurya Chakra, was a brave Subedar of Unit 6 Rajputana Rifles. He was from Kitlana village in tahsil and District Bhiwani, Haryana.

सूबेदार शेर सिंह राम धायल

सूबेदार शेर सिंह राम धायल

शौर्य चक्र

यूनिट - 6 राजपुताना राइफल्स (पीवीसी पलटन)

नागा उग्रवाद विरोधी ऑपरेशन

सूबेदार शेर सिंह राम का जन्म 28 जून 1923 को अविभाजित पंजाब (अब हरियाणा) के हिसार जिले की भिवानी तहसील के कितलाना गाँव में चौधरी रति राम धायल के घर में हुआ था। अपने गाँव के स्कूल से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात, उन्होंने 20 किमी दूर झोझू कला गाँव में रहकर हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त की थी।

झोझू कलां गाँव ऐसा गांव है, जिसे स्वतंत्रता से पहले और पश्चात भारतीय सेना (विशेष रूप से राजपुताना राइफल्स में) को बड़ी संख्या में यौद्धा देने का अनूठा गौरव प्राप्त है।

मैट्रिक के पश्चात, 28 जून 1940 को शेर सिंह राम भारतीय सेना की 13 राजपूत बटालियन में भर्ती हुए। लगभग एक महीने पश्चात, उन्हें 6 राजपूताना राइफल्स बटालियन में स्थानांतरित कर दिया गया। वे अपने पूरे सैन्य जीवन में इसी बटालियन में रहे थे।

15 जुलाई 1940 को अपनी स्थापना के पश्चात से ही 6th राजरिफ भारतीय सेना की एक अत्यंत सुशोभित बटालियन है। 6 राजपुताना राइफल्स को 'पीवीसी पलटन' भी कहा जाता है। सूबेदार शेर सिंह राम ने भी शौर्य चक्र सम्मान प्राप्त कर अपनी बटालियन की विरासत को आगे बढ़ाया।

वर्ष 1963 में 6 राजपुताना राइफल्स को उग्रवाद विरोधी अभियानों में नागालैंड ले जाया गया था। नागालैंड के रास्ते में, दीमापुर पहुंचने के पश्चात, इस बटालियन की A कंपनी त्वरित कोहिमा के लिए रवाना हो हुई। 3 फरवरी 1964 तक, A कंपनी ने पड़ौसी गांवों में निरंतर गश्त, घात, छापे, घेरा और खोज की कार्रवाइयों से बड़ी संख्या में संदिग्धों और कट्टर नागा विद्रोहियों को पकड़ा और उनसे कई हथियार, गोला-बारूद और विस्फोटक बरामद किए। कुछ समय में ही 6 राजरिफ ने नागालैंड में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और विद्रोहियों को दबा दिया।

13 नवंबर 1964 की, शाम 4 बजे, सुरक्षा बलों ने रेडियो सेट पर एक संदेश इंटरसेप्ट किया कि मणिपुर जा रहे लगभग 50 विद्रोहियों के कोहिमा के उत्तर-पश्चिम में लुंगथुल गांव में प्रवेश करने की संभावना है। A कंपनी ने अविलंब, 13/14 नवंबर 1964 की मध्यरात्रि तक घात स्थल पर पहुंचकर घात लगाने की योजना बनाई। सूबेदार शेर सिंह राम इस घात टुकड़ी के सेकिंड-इन-कमांड थे। यह कंपनी घने जंगल वाले कठिन क्षेत्र से तेजी से आगे बढ़ी और सशस्त्र उग्रवादियों पर घात लगाकर हमला किया।

परंतु, उग्रवादियों ने लाइट मशीन गन और मोर्टार फायर से तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। जब सभी प्लाटून लड़ाई में जूझ रहे थे, तो सूबेदार शेर सिंह राम को दुश्मन की लाइट मशीन गन पर हमला करके उसे शांत करने का आदेश दिया गया। घनघोर अँधेरी रात में, पूरा क्षेत्र भीषण गोलीबारी में घिरा हुआ था और दुश्मन की लाइट मशीन गन की ओर जाने वाला मार्ग कमर तक पानी भरे दलदली नाले से होकर जाता था।

सूबेदार शेर सिंह राम ने अपने मुट्ठी भर सैनिकों को प्रेरित किया, अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की उपेक्षा करते हुए, एक बड़ा कदम उठाया और एक किनारे से वह अपने सैनिकों को लाइट मशीन गन के 50 गज निकट ले गए। इसके पश्चात "राजा रामचंद्र की जय" (राजपूताना राइफल्स युद्धघोष) के साथ उन्होंने मशीन गन पर हमला किया। वह मशीन गन बंकर पर कूदे और अपनी स्टेन गन से अति निकट से फायर कर के मशीन गन क्रू को मार गिराया।

उनकी घात टुकड़ी के बिजली से प्रचंड हमले के साथ उग्रवादियों पर टूट पड़ने से उनमें खलबली मच गई। सूबेदार शेर सिंह राम के नेतृत्व में हुकुमों (राज रिफ जवानों) के आवेश और दृढ़ संकल्प को देखते हुए, शेष उग्रवादी घात स्थल से भाग गए। उन उग्रवादियों को, लंबे समय तक फिर कभी उस क्षेत्र में नहीं देखा गया।

A कंपनी द्वारा अत्यंत सावधानीपूर्वक नियोजित इस साहसिक घात ऑपरेशन में, सूबेदार शेर सिंह राम ने निर्भीक नेतृत्व, अदम्य साहस, दृढ़ संकल्प और कर्तव्य के प्रति उच्च स्तरीय समर्पण का प्रदर्शन किया, उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।

भारत-पाक युद्ध 1971 के छिड़ने से छह महीने पहले, जून 1971 में सेवानिवृत्त होने से पहले सूबेदार शेर सिंह राम को मानद कैप्टन रैंक प्रदान की गई। उन्हें 1971 के युद्ध में भाग नहीं लेने का सदैव खेद रहा। वह प्रायः कहते कि "अगर 6 महीने बाद पेंशन आता तो 71 की लड़ाई में भी पलटन के साथ कंधे से कंधा मिलाके लड़ाई लड़ता।" वास्तव में सैनिक ऐसे ही होते हैं।

सम्मान

सूबेदार शेर सिंह राम ने निर्भीक नेतृत्व, अदम्य साहस, दृढ़ संकल्प और कर्तव्य के प्रति उच्च स्तरीय समर्पण का प्रदर्शन करने के कारण सेना द्वारा उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।

स्रोत

रमेश शर्मा

References


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