Shivagotri
Shivagotri (शिवगोत्री) (also Shivgotri, Shib-gotra) is the division of Jats who have descended from Shiva.
H.A. Rose[1] writes that The Jats of the south-east Punjab have two other divisions,
- 1. Shibgotra and
- 2. Kashib-gotra.
The former are also called asl or real Jats and confess that their progenitor sprang from Shiva's matted hair and was so called jat bhadra. They have 12 gots, which are descended from the 12 sons of Barh, who conquered a large part of Bikaner. His descendants are chiefly sprung from Punia and they held the country round Jhansal.
These 12 gots are —
At weddings the Brahman at the sakha or announcement gives out their gotra as Kashib-gotra — not Shib-gotra. These 12 gots are said not to form exogamous groups, but only to marry with the Kashib-gotra. The Shib-gotras must, however
[Page-376]: form exogamous sections, though it may be that, as a general rule, they give daughters to the Kashib-gotra. The term Shib-gotra clearly implies some disparagement, but the Punia were once an important tribe because there used to be six cantons of Jats on the borders of Hariana and Bikaner, and of these four, viz., Punia, Kassua, Sheoran and Godara consisted of 360 villages each.
शिवी और जाट संघ
ठाकुर देशराज[2][3] लिखते हैं.... यह वर्णन तो हुआ गणतन्त्र के सम्बन्ध में। इससे सहज ही जाना जा सकता है कि कुलों की ओर से निर्वाचित मेम्बरों को गण और उनकी सभा को संघ, उनके अधिपति को गणों का अधिपति अर्थात् गणेश और गणपति कहते थे। उनके शासनतंत्र में सभी कुल समान समझे जाते थे। शिवि लोगों के यहां भी गणतन्त्र शासन-प्रणाली थी। महाभारत में इसका नाम शैवल करके आया है। बौद्ध-ग्रन्थों में इन्हें शिवि और पतंजलि ने ‘शैव्य’ लिखा है। सिकन्दर के साथी यूनानी लेखकों ने इसे शिबोई नाम से उल्लेख किया है। पीछे से पंजाब प्रान्तों को छोड़ ये लोग मालवा में जा बसे थे। सिकन्दर के समय में शिवि लोग मालवों के साथी थे। चित्तौड़ के निकट ‘नगरी’ स्थान में इनके सिक्के पाये गए हैं। उन सिक्कों पर ‘‘मज्झिमकाय शिवि जनपदस’’ अंकित है। मध्यमिका (मज्झिमिका) इनकी राजधानी थी। हिन्दू पॉलिटी के लेखक श्री काशीप्रसाद जायसवाल लिखते हैं कि - ई.पू. पहली शताब्दी के बाद इनके अस्तित्व का कोई प्रमाण या लेख अभी तक नहीं मिला है।1 जाटों में एक बड़ा भाग शिवि गोत्री जाटों का है। ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स ऑफ दी नार्थ वेस्टर्न प्रॉविन्सेज एण्ड अवध में मिस्टर विलियम क्रुक साहब लिखते हैं -
- The Jats of the south-eastern provinces divide them selves into two sections - Shivgotri or of the family of Shiva and Kashyapagotri.
अर्थात् - दक्षिणी पूर्वी प्रान्तों के जाट अपने को दो भागों में विभक्त करते हैं - शिवगोत्री या शिव के वंशज और कश्यप गोत्री ।
इससे यह नतीजा तो नहीं निकालना चाहिए कि शिवि लोग ही जाट हैं। हां, यह अवश्य है कि शिवि लोग भी महान् जाट जाति का एक अंग हैं। ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि अनेक गण मिल करके एक संघ या लीग स्थापित कर लेते थे। क्षुद्रक और मालवों ने मिल करके एक संघ स्थापित किया था। इसी तरह से शिवि लोग भी एक बड़े संघ जट (पाणिनि ने जट का अर्थ संघ किया है) में मिल गये और आज भी एक गोत्र के रूप में जाटों में विद्यमान हैं। बौद्ध-धर्म के अन्तिम काल तक भारतवर्ष में गणतन्त्र शासन-प्रणाली मौजूद थी। ज्यों-ज्यों नवीन हिन्दू-धर्म और राजपूतों का उत्कर्ष होता गया, त्यों-त्यों भारतवर्ष में एकतन्त्र शासन का जोर बढ़ता गया और प्रजातन्त्र घटते गए। यह भी हो सकता है कि यह शिव-वंश के जाट शैव-मतानुयायी रहे हों। चूंकि आरम्भ में शैव और वैष्णव सम्प्रदायों में काफी विरोध रहा था, उसी विरोध को तोड़-मरोड़ करके दक्ष के यज्ञ वाली कथा का सम्बन्ध जोड़ा गया हो। नवीन हिन्दू धर्म की व्यवस्था के अनुसार गण-तन्त्रवादी
- 1.हिन्दू राज्य-तंत्र, पेज 108
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-92
अथवा जैन-बौद्ध-धर्मावलम्बी अनार्य म्लेच्छ और धर्म-हीन संज्ञा से पुकारे ही जाते थे। यदि शिव जाति के सम्बन्ध में भी उनके धर्म-ग्रन्थों में इन्हीं शब्दों में याद किया हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। गणतन्त्रवादी कुछ समुदायों में से जब कुछ समूह हिन्दू-धर्म में सम्मिलित हुए हों तो बहुत सम्भव है कि उनके पूजनीय और श्रद्धेय गणेश की पूजा को उनकी प्रसन्नता के लिए सम्मिलित कर लिया हो। हमारा कथन इस बात से भी पुष्ट होता है कि गणपति-पूजा का रिवाज महाराष्ट्र प्रान्त में अधिक है और यह सर्वविदित बात है कि मराठे आरम्भ में गणतन्त्रवादी ही थे। पं. सातवलेकर ने मराठों को नागवंशी माना है। नाग एकतन्त्री न होकर प्रजातन्त्रवादी ही थे। हमारा प्रसंग सिर्फ जटा और जाट तक है। गणेश का इतना विस्तृत विवरण हमें इसलिए करना पड़ा है कि लोग शिवजी की जटा से जाटों की उत्पत्ति की अवैज्ञानिक बात का विश्वास छोड़ करके वास्तविक इतिहास समझ लें।