Sotya Ka Bas
Sotya Ka Bas (सोतिया का बास) (Sotiya Ka Bas) is a small village in Sikar tahsil and district in Rajasthan.
Jat Gotras
History
सिहोट ठाकुर द्वारा दमनचक्र
शेखावाटी प्रजापति महायज्ञ सीकर 1934 के बाद रावराजा द्वारा दमनचक्र चल ही रहा था कि सिहोट के ठाकुर मानसिंह ने 200 हथियारबंद आदमियों के साथ सोतिया का बास नामक गाँव पर लगान वसूली के बहाने हमला कर दिया. मारपीट से गाँव में कोहराम मच गया. किसानों व बच्चों को गिरफ्तार कर मारते-पीटते गढ़ में ले गए और वहां कोठरी में बंद कर अनेक प्रकार की अमानुषिक यंत्रणाएं दी व खाने पिने को कुछ नहीं दिया. स्त्रियों द्वारा गाँव में विरोध करने पर ठाकुर के आदमी उन पर टूटपड़े, कपड़े फाड़ दिए और एक स्त्री को नंगा कर दिया. डॉ पेमाराम ने ठाकुर देशराज के जाट जन सेवक पृ. 237-238 में छपे इस गाँव की कानूड़ी देवी उम्र 21 वर्ष, जिसे नंगा किया गया था, का बयान उद्धृत किया है जो रोंगटे खड़े करने वाला है. घरों में घुसकर स्त्रियों के साथ मारपीट की गयी. कई स्त्रियों के तो इतनी चोटें आई कि वे बेहोश हो गईं. सिहोट ठाकुर द्वारा किसान स्त्रियों के साथ इस प्रकार के किये काण्ड से इलाके भर में व्यापक रोष फैला. [1][2]
ठाकुर देशराज[3] द्वारा जाट जन सेवक में प्रकाशित सिहोट ठाकुर के दमनचक्र के भुक्त भोगी सोतिया का बास के लोगों के बयान यथावत नीचे दिये जा रहे हैं:
लक्ष्मी देवी (लछमड़ी) देवी जोजे नंदा कौम जाट साकिन सौतिया का बास, तहसील सिगरवाट ठिकाना सीकर की हूं। उम्र 55 वर्ष मैं ईश्वर को साक्षी देकर सत्य सत्य कहूंगी।
मैं ठिकाना सीहोट के ठाकुर के गांव सौतिया का बास की रहने वाली हूं और हमारे ठाकुर का नाम भानसिंह है। करीब 3 महीने का वाका हुआ ठाकुर ने हमारे घर पर बालजी, जो कि उनके नौकर रहता है, भेजा और उसने आकर कहा कि हरी की लाग (जोकि कार्तिक की फसल में लगान से ज्यादा लागों में से है) के रुपए मांगे। मेरे मालिक नंदा ने जवाब दिया कि अभी हमने दूसरी लाग के 35 रुपये लगान के अलावा दे चुके हैं और इस को भी कमा कर दे देंगे। उस पर उसने कहा कि अभी कुआं चलाना बंद कर दो और हमारे कांकड़ हद में अपने मवेशियों को न चरने दो, न पाला काटो और न कुओं से पानी पियो, न मवेशियों को पानी पिलाओ। थोड़ी देर के बाद उनको ठाकुर ने भेजा और मेरे मकान को घेरकर मेरे मालिक नंदा और मेरे लड़के गणेश को गाली देते हुए मारने लगे और मेरे मालिक नंदा को पकड़कर पीटना शुरु कर दिया। मैं हल्ला सुनकर घर से बाहर निकली और अपने लड़के और अपने मालिक को बचाने लगी। इस पर मुझको भी मारना शुरू कर दिया। मुझ पर तीन लाठी चलाई। गंगला दरोगा ने और चंद्र बक्सा दरोगा ने लाठी मारी और मैं बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी। उसके बाद थोड़ी देर तक मुझ को बेहोशी रही और जब मुझको होश हुआ मैंने अपने लड़के और मालिक को वहां पर नहीं देखा। मुझको बीधा और पीथा हनुमाना लादू ने चार पाई पर डाल दिया मैंने अपने देवर बीधा से पूछा
[पृ 235]: कि मेरा मालिक और लड़का कहां है तो उसने कहा कि उनको तो ठिकाने के आदमी मारते पीटते अपने घोड़ों के आगे आगे डालकर गढ़ को ले गए और मुझको मेरी चारपाई पर पड़ी हुई को बीधा पीथा हनुमाना बालाई ने तहसील सिगरावट को ले गए। सिगरावट के तहसीलदार, जिसके पास ठाकुर मानसिंह जी के सवार पहले ही जा चुके थे और उनके कान भर दिए थे, मेरी कुछ सुनवाई नहीं की और मुझको चारपाई समेत धूप में डलवा दिया और शाम को पानी पीने दिया। न खाने को दिया मेरे मालिक और बेटों को सीहोट में गढ़ के भीतर कोठों में बंद कर दिया और तीन दिन तक बंद रखा और रोज उनको मारते-पीटते और अमानुषिक तकलीफ़ें दी। उन्हें इस बीच खाना-पीना कुछ भी नहीं दिया। मुझको एक दिन के बाद सिगरावट से जब सीकर के अस्पताल में ले गए तो मेरी सिनवाई डाक्टर सीकर ने भी नहीं की और मुझको अस्पताल से बाहर निकाल दिया। और कहा कि अपने घर जाओ और वहाँ मारो यहाँ मिट्टी खराब होगी। मेरे जो चोटें आई हैं मेरे बदन में अभी तक तकलीफ देती और दुखती हैं। मेरी बड़ी बुरी दशा की गई और अभी तक किसी ने भी सुनवाई नहीं की है।
[पृ.235]: मैं कि पारकी जौजै हीरा कौम जाट साकिन सौतिया का बास, ठिकाना सीहोट तहसील सिंगरावट सीकर, उम्र 40 साल मैं ईश्वर को जानकर ठीक ठीक बयान करूंगी।
बयान किया कि 3 महीना हुआ सीहोट के ठाकुर
[पृ.236]: मानसिंह जी ने जो कि हमारे गांव के जागीरदार हैं आदमी और सवारों को भेजा जो कि करीब 5 गांव के आदमी जिन में राजपूत और उनके नौकर थे आए जिनकी संख्या करीब 150-200 की थी। गांव में आए और आदमियों और बच्चों को पकड़कर गढ़ में चलने के लिए कहा। आदमियों ने जवाब दिया कि हम लोग गढ़ में चलते हैं इन बच्चों का गढ़ में ले जाकर क्या करोगे। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि तुमने हमारे हुक्म के अंदर क्यों दखल दिया। इनको जल्दी लड़के और और लड़कियों को पीटते हुए घसीट कर ले चलो। वे तमाम लोग हल्ला बोल हम पर टूट पड़े और पीटना शुरु कर दिया और तमाम आदमियों और बच्चों को मारते पीटते घसीटते हुए गढ़ को ले गए। करीब 2 घंटे के बाद वह फिर आए और हम औरतों को हमारे आदमियों की गैर हाजरी में घरों में घुसा और औरतों को पकड़ना घसीटना और मारना शुरू कर दिया। मेरे घर में भी कुछ आदमी आए जबकि मैं अपने बाड़े में गाय भैंस को चारा डाल रही थी। घर हो कर वे फिर मेरे पास बाड़े में पहुंचे और मुझको भी उन्होंने पकड़ लिया। गाली गलोज और मुझ से मारपीट करके छोड़ गए। वे मेरे मालिक जिसको कि और दूसरों के साथ मारते पीटते गढ़ को ले गए। वे उसको भी दूसरों की तरह घोड़ों के अस्तबल में ले जाकर बंद कर दिया और 3 दिन तक दूसरों की तरह मारपीट कर गढ़ की कोठरी से बाहर निकाल दिया। हम लोगों को न खाना खाने देते हैं न पानी पीने देते हैं और ठाकुर सीहोट कहते हैं हमारी कांकड़ (हद) को छोड़कर कहीं दूसरी जगह चले जाओ नहीं तो तुम को और भी तंग किया जाएगा और
[पृ.237]: बुरी दशा होगी। हम लोग इधर इधर अभी तक कभी कहीं कभी कहीं मारे मारे फिरते हैं और जो मार मुझको और मेरे मालिक को पड़ी है वह अभी तक तकलीफ देती है।
निशानी अंगूठा पारकी देवी
मैं कि कानूड़ी जोजे दुदाजी साकिन सौतिया का बास, ठिकाना सीहोट तहसील सिंगरावट (सीकर) उम्र 21 वर्ष ईश्वर को साक्षी देकर सभी ठीक ठीक बयान करूंगी।
करीब 3 माह का अर्सा हुआ है हमारे गांव सौतिया का बास पर ठाकुर मानसिंह ठिकाना सीहोट ने करीब 200 आदमी मय सवारों के भेज दिए जो कि करीब 5 गांव के राजपूत और नौकर थे। हमारे गांव के आदमी कोई अपने खेत और कोई अपने खला (खलियान) में था। मैं और मेरा मालिक अपने बाड़े में गाय और भैंस का दूध निकाल रहे थे। ठिकाने के आदमी और सवार मारपीट करते और गालियां निकालते हुए हमारे बाड़े में घुस आए और मालिक से कहा कि हमारे साथ चलो। मेरे मालिक ने कहा ग्वार खलियान में पड़ा है और उसको ठीक कर के चला चलूंगा। इस पर उन्होंने उस को गाली देना और मारना शुरू कर दिया और उसके मुंह में कपड़ा भर दिया और उन को घसीटते हुए ले चले। मैं यह देख कर डर के मारे रोने लगी। इस पर मुसलमान जावदी खां ने कहा इस बदमाश औरत को भी पकड़ लो और खूब मरमत करो यह चिल्ला कर गांव के दूसरे आदमी को इकट्ठा करना चाहती है। इस पर बहुत से आदमी मुझ पर टूट पड़े और मेरे तमाम कपड़े फाड़ डाले और मैं कपड़े फट जाने पर ऐसी
[पृ.238]: हो गई जिसका कि मैं बयान नहीं कर सकती। (यह कहकर औरत रोने लगी और कहने लगी ज्यादा पूछकर क्या करोगे। रोते-रोते उसकी हिलकियां बन गई) मेरे मालिक को तो 3 दिन तक सिहोट के गढ़ में औरों की तरह काठ में दे दिया और कहा अपने तमाम कपड़े उतार दो। मेरे मालिक ने कुर्ता और साफा तो उतार दिया मगर धोती उतारने की माफी चाही। इस पर उसके शरीर पर ठंडा पानी छिड़का गया और इतना पीटा गया कि वह बेहोश हो गया। तब उसे तंबाकू के कोठे में बंद कर दिया गया और दो तीन दिन तक कुछ भी सुध न ली। तीसरे दिन जो पेशाब उसने कोठे में किया था उसका भी उससे साफ करवाया गया। मेरा मालिक उसी वक्त से घर पर आकर बीमार हो गया है।
जबकि मैं अपने बाड़े में बिना कपड़े लते के मार की वजह से बेहोश पड़ी थी तो मेरी सास और ननद आई और मुझको उठाकर ले गई। मेरी सास और ननद उस समय वहां पर नहीं थी, खेत में थी। नहीं तो उनकी भी यही हालत होती। वह मेरी इस हालत को देख कर रोने लगी।
(वह कुछ और कहना चाहती थी परंतु फिर वह दुर्घटना स्मरण होने से जी भर आया और रोते हुए बंद हो गई)
निशानी अंगूठा कानूड़ी देवी
पाठ्यपुस्तकों में स्थान
शेखावाटी किसान आंदोलन ने पाठ्यपुस्तकों में स्थान बनाया है। (भारत का इतिहास, कक्षा-12, रा.बोर्ड, 2017)। विवरण इस प्रकार है: .... सीकर किसान आंदोलन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सीहोट के ठाकुर मानसिंह द्वारा सोतिया का बास नामक गांव में किसान महिलाओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार के विरोध में 25 अप्रैल 1934 को कटराथल नामक स्थान पर श्रीमती किशोरी देवी की अध्यक्षता में एक विशाल महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया। सीकर ठिकाने ने उक्त सम्मेलन को रोकने के लिए धारा-144 लगा दी। इसके बावजूद कानून तोड़कर महिलाओं का यह सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में लगभग 10,000 महिलाओं ने भाग लिया। जिनमें श्रीमती दुर्गादेवी शर्मा, श्रीमती फूलांदेवी, श्रीमती रमा देवी जोशी, श्रीमती उत्तमादेवी आदि प्रमुख थी। 25 अप्रैल 1935 को राजस्व अधिकारियों का दल लगान वसूल करने के लिए कूदन गांव पहुंचा तो एक वृद्ध महिला धापी दादी द्वारा उत्साहित किए जाने पर किसानों ने संगठित होकर लगान देने से इनकार कर दिया। पुलिस द्वारा किसानों के विरोध का दमन करने के लिए गोलियां चलाई गई जिसमें 4 किसान चेतराम, टीकूराम, तुलसाराम तथा आसाराम शहीद हुए और 175 को गिरफ्तार किया गया। हत्याकांड के बाद सीकर किसान आंदोलन की गूंज ब्रिटिश संसद में भी सुनाई दी। जून 1935 में हाउस ऑफ कॉमंस में प्रश्न पूछा गया तो जयपुर के महाराजा पर मध्यस्थता के लिए दवा बढ़ा और जागीरदार को समझौते के लिए विवश होना पड़ा। 1935 ई के अंत तक किसानों के अधिकांश मांगें स्वीकार कर ली गई। आंदोलन नेत्रत्व करने वाले प्रमुख नेताओं में थे- सरदार हरलाल सिंह, नेतराम सिंह गौरीर, पृथ्वी सिंह गोठड़ा, पन्ने सिंह बाटड़ानाउ, हरु सिंह पलथाना, गौरू सिंह कटराथल, ईश्वर सिंह भैरूपुरा, लेख राम कसवाली आदि शामिल थे। [4]
Population
As per Census-2011 statistics, Sotya Ka Bas village has the total population of 901 (of which 458 are males while 443 are females).[5]
Notable persons
External links
References
- ↑ डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.94-95
- ↑ [पिलानिया:सरदार हरलाल सिंह, p.28]
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.234-238
- ↑ भारत का इतिहास कक्षा 12, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, 2017, लेखक गण: शिवकुमार मिश्रा, बलवीर चौधरी, अनूप कुमार माथुर, संजय श्रीवास्तव, अरविंद भास्कर, p.155
- ↑ http://www.census2011.co.in/data/village/81580-sotya-ka-bas-rajasthan.html
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