Shambhu Singh Bhukar
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Shambhu Singh Bhukar (born:1883) was a martyr and Hero of Shekhawati farmers movement. He belonged to village Gothra Bhukaran. He was killed by the Jagirdars on 22.3.1935 at village Khuri Chhoti in Sikar district in Rajasthan.[1]
Variants of name
- Shimbhu Ram Bhukar (शिम्भूराम भूकर)
- Shambhu Singh Bhukar (शंभूसिंह भूकर)
- Shimbhu Singh Bhukar (शिम्भूसिंह भूकर)
- Shahid Chaudhary Sambhu Singh (शहीद चौधरी शंभूसिंह)
जीवन परिचय
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....शहीद चौधरी शंभूसिंह जी- [पृ.317]: खुड़ी कांड में जिन दूसरे जाट सरदार ने वीरगति प्राप्त की वे चौधरी शंभूसिंह जी हैं। आपका जन्म संवत 1940 (1883 ई.) में चौधरी फल्लू रामजी गोठड़ा भूखरान निवासी के घर हुआ था। आप कुँवर पृथ्वीसिंह जी के सत्संग से कोमी सेवा के मार्ग पर उतरे थे। जिस समय आपने सुना की खुड़ी में जाट बरात रोक ली है, दूल्हा को घोड़े पर चढ़कर तोरण मारने से अक्ल के अंधे ठिकानेदार के आदमी रोकते हैं तो खुड़ी पहुंचे और मोर्चे पर वीरगति को प्राप्त हुए आप के पुत्र केसाराम जी हैं।
शिम्भूराम भूकर शहीद हो गए
रणमल सिंह[3] लिखते हैं कि सन् 1934 के प्रजापत महायज्ञ के एक वर्ष पश्चात सन् 1935 (संवत 1991) में खुड़ी छोटी में फगेडिया परिवार की सात वर्ष की मुन्नी देवी का विवाह ग्राम जसरासर के ढाका परिवार के 8 वर्षीय जीवनराम के साथ धुलण्डी संवत 1991 का तय हुआ, ढाका परिवार घोड़े पर तोरण मारना चाहता था, परंतु राजपूतों ने मना कर दिया। इस पर जाट-राजपूत आपस में तन गए। दोनों जातियों के लोग एकत्र होने लगे। विवाह आगे सरक गया। कैप्टन वेब जो सीकर ठिकाने के सीनियर अफसर थे , ने कटराथल गाँव के चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल जो उस समय जाट पंचायत के मंत्री थे, को बुलाकर कहा कि जाटों को समझा दो कि वे जिद न करें। चौधरी गोरूसिंह की बात जाटों ने नहीं मानी, पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। इस संघर्ष में दो जने शहीद हो गए – चौधरी रत्नाराम बाजिया ग्राम फकीरपुरा एवं चौधरी शिम्भूराम भूकर ग्राम गोठड़ा भूकरान । हमारे गाँव के चौधरी मूनाराम का एक हाथ टूट गया और हमारे परिवार के मेरे ताऊजी चौधरी किसनारम डोरवाल के पीठ व पैरों पर बत्तीस लाठियों की चोट के निशान थे। चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल के भी पैरों में खूब चोटें आई, पर वे बच गए।
खुड़ी में गोलीकांड 1935
संभावना यह थी कि ठिकानेदारों के किसानों के साथ हुए दोनों समझौते 23 अगस्त 1934 और 15 मार्च 1935 अब अवश्य ही अमल में आएंगे किन्तु इस समझौते के ठीक पांचवें दिन एक ऐसी घटना हुई जिसने सारा खेल बिगड़ दिया. 20 मार्च 1935 को खुड़ी गाँव में एक जाट लड़की का विवाह था. जाट घोड़ी पर बैठकर तोरण मारना चाहते थे परन्तु वहां के राजपूत भौमियों ने ऐसा करने से रोक दिया. जाटों ने सीकर के अधिकारियों से भौमियों के इस अनुचित हस्तक्षेप के खिलाफ कार्यवाही करने की प्रार्थना की. सीकर के अधिकारियों ने भौमियों को नेक सलाह देने के बजाय दुल्हे के एक सम्बन्धी को गिरफ्तार कर लिया. इसका नजीता यह हुआ कि भौमियों का दिमाग और शह पर चढ़ गया और उन्होंने दूसरे दिन 22 मार्च 1935 को रतनाराम बजिया का , जबकि वह ठाकुरों की कोटड़ी के सामने से जा रहे थे, सर काट दिया. जाट इस पर भी शांत रहे. उन्होंने तोरण मारने के लिए धरना दे दिया, बारात वापस न की. जाट व राजपूत दिन-प्रतिदिन बड़ी संख्या में एकत्रित होने लगे. स्थिति गंभीर होती गयी. तब 27 मार्च 1935 को कैप्टन वेब स्वयं खुड़ी पहुंचे और जाटों और राजपूतों को बिखर जाने का आदेश दिया. राजपूत तो बिखर गए, परन्तु जाट डटे रहे. तब वेब ने लाठीचार्ज का हुक्म दे दिया. लाठी चलाने में गाँव के ठाकुरों ने भी आगे बढ़कर भाग लिया. वेब के सामने ही बर्बरता का खुला प्रदर्शन हुआ. निहत्ते किसान जमीन पर लेट गए. इस काण्ड में दो आदमी जान से मरे और 100 के लगभग घायल हुए. [4] इस घटना पर महात्मा गाँधी ने 'हरिजन' में बड़े कड़े शब्दों में अपनी टिपण्णी लिखी. "जयपुर राज्य के अंतर्गत सीकर के ठिकाने में खुड़ी नाम का एक छोटा सा गाँव है. ...गत 27 मार्च को राजपूतों की एक टोली ने जाटों की एक बारात को घेर लिया और बेचारे निहत्ते जाटों पर उसने बुरी तरह लाठियां बरसाईं. गुस्ताखी उन बारातियों की यह थी कि उनका दूल्हा घोड़े पर स्वर था. ...राजपूतों ने इस लाठीचार्ज के पहले ही एक जाट को क़त्ल कर दिया... आशा करनी चाहिए कि राज्य के अधिकारी इस मामले की पूरी तहकीकात करेंगे और गरीब जाटों को ऐसा उचित संरक्षण देंगे की जिससे वे उन सभी अधिकारों को अमल में ला सकें जो मनुष्य मात्र को प्राप्त हैं." [5][6]
सन्दर्भ
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.317
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.317
- ↑ रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0 पृष्ठ 113
- ↑ [बीकानेर कोंफिड़ेंसियल रिकोर्ड, फ़ाइल न. २९-सी, रा.रा.ए. बीकानेर, दी सन्डे स्टेट्समेन 31 मार्च 1935]
- ↑ ठाकुर देशराज : जाट जन सेवक,पृ.279-280
- ↑ डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.116
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